फिर धन्नो बोली :-" अरे ये चोद तकिया कहाँ से लाइ हो .......ये तो बहुत बढ़िया हे ......इसी पर इस हरजाई के चुतड टिका के इसे इतना चोदो की इसकी बूर मिमिया जाये .....!"उस तकिये पर एक नज़र दाल कर सुक्खू बोल :-" अरे ....ये तो ठाकुर साहब वाला चोद तकिया हे ....इसमें गुलाबी की गांड एकदम सही फिट होती हे इसलिए ठाकुर इसे इसी पर लिटा कर कई बार चोदते हे ......और ना जाने ठाकुर साहब से चुदने के लिए गाँव की कितनी ही गाँडे इसमें फंसी होगी ....!"गुलाबी सुक्खू की बात सुनकर अपनी साडी के पल्लू से मुह ढक कर किसी लजीली नारी की तरह बोली :-"चुप तो रहो ...जो मन में आये बोल देते हो .....मेरी इज्जत की तो मानो तुम्हे कोई फिकर ही ना हे ....हे हे हे हे हे ....!"इतना बोल कर गुलाबी जोर से हंस पड़ी !तब धन्नो बोली :-" ठाकुर साहब और इस सुक्खू के लंड पर बिना नागा रोज बेठने वाली हे तू ....भला तेरी इज्जत पर कौन दाग लगाएगा ...हा हा हा हा ...!" फिर धन्नो सुक्खू से बोली :-"अब देर मत कर ...बूर काफी गीली हो इसकी .....और इसकी बूर तेरे मूसल को सेट कर ले ...इससे पहले ही ....इसकी गांड इस चोद तकिया पर टिकाओ और खूब चोद चोद कर इसकी बूर का रेशा रेशा लाल कर दो ...चलो अब जल्दी करो ...हुमच हुमच कर चोदो इसे ...!"फिर तो दुसरे ही पल सुक्खू वेसे ही अपना लंड घुसाए सावत्री को उस बिस्तर पर चित लिटा दिया !सावत्री के गोल मोटे चुतड उस चोद तकिये में बने दो गहराई के चुतड के आकार के गड्ढों में एकदम फिट बेठ गए जिसे देख कर गुलाबी एक दम चौंक गई और बोली :-" अरे ...देख ...इसकी गांड इस चोद तकिये कितनी फिट बेठ रही हे ......इसकी तो गांड इतनी चोडी लगती नहीं हे जितनी हे ...ये तो कुंवारी हे पर इसकी गांड मेरे जितनी चौड़ी हे जबकि में २ बच्चों की मा हु .....देख तो इस चोद तकिये में ठकुराइन और मेरी उम्र की ओरतों के के चूतड ही फिट होते हे ....और इसमें इस साली के चुतड भी फिट हो गई ...इसका मतलब ये बहुत चुदक्कड हे या इसकी गांड किसी ने मार मार कर चोडी कर दी हे ...!"तब धन्नो बोली ;-'अरे .....ये कोई चुदक्कड या गंड मरी लड़की नहीं हे अभी तो इसे छिनाल बनाना शुरू किया हे ...तो ये चूत भी कितनी मुस्किल से मरा रही हे तो गांड केसे मरवा लेगी ....इसका चुतड एक दम से इसकी माँ पर गया हे ....इसकी माँ के भी चुतड ऐसे ही बड़े और भारी हे ...!"तभी सुक्खू जेसे ही सावत्री की चुतड उस चोद तकिये में फिट हुआ उसने उसकी झांगों को मोड़ कर अपनी झांगों पर चढ़ा लिया !
सावत्री को लगा जेसे एक पल उसकी सांस ही रुक जाएगी ! फिर उसने सावत्री की चुचियों को कुछ् देर समीज के ऊपर से ही मसला ही था की धन्नो ने चित लेती सावत्री की समीज को जोर लगा कर ऊपर की तरफ सरका दी !सावत्री ने उसके हाथ को रोकने का एक पल के लिए असफल प्रयास किया पर धन्नो ने उसकी ब्रा भी ऊपर की तरफ सरका दी और सुक्खू के सामने सावत्री की गोल मोटी सांवली बड़ी बड़ी चुचियाँ नंगी होकर हिलने लगी !दोनों सांवली चुचियों की काली गुन्डिया एक दम से खड़ी थी !फिर तो सुक्खू ने सावत्री की मांसल चुचियों पर अपने हाथों की विशाल हथेलियों को कस लिया और उनका सहारा ले कर अपने मोटे लंड को सावत्री की छोटी सी बूर में गपागप गपागप पेलने लगा !सावत्री को लगा सुक्खू आज उसकी चूचियां उसके सीने से उखाड़ देगा साथ ही उसके मोटे लंड से उसकी बूर की दीवारों
में जबरदस्त खिंचाव होने के कारन वो सिस्कार कर चीख उठी :-"
अर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र ........मोरी मैय्या ......मर गई री में ....अरे च चाचा दुखत हे .....अब बाहर निकाल लो ......बहुत मोटा हे तोहार .....मेरी बूरिया फट गई रे ....अब बस ...अरे .....मर गई रे ...आआआआआआआह .....ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हु .....आआय्य्य्य्युन ........च चाचा ....ध धीरे हम मर जाई आज .....!"इतना सुनकर धन्नो बोली :-" और कस कस कर चोदो इस रंडी को .......आज ही कब्जे में आई हे ये .....इसकी माँ ने पुरे गाँव में मुझे बदनाम कर दिया हे आज उसका बदला इससे लेना हे ...गाँव की सबसे बड़ी रंडी बनाना हे इसे .....सरे गाँव से चुदवाना हे मुझे ...इसकी बूर को अपने मूसल से इतना चोदो की फेल कर किसी अधेड़ रंडी की जैसी हो जाये ......इस रंडी की किसी कुतिया की तरह चोदो बिलकुल रहम मत करो सुक्खू ....इसको किसी पागल कुत्ते की तरह बमभोद दो ....मादरचोद रंडी की जीभ बाहर आ जानी चाहिए ....अपनी मर्दानगी दिखा दो !"कहते कहते धन्नो का गुस्से से चेहरा लाल हो गया था और सुक्खू द्वारा ताबड़तोड़ धक्के देने से और सावत्री की चीखें निकलने से उसके चेहरे पर एक संतुष्ट सा भाव आ रहा था !धन्नो फिर आगे बोली :-" फाड़ दो इसकी बूर की मोटा मोटा लंड भी आसानी से लेले ....बिलकुल बेशरम रंडी बना दो इसे ...और इस चोदतकिया में इसकी गांड पूरी फिट कर दो की ये उठे तो चोदतकिया साथ ही उठे हे हे हे हे !"और वो क्रूर हंसी हंस पड़ी !
सावत्री आज धन्नो चाची का दूसरा रूप देख रही थी जो उसकी माँ से इतनी नफरत करता था और उसका बदला उसकी बेटी की चूत फडवा कर ले रहा था ! सावत्री महसूस कर रही थी की सुक्खू के जंगली तूफानी धक्कों से उसका पूरा शरीर ही ल रहा था अगर चारपाई पर उसकी चुदाई होती तो वो कब की टूट जाती इतने भयंकर धक्के वो लगा रहा था पर उसके चुतड वाला हिस्सा जो चोद तकिये में फंसा था बिलकुल नहीं हिल रहा था टस से मस भी नहीं हो रहा था मानो उसकी कमर को किसी ने कस के पकड रखा हो !इस कारन सुक्खू का मोटा लंड झड तक अन्दर जा रहा था और एक दम सही धंसता और निकल रहा था ! चोदतकिया पर उसके चुतड नहीं होते तो हर धक्के के साथ वो कुछ ऊपर की तरफ सरक जाती और मोटे लंड की मार से कुछ बच जाती पर अब उसकी हालत ख़राब थे ! सावत्री की बूर की काफी गहराई तक चुदाई हो रही थी बार बार हर बार सुक्खू के लंड का सुपाडा सावत्री की बच्चेदानी के मुह से टकरा रहा था और सावत्री दर्द से दोहरी हो रही थी !सुक्खू अब कस कस के चोदने लगा था उसके धक्को की रफ़्तार तूफानी हो गई थी ! सुक्खू का लंड ठाकुर साहब के लौड़े से भी बड़ा और मोटा था पंडित का तो इन दोनों के सामने पिद्दी जेसा ही था और रही सही कसर इस चोद तकिये ने पूरी कर दी थी सुक्खू का लंड सावत्री की चूत में वहा तक जा रहा था जहा तक ठाकुर साहब और पंडित जी की बीसियों बार की गई चुदाई में भी नहीं पहुंचा था !काफी देर मिन्नते करके सावत्री भी चुप हो गई और इस चुदाई को नियति मान कर सोच रही थी की कब ये सांड अपना पानी छोड़े और उसकी सवारी करना बंद कर उसके नीचे उतरे ये सोचते सोचते सावत्री ने अपनी आँखें बंद कर ली और अपना मुह खोल दिया अब उसकी बूर में इतना दर्द नहीं हो रहा था चूत की दीवारों ने इस नए तगड़े मेहमान के स्वागत में पानी छोड़ दिया था इसलिए उसका आवागमन सुगम हो गया था !सावत्री ने अपना मुह पूरा खोल दिया था और वो हांफ सी रही थी और मुह से सांस ले रही थी !सुक्खू उसकी इस हालत को देख कर और उत्तेजित हो गया और जोरों से धक्के मारते और उसके बदन को भंभोडते सा चीखता सा बोला :-" तेरी माँ को चोदुं ...साली रंडी ....आज तेरी चूत के परखच्चे उदा दूंगा ...हरजाई ...छिनाल रंडी ...कितने नखरे किये मुझ से चुदाने में ...में आज तेरी माँ चोद दूंगा .....ले मेरा मोटा लंड खा रंडी ...तेरी माँ की चूत चोदुं .....तेरी माँ की मोटी
गांड में मेरा लंड डालूं ....मादरचोद साली आज मेरे बच्चे की माँ बन तू
.....मेरा बच्चा पैदा कर गाँव में घूमना बिनब्याही माँ बने रंडी ...हरामजादी ..साली ....आज तेरा भोसड़ा फाड़ कर रहूँगा !" उत्तेजना में सुक्खू अनापसनाप बक रहा था दांत भींच कर धक्के मार रहा था सुक्खू का अधेड़ बदन पसीने पसीने हो गया था पर उसकी कमर किसी एक्सप्रेस ट्रेन की तरह चल रही थी !
कोठरी में चुदाई का संगीत गूंज रहा था साथ में सावत्री की सिसकिया भी पर अब वो आनंद की सिसकिय थी !खप -खप , गप -गप ,सट -सट .फट -फट , भच -भच , फच -फच और जेसे कभी बच्चे मुह से जीभ और नीचले होटों को मिलकर उसमे थूक भर कर जेसी आवाज़े निकलते हे वेसी ही आवाजें अब सुक्खू के लंड और सावत्री की पनियाई चूत में घर्सन से आ रही थी जिसे कोई बहार से ही सुनकर बता सकता था की अन्दर चुदाई चल रही हे च ...चत ..पुच ..पच !अब सावत्री ने जब सुक्खू की गालिया सुनी और ख्यालों में सुक्खू का विशाल लंड और अपनी माँ की चूत का मिलन देखा और वो आनंद में आ गई और जेसे सातवें आसमान में उड़ने लगी !जब बूर में लंड फंसा हो और कोई हुमच हुमच कर चोद रहा हो तो गन्दी से गन्दी गाली भी बूर की आग को और बढा देती हे !धन्नो भी हंस कर बोल पड़ी :-'चोद के इसका पांव भारी कर दो .....पेट ले कर गाँव में घूमेगी साली .....तो ये और इसकी माँ दोनों बदनाम हो जाएगी ...जब इसकी शादी होगी तो ससुराल में ये ही बच्चा पेट में लेकर जाएगी और साली वह 9 महीने से पहले ही ब्या जायेगी ..हा हा हा हा ....फिर धन्नो हंसने लगी !फिर गुलाबी भी हँसते हुए बोली :-"असली मर्द तो तभी में समझूंगी .....जब इसी चुदाई से इसका गर्भ ठहर जाये !"ये सुनकर सुक्खू बूर में कस कस के लंड चाम्पने लगा और दांत पीसते हुए बोला :-"इसकी बूर को तो चोद चोद के सुजा दूंगा आज ..कई दिन मूतेगी तो मुझे याद करेगी ...और ख्यालों में मेरे मूसल को याद कर डरेगी ....और लंड का पानी इसकी चूत में ऐसा उदेलूँगा आज ..की एक क्या जुड़वाँ बच्चे अपने पेट में लेकर ससुराल विदा होगी .....तेरी माँ की चूत मारूं ले ..ले ..ले ..!"इतना बोल कर सुक्खू अपने लंड को पूरा बाहर खींचता और एक ही धक्के में पूरा झड तक पेल देता ! धन्नो और गुलाबी की नज़रे पूरी तरह सुक्खू का मोटा लंड खाती सावत्री की बूर पर ही टिकी थी जो अब उस मूसल के अनुरूप हो कर कुछ फेल गई थी !बूर में लंड अब भी काफी कसा कसा जा रहा था ! जिसके कारन जब भी सुक्खू अपने लंड को बूर से बाहर की और खींचता तो साथ साथ सावत्री के चूत की मांसपेशिया भी लंड के साथ बाहर की तरफ खिंचती हुई नज़र आती !बूर ने अपना लसलसा पानी जो चूत की दीवारों को चिकना करता हे छोड़ना शुरू कर दिया था !सफ़ेद रंग की लिसलिस्सा किसी मलाई की तरह पुरे लंड पर फेलने लगी थी ! बूर के मुह पर भी वो सफ़ेद मलाई पूरी तरह से लग चुकी थी !हर बार अन्दर बाहर होने से वो सफ़ेद चीज और बाहर आने लगी थी !बूर में पूरा का पूरा मोटा लंड ठूंस कर कस कर जा रहा था !अब हर धक्के के साथ सावत्री के मुह से ...आँह ...उंह ....उह्ह .इह्ह्ह .निकल रही थी !सावत्री अपनी दोनों आँखों को कस के मूँद चुकी थी ! सावत्री के दोनों पैर अब धीरे धीरे सुक्खू की कमर के ऊपर आ चुके थे !हर खपके के साथ सावत्री उंह ..उंह करती रही और फिर वेसे की थोड़ी देर जोरों से चुदाई करवाते करवाते उसके मुह से उंह ..उंह की जगह आह्ह ,,,,हाआआअ .....हुह्ह्ह हूँ हूँ निकलने लगा !
फिर कुछ धक्कों के बाद सावत्री की दोनों टाँगे जो सुक्खू की कमर के ऊपर हवा में थी अब सुक्खू की कमर में लपेट कर उसे कसने लगी थी !सावत्री
के मुह से अब आ ...आह ....ऊऊ ....हाँ ..रे .....आह्ह रे ...आउ ....उह्ह
...ह्हि ...आह ..आहा ...ऊऊह ..अरे ...मोरी मैय्या ....आह रे माई ...ओह रे माई माई ....ऒऒह री माई ..अरॆऎऎऎए निकल रहा था !और इसकी के साथ सावत्री के दोनों हाथ भी जो बिस्तर पर पड़े थे अब सुक्खू की पीठ पर आ चुके थे ! सावत्री अपनी अँगुलियों के नाखूनों से हलके हलके सुक्खू की नंगी पीठ खुरच रही थी !गुलाबी और धन्नो समझ गई थी की अब सावत्री पूरी तरह से गरम हो गई हे !दुसरे ही पल सुक्खू ने मस्ती में सिस्कार रही सावत्री के मुह में अपना मुह लगा दिया और कस कस के खपके लगाने लगा और अपनी जीभ को सावत्री के मुह में काफी अन्दर तक ठेल दिया और उसकी जीभ को अपनी जीभ से रगड़ने लगा !सावत्री को अब इतना मजा आने लगा मानो वो सातवें आसमान पर उड़ रही हो !तभी सावत्री भी मस्ती में अपनी जीभ को सुक्खू के जीभ से रगड़ने लगी !फिर तो सुक्खू ने सावत्री की जीभ को अपने होटों के बीच कस लिया और जोर जोर से चूसने लगा !सावत्री अपनी अधखुली आँखों से सुक्खू को देख रही थी और अपनी टांगों से सुक्खू की कमर को कसने लगी थी !तभी सुक्खू ने अपने मुह में ढेर सारा थूक इकट्ठा करके सावत्री के मुह में ठेल दिया !वासना में हर घ्रणित कार्य अच्छा हे इसलिए सावत्री सुक्खू के गरम थूक को अपने मुह में पा कर घनघना उठी !और सारा का सारा थूक निगल गई थूक निगलते ही उसकी बूर में एक तेज लहर सी दौड़ गई !जैसे ही अपना थूक चटा कर सुक्खू ने अपना मुह सावत्री के मुह से हटाया की सावत्री सिसकारते हुए ;बोली -" स्स्स्स ...आह्ह्ह्ह रे ......माई ...आह ...बूरिया .....मोरी ....बूरिया .......रे ..माई ...आह ..म म मजा ...बहुत मजा ..बा ....आह्ह्ह ...अरेर्र्र ....हाआआअ ..!" सावत्री का बडबडाना सुन कर धन्नो बोली :-" ले ...हरजाई ...अब तोरी बूरिया नहीं फट रही हे ...थोड़ी देर पहले तो ...बूरिया फट गईल ......बूरिया फट गईल चिल्ला रही थी ......अब क्या हुआ ..बोल ...!" ये सुनकर गुलाबी बोली ;-'अब काहे को बोलेगी बूर फट रही हे .....अब तो इसे इस मूसल लंड का मजा मिल रहा हे .....देखो केसे आँख मूँद कर लंड के धक्कों का मजा लूट रही हे ..साली रंडी ....इतनी देर यु ही नखरे कर रही थी छिनाल ...!"सुक्खू भी इनकी बाते सुनकर सावत्री की कंधे पकड़ कर ताबड़तोड़ धक्कों पर धक्के मरने लगा !
सावत्री का उन धक्कों से चूत का रेशा रेशा हिल उठा ! सावत्री अब आनद के सागर में डूबने लगी !उसने मुह खोल दिया और मुह से साँस लेती जा रही थी और सिस्कार सिस्कार कर सुक्खू के धक्को के तान पर बोलती भी जा रही थी :-" आह ..आह ...आह ..हाआ ..रे माई ...बूरिया बड़ा मजा देहिस रे माई ....इ बूरिया तो बड़ा मजा देब .....और जोर से च चाचा ...पुरे जोर से चांपते रहो ...कभी इतना मजा नहीं आया री .....और जोर से ...और कस कस के मारो मेरी चूत को ...आज तो इसे फाड़ फाड़ दो ..इसके चीथड़े उड़ा दो ......ऐसा मूसर कभी नहीं मिला रे ....आह मोरी बूरिया को फाड़ दो ....चोदो कस के चोदो आह री माई आज तेरी बछिया की चूत बुरी तरह से चुद रही हे री ...अरी मोरी मैय्या ...कितना मजा आ रहा हे ...अरे हाँ रे ..पेलते रहो ..छोड़ना मत मुझे .....आह री मोरी माई ...ई बूरिया री मोरी बूरिया ...आज कितना मजा देब ....बूरिया में कितना मजा बा ....स्स्स्स आस्स्स्स्स्स ......हां रे ऐसे ही ....रगड़ के डारो ..माई री मोरे बाप .......बूरिया का बड़ा मजा बा मोटे मूसर लंड से चोदे बा ..बड़ा मजा रे च चच्चा ....हम तोरी चाकरी करेब ....हमको रोज ऐसे ही चोच्दो ...कस कस के चोदो ...मोरी बूरिया को फाड़ा दो ....हां ..अरे ...आह ... ...उह्ह्ह्ह ...!' सावत्री की ऐसी हालत देख कर धन्नो और गुलाबी भी काफी गरम हो चुकी थी दोनों की अँगुलियों साड़ी के ऊपर से अपनी बूर की दरार में तेजी से चल रही थी !दोनों को महसूस हो चूका था की उनकी बूर अन्दर से बह रही थी और कभी भी उनका पानी भी अंगुली करने से छूट सकता हे इसलिए अब उनकी सांस तेज चल रही थी नज़रे सावत्री की चुदाई पर और उसके मुह पर चल रही थी कान सावत्री का सेक्सी बडबडाना सुन रहे थे ! फिर गुलाबी बोली ;-' अरे बोल तू की ..सुक्खू चाचा चोद के गर्भ कर दो ....गाभिन कर दो मुझे ....मेरे पेट को ढोल कर दो ....चोदो चोदो रे चाचा ...मोहे अपने बच्चे की माँ बना दो .....चोद के मोरी कोख हरी कर दो ये चाचा ...चल बोल ऐसे ....तब तेरे ये सुक्खू चाचा तुझे कस कस के चोदेंगे ...!" इतना सुन कर चुदाई में मस्त हो चुकी सावत्री बोली :-'..आह ..रे चाचा ....चोदा चाचा चोदा ....खूब खूब चोदा ....आह ..उह ..आह री ..माई ..आह ..रे बाप ....बूरिया में बड़ा मजा बा .....च चाचा तू मोकु चोद ..मेरी अम्मा को चोद ....हम दोनों को एक साथ चोद .....चोदेगो ..मोरी अम्मा को ....."ये सुनकर धन्नो बोली ;-' लजा मत अपने बच्चे को पैदा करने के बारे में बोल ...बोल की चोद कर बच्चा पैदा करदो रे चाचा ...ऐसा चोदो की बिया जाऊ नो महीनो के बाद ..ऐसा बोलो ..लजा मत ऐसा बोलेगी तो और मजा आएगा तेरी शरम भी दूर हो जाएगी !"सावत्री को अब इतना मजा आ रहा था की उसकी समझ में नहीं आ रहा था की वो क्या बोले !बोले की बस आँख मूँद कर चुदाई का मस्त मजा ले !फिर भी वो धन्नो की बात को सुनकर मस्ती में बडबडाते हुए बोलने लगी :-' आह रे चाचा ...नौ महिना में बियाव दे मोहे ...बियाबे हम नोउ महिना बाद ...आह रे चाचा आज इस बूरिया को इत्ता चोदो के ये बिया जाये ...चोद चोद के बियाब दो इसे ...आह ..आह ..बूरिया चुदाई में बड़ा मजा बा ...आह असस्स ..सॆऎह्ह्ह्ह्ह ..!" सुक्खू और कास कास के चोदने लगा वो भी अधेड़ उम्र में बाप बनने को बड़ा आतुर था !सावत्री की बूर में मूसल लंड किसी पिस्टन की तरह अन्दर बाहर हो रहा था !
पूरी कोठरी में चुदाई का संगीत फेल रहा था सावत्री की सिसकिया सुक्खू की भारी साँसों के बीच झांघों से झांघे टकराने का संगीत लंड चूत के मिलन का संगीत गूंज रहा था ! बूर के मुह पर चुदाई का फेन पूरी तरह से फेल चूका था !खप्प -खप्प , सट -सट , फट -फट , चट -चट , खच -खच ,पच -पच , पुच -पुच , पच्च -पच्च , फच -फच ..फचक फचक ..और साथ ही आह्ह्ह्ह उह्ह्ह की आवाजे !धक्कों की रफ़्तार काफी तेज हो चुकी थी सुक्खू के चुत्त्ड तूफानी रफ़्तार में लय के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे उसका पेट सावत्री के पतले पेट से चिपका हुआ था सिर्फ उसकी गांड ही किसी मशीन की तरह ऊपर नीचे हो रही थी धन्नो और गुलाबी की नजरे सावत्री की चूत पर ही टिकी थी वो सुक्खू के पिस्टन को बाहर निकलते और फिर पूरा अन्दर गुमते देख रही थी साथ ही उनके हाथ की अंगुलिया लगातार अपनी अपनी चूत की फाडों को सहला रही थी !दोनों की बूर अब कभी भी पानी छोड़ सकती थी और वे सुक्खू की तेजी देख कर भी समझ गई थी की वो भी अपना लावा उगलने के करीब ही हे क्यूंकि उन दोनों ने सेंकडों बार सुक्खू को अपने ऊपर चढवाया हुआ था !
तभी चित लेट कर चुदाई करवा रही सावत्री सुक्खू की कमर में अपनी टाँगे कस के और अपने चेहरे को सुक्खू के सीने में धन्साया अपनी कमर को उठान करके एकदम से चीख उठी !" आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ...आस्स्स्स्स्स्स्स्स्स ....निकल ......निक्कल गया री माई .......मोरा पानी निकल गया री माई .......बूरिया में पानी निकल गया री माई ....आह री ब बाप ......च चाचा मोरा पानी निक्कल गया ....मोरा पानी छूट गया ..!'सावत्री को ऐसा लग रहा था मानो उसकी चूत में से तेजी के साथ उसका निकलने वाला हे या कोई पानी का झरना बाहर आने वाला हे !सावत्री के मुह से ऐसी सिसकारी और बात सुन कर तीनो समझ गए की सावत्री भी अब झड़ने की कगार पर हे सिर्फ एक दो गस्सो का काम हे हा बाद में वो क्या पता कितनी देर तक पानी छोड़ेगी उसे उस वक़्त तक रोंदना पड़ेगा जब तक की उसकी बूर से आखिरी कतरा तक पानी का ना निकल जाये वर्ना इसका मजा अधुरा रह जायेगा !तभी सुक्खू दांत पीसते हुए करारा धक्का मारते हुए सावत्री को दबोचने लगा उसने उसके कन्धों को अपनी हथेलियों में कस कर दबा लिया सावत्री को अपनी पंस्लिया और हड्डिया कडकड़ाती सी लगी पर उस वक़्त उसे सब भला लग रहा था !सुक्खू का पूरा बदन तेजी से हिलने लगा उसने अपने पैर के अंगूठे जमीन पर टिका लिए थे और अब उसका कमर के नीचे का हिस्सा अधर हो कर बड़ी तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था !झांघे तेजी से सावत्री की झांगों से टकरा रही थी मानो वे अब सुक्खू के बस में नहीं रही हो !गुलाबी और धन्नो भी समझ गई की सुक्खू भी अब जल्दी ही झड़ने वाला हे ! सुक्खू के पहाड़ी आलुओ की तरह बड़े बड़े आंदों से वीर्य ने तेजी से लंड की नलियों में दौड़ लगा दी थी !सावत्री जो ज्ट्खे खा खा कर झड रही थी उसे पूरी ताकत से सुक्खू ने दबोच रखा था की कही वो हिल भी न जाये !अपने लंड को पूरी गहराई तक ठेल ठेल कर पेल रहा था ! सुक्खू का लंड लगातार सावत्री की बच्चेदानी के मुह को चोट कर रहा था जिसमे अब बूँद बूँद सावत्री का रज रिस रहा था !और सावत्री की बूर में बच्चेदानी का मुह मानो सुक्खू का वीर्य पीने के लिए बार बार खुल और बंद हो रहा था !सावत्री की चुत मच मच कर रही थी उसे कंप काँपी चढ़ गई थी !सावत्री भी अभी धीरे धीरे झड ही रही थी की सुक्खू के लंड के सुपाडे से वीर्य की गरम और गाढ़ी धार सावत्री की बूर के अन्दर बच्चेदानी के मुह से किसी गोली की तरह टकराई !सावत्री जो अभी धीरे धीरे झड़ रही थी उस धार से निहाल हो गई और उसकी बूर से भी खुल कर पानी छुटने लगा !
और वो भी वीर्य की गरम गाढ़ी धार के बचेदानी से टकराने से वीर्य की गर्मी सहन नहीं कर सकी और जोरों से चिल्ला पड़ी !" आह ..रे ...आस्स्स्स्स्स्स ...माई रे माई .... उह्ह्ह ....ओह्ह रे ओह्ह रे ..माई हूऊऊऊ ..आह ..!'लेकिन तभी लंड के छेद से एक एक करके वीर्य की बोछार होने लगी और खुल बंद रहा बच्चेदानी का मुह पूरा गाढे और गरम वीर्य से भर गया !कुछ ही पलों में वीर्य बूर के अन्दर फेल गया !फिर भी सुक्खू उसकी बूर में वीर्य पात करता ही रहा जब तक की उसकी बूर पूरी तरह से वीर्ये से लबालब नहीं हो गई और बूर की किनारों से वीर्ये बाहर की तरफ न रिसने लगा !सुक्खू अब पूरी तरह से झड़ चूका था ! सावत्री भी पूरी तरह से झड कर निहाल हो चुकी थी ! उसका रोम रोम खुल चूका था उसे अपना बदन फूल से भी हल्का लग रहा था सुक्खू को पूरी तरह खाली करने के बाद उसे अपने स्त्रीत्व पर गुमान हो रहा था ! अपने उपर लेटे हुए सुक्खू के माथे पर प्यार से हाथ फिरा रही थी उसका पसीना पोंछ रही थी !तभी सुक्खू ने अपना लंड जो झड तक गुसा हुआ था उसकी बच्चेदानी के पास पहुंचा हुआ था उसे बाहर की तरफ खींचा तो एब बार में वो आधा ही खिंचा फिर पूरा बाहर आया तो ऐसा लगा किसी ने कीचड में धंसा हुआ खूंटा निकाला हो छल्ल की आवाज़ के साथ बाहर आया सुक्खू का मूसल अभी भी पूरा बेथ नहीं था और बमपिलाट लग रहा था हा कुछ नरम जरूर हो गया था !बमपिलाट जेसे लगडे को देख कर धन्नो और गुलाबी कुछ सहम सी गई !सावत्री ने भी अब उस लंड की लम्बाई और मोटाई देखि थी और उसके विकराल रूप को देख कर वो भी डर सी गई !बहुत ही मोटा और लम्बा मूसल जेसा लंड था जिस पर वीर्य और सावत्री की बूर का रज लिपसा हुआ था !सुक्खू भी वहा बगल में बेठ गया और सावत्री ने भी जल्दी से अपनी झांघों को सटा लिया मानो अपनी बूर की छुपा रही हो !सावत्री की नज़रे लाज से झुकी हुई थी और वो अब बुरी तरह से थक भी चुकी थी !एक ही दिन में ठाकुर साहब और सुक्खू के मूसलों को उसकी बूर ने झेला था अभी ठाकुर साहब के मूसल का दर्द कम ही नहीं हुआ था की उस पर सुक्खू के मूसल ने करारी चोट कर दी थी दोनों बार सावत्री पूरी तरह से तृप्त हुई थी तो अब जेसे उसके बदन में जान ही नहीं रही थी !
फिर अपनी बूर को अपनी समीज से जेसे ही ढकना चाहा की धन्नो चिल्लाती हुई बोल पड़ी :-" अरे ..हरजाई ...इस समीज को तू गन्दा कर लेगी ...ले इस कपडे से अपनी बूर को पोंछ ले ...!' और खाट पर पड़े एक कपडे को जो गुलाबी अपनी बूर को पोछने के लिए कई सारे कपडे हर दम रखती थी उसे सावत्री की तरफ बढ़ा दिया !सावत्री ने हाथ बढ़ा कर उस कपडे को ले तो ली पर सबके सामने उसे अपनी बूर पोंछने में शरम आ रही थी !तब धन्नो बोली :-' क्या सोच रही हे ...अब बूर पोंछ ले ...हमें अपने गाँव भी चलना हे ...नहीं तो देर हो जाएगी ..शाम होने वाली हे ..!" इतना सुनकर सावत्री अपनी नजरे वेसे ही झुकाए रखी और अपनी चुदी हुई बूर को पोंछने लगी !बूर के अन्दर से वीर्य धीरे धीरे रिस रिस के बाहर आ रहा था !जिसे सावत्री ने जल्दी से पोंछ लिया !फिर वो जेसे ही खड़ी होने लगी उसे लगा मानो उसके पेरों में जान ही ना हो और वो गिर पड़ेगी !एक ही दिन में दो दो बार चुद कर निछ्ड जाने से उसका हाल बेहाल हो गया था !फिर सावत्री खड़ी होकर पहले अपनी चड्डी को पहनी फिर समीज और सलवार पहन कर अपनी चुचियों पर दुप्पटे को सही किया ! उधर सुक्खू भी वह पड़े दुसरे कपडे से अपने लंड को पोंछते हुए बोल :-' अब सब तो मान गई ना ....में असली मर्द हु ...!"यह सुन कर गुलाबी बोली ;-'असली मर्द ना होते तो भला में अपने पति के सीने पर बेठ कर तुमसे अपनी बूर में धक्के थोड़े ही ना मरवाती ....तुम्हारी इसी मर्दानगी को पाने के लिए में रोज अपने पति को ठुकराती हु न मेरे राजा ...!"यह सुनकर धन्नो बोली ;-'रोज क्यों ठुकराती हो ..कभी कभी तो उस बेचारे पर भी दया कर दिया करो ..आखिर तू अमानत तो उसी की हे ना हरजाई .!"तब गुलाबी बोली ;-' दया ना करती तो कभी का उसे घर से भगा दी होती .....या खुद ही ये घर छोड़ कर भाग जाती ...दया करती हु तभी तो इस गाँव में में और वो एक छत के नीचे पति पत्नी की तरह रहते हे ..ताकि पति की इज्जत बची रहे !'तब धन्नो बोली :-'दया का मतलब तो तू समझी ही नहीं ...अरे उसे बूर कभी कभी अपनी बूर दे दिया कर चोदने के लिए ..दूसरों को घूम घूम कर देती फिरती हे ....अपने पति को भी दिल से दे दिया कर अभी कभार ...!"ये सुनकर गुलाबी मुह बिचकाते हुए बोली :-'तू भी बहुत उपदेश वाली हो गई हे ... गरम छिनाल हे रे जो अपने पति को दिल से देती हे ......जो हरजाई अपने पति को दिल से दे वो नहीं ...पति को ना देने में ही मजा आता हे ...पति को तरसा के रखो ...और दूसरों से चुदा के रखो ..तब मजा आता हे !" फिर गुलाबी आगे बोली ;-'और ये तो भूल ही गई ..तू कौनसे अपने पति की सेवा करती हे ...जो आज उपदेश दे रही हे ..!"
तब धन्नो बोली ;-' मेरा पति तो घर छोड़ के चला गया ना .....नहीं तो देती ..खूब दिल से देती उसे ..!:इतना सुनना था की तुरंत पलटकर गुलाबी मुह बनती हुई बोली ;-'अरे उसे दिल से देती तो वो घर से भागा ही नहीं होता ....मुझसे मत छुपा अपनी कहानी ....सब जानती हु ..जवानी भर तो अपने पति को अपनी बूर के लिए तरसा डाली .....दुसरो को घूम घूम कर बूर ऐसे बाँटती हे मानो प्रसाद हे ....और सारा गाँव तुझे चोदता रहा और तेरा पति तेरी बूर के लिए तरसता रहा ...और जब पानी सर से ऊपर हुआ तो बेचारा गाँव छोड़ के भाग गया ....अरे ..में क्या नहीं जानती हु तेरे बारे में ...मेरे सामने पतिव्रता मत बन !" गुलाबी के ताने सुनकर धन्नो मुस्कुरा कर बोली ;-' चुप रह रंडी ...ठाकुर की रखेल ....!"और इतना बोल कर धन्नो हंसने लगी तब गुलाबी तुनक कर बोली ;-'अरी ..तू कौन उस ठाकुर के लंड से बची हे ...तूने भी कितनी ही बार ठाकुर का लंड अपनी गांड उछाल उछाल कर लिया हे ...तेरे भी जब कीड़ा रेंगता हे बूर में तो चली आती हे खेत में ठाकुर से बूर रगड़वाने ....बोलने से पहले सोच लिया कर ...!" फिर अचानक गुलाबी आगे बोल पड़ी ;-' अरे हाँ ..वो दिन भूल गई क्या ...कई साल पहले जब तू अपने पति से झगडा करके आती थी तो यही ठाकुर तुझे खेत में रखते थे और रोज चोदते थे ....दस दस दिन तुझे उस खेत की कोठरी में रख रख कर चोदते थे ...और तीन तीन बार तो तेरा गर्भ भी ठहर गया था ....और हर बार में ही दाई के पास ले जा कर सफाई करवाई ...सब भूल गई हरजाई ...!"इतना सुनकर धन्नो ने अपने मुह को साडी के पल्ले से धक् ली और हँसते हुए लाज से बोली :-"उस दिन की बात क्या करती हो ....वो तो मुसिबत वाले दिन थे ...!"ये सुनकर गुलाबी बोली ;-'हाँ जिन दिनों तेरा पति तेरे घर पर रहता था तो वे दिन तो मुसीबत वाले दिन ही थे ना हरजाई ..!"ये सुनकर धन्नो बोली ;-' और नहीं तो क्या ...वो दोगला रोज मुझ से झगडा करता था ...में माइके भागने के बहाने तेरे घर भाग आती थी ...में कोई ठाकुर साहब से चुदवाने नहीं आती थी !'गुलाबी बोली :-" ये तो सच हे की तू अपने पति से झगडा करके यहाँ भाग आती थी ....लेकिन तेरा मन तो ठाकुर साहब से चुदवाने का भी करता था ...बोल ये सच हे की नहीं !"
धन्नो झट से बोली :-'ये सच नहीं हे .... समझ ले .....उन दिनों मेरे ऊपर मुसीबत पड़ी थी ...में कोई रंडी छिनाल नहीं थी ...जो तेरे ठाकुर साहब के सामने जा कर अपने टाँगे फ़ेला कर लेट गई ....!"ये सुन कर सुक्खू अपनी लुंगी को कमर में ठीक करते हुए बोला :-'तो सच क्या हे .....यही बता दो ....आज ये भी बात जान जाये ..!"इतना कहते हुए सुक्खू ने सावत्री की तरफ इशारा किया !सावत्री कोठरी में कोने की और चुपचाप खड़ी थी ! दो बार चुद जाने से वो एकदम हल्का महसूस कर रही थी !सुक्खू की बात सुनकर उसने अपना मुह की तरफ कर लिया !तब गुलाबी बोली ;-' ये क्या सच बोलेगी ...हजार हजार लंड खा कर पतिव्रता बनती हे ....सच तो ये हे की जब जब पति से झगड़ा करती तो पति से बोलती मैके जा रही हु ....और दोपहर में मेरे गाँव आ जाती और मेरे घर रहती थी ....लेकिन दुसरे दिन दोपहर को मेरे साथ ठाकुर साहब के खेत पर घुमने जाती थी ....और ठाकुर साहब से चुदवा लेती थी ......!"इतना सुनकर धन्नो बोली :-' चुप कर हरजाई ...में रंडी नहीं थी जो जा कर तेरे ठाकुर साहब से चुदवा लेती थी ....अरे जब तू सच बोल रही हे तो डर क्यू रही हे .....बोल सच की तू खुद ठाकुर साहब से रोज रोज चुदाती थी ...बोल दे सच्चाई ..!"धन्नो की बात सुनते सुनते गुलाबी अपनी साडी की ठीक करते हुए बगल में बिछी चारपाई पर बैठते हुए बोली :-"सच्चाई सुननी हे तो बेठ बताती हु सच्चाई क्या हे ...आजा तू भी बेठ यहाँ ...." इतना बोल कर गुलाबी ने सावत्री को भी खाट पर बेठने का इशारा किया !तब धन्नो गुलाबी की तरफ मुह करके खाट पर बेठ गई और उसके इशारे से सावत्री भी खाट के किनारे पर बेठ गई !
तब धन्नो बोली ;-' चल बोल ...की ठाकुर साहब तेरी केसे केसे मारते थे ...चल बोल ...!" उधर सुक्खू भी अपनी लुंगी ठीक कर चूका था और जमीन पर बिछे बिस्तर पर बेठ कर इनदोनो के झगडे चाव से सुनने लगा !सावत्री भी अपनी नजरे झुकाए पुराणी सहेलियों धन्नो और गुलाबी के बीच हो रही तकरार को ध्यान से सुनने लगी !गुलाबी धन्नो की तरफ देखते हुए तुनक कर बोली :-"...देख रंडी ....तू सच्चाई पूछ रही हे तो में यहाँ बता देती हु ......की जब तू अपने पति से झगडा करती थी तो हमेशा मायके जाने का बहाना करके मेरे यहाँ क्यूँ आती थी ?....इसलिए की तुझे ठाकुर साहब का मूसल पसंद था ....ठाकुर साहब के मूसल से ही तेरे भोसड़े की आग ठंडी होती थी ....!"ये सुनते हुए धन्नो गुलाबी की चेहरे को घूरते हुए मुस्कुरा कर बोली :-"...चल चल ...अब चुप हो जा ....रात दिन तो तू उनके लंड के नीचे दबी रहती हे ....और मुसीबत में दो -चार दिन तेरे घर क्या आ गई ...की आज तू मुझे अपने ठाकुर साहब की रखेल बनाने लगी ....अरे में नहीं ...तू उनकी रखेल हे रंडी .....तू रंडी हे ठाकुर साहब की ....!"ये सुनकर सामने बिछे बिस्तर पर बेठा सुक्खू भी हंसने लगा !तब गुलाबी पलट कर बोली :-" अच्छा ..क्या ये सच नहीं की ...जब तू उनदिनों मेरे घर आती थी तो ठाकुर साहब से जम कर चुदवाती नहीं थी ...?....वहा खेत वाली कोठरी में जा कर ......!"ये सुनकर धन्नो अपना मुह साड़ी से ढक कर एक नज़र सामने बेठे सुक्खू की तरफ डाली और एक नज़र पास में बेठी शरमाई सुकुचाई सावत्री की तरफ देख कर हँसते हुए बोली :-"...तू तो एक नम्बर की हरजाई हे ....साली रंडी ....ना जाने किस ज़माने की बात कर रही हे ....में तो तेरे घर आती थी .....और ठाकुर साहब के खेत पर तो मुझे तू ही ले जाती थी .....!"
ये सुनकर गुलाबी बोली :-" हाँ रे हाँ ....ये तब की बात हे जब तेरी दोनों संताने जवान नहीं हुई थी .......और तू पूरी जवान थी ..तभी तो तेरा पति तेरी बूर की आग को ठंडा नहीं कर पाता था ...और तू अपनी बूर की आग को ठाकुर साहब के खेत पर जा कर उनके मूसल से ठंडा करती थी ..!"ये सुनकर धन्नो अपने मुह को वेसे ही ढके हुए हंसने लगी ,फिर गुलाबी की तरफ देखते हुए बोली :-" में कहाँ खेतों पर खुद जाती थी रे हरजाई ....ये तू ही मुझे ले गई थी ....झूठ क्यों बोलती हे ...!"इतना सुनकर गुलाबी बोली :-" झूठ में क्यों बोलूंगी ...झूठ तो तू बोल रही हे .... याद कर ......तू जब मेरे घर आती थी रोज रोज एक ही बात पूछती थी ठाकुर साहब केसे हे ....केसे हे ....बोल ये सच हे की नहीं ...!"ये सुनकर धन्नो बोली :-" तो क्या गलत पूछती थी .....ये तो कोई भी पूछ लेगा ...!"तब गुलाबी बोली :-'लेकिन तू बार बार ये क्यों पूछती थी की ठाकुर साहब तुझे किस नजर से देखते हे ...और में तुझसे बोली की वे बहुत ही अच्छे इंसान हे ....में बस वह खेत पर काम करने जाती हु ....और वो मुझे गलत नज़र से नहीं देखते हे ....पर तू मानने के लिए तेयार ही नहीं होती थी ....और रोज एक ही बात पूछती थी ...की सच बताओ ....की ठाकुर साहब तुझे किस नजर से देखते हे ....!" फिर गुलाबी अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली :-" तो रोज रोज के इस सवाल से में भी उब गई थी ......बस कुछ दिन बाद तुझसे बोल दी की ..ठाकुर साहब बड़े आदमी हे ....बड़ा डर लगता हे ...सच तो ये हे की वो हर ओरत को गलत नज़र से देखते हे ....हर ओरत को अपने नीचे लिटा कर ही रहते हे ...और मुझे भी उन्होंने छोड़ा नहीं हे ....!"तब धन्नो बोली :-' तो क्या गलत बोली में ...कोनसा गलत सवाल पूछा !"
इतना सुनते हु सुक्खू बोल पड़ा :-" धन्नो भौजी ...तुम जरा चुप रहो ....हाँ गुलाबी तुम आगे बताओ ...बड़ा मजा आ रहा हे ..क्यों हे न सावत्री .....!"सावत्री लजा गई ! तब गुलाबी बोली :-' अरे आगे क्या सुनोगे सब इस छिनाल की कहानी ........इसने अपनी जवानी में कोन कोण से गुल खिलाये ...बस ये ही जानती हे ...!"तब सुक्खू बोला :-"फिर आगे क्या हुआ ..ये भी बता दो ताकि ये सावत्री भी अपनी धन्नो चाची की कहानी जान जाये .....और इसे भी पता चले अपनी धन्नो चाची की करतूत !" ऐसा बोल कर सुक्खू ने सावत्री की तरफ इशारा किया तो सावत्री ने लजा कर अपनी नज़रे जमीन में गडा दी पर धन्नो चाची के करतूतों को जानने की उत्कंठा साफ उसके चेहरे पर झलक रही थी !फिर गुलाबी किसी कथाकार के अंदाज़ से बोली :-" लो सुनो ...की ये क्या करती थी ....जब उसे पता चला की ठाकुर साहब अपने पास आने वाली हर ओरत को रगड़ देते हे हे तो कई दिन तक तो इसने और कुछ नहीं पूछा ...लेकिन जब उसके बाद इसने अपने पति से झगडा किया तो उस दिन ये मुझे खोजते हुए दोपहर में ही ठाकुर साहब के खेत पर आ गई ...में तो इसे ठाकुर साहब के खेत पर बनी हुई कोठरी के पास देखते ही डर गई ....!" फिर गुलाबी अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोली ;-'तब तक तो ठाकुर साहब की नजर भी इस पर पड़ गई ...तब से वे इसके पीछे पड़ गए ..और ..!"इतना सुनकर धन्नो तपाक से बोली :-"मेरी कोनसी गलती थी ....उस दिन सुबह से ही मेरे मर्द ने मुझसे इतना झगडा किया की में उससे बोली में अपने मायके जा रही हु ...और इतना बोल के में चोरी छिपे इसके गाँव आई ....दोपहर का वक़्त था तो सोची ये घर नहीं ठाकुर साहब के खेत पर होगी ....इसलिए चली आई ...और याद कर जब में ठाकुर साहब के सामने आई तो अपने चेहरे को ढक कर घुंघट कर लिया था .....की वो मुझे गलत न समझे ..!"ये
सुनकर गुलाबी बोली :-" हाँ ..हाँ ..याद हे रे ..कुतिया सब याद हे ....की
तू लाल साडी में खूब सजी संवरी थी .....झीने घुंघट में तेरा चेहरा ठाकुर साहब को दिख रहा था ...माथे पर बिंदिया गले में मंगलसूत्र ,होटों पर लिपस्टिक , पेरों में छम छम करती पायल ,और हाथों में भरी हुई कांच की चूड़ियाँ ..खाली घुंघट निकालने से क्या होता हे री ....नीचे का घूँघट ठाकुर साहब के सामने उघाड़ने आई थी तू उस दिन ...और जब ठाकुर साहब ने मुझसे पूछा की ये नई नवेली दुल्हन कौन हे ...तो मेने उन्हें कह दिया था की ये मेरी सहेली हे .....और इसका बगल के गाँव में ससुराल हे ...और ये मुझसे मिलने आई हे ...!" फिर गुलाबी बात आगे बढ़ाते हुए बोली :-"मेने ठाकुर साहब से तेरे बारे में इतना ही बोली थी ...और जब तू खेत में मेरे पास बेठ कर घुंघट की आड़ में अपने पति को धिक्कार और गाली दे रही थी तो उस वक़्त कोई खेत पर नहीं था ..ठाकुर साहब मेढ़ के उस तरफ मंडरा रहे थे और उनकी नजर तेरे पर ही थी ...!गुलाबी आगे बोलने लगी :-" और जेसे ही उन्हें तेरी फुसफुसाहट सुनाई दी उन्हें पता लग गया की तू किसी को गली दे रही हे .....और ठाकुर साहब ने मुझे बुलाया और पूछा की ....ये कौन हे ...इसे क्या तकलीफ हे .....क्या सास से इसकी लड़ाई हुई हे ...तो में भी ठाकुर साहब से बोल दी नहीं इसके पति से इसकी नहीं बनती और इसके झगडे होते रहते हे ....!"
ये सुनकर सुक्खू अटकती आवाज़ में बोला :-" अ और ...आगे क्या हुआ ....!"उसके चेहरे पर वासना का रंग आ रहा था और वो धन्नो की चुदाई ठाकुर साहब से केसे हुई वो सुनना चाहता था !तब गुलाबी बोली ;-' ठाकुर साहब ने इतना सुना की उन्होंने मेरे बजे इसे मेढ़ की तरफ बुला लिया और इससे सीधा पूछने
लगे ...की क्यूँ ..तुम्हारे घर पर सब ठीक नहीं हे क्या .....तब तू भी
तुरंत बोल दी की नहीं हे .....तब वो पूछे की क्या परेशानी हे .......तो तूने बोल दिया की पति से झगडा होता रहता हे .....फिर वो पूछे की पति क्यों झगडा करता हे ....तो तू बोली की वो पियक्कड़ हे ....दारू शराब पीता हे ...और कोई काम नहीं करता ......तब ठाकुर साहब बोले की वो साला निकम्मा हे ....और फिर ठाकुर साहब उस खेत की मेढ़ से अपनी कोठरी की और चल दिए और बोले ....तुम दोनों आओ ...फिर कोठरी में अपनी चौकी पर बेठ गए और फिर पूछे ...की वो साला शराबी हे ..और निकम्मा हे ...तो साला झगडे तो करेगा ही .....और वो साला तेरे साथ मार पीट भी करता होगा ....तब तू बोली की नहीं वो मार पीट नहीं करता हे ..तब ठाकुर साहब बोले ..ऐसा तो नहीं हो सकता जब वो साला निकम्मा शराब पीता हो तेरे साथ मार पीट और गाली गलोज नहीं करता हो .....वो इतना बोले तो तू चुप हो गई ....!"
ये सुनकर धन्नो बोली :-'तो सच्चाई तो ये ही थी ना की वो मुझसे मार पीट नहीं करता था !"तब गुलाबी बोली :-' अरे हरजाई ..तेरे पहले बच्चे होने से पहले तेरा पति मार पीट भी तो करता था ...ठाकुर साहब क्या गलत कह रहे थे ...!"तब धन्नो बोली ;-'हाँ ..जब में दुल्हन बन के आई ही थी तो वो मुझसे हाथापाई करता था ..और मार पीट भी करता था पर एक दिन मेने भी चप्पल निकाली और उसकी धुनाई कर दी ...फिर वो मुझे गाली देकर ही रह जाता था मार पीट की हिम्मत नहीं होती थी उसकी ...!"ये सुनकर सुक्खू गुलाबी से बोला :-" तो आगे क्या हुआ ?'तब गुलाबी बोली ;-'तो ठाकुर साहब इसे कस कस के पूछे की सच सच बताना ....की वो तुझे मारता पीटता हे क्या ....अगर ये सच हे तो में उसकी माँ बहिन को चोद चोद कर रंडी बना दूंगा ..तू चिंता मत कर सच बता ....जब ठाकुर साहब ने इतनी गन्दी गन्दी गाली हम लोगों के सामने दी तो में तो लजा गई और अपना मुह साडी में छिपा लिया ....!"अपनी बात आगे जारी रखते हुए गुलाबी बोली :-' फिर ये बोली हाँ पहले मार पीट करता था ..पर अब नहीं ....फिर ठाकुर साहब बोले ...की वो साला कुछ भी बोले ...तो मुझे बता देना .....में उसकी माँ बहिन का भोसड़ा फाड़ दूंगा ...साला अपनी बीबी को ..मारता हे ...मादरचोद ....अपनी बीबी को मारता हे उसकी माँ की चूत में लंड पेलूं .....उसकी बहिन की चूत को चोद चोद कर चौड़ी कर दूँ ....और फिर ठाकुर साहब ने खूब गन्दी गन्दी गालियाँ दी !"तब धन्नो बोली :-'तो में क्या करती ...वो तो कोई भी सुनेगा की बीबी को मारता हे ..तो गाली ही देगा ....ठाकुर साहब ने क्या गलत किया !"
तब गुलाबी बोली :-"वो ये गन्दी गन्दी गालियाँ तुझे पठाने के लिए दे रहे थे ......तू खूब जानती हे ...इतनी गन्दी गन्दी गाली दिए की ...सच में ....सुनकर मन गन्दा हो जाये ....!"तब सुक्खू बोला :_" ठीक हे ..अब आगे भी तो बताओ ...!"तब गुलाबी आगे बोली :-'तब ठाकुर साहब आगे पूछे ...तेरे पास कोई संतान हे की नहीं ....तू बोली की आठ साल शादी को हो गए और दो संतान हे ....तब वो पूछे की उनकी देख भाल कोण करता हे तो तू बोली की तेरी बुड्ढी सास करती हे ....तब ठाकुर साहब ऐसा बोले की ..जब तेरा पति निकम्मा हे और कुछ नहीं करता हे तो तेरा घर केसे चलेगा ...ना हो तो तू भी गुलाबी के साथ मेरे खेत पर काम किया कर ....काम करने में कोनसी बुराई हे ....काम करके अपना पेट पालना कोई चोरी थोड़ी हे .....!"ये सुनकर धन्नो बोली :-' देख में खेत पर काम करने के लिए तेयार नहीं हुई थी !"तब गुलाबी बोली ;-' सुन तू झूठ मत बोल ...पहले दिन तो तू कुछ नहीं बोली थी ठाकुर साहब से ....फिर एक हफ्ते में ही तू अपने पति झगडा किया और मेरे घर आई ....फिर तू मुझसे बोली की तू ठाकुर साहब के खेत पर काम करना चाहती हे ...घर चलाने के लिए पेसे नहीं हे ...और में तुझसे बोली की ठाकुर साहब की नजर बुरी हे ...ये भी बताया की उस दिन के बाद रोज ठाकुर साहब मुझसे पूछते हे की तेरी सहेली आई की नहीं आई ...आये तो उसे मुझसे मिलाना .....उसे खेत पर ले आना ...उसका पति साला उसे बहुत परेशां करता हे .....बोल में ऐसा तुझे बोली थी की नहीं !"गुलाबी के मुह से ये बात सुनकर धन्नो बोली :-'लेकिन तू भी तो खेत पर काम करती थी !"तब गुलाबी बोली ;-' देख तू मेरी सच्चाई जानती थी की क्यों ठाकुर साहब मुझे अपने खेत पर काम कराते थे ....और में समझती थी तेरे पति से तेरी अनबन हे और तू ठाकुर साहब के खेत पर काम करेगी तो वो तुझे गलत समझेगा और तुम्हारा रिश्ता टूट जायेगा ..!"तब धन्नो बोली :-" पर मेरे पेट को भी तो पालना था ना ...और मेने सोचा की अगर ओरत अपनी जगह सही हो तो मर्द कितना भी गन्दा हो उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता ..ये सोच कर काम की हामी भरी थी !"तब
गुलाबी बोली :-" तू झूठ मत बोल ...तेरी बूर में आग लगी थी ...आग .....और
इसी लिए ये जानते हुए की ठाकुर साहब केसे हे ...तू उनके खेत पर काम करने के
लिए आतुर थी .....नहीं तो मेने तुझे ये ही बोला
ना की ठाकुर साहब तुझे बार बार पूछते हे ......उनकी नीयत ठीक नहीं हे
....और तुझे घर चलने के लिए अगर काम करना हे तो कहीं और कर ले ....लेकिन टी
एक ही जिद करती थी की ठाकुर साहब के खेतपर काम करेगी और ठाकुर साहब कुछ नहीं करेंगे ...!"तब
धन्नो बोली :-" जब तू वह काम करती थी ...तो में सोचती थी की तेरे रहते भला
वह क्या गलत हो हे .....तेरे सामने वे क्या गलत करेंगे ...!"यह
सुनकर तब गुलाबी बोली :-'...चल चुप हो जा झूठी ...जब वो तेरी जवानी के
पीछे पड़ेंगे ...तो में भला क्या कर सकती थी ....उनके सामने मेरी क्या ओकात
....!"
इतना सुनकर सुक्खू बोल पड़ा :-" ...फिर क्या हुआ ...!"तब गुलाबी बोली :-" फिर क्या ..ठाकुर साहब से मेने बोल दिया की ये भी काम करना चाहती हे .....तब ठौर साहब बोले ...अब इससे अच्छी बात क्या हो सकती हे ....जब ये यहाँ काम करने लगेगी ..तब घर गरस्थी का खर्च भी आराम से चला लेगी ....और फिर इसे काम पर लगा दिए ...!"तब धन्नो बोली :-'घर की जिम्मेदारी से दबी थी ...पास में पैसा एक नहीं था ....सच में मेरे वे मजबूरी के दिन थे .....बड़े मुसीबत के दिन थे ...!"ये सुनकर सुक्खू बोल :-" तो काम करने लगी ...लेकिन ठाकुर साहब ने इसे अपने नीचे केसे सुलाए ...!"तब गुलाबी बोली :-' जिस दिन से काम करने लगी ....उसी दिन से वे इसकी पीछे पड गए .....इसका गाव कुछ दूर होने के नाते ..ये दोपहर तक खेत पर आ जाती ...और ठाकुर साहब इसे और मुझे कोठरी के पास वाले खेत पर कोई न कोई काम दे देते और खुद पास में खेत की मेढ पर बेठ जाते ....और इससे अपने पति के साथ हुए झगडे के बारे में खूब पूछते जब ये अपने पति की बुराई करती ...तब ठाकुर साहब खूब गन्दी गन्दी गलियां देते ....सच में उनकी वे गलियां सुनकर मजे से हम दोनों की बूर तक पनिया जाती ....इतनी गन्दी गलियां देते की उस गाली को सोच सोच कर हमारी बूर चुदास हो जाती ...सच बोलू तो ठाकुर साहब हमारे पास बैठकर जानबूझ कर इसके पति को गन्दी गालियाँ देते थे ताकि हमारी बूर में चुदाई की लहर पैदा हो ..और खास कर इसके ...मेरी तो वे कई बार बजा चुके थे ...!"तब सुक्खू बोला :-" केसी गाली ...कोनसी गाली देते थे ...!"तब गुलाबी बोली :-" बताने में भी लाज आती हे ....जब ये अपने पति की बुराई करती ...तब ठाकुर साहब इसके पति पर झूठा गुस्सा करते बोलते ....जैसे ..उसकी माँ की बूर में लंड दाल कर ऐंठ दूँ ....उसकी बहिन की बूर को उठान करके इतना चोदुं की बूर का भोसड़ा बन जाये ......उसकी माँ बहिन की बूर में अपने लंड का मोटा सुपाडा फंसा दूँ .....उसकी बहिन की बूर को चोद कर अपने चोड़े लंड से इसकी माँ की गांड भी मार दूँ .......बूर में तेल लगा के चोदु ...घी लगा के चोदु ....थूक लगा के चोदु ...सुखी ही मार दूँ .......उसकी बहिन को घोड़ी बना कर उसकी बूर में अपना मोटा लंड डालूं .....माँ बहिन को एक ही बिस्तर में पटक पटक कर इसके पति के सामने ही चोदु और उससे धक्के गिनवाउ ...अरे मत पूछ वे केसी केसी गालियाँ देते की सुन कर हम दोनों ही गरम हो जाती .....घंटों ही बेठ कर लंड बूर ..लंड बूर ...चोदा चोदी ....इसके पति की माँ बहिन को ऐसे चोदु वेसे चोदु ........उठा कर चोदु ...सुला कर चोदु ..झुका कर चोदु ..खड़ी खड़ी को चोदु ....दोपहर को चोदु ..शाम को चोदु .....आधी रात को चोदु ...सारी रात चोदु ...दिन भर चोदु ...सुबह उठते ही चोदु ....चोद चोद कर बूर को ढीला कर दू ......चोडी कर दू ......पूरी फेला दू .......लंड का पानी गिरा दू ...पेट से कर दू ....लंड का पानी पिला दू ...लंड के पानी से स्नान करा दू ...लंड की गर्मी उसकी बूर में उड़ेल दू ....लंड के पानी से बूर सींच दू ..लंड के पानी से उनकी इज्जत धो दू ......लंड के पानी से बूर की फांक नहला दू ...उसकी झांट नहला दू ....लंड के सुपाडे से उसकी बूर कुरेदुं ...लंड के सुपाडे से उसकी फांक पीटूं ......लंड उसके गले में उतार दू ..उसके मुह को चोद दू ......और ना जाने क्या क्या कहते मानो ठाकुर साहब इसके पति को गाली नहीं दे रहे थे कोई दोहा चालीसा पढ़ रहे थे ...अरे ..घंटो ऐसे बाते सुनते सुनते हम दोनों की बूर लसिया जाती थी ......छी ..."ये सुनकर धन्नो अपने मुह को साडी में छिपा कर फिर हंस पड़ी मानो उसे लाज लग रही हो !तब सुक्खू कुछ कौतुहलता वश बोला :-" रोज़ रोज़ ठाकुर साहब गाली ही देते थे इसके पति को या इसके साथ भी कुछ। …?"
इस सवाल के जबाब में गुलाबी बोली :-"अरे तीन दिन तक तो ऐसे वे इसके पास बेठ कर इसके पति के बारे में पूछते और जब ये अपने पति कि बुराई करती तो वे उसे खूब देते। ………। पर फिर चोथे रोज़ ठाकुर साहब ने खूब गालियां दी और हैम दोनों कि बूर काफी गरम हो गई थी क्यूंकि जब से ये मेरे साथ खेत पर काम करना शुरू किया था ठाकुर साहब ने मेरे साथ भी। .... " और गुलाबी चुप हो गई !सुक्खू अचानक बोल बेठा :-" क्या तुम्हारे साथ भी ……। ?"इतना सुनते ही धन्नो ने तपाक से अपने चेहरे से साडी का पल्लू हटाया और बोल पड़ी :-"इसे चोदे नहीं और क्या ……… जब से में काम पर आने लगी ठाकुर साहब ने इसकी चुदाई नहीं की चार दिन तक ……!"और फिर धन्नो भी हंसने लगी और गुलाबी भी शर्मा गई !फिर गुलाबी बोली :- "…… हाँ रे ……… चार दिन से मेरी चुदाई नहीं हुई थी ………और शरीर भी जवान था ……… ऊपर ठाकुर साहब कि गालियां सुन
कर बड़ा मन करता था " गुलाबी आगे बोली :-"फिर ठाकुर साहब ने खेत कि मेढ़ पर
बेठे बेठे ऐसी ऐसी बातें पूछी कि हम दोनों लाज़ से शर्मा गई !"क्या पूछी ?" सुक्खू तुंत बोल पड़ा ?तब गुलाबी सामने खाट पर बेठी धन्नो को धकियाती हुई बोली :-" चल बता दे री .......... उस दिन क्या पूछे थे ठाकुर साहब खेत में !"तब धन्नो हँसते हुए तुनक कर बोली :-" मुझे नहीं पता …… ठाकुर साहब क्या पूछते थे खेत में …… !तब गुलाबी बोली :-" अरी बता दे रे अपने मुह से बताएगी तो सावत्री और सुक्खू को अच्छा लगेगा …… सावत्री को भी पता चल जायेगा कि तू जवानी में कितनी मजे किये हे तूने !"तब सुक्खू बोला :-" हाँ बता दो ना धन्नो भौजी ....... अब आपस में कोई बात छिपी ही नहीं रही हे हम सब में तो किस बात कि शर्म ……अपने मुंह से बताओगी तो हमें ज्यादा मज़ा आएगा …… !"तब
धन्नो दूसरी तरफ मुह करते हँसते हुए बोली :-" तुम मर्दों को हम औरतों से
मज़ा लेना ही आता हे हे हे हे हे …… अब में अपने मुह से बता कर
खुद को बदनाम करूँ और ये लड़की { सावत्री कि और इशारा कर के } किसी ये बात बता दी तो ?"तब गुलाबी बोली :-" नहीं री …… किसी को ये कुछ नहीं बताएगी …… इसे भी ये कहानी सुनकर बहुत मजा आ रहा हे चल बता …। "तब धन्नो फिर अपने मुह को साडी के पल्ले से ढक कर हंसती हुई बोली :-" छी …केसे बोलू री ....... मुझे लाज लग रही हे !"
तब गुलाबी ताना मारते हुए बोली :-" हट बूर चोदी ....... अभी तो सावत्री को कह रही थी लजाना नहीं हे …और अब खुद लजा रही हे बनेगी एक नंबर कि छिनाल और चोदा चोदी कि बातें बताने में शर्म लग रही हे रंडी को !"तब धन्नो बोली :-" किसी दूसरे कि चोदा चोदी कि बातें बताने में तो ना लजाऊँ पर अपनी खुद कि बताने में सच में ही मुझे लाज आ रही हे …। "तब गुलाबी बोली :-" चल किसी नै दुल्हन कि तरह लजा मत …अब बताना शुरू कर .... !ये सुनकर धन्नो ने फिर से अपना चेहरा साडी कि ओट में कर लिया और सावत्री कि तरफ देखते हुए बोली :-" चलो अब तुम इतना कहते हो बता देती हु पूरी बेशर्म कर दोगे आज मुझे पर सावत्री तुम मेरी ये बात गांव में किसी को नहीं बतओगी समझी !"जबाब में सावत्री कुछ नहीं बोली और अपनी नज़रे एक पल के लिए धन्नो चाची के चेहरे कि और देखा और फिर जमीन में गड़ा ली !अब धन्नो बोली :-" तो सुनो आगे क्या हुआ !फिर धन्नो अपनी पुरानी कहानी आगे बढ़ने लगी :-"तो फिर जब हैम दोनों खेत में काम करती तो ठाकुर साहब हमारे सामने ही मेढ़ पर बेठ जाते और मेरे पति के बारे में खूब सवाल करते ....... और मुझे भी अपने पति पर जितना गुस्सा आता में अपने पति कि बुराई करती .... और ठाकुर साहब मुसम्मी के बाप को बहुत गन्दी गन्दी गालियां देते …… अब समझो गालियां क्या देते थे कि में तो सुनकर ही लजा जाती थी …लेकिन क्या करती ठाकुर साहब मेरे ठीक सामने ही खेत कि मेढ़ पर बेठे रहते थे ……और ठाकुर साहब सिर्फ गाली ही नहीं देते थे वे एक काम और करते थे मुझे एकटक घूरते रहते थे ....... वे बहुत गन्दी गालियां देते में घूंघट में रहती सुनती रहती ……क्या
करती ....... मानो तो में बहु पतोहू थी मेरे दो बच्चे भी थे ....... और
ठाकुर साहब तो गैर मर्द थे …… और ठाकुर साहब भी बड़े आदमी थे इसलिए मुझे घूँघट में रहना मजबूरी भी थी !" धन्नो कि बातें कोठरी में बेठे तीनो ध्यान से सुन रहे थे !फिर धन्नो आगे बोली :-" लेकिन …… चौथे दिन ठाकुर साहब ने जो किया …… में आज तक नहीं भूली .... " फिर धन्नो अपना मुह साड़ी से धक् कर हंसने लगी और फिर एक पल बाद बोली :-"चोथे दिन ठाकुर साहब बड़ा ही गजब कर दिए ……… रोज़ कि तरह वो मेरे सामने मेढ़ पर धोती और बनियान पहन कर बेठे थे …… मेरे पति के निकम्मेपन के बारे में पूछ कर गलियां देनी शुरू कर दी ....... लेकिन मेरी नजर जब उनपर पड़ी तो में एकदम से डर गई …… क्यूंकि वो ठीक सामने बेठ कर धोती को जांघों तक सरका दिए थे ....... और धोती के अंदर कुछ भी नहीं
पहने थे ....... जब उन्होंने अपनी दोनों झांघों को फैलाया तो में एकदम से
डर गई ....... बाप रे बाप …… उनका औजार मेरे सामने था ....ओर में तो डर के मारे खेत में ही खड़ी हो गई …… और अपने घूँघट को और नीचे तक कर ली !"
तब सुक्खू बोला :-" ठाकुर साहब का खड़ा भी था क्या ?"तब धन्नो बोली :-"अरे नहीं …… ये भी तो थी वहाँ …… पर ये दूसरी और मुह करके काम कर रही थी …और ठाकुर साहब मेरे सामने थे …… खड़ा तो नहीं था पर वेसे भी बड़ा डरावना था …… एक दम से काला , मोटा सांप जैसा और घने बालों से गिरा हुआ …… और दोनों बड़े बड़े आलू ऐसे लटक रहे थे जैसे जमीन को छु जाये …और काले मोटे सांप का मुह तो हल्का हल्का जमीन छू भी रहा था …… " ये कह कर धन्नो फिर हंसने लगी और फिर बोली :-" वे मुझे लजा कर खड़े होते देख कर बोले "अरे .... क्या हुआ .... बेठ कर काम कर .... खड़ी क्यों हो गई ……बेठ जा .... जब मेने दुबारा उनकी तरफ देखा तो उन्होंने अपने ओजार को धोती में छुपा लिया था …फिर में बेठ कर काम करने लगी तभी उन्होंने मुझ से ऐसा सवाल किया कि मेने सोचा यहाँ से भाग जाऊ .... !"इतना कह कर धन्नो हंसने लगी !तब सुक्खू बोला :-" क्या सवाल किये ?"तब धन्नो बोली :-" अरे उस दिन खेत में ये भी थी पर तहकर साहब मुज से बोले …धन्नो एक बात पुछु सच सच बताना तू पति पत्नी के बीच में इतनी अनबन क्यों हे … वो निकम्मा हे ये बात तो मुझे समझ आ रही हे पर एक बात समझ नहीं आ रही हे …तुम बता दो तो में तुम्हारे परिवार के झगडे का कोई हल निकाल दू !"तब धन्नो आगे बोली :-" जब ठाकुर साहब ने ये पूछा तो मेने सोचा रोज कि तरह कि कोई सवाल होगा तो मेने उनसे हा कर दी … लेकिन जब वे सवाल पूछे तो में एक बार कांप सी गई ....!ये सुनकर सुक्खू बोला :-" क्या पूछा कि तुम डर गई ?"तब धन्नो हँसते हुए मुस्कुरा रही गुलाबी कि और देखते हुए बोली :-" अरे वो पूछे कि जब से तुम दोनों के बीच झगड़ा शुरू हुआतब से तुम उससे चुदाती हो या नहीं …ऐसे सवाल को सुनकर में तो एकदम से लजा गई …… मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूँ .... क्या नहीं .... " अब धन्नो अपनी कहानी आगे बढाती बोली :-" अब ठाकुर साहब के इस सवाल का में केसे जबाब दूँ … ये मेरे समझ में नहीं आ रहा था .... मुझे लजाते हुए देख कर ठाकुर साहब बोले तू लजा मत बेहिचक बता दे उस निकम्मे और नालायक को अपनी चूत देती हे या नहीं .... अगर देती हे तो उसे देना बंद कर दे .... अब उसके नीचे बिछ कर चुदाना बिलकुल बंद कर दे .... और अगर नहीं चुदती हे तो अच्छी बात हे साले को चूत दे ही मत … साले को बीबी कि चूत नहीं मिलेगी तो उसका दिमाग ठिकाने आ जायेगा .... चल बता देती हे उससे चुदाती हे या नहीं … बोल .... बता मुझे …और जब ठाकुरसाहब बार
बार ये सवाल करने लगे तो में भी मजबूरी में लजा कर बोल दी .... नहीं …
नहीं देती … और जैसे वे मेरे मुह से नहीं सुने वो काफी खुश हो गए और मुझे बोले " शाबाश ये एक ओरत कि पहचान जो अपने निकम्मे और शराबी मर्द को सबक तो सिखा सके … और धन्नो में तेरे जैसी ओरत कि बहुत इज्जत करता जो अपने हक़ के लिए अपनी इज्जत के लिए , अपनी अस्मत के लिए अपनी खुद्दारी के लिए इस समाज से अपने हक़ कि लड़ाई करती हो .... और कभी पीछे नहीं हटी हो … और धन्नो सच में तूने अपने शराबी पति के साथ ये अच्छा किया … साले को अपनी चूत नहीं दी .... साला अब समझेगा कि बीबी या ओरत का ख्याल नहीं करने वाले का क्या हाल होता हे .... घूमता रह अपना लंड हाथ में ले कर …" तब ठाकुर साहब आगे बोले " अब एक बात और बता धन्नो उसे कितने दिनों से अपनी चूत नहीं दे रही हो .... मतलब उसे तुझे चोदे कितने दिन हो गए हे ?"
जब ठाकुर साहब ये बात कई बार पूछे तो में बोल दी आठ दस महीने तो हो गए .... तब ठाकुर साहब बोले " वाह री … धन्नो … तू बड़ी अच्छी और हिम्मती ओरत हे .... में तो सोच ही नहीं सकता कि तेरे अंदर इतनी हिम्मत हे अपने शराबी पति से टक्कर लेने के लिए … और फिर ठाकुर साहब मेरे सामने बेठ कर मेरी खूब तारीफ कि और मेरे पति को खूब गलियां दी !"आ जायेगा ....तब सामने बेठा सुक्खू बोला :-" तो क्या धन्नो भौजी उस वक़्त क्या सच में तू आठ दस महीने अपने पति के साथ नहीं सोई उसे अपनी चूत नहीं दी ?"तब धन्नो बोली :-" हाँ … और क्या जो कमीना मुझसे रोज़ झगड़ा करेगा उसके नीचे में भला क्यों सोउंगी … क्यों चुदवाउंगी उस से … और में तो उसे अपनी छाती तक नहीं छूने देती थी … दबाना तो दूर कि बात …कई बार शराब के नशे में उसने मेरे पैर पकड़ कर मेरी चूत मांगी पर मेने मना कर दिया … में सोच लिए थी कि अब इस निकम्मे शराबी से नहीं चुदवाउंगी भले ही तलाक हो जाये .... !"ये सुनकर गुलाबी बोली :-" हाँ और क्या तलाक हो जाता तो और भी बढ़िया हो जाता .... पति का पहरा इसकी जालिम जवानी से हट जाता और गैरों के लंड ठंडे करती … और वो छिनाल ही क्या जो अपने पति को ना तरसाये और गैरों के लंड अपनी चूत में ना घुसवाये .... और पति को धिक्कारते हुई दुसरो से ना चुदवाये .... हे हे हे हे … !" और वो बड़ी जोर से हंस पड़ी !ये सुनकर धन्नो बोली :-" हाँ रे हाँ तभी तू अपने घर में इस सांड से चुद्वाती हे और खेत में ठाकुर साहब का लौड़ा खाती हे .... अरी छिनाल यहाँ अपने पति को दिखा दिखा कर सुक्खू का लंड लेती हे वो बेचारा देख हीं भावना में आ जाता हे और तुझे चोदने कि हिम्मत ही नहीं करता बस मुठ्ठी मार कर झाड़ लेता हे और खेत ठाकुर साहब के गधे जैसे लंड कि पहले तेल से मालिश करती हे फिर अपने भोसड़े में सरकवाती हे … और पति बिचारा कोठरी के छेद से तुझे इस सांड से चुद्ता देखता रहता हे और अपनी लोली को सहला कर रह जाता हे !"गुलाबी पर किये धन्नो के कटाक्ष से सब मुस्कुरा दिए !
पर सुक्खू उतावले पन से धन्नो से पूछा :-" पर आगे क्या हुआ भौजी ? … आगे कि बात बताओ !"तब धन्नो एक पल चुप रही फिर बोली :-" .... जब ठाकुर साहब ये जान गए कि में पिछले आठ दस महीनो से मेरे पति के साथ नहीं सोती हु तो ……… उन्होंने एक बहुत ही गन्दा सवाल पूछा …… और में एकदम से लरज गई ....... वे बेहिचक पूछे कि ....... तुम किसी और से फंसी हो क्या … ? अपनी चूत अपने किसी दूसरे यार को देती हो क्या …?सच में ऐसा सवाल सुनकर मुझे बहुत शर्म आई ....... और में चुप रही ....... फिर ठाकुर साहब मुझे समझाते हुए बोले ……देख धन्नो जो मर्द अपनी पत्नी कि इज्जत नहीं करता वो भी अपनी पत्नी से इज्जत पाने का हक़ खो देता हे ....... और तेरा पति जो निकम्मा और शराबी हे रोज़ तुझ से झगड़ा भी करता हे …गलियां देता हे …और तेरी इज्जत नहीं करता हे …और अपने पति होने का धर्म नहीं निभाता हे ....... तो तेरा भी धर्म बनता हे कि तू उसकी इज्जत मत कर …और … यानि अपने पति कि इज्जत को मिट्टी में मिला दे .... लेकिन एक बीबी को अपने पति कि इज्जत मिट्टी में मिलाने के लिए गैर मर्द के सामने टांग उठानी पड़ती हे …उसके नीचे बिछना पड़ता हे …… ये तो जानती हे ना ....... इतना सुनकर तो मेरा दिमाग चकरा गया …में तो खेत में ही बेहोश हो जाती .... फिर उन्होंने ने पूछा कि में क्या बोला तुझे समझ में आया हे कि नहीं … तो में डर के मारे नहीं में जबाब दी …फिर धन्नो अपनी कहानी आगे बढ़ाते हुए बोली :-" … फिर ठाकुर साहब बोले .... समझ में नहीं आया …तो तू मेरे साथ कोठरी में चल …… तुझे ठीक से समझा दूँ ....... तब में डर गई पर ठाकुर साहब खेत कि मेढ़ से उठे और खेत में बनी कोठरी कि तरफ जाने लगे ....... और मुझे पीछे पीछे आने का कहा …… लेकिन मेरी उनके पीछे कोठरी में जाने कि नहीं हुई …… तब वो रुक गए और इस गुलाबी को कहा कि वो मुझे अपने साथ कोठरी में ले कर आये .... तब ये अपने साथ मुझे उस कोठरी में ले गई !इतना सुनकर गुलाबी बोली :-" इसकी तो गांड फटने लगी थी कोठरी में जाने को ....... मुझ से बार पूछ रही थी ठाकुर साहब क्या करेंगे कोठरी में …हे हे हे हे .... में भी बोल दी गुस्से में … अब नहीं काम करोगी ठाकुर साहब के खेत में …ये तो होना ही था …तब तो इसे और रुलाई आ गई थी .... तब में इससे बोली ....... डर मत चल मेरे साथ …। "फिर धन्नो बोली :-" जब ये मेरे साथ कोठरी में चलने को तैयार हुई तो …मेरी भी हिम्मत हुई …कुछ देर बाद हम दोनों खेतों के बीच बनी ठाकुर साहब कि उस सुनसान कोठरी में गए … वहाँ ठाकुर साहब अपनी चौकी पर बेठे हम दोनों का इन्तजार कर रहे थे …… फिर हम दोनों को देख क्र बोले नीचे बेठ जाओ .... तो में अपने घूंघट में चुपचाप नीचे जमीन पर बेठ गई …फिर ठाकुर साहब बोले …में तुझे ये समझने के लिए बुलाया हु …तू अभी जवान और नासमझ हे … भले
ही तूने दो बच्चे पैदा कर लिए हे .... पर समाज कि सच्चाईयों को समझ पाने
में अभी नाकाम हे .... में तुझे जो भी बताऊँ या समझाऊं …… तू उसे ठीक से समझ ले .... ये तेरे फायदे के लिए ही हे …और तेरी शादी तेरे पति के साथ हुई …तो यही सोच थी वो तेरी इज्जत करेगा तुझे कमा के खिलायेगा तुझे सुखी रखेगा .... मेहनत रोजी रोटी चलायेगा …पर वो मादरचोद निकम्मा निकला ....
निकम्मा केसे अपनी पत्नी को दो समय कि रोटी खिला सकता हे .... और वो अपनी पत्नी कि इज्जत केसे कर सकता हे जब वो शराबी हो …तो तू भी सुनी होगी ना .... जैसे को तैसा .... तो तू भी अपनी कमर कस ले अपने पति के निकम्मेपन का जबाब देने के लिए …मेरी
मान … अब तू भी गैर मर्दों के सामने अपनी टाँगे उठाना शुरू कर दे ....
उनके नीचे बिछना शुरू हो जा .... जैसे एक भिखारी दूसरों के सामने हाथ फैलाता हे .... वेसे भी एक ओरत अगर दूसरे मर्दों के सामने टाँगे उठाना शुरू कर दे समझो उसके सब दुःख दूर .... और अपने निकम्मे निठल्ले पति कि इज्जत कि चिंता छोड़ दे .... वो साला जैसा करेगा वेसा ही तो भोगेगा … ओरत का ख्याल नहीं रखेगा तो ओरत कब तक दर दर कि ठोकरें खायेगी .... और एक न एक दिन तो किसी के सामने अपनी टांग उठा ही देगी .... फिर ठाकुर साहब मुझे समझते बोले .... टांग उठाने में पहले तो कई बुराई दिखती हे .... जैसे … पति के साथ धोखा …… लेकिन ये गलत हे … जब पति अपनी को कमा कर नहीं खिला सकता … उसकी इज्जत नहीं कर सकता तो उस पति अपनी पत्नी से वफादारी कि उम्मीद नहीं रखनी चाहिए .... क्यूंकि ताली हमेशा दोनों हाथों से ही बजती हे .... और दूसरी बुराई ये दिखती हे … बदनामी … समाज में बदनामी .... जब पति अपनी पत्नी कि इज्जत नहीं करेगा तो भला पति केसे सोच सकता हे समाज के दूसरे लोग उसकी पत्नी कि इज्जत करेंगे … और पति को अपनी पत्नी कि इज्जत कि परवाह नहीं हे तो पत्नी भला क्यों अपने पति के इज्जत कि परवाह करेगी … समझ लो ठीक से … तब पत्नी को भी चाहिए कि वो अपनी कमर कास ले और अपने पति को सबक सीखाने के लिए सारी जिंदगी उसके सीने पर बेठ जाये .... पति कि छाती पर बैठने का मतलब .... गैर मर्दों के सामने अपने टांग उठा देना .... और एक बार किसी ओरत कि टांग किसी गैर मर्द के सामने उठ गई तो उसका पति क्या बड़ी बड़ी हस्तियां भी उस ओरत पर काबू नहीं पा सकती .... और ऐसी ओरत कभी भी अपने पति कि मोहताज नहीं रहती … उसका मनोबल भी ऊँचा हो जाता हे … और एक बार टांग उठाने के बाद उसे तलाक का भी डर नहीं लगता … फिर ठाकुर साहब बोले तीसरी बुराई लोग समझते हे तलाक या विवाह का टूटना या परिवार का बिखराव होना ग्रहस्ती का बर्बाद हो जाना … लेकिन ऐसा भी सोचना गलत हे .... क्यूंकि यदि पति निकम्मा शराबी और जुआरी हो तो वो घर बसना तो दूर अपनी आदतों कि वजह से बसे बसाये घर को उजाड़ देगा .... ऐसे में अगर पत्नी अपने टांग किसी गैर मर्द के सामने उठाये और उसको तलाक हो या घर उजड़े तो उसे ये ही करना चाहिए … और इसके लिए पत्नी नहीं पति जिम्मेदार हे वो अपनी पत्नी को मारता हे परतातडीत करता हे गाली देता हे .... और उस ओरत का नया चोदु यार उसकी बूर कि लालसा में उस ओरत का पक्ष लेगा .... उसे बचाने कि कोशिश करेगा .... इस तरह उस ओरत को एक सुरक्षा भी मिल जाती हे … ऐसे में भले ही तलाक हो जाये इसे गर्स्थति जीवन को बर्बाद नहीं कहेंगे इसे उस ओरत कि चतुराई ही कहेंगे … जो कही से भी गलत नहीं हे … ऐसी ओरतो और पत्नियों से से डरे मर्द इसे कुतिया चरित्र कहते या ऐसी ओरतो को चरित्र हीन कहते हे .... क्यूंकि उनके मन का डर उन्हें ये कहने पर मजबूर कर देता हे !"
फिर ठाकुर साहब आगे बोले :-"और गैर मर्द के सामने टांग उठाने वाली ओरत के सामने उसके निकम्मे पति को एक ना एक दिन उसके पति को हथियार डालने ही पड़ते हे … लेकिन जब तक निकम्मा नालायक पति अपने पत्नी के सामने झुकता हे तब तक बहुत देर हो चुकी होती हे … तब तक कई गैर मर्दों के नीचे बिछ बिछ कर और उनके करारे धक्के खा खा कर उस ओरत या बीबी का मन या सोच बहुत मजबूत और स्थिर हो जाती हे … फिर शेष सारे जीवन में उस घर में केवल ओरत ही राज करती हे … और उसके पति को उस ओरत के यारों के दबाव में बंधुआ ही बनना पड़ता हे … वो फिर भडुआ बन जाता हे … भडुआ मतलब … जो पति अपनी पत्नी को गैर मर्दों से चुद्ता जान कर या उन्हें चोरी छिपे अपनी पत्नी पर चढ़ा देखे .... उसकी चूत में करारे धक्के लगते देखे और और चुपचाप खड़ा खड़ा अपना लंड सहलाता रहे या मुठ्ठी मारता रहे !"सच में में ठाकुर साहब कि बात सुनकर सन्न रह गई !धन्नो के मुह से इतनी लम्बी बात ख़त्म होते ही गुलाबी बोली :-" सच ही तो समझाया था ठाकुर साहब ने !"तब धन्नो बोली :-" फिर ठाकुर साहब बोले चलो अब में तुम्हे गैर मर्द का मतलब भी समझा दूँ … देखो गैर मर्द का मतलब हे कि असली मर्द … असली मर्द उसे कहते हे जो किसी दूसरे कि बीबी को चोरी से चोद उसे रगड़ दे … अब सवाल ये हे कि क्यों किसी कि बीबी दूसरे
मर्द से चुदेगी … तो जबाब ये हे कि जब कोई ओरत किसी दूसरे मर्द से चुदवाने
के लिए उसे तलाशती हे या चुनती हे तो ये देखती हे कि वो उसके पति से ज्यादा ताकतवर हो जयादा पैसे वाला हो खूब चोदने में माहिर हो और उसके पति को काबू कर सकता हे या उसके पति को दबा सकता हो … और इसी लिए कभी गैर मर्द को चुनो तो ये बात जर्रोर सोच कर चुनो कि वो उसके पति से ज्यादा ताकतवर हो और उसकी धोंस से उसके पति कि गांड फट जाये … या तो पति तलाक दे कर भाग जायेगा … या पत्नी बिना तलाक दिए ही उस मर्द के साथ रहने लगे या पति भीगी बिल्ली बन जायेगा और पत्नी जो चाहेगी वो करेगी .... और पति चुपचाप अपनी पत्नी को अपने सामने टाँगे उठा उठा करगैर मर्द से चुद्ता देखे और अपना लंड सहला सहला खड़ा करे और उसे हिला हिला पानी निकाले और पूरा भडुआ बन जाये … और फिर राजी राजी अपनी बीबी को दूसरों से चुदवाये और खुद तमाशा देखे … फिर ठाकुर साहब मुझ से पूछे कि समझ में सारी बात आई कि नहीं आई … जब तू समझ जायेगी तो दूसरे मर्द के सामने टांग उठाने में तू पाप नहीं मानेगी और तुझे उस बात का पश्चाताप नहीं होगा … फिर ठाकुर साहब मुज से पूछे समझ गई कि … कोई शक़ हे … बोलो … इतना पूछे तब में लजा गई पर जब दुबारा पूछी तब मेने अपनी गर्दन हाँ में हिला दी !" सुक्खू और सावत्री पूरा गौर से सुन रहे थे !फिर सुक्खू बोला :-" अब आगे भी बताओ धन्नो भौजी बड़ा मजा आ रहा हे .... ठाकुर साहब बड़ी समझदारी वाली बात बताये थे .... !"
यह सुनकर गुलाबी बोली :-" और क्या … ठाकुर साहब के दिमाग के सामने सब गांव कि चालाकी फ़ैल हो जाती हे .... "फिर गुलाबी सावत्री कि तरफ इशारा करते हुए बोली :-" … ये छोकरी .... तू भी ध्यान से सुन ठाकुर साहब ने केसे केसे समझाई थी … दुनिया और समाज कि सच्चाई तू भी जान ले …बड़ा काम आएगी जिंदगी में … और तेरी भी जिंदगी बड़े मजे में हो जायेगी … "तब सुक्खू बोला :-" तो भौजी आगे कि बात तो करो …!"तब धन्नो बोली :-" देखो अब मुझे गांव जाना हे …… देर हो जायेगी …फिर दूसरे दिन बातें कर दूंगी …। "तब सुक्खू बोला :-"अरे भौजी अभी तो शाम होने में काफी समय हे ……… तब तक तुम कहानी भी पूरा कर लोगी …और आराम से अपने गांव भी चली जाओगी …आज इसे पूरा कर दो बड़ा मजा आ रहा हे !"कहते कहते सुक्खू लुंगी के ऊपर से अपना लौड़ा मसलने लगा !सुक्खू के हाथ कि हरकत को देख कर धन्नो बोली :-" चलो तो बता ही देती हु .... ठाकुर साहब मुझे पूरी तरह से समझाने के बाद गुलाबी से बोले ;-"इसे तेल कि कटोरी देदो …और तुम जाओ अपना खेत में काम करो .... और ये मेरे भूखे शेर को तेल से तर करके मालिश करेगी …ये भी साला चार पांच दिन से बूर नहीं पाया हे …बड़ी हरकत भी कर रहा हे …… बिल में घुसने को … तेल से मालिश करवा कर में इसकी टांग उठा दू आज …साला इसका पति निकम्मा हे आज उसे भी सबक मिल जाये .... इतना सुनते ही मेरा कलेजा धक् धक् करने लगा .... गुलाबी उठी और उस कोठरी के कोने में छुपा कर राखी एक कटोरी उठा लाई … जिसमे तेल भरा था .... में उस कटोरी और उसमे भरे तेल को देख कर ही सहम गई … और तभी घूँघट कि ओट से चौकी पर लेट चुके ठाकुर साहब को देखा तो डर कि सीमा भी नहीं रही .... ठाकुर साहब अपनी धोती को अपनी कमर पर चढ़ा चुके थे … और उनका सोया हुआ मोटा काला लंड और इर्द गिर्द उगे घनी झांटो में चमक रहा था … जैसे कोई मोटा मरा हुआ चूहा पड़ा हो .... और जैसे ही मुस्कुराती गुलाबी मेरे सामने तेल कि कटोरी रख कर कोठरी से बाहर जाने लगी … तो में भी उसके पीछे पीछे चल दी … तब ठाकुर साहब हम दोनों को रोक लिए और बोले :-"देख गुलाबी ये डर रही हे .... आज इसका पहला दिन हे .... इसलिए तू भी कोठरी में रह .... और इसे बता दे कि केसे मजा लेना हे .... वेसे तो ये खुद दो बच्चे पैदा कर चुकी हे … लेकिन लंड पर तेल मालिश करने का हूनर तो शायद ही आता होगा इसे .... क्यूंकि पता नहीं किसी के लंड पर तेल मालिश कि हे या नहीं … फिर गुलाबी मुझे धकेल कर चौकी पर चढ़ा दी !" फिर धन्नो चुप हो गई !तब सुक्खू मानो व्याकुल हो कर बोला :-" अरे धन्नो भौजी चुप क्यों हो गई … "
तब धन्नो बोली :-" अब में कुछ नहीं बताउंगी मुझे बड़ी लाज लग रही हे !"तब गुलाबी बोली :-" चल … तो में ही बता देती हु आगे का किस्सा … !"फिर सुक्खू और सावत्री दोनों ही गुलाबी के मुह कि तरफ देखने लगे !फिर गुलाबी एक गहरी सांस लेते हुए कहानी को आगे बढ़ाते हुए बोली :-"जब में ये हरजाई को धकेल कर चौकी पर चढ़ाई तो ये पूरी तरह से घूंघट में थी … और इसकी एक कलाई पकड़ कर ठाकुर साहब इसे चौकी पर बैठाने लगे .... और ये चौकी पर पूरा घूँघट किये साडी में लिपटी हुई सिमट कर बेठ गई … फिर ठाकुर साहब बोले …गुलाबी इसे कटोरी का तेल थमा दे … चल धन्नो अब इस पर तेल लगा .... और इसे खड़ा कर … फिर तो ये घूंघट में ही चौकी पर सिमटी बेठी रही … और ठाकुर साहब इसकी एक हाथ कि कलाई को पकडे रहे … और ठाकुर साहब चौकी पर लेटे रहे !"गुलाबी के मुह से ऐसी पुराणी कहानी को सुनकर मानो धन्नो को अपना अतीत याद आने लगा , लगा जैसे उसके सामने सब सपने में दिख रहा हो मानो सब कुछ पिछले दिन कि ही घटना हो !फिर लाज से धन्नो अपने मुह को धक् लिया और गुलाबी के मुह से अपनी गैर मर्द से हुई पहली चुदाई कि कहानी को सुनते सुनते अतीत में खो गई … ! अपने अत्तीत में जाते ही धन्नो के सामने सारी घटनाये मानो किसी चलचित्र कि तरह चलने लगी !जब गुलाबी उस दिन कि घटनाये सावत्री और सुक्खू को सुनाने लगी तो धन्नो भी जैसे बेसुध हो कर अपने अतीत में खो गई !जो इस प्रकार हे …… ठाकुर साहब चौकी पर लेटे धन्नो कि कलाई पकड़ उसे बैठाये रहे और दूसरे हाथ से अपने लंड को सहलाने लगे और बोले :-" तेरे घर में कौन कौन हे … !"
तब धन्नो अपने घूंघट में कुछ देर बाद बोली :-" .... ब … बाबूजी …वो मेरी सास हे … और मेरे दो बच्चे हे …!"फिर ठाकुर साहब अपने ढीले और लुजलुजे लंड कि सुपाड़े कि चमड़ी को हल्का सा पीछे किये और उनका सुपाड़ा बाहर आ गया .... फिर उस चमड़ी को फिर से सुपाड़े पर उसी तरह चढ़ा दिए और बोले :-" तो तेरी सास अपने बेटे कि तरफ रहती हे … उसी कि शाह लेती हे .... या तेरी तरफ रहती हे … तेरी शह लेती हे … "एक पल बाद धन्नो बोली :-" .... न .... नहीं बाबूजी … वो अपने बेटे कि ही शह लेती हे … उसको गलती नहीं देती … बाबू जी मुझे ही दोषी मानती हे .... !" तब ठाकुर साहब बोले :-" चल इसे अपने हाथ में थाम … इस पर तेल लगा … इसकी मालिश कर और बातें भी कर … "इतना कह कर धन्नो के हाथ को अपने लुजलुजे लंड पर रख दिया !धन्नो का हाथ जैसे ही ठाकुर साहब के मरे हुए मोटे चूहे जैसे लुजलुजे लंड पर पड़ा कि धन्नो चौकी से खड़ी हो गई मानो वो वह से भाग जाना चाहती हो !ऐसा देख कर ठाकुर साहब उसकी कलाई को कस कर दबोचे रखे और खुद चौकी पर उठ कर बेठ गए और बोले :-" अरे … क्या हुआ री … काहे को चौकी पर से उतर गई .... आ चल बेठ जा … डर मत …तेल लगा … और आगे कि बातें बता … तू तो ऐसे डर रही हे मानो लंड नहीं कोई काला नाग को छु लिया हो …तू केसे दो दो बच्चे पैदा कर ली … जो लंड से इतना डर रही हे … { अब ठाकुर साहब को कोण बताये कि उसके पति का तो उनके लंड से आधा ही था } लंड से इतना क्या दरी हे … चल आ बेठ … !"इतना कहते हुए ठाकुर साहब उसकी एक कलाई को दबोचे और हुए और एक हाथ से उसकी पतली कमर को पकड़ कर चौकी कि तरफ जबर्दस्ती खींचेते हुए मानो उसे वह बैठने को मजबूर कर दिए !
धन्नो अपने दोनों पैरो को चौकी के किनारे से नीचे कर ली और उन्हें लटका कर चौकी पर बेठ गई !और दूसरे ही पल ठाकुर साहब उसके हाथ को दुबारा खींच कर अपने लंड पर रखे और खुद चौकी पर फिर से लेट गए !धन्नो इस बार तो बस कसमसा कर रह गई !ठाकुर साहब धन्नो के हाथ कि हथेली को अपने लंड पर हौले हौले रगड़ते हुए पूछने लगे :-" तो तेरी सास अपने बेटे को बेकसूर मानती हे … क्यूँ … !"ये सुनकर धन्नो धीमे से बोली :-"जी "ठाकुर साहब फिर अपने लंड को धन्नो कि हथेली से रगड़ते हुए बोले :-" तो तेरी सास भी कमीनी हे … मादरचोद .... गली में किसी चुदवा कर उसने ऐसी ओलाद पैदा कि हे … तभी तो उसे अपने बेटे का निकम्मापन दिख नहीं रहा हे … उसकी चूत में लंड के धक्के मारु … उसकी गांड में लौड़ा डाल कर साली कि फाड़ डालूं … " ठाकुर साहब धन्नो के हाथ को अपने लंड से रगड़ते रगड़ते उसके पति और सास को ऐसी ही गन्दी गन्दी गलियां देते रहे और इधर उनके लंड में फुलाव आना शुरू हो गया !लंड अपनी मोटाई में आना शुरू हुआ तो धन्नो को महसूस हुआ कि लंड काफी भारी हो गया हे !तब ठाकुर साहब बोले :-" चल … अब ये भी तैयार होने लगा हे … तेरी हाथ कि हथेली तो बड़ी नरम और गुदाज हे री … चल अब अपने नरम नरम हाथों से इसे तेल लगाना शुरू कर दे … !" फिर बगल में खडी गुलाबी उसे कटोरी का तेल देने लगी !धन्नो ने उस तेल कि कटोरी को नहीं थामी तो गुलाबी ने चुपचाप वो कटोरी चौकी पर रख दी !तब तक ठाकुर साहब बोल पड़े :-" चल … तेल लगाना शुरू कर … तेरा ससुर क्या करता हे !"तब धन्नो ने अपनी दो अंगुलिया तेल कि कटोरी में डुबो दी और घूंघट कि ओट से धीमे से वो तेल से भरी अंगुलिया ठाकुर साहब के लंड से लगाती हुई बोली :-' जी … बाबूजी … ससुर कभी के गुजर गए हे … "और लंड पर तेल लगते ही लंड एकदम से चमकने लगा !
फिर ठाकुर साहब बोले :-" ओह तो तेरी सास रांड हे … विधवा हे … !"लंड पर और कटोरी से तेल लगते हुए धन्नो धीमे से बोली :-" हाँ बाबूजी "फिर ठाकुर साहब एक पल के लिए सोच में पद गए और फिर बोले :-" चरित्र केसा हे तेरी सास का … कुछ तो बता !"फिर धन्नो लंड को घूंघट कि ओट से देखते और उस पर तेल लगाते हुए कुछ चिढ कर बोली :-"जी बाबूजी केसे कहु … वो तो मुझे ही चरित्रहीन और छिनाल कहती हे … जब कि वो खुद ही ऐसी हे … !"तब
ठाकुर साहब लेटे लेटे ही धन्नो के घूंघट कि तरफ देखते हुए बोले :-" क्या
हुआ कुछ तो बता तेरी सास का नाम लेते ही तुझे गुस्सा आ गया ठीक से बता !"तब
धन्नो कटोरी से तेल अपनी हथेली में भर कर ठाकुर साहब के पुरे लंड पर तेल
कि मालिश करती हुई धीमे से बोली :-" क्या बताऊ बाबूजी .... वो बहुत हरामजादी हे … वो मेरी सास नहीं मेरी दुश्मन हे … उसकी करतूते सुनेंगे तो आप कहोगे कि में केसे उसके साथ उसके घर में रह रही हु … मेरा जी करता हे कभी कभी कि कुए में कूद कर जान देदु !"धन्नो के गुस्से को देख कर ठाकुर साहब समझ गए कि इसका अपनी सास से बहुत खटपट हे !और जब से उसकी सास का जिक्र आया हे तब से उसे बहुत गुस्सा आ गया हे और अब वो उनके लंड को बहुत काश कर पकड़ रही हे और पुरे लंड को अपनी दोनों हथेलियों कि सम्लित मुट्ठियों में पकड़ कर जोर जोर से तेल लगा कर मालिश कर रही हे … !कोठरी में धन्नो कि कलाइयों कि लाल सुर्ख चुडिया अब खन खन कि आवाज़ कर रही थी !और लंड भी अब पूरी तरह से खड़ा हो गया था उसका लाल टमाटर जैसा सुपाड़ा चमक रहा था और पूरी तरह से तना हुआ वो कोठरी कि छत कि और देख रहा था !लंड अपनी पूरी मोटाई में आ गया था ! वो पूरा ठोस लग रहा था ! किसी मोटे लोहे कि राड जैसा हो गया था और अब धन्नो कि हथेली में नहीं समां रहा था उसकी हथेलियो से फिसल कर उछाल मार रहा था !धन्नो जबर्दस्ती तेल से भरे हुए अपने नरम हाथो से उस पर ऊपर नीचे फेर रही थी और ठाकुर साहब को उसकी नरम हथेली किसी कसी हुई बूर जैसी लग रही थी !उन्हें लग रहा था उनका लंड किसी कसी हुई बूर में ऊपर नीचे हो रहा हो !
तब ठाकुर साहब बोले :-" तेरी सास तुझे क्या कहती हे … जो तू उस पर इतना गुस्सा कर रही हे … !"इतना कहना था कि धन्नो ठाकुर साहब के लंड पर तेज तेज हाथ चलते हुए बोली :-" क्या नहीं कहती हे बाबूजी … छिनाल … वेश्या … हरजाई कहती हे … मेरा नाम मेरे पति के कुछ दोस्तों के साथ जोड़ कर मुझे झूठा बदनाम करती हे … कहती हे में उन सब से फंसी हूँ !"ठाकुर साहब को पता था कि जब एक ओरत किसी दूसरी ओरत पर गुस्सा करती हे तो उसका मिजाज कुछ ऐसा ही होता हे !फिर ठाकुर साहब उसकी सास को गाली देते हुए बोले :-" उसकी बूर को चोदुं … उसका भोसड़ा फाडू उसकी गांड मारूं … वो साली खुद गांव में अपनी चूत में लंड पेलवाती होगी .... साली लण्डखोर नहीं होती तो अपनी बहु पतोहू को बदनाम नहीं करती !"ठाकुर साहब का इतना कहना था कि धन्नो दोनों हाथों से लंड को मजबूती से थाम कर उसकी कस कस कर मालिश करती हुई बोली :-" हा बाबूजी … वो खुद हरजाई हे … बुड्ढी हो गई पर उसकी जवानी नहीं गई … बस सफ़ेद साडी पहनती हे …दिखाने के लिए …नहीं तो उसकी करतूते किसी रंडी से कम नहीं बाबूजी … !"घूंघट में धन्नो बोली तो ठाकुर साहब उसके घूंघट कि तरफ देखते हुए बोले :-" तो तुम केसे जानती हो … कभी उसे देखि हो क्या … तब धन्नो बोली :-" हा बाबूजी "तब ठाकुर साहब बोले :-" तब जब तेरी सास तुझे बदनाम करती हे तो तू उसे उसके करतूत क्यों नहीं बता देती … फिर
धन्नो तिलमिला कर लंड को कस के मसलते हुए बोली :-" में क्यों चुप रहूंगी
बाबूजी … में तो उसे उसी वक़्त सुना देती हु रंडी कामिनी को तू अपनी सोच फिर मुझे कह .... !"
तब ठाकुर साहब बोले :-" सही किया पर उसे खुल कर बोला कर तू चुदक्कड़ हे …रंडी हे … लण्डखोर हे …बुरचोदी हे … गांव कि ओरत हे जब तक उसे तू खुल कर ऐसी बातें नहीं कहेगी उस पर असर नहीं होगा !"तब धन्नो बोली :-" हाँ बाबूजी … गुस्से में तो ऐसे बोल ही जाती हु क्या करू … वो हे ही ऐसी भला कोई बहु अपनी सास को ऐसे बोलती हे पर में क्या करू । "तब ठाकुर साहब धन्नो कि जांघ को साड़ी के ऊपर से दबाते और सहलाते हुए बोले :-" जब सास ऐसी चुदक्कड़ हो तो बहु क्या कर सकती हे तू उस रंडी को खूब गालीया दिया कर … तब उस घर में तेरी भी धौंस रहेगी … नहीं तो किसी दिन तेरी जान भी ले लेगी तेरी सास …या तेरा पति .... इसलिए घर में धौंस बनाया रख कर !"धन्नो साडी के ऊपर से अपनी जांघ पर ठाकुर साहब का हाथ पा कर सनसना गई !उसके हाथ में ठाकुर साहब का गरम लंड था !धन्नो कि बूर में चीटियां रेंगने लगी !वो लंड पर तेल भी लगा रही थी उसे अब गौर से देख भी रही थी !इतना बड़ा उसने लंड कभी नहीं देखा था !अब उसका मन कर रहा था कि ठाकुर साहब उसकी बूर में लंड फंसा कर उसे चोद दे .... पिछले आठ दस महीनो से वो नहीं चुदी थी !अब धन्नो कि बूर अंदर ही अंदर पानी छोड़ रही थी और उसकी बूर बूरी तरह से चिपचिपा उठी थी !गुलाबी बगल में कड़ी सब देख रही थी उसकी बूर भी चिपचिपा उठी थी वो भी हलके हलके सिसक रही थी !फिर ठाकुर साहब बोले :-" तेल पी कर अब लंड तो पूरा तैयार हो गया हे .... इसका सुपाड़ा अब किस लाल टमाटर कि तरह चमक रहा हे … अब देर मत कर … खड़ी हो कर अपनी साडी और पेटीकोट को अपनी कमर तक उठा ले और इस खड़े लंड पर अपनी बूर को धीरे से टिका कर आराम से इस पर बेठ जा … तू तो दो बच्चों कि माँ हे री .... सब कुछ जानती हे मर्द के साथ केसे सोया जाता हे … केसे चुदाया जाता हे …!"इतना सुनते ही धन्नो एक दम सहम गई पर उसकी बूर बुरी तरह खुजलाने लगी ऐसा लगा एक साथ सेंकडों चीटियां उसकी बूर में काट रही हो और उसके मुह से एक मादक सिसकी निकल गई !
धन्नो ने अगले ही पल तेल से चुपड़ कर फौलाद कि तरह तन कर खड़े हो चुके लंड को छोड़ कर अपने हाथ से आजाद कर दी !
और अपने हाथ में लगे तेल को मानो गौर से देखने लगी !तभी ठाकुर साहब धन्नो से बोले :-"हाथ में लगे तेल को अपनी चूत के सुराख़ पर लगा ले …चल साड़ी पेटीकोट अपनी कमर तक उठा कर तेल को चूत पर चोपड़ ले …लौड़ा घुसने में आसानी रहेगी !"धन्नो का छोटा सा दिल धाड़ धाड़ कर धड़क रहा था !फिर धन्नो चौकी पर खड़ी हो गई और हिम्मत करके धीरे धीरे अपनी साडी और पेटीकोट को अपनी कमर तक उठाना शुरू किया …फिर लाज के मारे ठाकुर साहब कि तरफ पीठ करके अपने हाथ पर लगे तेल को अपनी चूत उसके सुराख़ और पास में खड़ी झांटों कि खेती पर भी लगा लिया सारा नीचे का हिस्सा तेल से तर हो गया !ठाकुर साहब को धन्नो के गोरे चूतड़ कि झलक मिली और उनका लंड ठुनकी मारने लगा और धन्नो को चोदने में और बेकरार हो गया !धन्नो के भी चूत में मानो हजारों चीटियां रेंग रही थी वो भी पहली बार ऐसे विशाल लौड़े से चुदने के लिए बेकरार थी !उसके सामने अपने निकम्मे पति और चुड़ेल सास के चेहरे नाच रहे थे वो उनसे बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी और वो आज गैर मर्द से चुद कर उनकी इज्जत को उड़ाने में तैयार थी और इसी काम से मानो वो उनसे बदला लेना चाहती थी !फिर ठाकुर साहब बोले :-" चल जल्दी से लंड पर बेठ जा .... इस खूंटे को अपनी चूत के सुराख़ पर टिका कर इसकी सवारी कर .... !कर धन्नो अपनी साडी और पेटीकोट को उठाये ही ठाकुर साहब कि तरफ मुड़ी हां उसका घूंघट नहीं हटा था और अपने एक पैर को लेटे हुए ठाकुर साहब कि कमर के दूसरी और कर ली !धन्नो अपने हाथो से साडी ओर पेटीकोट अपनी कमर तक उठा चुकी थी तो उसकी तो उसका पैर और झांघ एकदम से नंगी हो चुकी थी वे एक दम चमक रहे थे और चमक रहे झांघों के जोड़ पर काली काली झांटो का बेहिसाब जंगल चमक रहा था उन झांटो से लदी बूर कि हलकी झलक में ठाकुर साहब को किसी खरबूजे कि फांक कि तरह चूत के मोटे मोटे होट अपने लंड कि सीध में ही लग रहे थे !फिर अगले ही पल धन्नो अपने घुटने मोड़ कर ठाकुर साहब कि झांघो के ऊपर हवा में बेठ गई और उनके लंड के सुपाड़े को अपनी छुट के सुराख़ पर टिका दिया !तेल से सने और गरम लाल सुपाड़े कि गर्मी को चूत के सुराख़ पर महसूस करते ही धन्नो कि आँखे मस्ती से मुंदती चली गई और मस्ती के तावमें आकर धन्नो उस खूंटे पर बेठ गई और रिसती चूत और तेल कि मिली झूली चिकनाई के कारन तेल में चिपड़ा हुआ लंड धन्नो कि चूत में आधा धंस गया और धन्नो कि कसी हुई और कई महीनो से अनचुदी चूत में कस कर फंस गया !मजे और हलके दर्द के मारे धन्नो का मुह खुल गया और उसके मुह से एक मादक आआअह्हह्हह्ह कोठरी में गूंज गई !धन्नो कि बूर में ठाकुर साहब का लंड आधा घुस चूका था और धन्नो अभी कुछ हवा में ठाकुर साहब कि झांघो पर बेठ चुकी थी पेटीकोट और साडी अभी दोनों हाथों से पकड़ी हुई थी !
ठाकुर साहब ने धन्नो के नंगे कूल्हे और कमर को अपने दोनों हाथों से दबोचा और चौकी पर लेते ही अपनी कमर ऊपर कि तरफ उचकाई और उनका लंड एक इंच और अंदर सरक गया उनके देखा देखि धन्नो ने भी अपनी कमर कुछ ऊपर कि और जोर से वो लंड पर बेठ गई जिससे अजगर उसके बिल में और सरक गया पर अभी काफी बहार था !इन दो धक्को में लंड आधे से ज्यादा अंदर धंस चूका था !लेकिन ठाकुर साहब के लंड कि सवारी कर रही धन्नो का चेहरा अभी भी घूंघट में ही था !और धन्नो घूंघट में ही सिसकारती हुई धीमे से बोली :-" स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स .... हाआआआ … ब .... ब बाबूजी .... बड़ा मोटा हे … आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह … पूरा कस गया हे बाबूजी !"इतना सुनकर ठाकुर साहब ने फिर अपने दोनों हाथों से उसकी कमर और कूल्हों को पकड़ कर ऊपर कि और उचक कर एक जोर से धक्का मारा तो उनका लंड एक इंच और धन्नो कि चिकनी चूत में सरक गया !पर धन्नो एक दम से कांप कर लार्ज गई और सिहरती हुई घुघट में ही हलकी से चीखती हुई सी बोली :-" अरररररेई बब्ब … ब बाबूजी … अरीईईईईईए … मालिक … हमारी बुरिया फट जाई … धीरे से बाबूजी … इ पूरा नहीं घुसेगा बाबूजी !"घूँघट के अंदर से आई ऐसी मीठी चीख भरी आवाज़ सुन कर ठाकुर साहब बोले :-" अरे … धन्नो … बूर नहीं फटेगी … तू तो दो बच्चे पैदा कर चुकी हे जितना फटना था तेरी फट गई … !"फिर
ठाकुर साहब ने अपने हाथ उठा कर धन्नो के चेहरे से साडी का पल्लू एक जटके
से उठाया और उसकी पीठे पीछे नीचे गिरा दिया !धन्नो का घूंघट में छिपा
सुन्दर चेहरा पूरी तरह से ठाकुर साहब के सामने आ गया था !धन्नो के मांग में लाल सुर्ख सिन्दूर चमक रहा था !माथे पर सस्ता सा मंगल टीका ऐसे लटक रहा था मानो कोई नै नवेली दुल्हन सजी हो !धन्नो कि नाक में नथुनी और कान में सस्ती मगर बड़ी बड़ी बालियां लटक रही थी !धन्नो के गले में मंगलसूत्र कि जगह एक माला लटक रही थी जिसमे एक पीला पीतल का ताबीज लटक रहा था !धन्नो के माथे पर एक सस्ती किस्म कि लाल रंग कि बिंदिया लगी थी जिसमे शीशा लगा होने के कारन वो भी चमक रही थी !धन्नो के होटों पर लिपस्टिक ऐसे चमक रही थी मानो उसने पान खा कर अपने होंट लाल कर दिए हो !ठाकुर साहब उसे चमचमाते देख कर आवाक रह गए उनका धन्नो कि चूत में फंसा लौड़ा एक ठुनकी खा गया जिसे धन्नो ने भी अपनी चूत में कंपकपाते महसूस किया ! धन्नो देखने में एक नई नवेली दुल्हन कि तरह लग रही थी !
फिर ठाकुर साहब धीरे से बोले :-"अरे .... मादरचोद …… तू तो एक दम दुल्हन कि तरह लगती हे .... जो सुहागरात मनाने आई हो … साली … दिनभर सज कर रहती हो … चल मुझे एक चुम्मा दे तो … !"इतना बोल कर ठाकुर साहब ने धन्नो के कंधे पकड़ कर अपनी और खींचा और शर्माती धन्नो के गाल पर चुम्मा लिया तो सस्ते सेंट कि खूसबू ठाकुर साहब के नाक से टकरा गई जो धन्नो ने अपने बलाउज के गले से चुपड़ा हुआ था !सस्ते सेंट कि खुसबू अपने नाक से खींचते हुए और धन्नो के गालों को चुम्मे दे देकर अपने थूक से भिगोते हुए पास खड़ी उनकी चोदा बाटी देखती हुई गुलाबी से बोले :-"देख री .... तू भी इत्र सेंट पोत के रखा कर … देख तेरी सहेली कितनी मस्त हे … सेंट लिपस्टिक … लाल चूड़ियाँ जो चुदते हुए संगीत सुनाये … सब कुछ पोत के एकदम फिट हे … तभी तो लंड में ताव भी खूब आएगा … !" इतना बोल कर ठाकुर साहब ने फिर से धन्नो कि कमर पकड़ कर ऊपर कि और उचक कर जो कस के धन्नो कि बूर में धक्का मारा तो उनका लंड धन्नो कि चूत में एक इंच और सरक गया धन्नो मानो चीख पड़ी उसकी कजरारी आँखों के कोने में आंसू कि बूँद झिलमिला उठी जो बह कर उसके गाल को काला करने लगी वो लार्ज सी गई सख्त तकलीफ में लग रही थी और गिड़गिड़ा कर बोली :-" ब .... बाबूजी .... आआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह …… अरे .... मर गई … मोरी मैय्या … मोरी बुरिया … चिर गई … फट गई … अब बस … बाबूजी … इ पूरा गुस गइल … आह … बाबूजी अब मत हिलो … आआआह्हह्हह्ह इइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइ …… इइइइइइइइइइइइइइइइइइइ ह्ह्ह्हह उउउउउउउउउउउउह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह आउच !"इतना सुनकर ठाकुर साहब ने अपना एक हाथ उसकी कमर से हटा कर अपने लंड को टटोला तो देखा कि अभी भी उनका लंड धन्नो कि चूत से एक डेढ़ इंच बाहर ही था !पुरे दस इंच का लंड था उनका जो धन्नो कि चूत में वहाँ वहाँ घुस गया था जहा आज तक उसके पति का ५ इंच का लंड नहीं पहुँच पाया था !और अभी तक ये पूरा नहीं घुसा था !
तक ठाकुर साहब हुलस के बोले :-" अरे नहीं री … अभी पूरा कहाँ घुसा हे … लगता हे तू कभी इतने मोटे लंड पर नहीं बेठी हे … तुझ से नहीं चोदा जायेगा … तू नीचे लेट में फिर इसे पूरा घुसता हु तुझ से तो नहीं घुसेगा में तुझे ऊपर चढ़ के चोदता हु तब ये पूरा घुसेगा … चल … अब तू इस चोकी पर नीचे लेट … में तेरे ऊपर चढ़ता हु … !इतना कह कर ठाकुर साहब ने धन्नो को अपने लंड से उठने का इशारा किया तो धन्नो बड़ी मुश्किल से लंड से उठ पाई लंड मानो उसकी चूत में फंसा हुआ था !उनके लंड का मोटा सुपाड़ा पक कि आवाज के साथ उसकी गीली चूत से बाहर आया ऐसी आवाज आई जेसे किसी बोतल के मुह से कोई टाइट कार्क निकला हो !धन्नो में अपना मुह छत कि तरफ करके ताक़त से लंड को चूत से बाहर निकाला था इसलिए उसकी नजर तो ठाकुर साहब के लंड पर नहीं पड़ी थी पर इतनी दूर धन्नो कि चूत का पानी पी पी कर उनका काला नाग मानो अजगर कि तरह भयंकर हो गया था जिसे देख कर चौकी के पास खड़ी गुलाबी सहम सी गई उसे आज ठाकुर साहब का लौड़ा ज्यादा मोटा और लम्बा और भयंकर लग रहा था !दूसरे ही पल ठाकुर साहब चौकी के नीचे खड़े हो गए उनका लंड खूब तन्ना रहा था किसी बड़े गन्ने के मोटे टुकड़े जैसा जो एक दम ९० डिग्री के कोण में खड़ा उनके पेट के हुंडी के ऊपर उनके सीने तक लग रहा था !धन्नो कि अधमुंदी आँखों ने अब ठाकुर साहब का लौड़ा नहीं देखा वो फटाफट अपनी साडी और पेटीकोट को अपनी कमर में चढ़ा कर शर्म के मारे आँखे मूँद कर और अपनी दोनों झांघे पूरी तरह से फेला कर के चौकी पर लेट गई और अपनी चूत पर आने वाले प्रहार का इन्तजार करने लगी !घनी झांटों से लदी और काली मोटी फांकों वाली चूत अब ठाकुर साहब के सामने थी !झांघे फैलाने कि वजह से योनि होंट अलग हो गए थे और बूर में हलकी हलकी अंदर ललाई झांक रही थी !बूर के अंदर से कुछ बाहर कि तरफ बहा धन्नो कि चूत का गीला रस उसे और भी सुन्दर बना रहा था !धन्नो के चेहरे कि तरफ ठाकुर साहब ने देखा तो पाया उसकी आँखे बंद हे पर वो अपने होटों को हलके हलके काट रही थी कुछ मुह खुला हुआ था और सांसे तेज तेज चल रही थी उसका ब्लाउज में कसा सीना ऊपर नीचे हो रहा था उसके शरीर को बड़ी लंड कि प्यास लग रही थी !
फिर ठाकुर साहब धन्नो के झाँगों के बीच अपने घुटने मोड़ते हुए उकड़ूँ हो कर बेठ गए !और अपने मोटे लंड को जो उनके पेट और सीने से लगा हुआ था नीचे खींच कर उसके सुपाड़े को धन्नो कि चूत के सुराख़ पर टिका दिया और थोडा जोर लगाया तो सुपाड़े का मुह हल्का सा धन्नो कि चूत के छेद में फंस गया !फिर ठाकुर साहब चौकी पर दोनों हाथ जमा कर धन्नो के ऊपर अधर हो गए और उनके मजबूत नितम्बो ने एक जोर दार नीचे कि तरफ धक्का मारा तो उनका लंड चूत को किसी ककड़ी कि तरह फाड़ते हुए धन्नो कि चूत में एक झटखे में आधे से ज्यादा घुस कर कस गया !धन्नो मानो किसी जिबह होते बकरे कि तरह चीख उठी :-"आआआ … आअह्ह्ह्ह …रॆऎऎऎ … अरे बाप रे … अरे माई री … मोरी बुरिया फट गई रे … माई … !"ठाकुर साहब ने धन्नो कि चीखों पर कोई ध्यान नहीं दिया और उसके कंधे पकड़ कर धक्के पर धक्के मारते रहे … धन्नो बिलबिलाती रही वो जितना बाहर खींचते फिर उस से ज्यादा घुसा देते और धन्नो ज्यादा बिलबिलाती कराहती रोती पर ठाकुर साहब अपने नितम्ब उठा उठाकर घनघोर धक्के मारते रहे और इस प्रकार १२ - १५ धक्कों के बाद अब ठाकुर साहब का मोटा काला नाग पूरी तरह से धन्नो के छोटे से बिल में समां गया था और उनके बड़े बड़े आंडे धन्नो के चूतड़ से टकराने लगे मानो वे उसकी गांड में गुसना चाहते हो !तब ठाकुर साहब अब अपने धक्के रोक कर धन्नो से बोले :-" ले देख री … अब पूरा लंड धंस गया हे री … दो बच्चे पैदा करने के बाद भी तेरी बूर में काफी कसाव हे … बड़ा मजा आ रहा हे !"ये कहते कहते ठाकुर साहब ने धन्नो के बलाउज को खोल दिया और और उसकी ब्रा को भी उसकी चुचियों के ऊपर कर दिए और उन पर टूट पड़े !दोनों कसी हुई चुचियों को अपने हाथ में ले कर ऐसे मसलने लगे मानो कोई ओरत थाली में आता गूँथ रही ही !चुचियों कि मसलाहट धन्नो को चुदासी बना दिया था ठाकुर साहब का लंड फंसा होने के बाद भी उसकी चूत कि दीवारे ढेरों पानी छोड़ रही थी !उसकी छोटी सी बूर में लंड वहाँ सैर कर रहा था जहाँ आज तक कोई लौड़ा नहीं पहुँच सका था और साथ में ठाकुर साहब अनुभवी हाथों से उसकी चुचियों कि मिजाई ने धन्नो को आनंद के सातवें आसमान पर पहुंचा दिया था !धन्नो को दर्द के साथ असीम आनंद भी मिल रहा था और पास में खड़ी गुलाबी भी ठाकुर साहब का लंड धन्नो कि चूत में फंसा देख रही थी और उसकी चूत भी बूरी तरह से पनिया गई थी !गुलाबी भी सिसकी मारते मारते अपनी साडी के ऊपर से ही अपनी चूत सहलाती जा रही थी !इधर ठाकुर साहब आँखे बंद कर के लेटी धन्नो के लिपस्टिक से रंगों होटों को अपने होटों में कैद करके बुरी तरह से चूसने लगे थे !धन्नो के पूरे बदन और बूर में मानो आग सी लग गई ! उसे आज मालूम पड़ रहा था कि सम्भोग का आनंद क्या होता हे उसका पति उसकी चूत में बस दो मिनिट ही टिकता था और होंटों कि चुसाई और चुचियों कि मिजाई तो वो कभी करता ही नहीं था !धन्नो ने अपनी मुंदी आँखों को कस लिया और वो पूरी तरह से गनगना गई वो भी हलके हलके अपने होटों से ठाकुर साहब के होटों को पकड़ रही थी !ठाकुर साहब ने उसके दोनों होटों को बारी बारी से चूसा और फिर उन्हें आजाद कर के धन्नो से बोले :-"धन्नो तेरी चूचियां भी किसी कुंवारी छोकरी कि तरह टाइट हे री … किस चक्की कि का आटा खाती हे साली … और ऊपर से तेरे बनाव श्रृंगार ने तो मेरे लंड में तूफ़ान मचा दिया हे री … !"
फिर ठाकुर साहब अपने चूतड़ उठा उठा कर धन्नो कि टाइट बूर में ताबड़तोड़ धक्के मारने लगे !खप -खप … खच -खच … पक पक .... चट -चट .... खपाक खप्प .... खपाक खप्प .... फक्क - फक्क … साथ में ठाकुर साहब के मुह से लकड़ी काटते लकड़हारे जैसी आवाजे ऐ .... हुँहह .... ऐ हहहह और धन्नो के मुह से कभी मादक और कभी दर्द भरी सीत्कारें अरीई .... उईईईईईई … आअह्हह्हह .... उउउउउंम .... हाँ … ऐसे ही बाबूजी …… जरा धीरे बाबूजी स्स्स्स्स्स्स्स्स्स हुउउउउउउउउउउउउ ऐसी मिली जुली आवाजों से पूरी कोठरी गूंज रही थी ! ज्यूँ धन्नो कि बूर पानी छोड़ने लगी अब पच्च -पच्च कि आवाजे आने लगी और बूर का पानी ठाकुर साहब के लौड़े को भिगोने लगा !लंड किसी पिस्टन कि सट सट करते उसकी बूर में आ जा रहा था !धन्नो अपनी आँखे मूंदे अपनी रगड़ाई का आनंद ले रही थी उसकी दोनों टांगे खुदबखुद उठ कर ठाकुर साहब कि कमर को झकड़ रही थी इस कारन उसकी चूत ऊपर हो गई थी और लंड और गहराई में जा रहा था !धन्नो का मुंह खुल गया था और वो आनंद के मारे मुह से ही सांस ले रही थी ऐसा लग रहा था मानो वो हांफ रही थी !कभी गहराई में जोरदार धक्का लगता तो धन्नो के मुह से आह निकल जाती !बगल में खड़ी गुलाबी के चूत में भी आग लग गई थी और अब वो पहली बार उन दोनों के सामने अपनी साडी कमर तक कर अपनी तीन अँगुलियों को अपनी चूत में अंदर बाहर कर रही थी हालाँकि धन्नो और ठाकुर साहब का ध्यान गुलाबी कि तरफ नहीं था वे अपनी ही मस्ती में खोये अपनी मंजिल तलाश रहे थे !अंगुलियां डालते गुलाबी का मन कर रहा था कि वो धन्नो को हटा कर खुद ठाकुर साहब के मूसल लंड के नीचे लेट जाये पर वो ऐसा सिर्फ सोच ही सकती थी कर नहीं सकती थी !ठाकुर साहब अब तूफानी गति से धन्नो कि चुदाई कर रहे थे अब वो काफी ऊपर हो कर तेजी से नीचे आ रहे थे आधे से ज्यादा लंड बाहर खींच कर एक झटखे में वापिस ठांस रहे थे मोटे लंड से चुदाई के कारन धन्नो कि बूर कि हालत देखने लायक थी !उसकी ठोस और टाइट बूर बिलकुल पिलपिली हो रही थी चूत के मोटे होंट सूज कर और मोटे हो रहे थे और उसकी हालत देख कर लग रहा था उसने जिंदगी में कभी इतनी जोरदार चुदाई कभी नहीं करवाई थी !धन्नो कि चूत अब तक तीन बार पानी छोड़ चुकी थी और उसे अब मजे कि जगह चूत में दर्द भरी टीस महसूस कर रही थी अब सीओ सोच रही थी कब ठाकुर साहब का वजनी लंड उसकी चूत से बाहर निकले !
अब ठाकुर साहब धन्नो के कंधे पकड़ कर उसे कस कस कर चांप रहे थे उनके बदन में किसी भूकम्प कि तरह थरथराहट शुरू हो गई थी !अब वे धन्नो कि बूर में अपने लौड़े को ठाँसने के साथ साथ धन्नो के बदन को अपनी बाँहों में कसने भी लगे !अब धन्नो भी समझ गई कि ठाकुर साहब का लंड अब वीर्य कि बौछार करने वाला ही हे !इसलिए इस बदनतोड़ चुदाई को समाप्त करने के लिए वो भी अपने चूतड़ उचकाने लगी उसे मालूम था कि उसके इस सहयोग से ठाकुर साहब जल्दी छूटेंगे !धन्नो के चूतड़ उचकाने से खुद धन्नो कि चूत में भी एक नया तूफान पैदा होने लगा था और वो चौथी बार छूटने कि तैय्यारी में थी !तभी ठाकुर साहब के भरी गले से एक आह भरी कराह निकली क्यूंकि ठाकुर साहब के बड़े बड़े आलू जैसे आंडूओ से गरम गाढ़ा वीर्य चल पड़ा था !गुलाबी भी अपने चरम पर पहुँच गई थी और साडी पेटीकोट नीचे कर के लम्बी लम्बी साँसे ले रही थी !दूसरे ही पल ठाकुर साहब के लंड के मुह ने पानी ऐसे छोड़ना शुरू किया जैसे किसी बन्दूक से गोली छूटती हे !वीर्य के फव्वारे ने धन्नो के बच्चेदानी के मुह को मानो पूरी तरह से डुबो दिया !वीर्य कि गर्मी पा कर धन्नो भी सीत्कार मार कर झड़ने लगी !इस बार वो बहुत तेज झड़ी थी और और उसके मुह से चीखें निकल रही थी वो चिल्ला रही थी :-" स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स अरी मरी में … बाबूजी … ओह्ह्ह आईईईई … अरी …माईईईइ … बाबूजी … अरे बाबूजी .... मोर निकसल … मोरी बुरिया से पानी … निकसल बाबूजी … में तो खाली हो गई .... में बिलकुल हलकी हो गई बाबूजी .... मोरी बुरिया से पूरा पानी निकस गया !"इसके साथ ही वो अपनी कमर उठान करके उचका दिया और झड़ने लगी !ठाकुर साहब का लंड ८-१० झटके मार कर अपना पानी धन्नो कि बूर में काफी गहराई में फेंकता रहा !उस के साथ धन्नो का पानी भी मिलता रहा !वीर्य के आखरी बूँद छोड़ने तक लंड धन्नो कि बूर में जठखे लेता रहा !और दोनों आँडूओ का पानी पूरी तरह से धन्नो कि बूर में खाली कर दिया था किसी घोड़े जितना पानी छोड़ा था ठाकुर साहब ने !ठाकुर साहब के दोनों आंडे पूरी तरह से खाली हो चुके थे ठाकुर साहब का लंड भी धन्नो कि बूर में मानो बूरी तरह से पस्त हो चूका था !
बूर में वीर्य पसर कर भर गया था और ऐसा लग रहा था अब धन्नो कि बूर में वीर्य के अलावा कुछ भी नहीं हे अब ठाकुर साहब के ढीले पद चुके लंड के किनारो से वीर्य बाहर उबल रहा था और धन्नो के झांघों और गांड से बह कर नीचे चौकी पर इकट्ठा हो रहा था !कुछ देर तक ठाकुर साहब धन्नो के ऊपर ही पड़े रहे मानो उनकी सारी ताकत धन्नो के बूर में ही निकल गई हो !फिर एक गहरी साँस लेकर ठाकुर साहब धन्नो के ऊपर से हटे और अपने लंड को धन्नो कि बूर से बाहर खींच लिए !लंड बाहर आया तो उस पर वीर्य और धन्नो कि चूत का पानी लगा हुआ था और अभी भी लंड काफी विशाल लग रहा था !धन्नो को अपनी चूत ख़ाली ख़ाली लगी उसमे से बचा पानी बाढ़ कि तरह बह चला इतनी देर चुदाई के बाद धन्नो कि चूत के होंट आपस में नहीं जुड़ सके और धन्नो को अपनी खुली चूत में ठंडी हवा लगनी महसूस हुई !ठाकुर साहब का झड़ा हुआ लंड भी लहरा रहा था मानो वो फिर चूत में घुस जाना चाहता हो !ठाकुर साहब के उठते ही धन्नो तुरंत उठी और अपने चूत के पानी को अपने पेटीकोट के निचले हिस्से से पोंछ कर साफ करने लगी !उधर गुलाबी अपने पेटीकोट से ठाकुर साहब का लंड साफ़ कर रही थी !थोड़ी देर में ही लंड पर का सारा माल गुलाबी ने अपने पेटीकोट पर ले लिया और लंड साफ़ हो गया !धन्नो चौकी से तुरंत नीचे उतरी और अपने कपड़ों को ठीक करने लगी अपनी चूचियां वापस ब्रा और ब्लाउज में कर ली अपना पेटीकोट साडी ठीक कर ली और अपना लम्बा घूंघट फिर से निकाल लिया !ठाकुर
साहब से हुई चुदाई कि पुरानी कहानी में धन्नो इस तरह खो गई मानो गहरा सपना
देख रही हो !तभी पुरानी कहानी में खो चुकी धन्नो के पास खड़ी गुलाबी ने उसे
धकेल दी और बोली :-"कहाँ खो गई हे तू .... किस दुनिया में .... लगता हे तू ठाकुर साहब से हुई पहली चुदाई के सपने में खो गई हे .... चल सावत्री को सब कहानी बता दी !"
तभी सावत्री भी धन्नो के गम्भीर और खोये खोये चेहरे कि और देखते हुए बोली :-" … चलो चाची … जल्दी चलो … कितनी देर हो रही हे .... मुझे देर हो जायेगी तो मेरी माँ मुझे डांटेगी !"इतना सुनकर धन्नो मानो अपने को उन पुराने ख्यालों से बाहर खींच लाइ और बोली :-" अच्छा चलती हु … चल … !"ये बोल कर धन्नो भी खाट से खड़ी हो गई और अपने साडी के पल्लू को ठीक करने लगी !सावत्री भी खाट से खड़े होते हुए बोली :-" जल्दी चलो चाची … देखो कितनी देर हो रही हे .... !"गुलाबी भी सावत्री से बोली :-" तू यहाँ आती जाती रहना … धन्नो चाची के साथ … आज तो कितना मजा आया तुझे !"ये सुनकर सुक्खू भी बोला ;-"हाँ आना तब मुझे तेरी बूर देना और तू मेरा लंड लेना .... " ये बोल कर वो राक्षशों कि तरह हो हो कर हंसने लगा !सावत्री सुक्खू के मुह से ये सुनकर लजा गई और पहले कि बात याद कर सिहर गई !फिर धन्नो गुलाबी से बोली :-" आज तूने भी मेरी कहानी बता कर मेरी पुराणी यादें ताजा कर दी … कितनी पुरानी बात हे तब मेरे दोनों बच्चे कितने छोटे छोटे से थे … !"तब गुलाबी बोली :-" तेरी कहानी पूरी कहाँ हुई हे … जब तू दूसरे दिन आएगी तो आगे कि तेरी कहानी इस छोकरी को सुनाऊँगी … !"इतना बोल कर गुलाबी ने पास खड़ी सावत्री कि एक चूची को दुपट्टे से नीचे और समीज के ऊपर से मसल दी !सावत्री एक दम सन्न रह गई और गुलाबी के हाथ को एक दम झटकते हुए और सिसकी ले कर बोली :-" क्या कर रही हे चाची छी चाची धत्त !"ऐसा बोलते हुए गुस्से वाला मुह बना कर कोठरी से बाहर आ गई पीछे पीछे वे तीनो भी बाहर आ गए !फिर सावत्री और धन्नो गुलाबी के घर से अपने गांव कि और चल दी !सावत्री दो दो बार मूसल जैसे लंडों से बुरी तरह से चुद कर कुछ थकावट महसूस कर रही थी !कुछ तेज क़दमों से चलते चलते वे कुछ ही देर में अपने गांव के पास आ गई थी !अपना गांव आते ही धन्नो सावत्री से अलग हो कर कुछ घूम कर अपने घर में चली गई !अब शाम का अँधेरा छाने लगा था !
सावत्री ने देखा उसकी माँ अब शाम का खाना बनाने कि तैय्यारी में लगी थी !फिर सावत्री भी अपनी माँ के साथ खाना बनाने में लग गई !पर सावत्री के पुरे बदन और बूर में मीठा मीठा दर्द हो रहा था अभी भी उसकी बूर हलकी हलकी चूं रही थी उसकी बूर से ठाकुर साहब और सुक्खू का रस हल्का हल्का टपक रहा था !पर आज का दिन उसकी लिए नया और मस्ती भरा था !एक ही दिन में दो नए मर्दों से उसकी जान पहचान हो गई थी और उनके बड़े बड़े लंडों से चुदने से सावत्री बहुत खुश थी उसे बदन बिलकुल हल्का लग रहा था !कुछ दिन के बाद धन्नो सावत्री से गांव के बाहर मिली और बोली :-"अरे … सुन … तू तो एकदम से गायब सी हो गई .... कितने
दिन हो गए दिखी ही नहीं … !"
तब सावत्री बोली :-" क्या करू चाची में सोच रही थी कि तेरे साथ माँ ने देख लिया तो बूरा हो जाएगा … !"
तब धन्नो बोली :-" कहाँ जा रही हो … ? पंडित जी कि दूकान पर क्या … !"
तब सावत्री बोली :-" हाँ चाची … और कहाँ जाउंगी … !"
तब धन्नो बोली :-" क्यूँ … गुलाबी चाची के गांव नहीं चलोगी … वह ठाकुर साहब और तेरा सुक्खू चाचा तुझे याद कर रहे हे .... और तेरे बदले में मुझे अपनी बजवानी पड़ती हे ही ही ही !" करती धन्नो चाची हंस पड़ी !ये सुनकर सावत्री भी मुस्कुरा दी पर बोली कुछ नहीं !
तब धन्नो बोली :-" क्यूँ मन भर गया तेरा … अब मन नहीं करता क्या मजे लेने का … !"
तब भी सावत्री मुस्कुरा कर रह गई !
तब धन्नो फिर बोली :-" अब आज चलेगी कि नहीं गुलाबी चाची के गांव ?"ये सुनकर सावत्री मुस्कराई ना में हलके से गर्दन हिलाई पर चुप ही रही !
तब धन्नो फिर बोली :-"क्यों नहीं चलेगी ?"
तब सावत्री बोली :-" ये बात नहीं चाची पर रोज रोज वो काम नहीं !"
तब धन्नो बोली :-" क्या वो काम री … क्या तुझे लंड अच्छा नहीं लगा उस दिन … !"
तब सावत्री बोली :-" छी चाची ऐसे मत बोलो !"
तब धन्नो बोली :-" अरे … चल कोई बात नहीं … फिर किसी दिन तुझे चुपके से वहाँ ले चलूंगी … बोल … मेरे साथ चलेगी कि नहीं !"
तब सावत्री धीमे से लजा कर बोली :-" हाँ … चलूंगी … !
तब धन्नो धीमे से बोले :-" पंडित जी तो तेरी बूर रोज ले रहे होंगे न … वे तो तेरी चुदाई करते होंगे न .... उनका लौड़ा तो तेरी चूत बजाता होगा ना !"ये सुनकर सावत्री बोली :-" छी चाची … केसी गन्दी गन्दी बातें करती हो … !"
तब धन्नो बोली ;-' अरे हरजाई इतना कुछ होने के बाद भी तू लजा रही हे .... बोल ना खुल कर .... रोज रोज मजा लेते हे ना पंडित जी तेरा !"इतना सुनकर सावत्री धीमे से बोली :-" हाँ चाची रोज लेते कभी मेरा महीना आ जाता हे तो चार दिन बाद एक ही दिन में दो बार .... " इतना कहते कहते वो लजा कर चुप हो गई !
फिर धन्नो बोली :-" चल ठीक हे खूब मजा ले तू … तुझे बड़ा अच्छा मौका मिला हे रोज मजा लेने का … खूब जवानी के मजे लूट !"फिर कुछ धन्नो गम्भीर हो कर बोली ;-" सुन तुझे एक काम कि बात कहनी हे मुझे … इसलिए इस रास्ते में तुझ से मिलने के लिए काफी देर से इन्तजार कर रही हु !"इतना सुनकर सावत्री धन्नो कि तरफ देखती हुई बोली :-" क्या काम हे चाची !"तब धन्नो बोली :-" वो कुछ दिन पहले शगुन चाचा आये थे … मेरी बेटी के लिए रिश्ता बता रहे थे … !"इतना सुनकर सावत्री बोली :-" तब चाची !"तब धन्नो बोली :-" अरे तब क्या … उसकी पहली शादी तो टूट गई … बड़ी मुस्किल से ये रिश्ता मिला हे … में भी भगवान से मांगती हु कि किसी तरह से बेटी का घर फिर से बस जाए !"इतना सुनकर सावत्री पूछी :-" तो ठीक ही तो हे पर मेरे से काम क्या हे … !"तब धन्नो बोली :-" अरे वो क्या हे कि लड़के वाले मेरी बेटी को देखना चाहते हे आज कल कोई भी बिना देखे रिस्ता करता नहीं हे !"तब सावत्री बोली :-" तो देखने दो ना चाची मुसम्मी दीदी कौन सी दिखने में ख़राब हे वो सुन्दर तो हे … !"तब धन्नो बोली :-" तू ठीक कहती हे पर मुसम्मी सूरत से ठीक दिखती हे पर करतूत में नहीं !"