Saturday, 30 September 2017

ganvki majboor ladki part 4

सावित्री पता नही क्यूँ ना चाहते हुए भी अंदर अंदर खुश हो गयी. लंड के इंतज़ाम के नाम से उसके पूरे बदन मे एक आग सी लगने लगी थी. इसी वजह से उसकी साँसे अब कुच्छ तेज होने लगी थी और उसके बुर मे भी मानो चिंतियाँ रेंगने लगी थी. सावित्री बैठे ही बैठे अपनी दोनो जांघों को आपस मे सताने लगी. धन्नो समझ गयी की लंड के नाम पर सावित्री की बुर मस्ताने लगी होगी. और अब लोहा गरम देख कर धन्नो हथोदा चलते हुए बोली "मेरे गाओं की लक्ष्मी भी बहुत पहले इसी दुकान पर काम करती थी.और उसने अपनी एक सहेली से ये बताया था की पंडित जी का औज़ार बहुत दमदार है...क्योंकि लक्ष्मी की मुनिया को पंडित जी ने कई साल पीटा था..लेकिन जबसे लक्ष्मी को गाओं के कुच्छ नये उम्र के लड़कों का साथ मिला तबसे लक्ष्मी ने पंडित जी के दुकान को छ्होर ही दी. लक्ष्मी भी उपर से बहुत शरीफ दीखती है लेकिन उसकी सच्चाई तो मुझे मालूम है ..उसकी मुनिया भी नये उम्र के लुंडों के लिए मुँह खोले रहती है."
धन्नो के इस तगड़े प्रहार का असर सावित्री की मन और दिमाग़ दोनो पर एक साथ पड़ा. वह सोचने लगी की पंडित जी ने पहले ही उसे बता दिया था की लक्ष्मी का दूसरा लड़का उनके शरीर से पैदा है. फिर भी लक्ष्मी को सावित्री की मा सीता और खूद सावित्री भी काफ़ी शरीफ मानती थी लेकिन अब सावित्री को महसूस होने लगा की जैसा वह सोचती थी वैसी दुनिया नही है और लक्ष्मी भी दूध की धोइ नही है. धन्नो की बातें उसे सही और वास्तविक लगने लगी. सावित्री मानो और अधिक सुनने की इच्च्छा से चुप चाप बैठी रही. धन्नो अंदर ही अंदर खुश हो गयी थी. उसे पता था की जवान लड़की के लिए इतनी गर्म और रंगीन बात उसे बेशरामी के रश्ते पर ले जाने के लिएठीक थी. सावित्री भी अब धन्नो की बात को सुनने के लिए बेताव होती जा रही थी लेकिन अभी भी उसे बहुत ही लाज़ लग रही थी इस वजह से अपनी नज़रें झुकाए चुपचाप बैठी थी. फिर धन्नो ने धीरे से आगे बोली "नये उम्र का लंड तो औरतों को काफ़ी जवान और ताज़ा रखता है और इसी लिए तो लक्ष्मी आज कल गाओं मे कुच्छ नये उम्र के लड़कों के पानी से अपनी मुनिया को रोज़ नहलाती है..वो भी धीरे धीरे बहुत मज़ा ले रही है..लेकिन ये बात गाओं के अंदर केवल मैं और कुच्छ उसकी सहेलियाँ ही जानती हैं...और दूसरों को जानने की क्या ज़रूरत भी है..बदनामी किसी को पसंद थोड़ी है..वो भी तो बेचारी एक औरत ही है..बस काम हो जाए और शोर भी ना मचे यही तो हर औरत चाहती ही" धन्नो ने इतना कह कर सावित्री के तेज सांस पर गौर करते हुए बात आगे बढ़ाई "वैसे लक्ष्मी काम ही ऐसा करती है की .साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटेबहुत ही चलाँकि से और होशियारीसे अपनी मुनिया को लड़कों का पानीपिलाती है...मुझे तो उसके दिमाग़ पर काफ़ी अस्चर्य भी होता है...बहुत ही चालाक और समझदारी से रहती है..अब ये ही समझ की तेरी मा सीता उसकी बहुत करीबी सहेली है और उसे खूद ही नही पता की लक्ष्मी वास्तव मे कितनी चुदैल है..और तेरी मा उसे एक शरीफ औरत समझती है. लेकिन सच पुछो तो मेरे विचार मे वह एक शरीफ है भी...बहुत सावधानी से चुदति है...क्योंकि उसकी इस करतूत मे उसकी कुच्छ सहेलियाँ मदद करती हैं और इसी कारण उसके उपर कोई शक नही करता...और होता भी यही है यदि कोई एक औरत किसी दूसरे औरत का मदद लेते हुए मज़ा लेती है तो बदनामी का ख़तरा बहुत ही कम होता है...और आज कल तो इसी मे समझदारी भी है..." सावित्री इस बात को सुनकर फिर एक अलग सोच मे पड़ गयी की धन्नो उससे ऐसी बात कह कर क्या समझना चाह रही थी. सावित्री के दिमाग़ मे धन्नो द्वारा लंड का इंतज़ाम और फिर एक औरत की मदद से मज़ा लूटने का प्लान बताने के पीछे का मतलब समझ आने लगा. अब वह बहुत ही मस्त हो गयी थी. मानो धन्नो उसे स्वर्ग के रश्ते के बारे मे बता रही हो. सावित्री ने महसूस किया की उसकी बुर कुच्छ चिपचिपा सी गयी थी.
फिर आगे धन्नो ने सावित्री के कान के पास धीरे से कुच्छ गंभीरता के साथ फुसफुससाई "मेरी इन बातों को किसी से कहना मत...समझी की नही ..." धन्नो ने सावित्री के कंधे पर एक हाथ रख कर मानो उससे हामी भरवाना चाहती थी लेकिन सावित्री अपनी आँखे एकदम फर्श पर टिकाए बैठी रह गयी. वह हाँ कहना चाहती थी लेकिन उसके पास अब अंदर से ताक़त नही लग रही थी क्योंकि वह इतनी गंदी और खुली हुई बात किसी से नही की थी. और चुप बैठी देख धन्नो ने उसके कंधे को उसी हाथ से लगभग हिलाते हुए फिर बोली "अरे पगली मेरी इन बातों को किसी से कहेगी तो लोग क्या सोचेंगे की मैं इस उम्र मे एक जवान लड़की को बिगाड़ रही हूँ...ये सब किसी से कहना मत ...क्यों कुच्छ बोलती क्यों नही..." दुबारा धन्नो की कोशिस से सावित्री का हिम्मत कुच्छ बढ़ा और काफ़ी धीरे से अपनी नज़रें झुकाए हुए ही फुसफुसा "नही कहूँगी" इतना सुनकर धन्नो ने सावित्री के कंधे पर से हाथ हटा ली और फिर बोली "हां बेटी तुम अब समझदार हो गयी हो और तुझे मालूम ही है की कौन सी बात किससे करनी चाहिए किससे नहीं....और आज से तुम मेरी एक बहुत ही अच्छी सहेली भी है और वो इसलिए की सहेली के रूप मे तुम हमसे खूल कर बात कर सकोगी और मैं ही एक सहेली के रूप मे जब तेरा मन करेगा तब उस चीज़ का इंतज़ाम भी धीरे से करवा दूँगी...तेरी मुनिया की भी ज़रूरत पूरी हो जाएगी और दुनिया को पता भी नही चलेगा..." इतना कह कर धन्नो हँसने लगी और सावित्री के पीठ पर धीरे एक थप्पड़ भी जड़ दी और सावित्री ऐसी बात दुबारा सुनने के बाद मुस्कुराना चाह रही थी लेकिन आ रही मुस्कुराहट को रोकते हुए बोली "धात्त्त...छ्चीए आप ये सब मुझसे मत कहा करें..मुझे कुच्छ नही चाहिए..." धन्नो ने जब सावित्री के मुँह से ऐसी बात सुनी तो उसे बहुत खुशी हुई और उसे लगा की आज की मेहनत रंग ला दी थी. फिर हँसते हुए बोली "हाँ तुम्हे नया या पुराना कोई औज़ार नही चाहिए ..मैं जानती हूँ क्यों नही चाहिए ...आज कल पंडित जी तो खूद ही तुम्हारी मुनिया का ख्याल रख रहे हैं और इस बुड्ढे के शरीर की ताक़त अपनी चड्डी मे भी पोत कर घूम रही हो...और उपर से यह बूढ़ा तुम्हे दवा भी खिला रहा है.....अरे बेटी यह मत भूलो की मैं भी एक समय तेरी तरह जवान थी और ...अब तुमसे क्या छुपाना मेरी भी मुनिया को रस पिलाने वाले बहुत थे...और झूठ क्या बोलूं...मेरी मुनिया भी खूब रस पिया करती थी..." अब तक का यह सबसे जबर्दाश्त हमला होते ही सावित्री एकदम से कांप सी गयी और दूसरे पल उसकी बुर के रेशे रेशे मे एक अजीब सी मस्ती की सनसनाहट दौड़ गयी.
सावित्री को मानो साँप सूंघ गया था. अब उसे विश्वास हो गया था की उस दिन घर के पीच्छवाड़े पेशाब करते समय चड्डी पर लगे चुदाई के रस और सलवार पहनते समय समीज़ की जेब से गिरे दवा के पत्ते को देखकर धन्नो चाची सब माजरा समझ चुकी थी. और शायद इसी वजह धन्नो के व्यवहार मे बदलाव आ गया था. लेकिन धन्नो के इस अस्वासन से काफ़ी राहत मिली की वह किसी से कुच्छ नही कहेगी और वह अपनी जवानी के समय की मुनिया के रस वाली बात खूद ही बता कर यह भी स्पष्ट कर दी थी कि धन्नो का सावित्री के उपर भी बहुत विश्वास है. अब धन्नो ने पूरे हथियार सावित्री के उपर चला दी थी और सावित्री वैसे ही एक मूर्ति की तरह जस की तस बैठी थी. चेहरे पर एक लाज़ डर और पसीने उभर आए थे. साथ साथ उसके बदन मे एक मस्ती की लहर भी तेज हो गयी थी. धन्नो चाची उसे अपना असली रूप दिखा चुकी थी.धन्नो का काम लगभग पूरा हो चुका था. वह सावित्री के साथ जिस तरह का संबंध बनाना चाह रही थी अब बनती दीख रही थी. सावित्री की चुप्पी इस बात को प्रमाणित कर रहा था की अब धन्नो के किसी बात का विरोध नही करना चाह रही थी. फिर धन्नो ने पीठ पर हाथ रखते धीरे से फुसफुससाई "कल मेरी बेटी को देखने के लिए लड़के वाले आ रहे हैं ..शगुन चाचा के घर ..और मैं सोचती हूँ की तुम भी दुकान के बहाने मेरे साथ शगुन चाचा के यहाँ चलती तो बहुत अच्च्छा होता..." इतना कह कर धन्नो चाची सावित्री के चहरे पर देखते हुए उसके जबाव का इंतज़ार करने लगी. सावित्री के समझ मे नही आ रहा था की आख़िर कैसे दुकान का काम छोड़ कर अपनी मा को बिना बताए वह ऐसा कर सकती है. इसी लिए चुप रही. फिर धन्नो ने थोड़ा ज़ोर लगा कर सावित्री से कुच्छ अनुरोध के अंदाज मे बोली "तुझे किसी तरह की कोई परेशानी नही होगी..मैं पंडित जी से बात कर लूँगी की कल मेरी बेटी मुसम्मि को देखने आ रहे हैं और इस कारण वह दुकान पर नही आएगी और मेरे साथ शगुन चाचा के घर जाएगी..बोल बेटी..." इतना सुनकर सावित्री की परेशानिया बढ़ गयीं और धीरे से बोली "लेकिन मेरी मा मुझे आपके साथ कहीं नही जाने देगी.." धन्नो तुरंत बोली "जब तुम दुकान के लिए आओगी तब मैं खूद तुम्हे गाओं के बाहर मिल लूँगी और फिर मेरे साथ शगुन चाचा के घर चलना..और शाम को जिस समय दुकान से घर जाती हो ठीक उसी समय मैं तुम्हे गाँव के बाहर तक छ्चोड़ दूँगी...तो मा को कैसे मालूम होगा?..." धन्नो के समझाने से सावित्री चुप रही और फिर कुच्छ नही बोली. अब दुकान के अंदर वाले हिस्से मे चौकी पर सो रहे पंडित जी का नाक का बजना बंद हो गया था.
सावित्री और धन्नो दोनो को यह शक हो गया था की पंडित जी अब जाग गये हैं. धन्नो सावित्री से पुछि "पेशाब कहाँ करती हो...चलो पेशाब तो कर लिया जाय नही तो पंडित जी जाग जाएँगे ..." सावित्री ने अंदर एक शौचालय के होने का इशारा किए तो धन्नो ने तपाक से बोली "जल्दी चलो ...मुझे ज़ोर से लगी है और तुम भी कर लो." इतना कहते हुए धन्नो चटाई पर से उठ कर एक शरीफ औरत की तरह अपने सारी का पल्लू अपने सर पर रखी और फिर सावित्री भी उठी और अपने दुपट्टे को ठीक कर ली. धन्नो पर्दे को हटा कर अंदर झाँकी तो पंडित जी चौकी पर सोए हुए थे और उनके पैर के तरफ शौचालय का दरवाज़ा था जो की खुला हुआ था. धन्नो को पर्दे के बगल से केवल पंडित जी का सर ही दिखाई दे रहा था. लेकिन नाक ना बजने के वजह से धन्नो और सावित्री दोनो ही यह सोच रही थी की पंडित जी जागे हो सकते हैं. और ऐसे मे जब दोनो शौचालय के तरफ जाएँगी तब पंडित जी जागे होने की स्थिति मे बिना सर को इधेर उधर किए सोए सोए आराम से देख सकते हैं. सावित्री इस बात को सोच कर डर रही थी. लेकिन तभी धन्नो ने पर्दे को एक तरफ करते हुए अपने कदम अंदर वाले कमरे मे रखते हुए फुसफुसा "अभी पंडित जी नीद मे हैं चल जल्दी पेशाब कर लूँ नही तो जाग जाएँगे तो मुझे बहुत लाज़ लगेगी उनके सामने शौचालय मे जाना...और सुन शौचालय के दरवाज़े को बंद करना ठीक नही होगा नही तो दरवाज़े के पल्ले की चर्चराहट या सिटकिनी के खटकने की आवाज़ से पंडित जी जाग जाएँगे...बस चल धीरे से बैठ कर मूत लिया जाय..."
धन्नो के ठीक पीछे खड़ी सावित्री का कलेजा धक धक कर रहा था. वह सोच रही थी की कहीं पंडित जी जागे होंगे तो पेशाब करते हुए दोनो को देख लेंगे. धन्नो क्कुहह दबे कदमो से अंदर वाले कमरे मे चौकी के बगल से शौचालय के दरवाज़े के पास पहुँच गयी. लेकिन जैसे ही पीछे देखी तो सावित्री अभी भी पर्दे के पास खड़ी थी. क्योंकि सावित्री को अंदाज़ा था की पंडित जी का नाक बाज़ना बंद हो गया है और अब वे जागे होंगे ऐसे मे शौचालय का दरवाज़ा बिना बंद किए पेशाब करने का मतलब पंडित जी देख सकते हैं. धन्नो ने पर्दे के पास खड़ी सावित्री को शौचालय के दरवाज़े के पास बुलाने के लिए धीमी आवाज़ मे बोली "अरी जल्दी आ और यही धीरे से पेशाब कर लिया जाय....नही तो पंडित जी कभी भी जाग सकते हैं..जल्दी आ......" धन्नो ने इतना बोलते हुए अपनी तिरछि नज़रों से पंडित जी के आँख के. बंद पलकों को देखते हुए यह भाँप चुकी पंडित जी पूरी तरह से जाग चुके हैं लेकिन पेशाब करने की बात उनके कान मे पड़ गयी है इस वजह से जान बुझ कर अपनी पॅल्को को ऐसे बंद कर लिए हैं की देखने पर मानो सो रहे हों और पलकों को बहुत थोड़ा सा खोल कर दोनो के पेशाब करते हुए देख सकते हैं. पंडित जी के कान मे जब ये बात सुनाई दी की धन्नो शौचालय के दरवाज़े को बंद नही करना चाहती है क्योंकि उसे इस बात का डर है की दरवाज़ा बंद करने पर दरवाज़े के चर्चराहट और सिटकिनी के खटकने के वजह से उनकी नीद खुल सकती है तो पंडित जी अंदर ही अंदर मस्त हो उठे और सोने का नाटक कर अपने आँख के पलकों को इतनी बारीकी से सुई की नोक के बराबर फैला कर देखने लगे. धन्नो के दबाव के चलते सावित्री भी धीरे धीरे दबे पाँव शौचालय के पास खड़ी धन्नो के पास आकर खड़ी हो गयी. उसे यह विश्वास था की पंडित जी जागे होंगे लेकिन उसकी हिम्मत नही थी की वह सोए हुए पंडित जी के चेहरे पर अपनी नज़र दौड़ा सके इस वजह से अपनी नज़रे फर्श पर झुका कर खड़ी हो गयी. तभी धन्नो ने अपना मुँह शौचालय के अंदर की ओर करते हुए ठीक शौचालय के दरवाज़े पर ही खड़ी हो गयी और वह ना तो शौचालय के अंदर घुसी ना ही शौचालय के बाहर ही रही बल्कि ठीक दरवाज़े के बीचोबीच ही खड़ी हो कर जैसे ही अपने सारी और पेटिकोट कमर तक उठाई उसका सुडौल चौड़ा और बड़ा बड़ा दोनो चूतड़ जो आपस मे सटे हुए थे और एक गहरी दरार बना रहे थे एक दम नंगा हो गया और नतीज़ा की पंडित जी अपनी आँखो के पलकों को काफ़ी हल्के खुले होने के कारण सब कुच्छ देख रहे थे. धन्नो का चूतदों की बनावट बहुत ही आकर्षक थी. दोनो चूतर कुछ साँवले रंग के साथ साथ मांसल और 43 साल की उम्र मे काफ़ी भरा पूरा था. दोनो चूतदों की गोलाइयाँ इतनी मांसल और कसी हुई थी और जब धन्नो एक पल के लिए खड़ी थी तो ऐसे लग रहा था मानो चूतड़ के दोनो हिस्से आपस मे ऐसे सटे हों की उन्हेजगह नही मिल रही हो और दोनो बड़े बड़े हिस्से एक दूसरे को धकेल रहे हों. धन्नो के चूतड़ के दोनो हिस्सों के बीच का बना हुआ दरार काफ़ी गहरा और खड़ी होने की स्थिति मे काफ़ी सांकरा भी लग रहा था.
धन्नो ने सारी और पेटिकोट को कमर तक उठा कर लगभग पीठ पर ही रख लेने के वजह से कमर के पास का कटाव भी दीख जा रहा था. पंडित जी इतना देख कर मस्त हो गये. धन्नो के एक पल के ही इस नज़ारे ने पंडित जी को मानो धन्नो का दीवाना बना दिया हो. तभी दूसरे पल धन्नो एक झटके से पेशाब करने के लिए बैठ गयी. पंडित जी का मुँह शौचालय के दरवाज़े की ओर होने की वजह से वह बैठी हुई धन्नो को अपनी भरपूर नज़र से देख रहे थे. सावित्री एक पल के लिए सोची की वह धन्नो के पीछे ही जा कर खड़ी हो जाए जिससे पंडित जी उसे देख ना सकें. लेकिन उसकी हिम्मत नही हुई. सावित्री को जैसे ही महसूस हुया की धन्नो चाची के नंगे चूतदों को पंडित जी देख रहें हैं वह पूरी तरह सनसना गयी. उसे ऐसा लगा मानो उसकी बुर मे कुच्छ चुलबुलाहट सी होने लगी है. जैसे ही धन्नो बैठी की उसके दोनो गोल गोल चूतड़ हल्के से फैल से गये मानो वो आपस मे एक दूसरे से हल्की दूरी बना लिए हों और इस वजह से दोनो चूतदों के बीच का काफ़ी गहरा और सांकरा दरार फैल गया और कमर के पास से उठने वाली दोनो चूतदों के बीच वाली लकीर अब एक दम सॉफ सॉफ दीखने लगी. धन्नो ने जब अपनी सारी और पेटिकोट को दोनो हाथों से कमर के उपर करते हुए जैसे ही झटके से पेशाब करने बैठी की उसके सर पर रखा सारी का पल्लू सरक कर पीठ पर आ गया और नंगे चूतदों के साथ साथ उसके पीठ के तरफ जा रही सिर के बॉल की चोटी भी पंडित जी को दीखने लगी. धन्नो के पीठ का ज़्यादा हिस्सा पेटिकोट से ही ढक सा गया था क्योंकि धन्नो ने बैठते समय सारी और पेटिकोट को कमर के उपर उठाते हुए अपनी पीठ पर ही लहराते हुए रख सी ली थी. धन्नो यह जान रही थी की पंडित जी के उपर इस हमले का बहुत ही गरम असर पड़ गया होगा जो उस पहलवान और मजबूत शरीर के मर्द को फँसाने के लिए काफ़ी था. दूसरी तरफ बगल मे खड़ी सावित्री के भी बेशर्म और अश्लीलता का मज़ा देने के लिए काफ़ी था. धन्नो जानती थी की सावित्री काफ़ी सीधी और शरीफ है और उसे बेशर्म और रंगीन बनाने के लिए इस तरह की हरकत बहुत ही मज़ेदार और ज़रूरी है. धन्नो जैसी चुदैल किस्म की औरतें दूसरी नयी उम्र की लड़कियो को अपनी जैसे छिनाल बनाने की आदत सी होती है और इसमे उन्हे बहुत मज़ा भी आता है जो किसी चुदाइ से कम नही होता है. इस तरह धन्नो सावित्री को यह दीखाना चाह रही थी की कोई भी ऐसी अश्लील हरकत के लिए हिम्मत की भी ज़रूरत होती है साथ साथ रिस्क लेने की आदत भी होनी चाहिए. अब तक सावित्री को यही पता था की किसी दूसरे मर्द को अपने शरीर के अंद्रूणी हिस्से को दिखाना बेहद शर्मनाक और बे-इज़्ज़त वाली बात होती है लेकिन धन्नो की कोशिस थी की सावित्री को महसूस हो सके की इस तरह के हरकत करने मे कितना मज़ा आता है जो अब तक वह नही जानती थी. इधेर धन्नो के मन मे जब यह बात आई की पंडित जी उसके चूतड़ ज़रूर देख रहे होंगे और इतना सोचते ही वह भी एक मस्ती की लहर से सराबोर हो गयी.
धन्नो बैठे ही बैठे जैसे ही अपनी नज़र बगल मे खड़ी सावित्री पर डाली तो देखी की वह अपनी नज़रें एक दम फर्श पर गढ़ा ली है और उसके चेहरे पर पसीना उभर आया था. जो शायद लाज़ के वजह से थी. तभी पेशाब करने बैठी हुई धन्नो ने सावित्री की ओर देखते हुए काफ़ी धीरे से फुसफुसा "देख कहीं जाग ना जाएँ..." धन्नो के इस बात पर सावित्री की नज़रें अचानक सामने चौकी पर लेटे हुए और शौचालय की ओर मुँह किए पंडित जी के चेहरे पर चली गयी और जैसे ही देखी की उनकी आँख की पलकें बंद होने के बावजूद कुच्छ हरकत कर रही थीं और इतना देखते ही एक डर लाज़ से पूरी तरह हिल उठी सावित्री वापस अपनी नज़रे फर्श पर गढ़ा ली. धन्नो ने सावित्री के नज़रों के गौर से देखी की पंडित जी के चेहरे पर से इतनी झटके से हट कर वापस झुक गयी तो मतलब सॉफ था की पंडित जी जागे और देख रहे हैं जो अब सावित्री को भी मालूम चल गया था. धन्नो ने आगे बिना कुछ बोले अपने नज़रों को सावित्री के चहरे पर से हटा ली और काफ़ी इतमीनान के साथ मुतना सुरू कर दी. दोपहर के समय दुकान के अंदर वाले हिस्से मे एक दम सन्नाटा था और धन्नो के पेशाब के मोटी धार का फर्श पर टकराने की एक तेज आवाज़ शांत कमरे मे गूंजने लगी. पंडित जी अब धन्नो के चूतड़ को देखने के साथ साथ धन्नो के मुतने की तेज आवाज़ कान मे पड़ते ही एकदम मस्त हो गये और उनकी धोती के अंदर लंगोट मे कुच्छ कसाव होने लगा. एक पल के लिए उन्होने सावित्री के लाज़ से पानी पानी हुए चहरे को देखा जो एकदम से लाल हो गया था और माथे और चेहरे पर पसीना उभर आया था.
धन्नो के बुर से निकला मूत शौचालय के फर्श पर फैल कर अंदर की ओर बहने लगा. पेशाब ख़त्म होने के बाद धन्नो जैसे ही खड़ी हुई की उसकी दोनो चूतड़ फिर आपस मे सॅट गये और दरार फिर काफ़ी गहरी हो गयी और दोनो गोलाईयो के बीच वाली लकीर अब दीखाई नही दे पा रही थी. पंडित जी ने जब धन्नो के मोटे मोटे दोनो जांघों को देखा तो उसकी बनावट और भराव के वजह से धन्नो को चोदने की तीव्र इच्च्छा जाग उठी. तभी धन्नो ने अपनी सारी और पेटिकोट को कमर और पीठ से नीचे गिरा दी और सब कुच्छ धक गया. धन्नो अपनी जगह से हट कर बगल मे खड़ी सावित्री को बोली "चल जल्दी से यहीं बैठ कर मूत ले..." सावित्री जो की धन्नो की गंदी और अश्लील बातों और पंडित जी को चोरी और चलाँकि से गांद दीखाने की घटना से एकदम गर्म और उत्तेजित भी हो चुकी थी. उसकी बुर बहुत गर्म हो गयी थी. पता नही क्यों धन्नो चाची का पंडित जी को गांद दिखाना उसे बहुत अच्च्छा लगा था. जैसे ही उसने धन्नो चाची ने उससे कहा की वहीं मुताना है वह समझ गयी की उसकी भी गांद पंडित जी देख लेंगे और वह भी धन्नो चाची के सामने. इतनी बात मन मे आते ही वह एकदम से सनसना कर मस्त सी हो गयी. पता नही क्यों उसे ऐसा करने मे जहाँ डर और लाज़ लग रही थी वहीं अंदर ही अंदर कुच्छ आनंद भी मिल रही थी. धन्नो चाची ने उसे फिर मूतने के लिए बोली "अरे जल्दी मूत नही तो जाग जाएँगे तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी..." सावित्री समझ रही थी कि पंडित जी जागे हुए हैं. इसी वजह से उसके पैर अपनी जगह से हिल नही पा रहे थे. उसकी नज़रें झुकी हुई थी. धन्नो समझ गयी की सावित्री अब जान चुकी है की पंडित जी जागे हैं और इसी लिए मूत नही रही है. लेकिन वह सावित्री को मुताने पर बाध्या. करना चाह रही थी की उसके अंदर भी निर्लज्जता का समावेश हो जाय. यही सोचते हुए धन्नो ने तुरंत सावित्री के बाँह को पकड़ कर शौचालय के दरवाजे पर खींच लाई और बोली "जल्दी मूत ले..देर मत कर..चल मैं तेरे पीछे खड़ी हूँ ..यदि जाग जाएँगे तो भी नही देख पाएँगे. ." सावित्री ठीक शौचालय के दरवाजे के बीच जहाँ धन्नो ने पेशाब की थी वही खड़ी हो गयी. उसके काँपते हुए हाथ सलवार के नाडे को खोलने की कोशिस कर रहे थे. जैसे ही नाडे की गाँठ खुली की उसने अपने कमर के हिस्से मे सलवार को ढीली की और फिर चड्डी को नीचे सरकाने की कोशिस करने लगी. चड्डी काफ़ी कसी होने के वजह से सावित्री के बड़े बड़े चूतदों पर से नीचे नही सरक पा रही थी.
धन्नो जो ठीक सावित्री के पीछे ही खड़ी थी जब देखी की चड्डी काफ़ी कसी होने के वजह से सावित्री के बड़े बड़े चूतदों पर से नीचे नही सरक पा रही है तब धीरे से फुसफुसा " हाई राम इतना बड़ा चूतड़ है तुम्हारा ..और कपड़े के उपर से तो मालूम ही नही चलता की अंदर दो बड़े बड़े तरबूज़ रखी हो..तेरी चड्डी फट ना जाए..ला मैं पीछे का सरका देती हूँ..." इतना कह कर धन्नो सावित्री के पीछे से थोड़ी बगल हो गयी और अब पंडित जी को सावित्री का पूरा पीच्छवाड़ा दीखने लगा. धन्नो ने काफ़ी चलाँकि से पंडित जी से बिना नज़र मिलाए तेज़ी से अपनी पल्लू को सर के उपर रखते हुए पल्लू के एक हिस्से को खींच कर अपने मुँह मे दाँतों दबा ली और अब उसका शरीर लगभग पूरी तरह से ढक गया था मानो वह बहुत ही शरीफ और लज़ाधुर औरत हो. दूसरे ही पल बिना देर किए झट से सावित्री के समीज़ वाले हिस्से को एक हाथ से उसके कमर के उपर उठाई तो पंडित जी को सावित्री के दोनो बड़े बड़े चूतड़ उसकी कसी हुई चड्डी मे दीखने लगे. धन्नो के एक हाथ जहाँ समीज़ को उसके कमर के उपर उठा रखी थी वहीं दूसरे हाथ की उंगलियाँ तेज़ी से सावित्री की कसी हुई चड्डी को दोनो चूतदों पर से नीचे खिसकाने लगी. सलवार का नाडा ढीला होने के बाद सलवार सावित्री की भारिपुरी जांघों मे जा कर रुक गया था क्योंकि सावित्री ने एक हाथ से सलवार के नाडे को पकड़ी थी और दूसरी हाथ से अपनी चड्डी को नीचे सरकाने की कोशिस कर रही थी. धन्नो के एक निहायत शरीफ औरत की तरह सारी मे खूद को ढक लेने और अपने सर पर पल्लू रखते हुए मुँह पर भी पल्लू के हिस्से डाल कर मानो एक नई नवेली और लज़ाधुर दुल्हन की तरह पल्लू के कोने को अपने दाँतों से दबा लेने के बाद सावित्री की चूतड़ पर से समीज़ को उपर उठा कर चड्डी को जल्दी जल्दी सरकाना पंडित जी को बहुत अजीब लगने के साथ साथ कुच्छ ऐसा लग रहा था की धन्नो खूद तो शरीफ बन कर एक जवान लड़की के शरीर को किसी दूसरे मर्द के सामने नंगा कर रही थी और धन्नो की इस आडया ने पंडित जी को घायल कर दिया.
पंडित जी धन्नो की हाथ की हरकत को काफ़ी गौर से अपनी पलकों के बीच से देख रहे थे जो चड्डी को सरकाने के लिए कोशिस कर रही थी. आख़िर किसी तरह सावित्री की कसी हुई चड्डी दोनो चूतदों से नीचे एक झटके के साथ सरक गयी और दोनो चूतड़ एक दम आज़ाद हो कर अपनी पूरी गोलायओं मे बाहर निकल कर मानो लटकते हुए हिलने लगे. तभी धन्नो ने धीरे से फुसफुसा "तेरी भी चूतड़ तेरी मा की तरह ही काफ़ी बड़े बड़े हैं ...इसी वजह से चड्डी फँस जा रही है...जब इतनी परेशानी होती है तो सलवार के नीचे चड्डी मत पहना कर..इतना बड़ा गांद किसी चड्डी मे भला कैसे आएगी..." इतना कह कर धन्नो धीरे से हंस पड़ी और चड्डी वाले हाथ खाली होते ही अपने पल्लू को फिर से ऐसे ठीक करने लगी की पंडित जी उसके शरीर के किसी हिस्से ना देख संकें मानो वह कोई दुल्हन हो. लेकिन सावित्री की हालत एकदम बुरी थी. जिस पल चड्डी दोनो गोलायओं से नीचे एक झटके से सर्की उसी पल उसे ऐसा लगा मानो मूत देगी. वह जान रही थी की पंडित जी काफ़ी चलाँकि से सब कुच्छ देख रहें हैं. अब उसे धन्नो के उपर भी शक हो गया की धन्नो को भी अब यह मालूम हो गया है की पंडित जी उन दोनो की इस करतूतों को देख रहें हैं. लेकिन उसे यह सब कुच्छ बहुत ही नशा और मस्त करने वाला लग रहा था. उसका कलेजा धक धक कर रहा था और बुर मे एक सनसनाहट हो रही थी. लेकिन उसे एक अजीब आनंद मिल रहा था और शायद इसी लिए काफ़ी लाज़ और डर के बावजूद सावित्री को ऐसा करना अब ठीक लग रहा था.
दूसरे पल सावित्री पेशाब करने बैठ गयी और बैठते ही समीज़ के पीछे वाला हिस्सा पीठ पर से सरक कर दोनो गोल गोल चूतदों को ढक लिया. इतना देखते ही धन्नो ने तुरंत समीज़ के उस पीछे वाले हिस्से को अपने हाथ से उठा कर वापस पीठ पर रख दी जिससे सावित्री का चूतड़ फिर एकदम नंगा हो गया और पंडित जी उसे अपने भरपूर नज़रों से देखने लगे. सावित्री की बुर से पेशाब की धार निकल कर फर्श पर गिरने लगी और एक धीमी आवाज़ उठने लगी. सावित्री जान बूझ कर काफ़ी धीमी धार निकाल रही थी ताकि कमरे मे पेशाब करने की आवाज़ ना गूँजे. धन्नो सावित्री के पीछे के बजाय बगल मे खड़ी हो गयी थी और उसकी नज़रें सावित्री के नंगे गांद पर ही थी. तभी धन्नो ने पंडित जी के चेहरे के तरफ अपनी नज़र दौड़ाई और एक हाथ से अपनी सारी के उपर से ही बुर वाले हिस्से को खुजुला दी मानो वह पंडित जी को इशारा कर रही हो. लेकिन पंडित जी अपने आँखों को बहुत ही चलाँकि से बहुत थोड़ा सा खोल रखे थे. फिर भी पंडित जी धन्नो को समझ गये की काफ़ी खेली खाई औरत है. और धन्नो के अपने सारी के उपर से ही बुर खुजुलाने की हरकत का जबाव देते हुए काफ़ी धीरे से अपने एक हाथ को अपनी धोती मे डाल कर लंगोट के बगल से कुच्छ कसाव ले रहे लंड को बाहर निकाल दिए और लंड धोती के बगल से एकदम बाहर आ गया और धीरे धीरे खड़ा होने लगा.लेकिन पंडित जी अपने लंड को बाहर निकालने के बावजूद अपनी आखों को काफ़ी थोड़ा सा ही खोल रखा था मानो सो रहे हों. अभी भी सावित्री मूत ही रही थी की धन्नो की नज़रें दुबारा जैसे ही पंडित जी के तरफ पड़ी तो उसके होश ही उड़ गये. वह समझ गयी की पंडित जी उसकी करतूत का जबाव दे दिया है. अब पंडित जी का गोरा और मोटा लंड एक दम खड़ा था और मानो सुपाड़ा कमरे की छत की ओर देख रहा था. धन्नो के शरीर मे बिजली दौड़ गयी. उसने दुबारा अपनी नज़र को लंड पर दौड़ाई तो गोरे और मोटे लंड को देखते ही उसकी मुँह से पानी निकल आया. तभी इस घटना से बेख़बर सावित्री पेशाब कर के उठी और चड्डी उपर सरकाने लगी.

धन्नो ने अपने काँपते हाथों से सावित्री की चड्डी को उपर सरकाते हुए धीरे से बोली "अरे जल्दी कर हर्जाइ...बड़ा गड़बड़ हो गया...हाई राम...भाग यहाँ से .." इतना सुनते ही सावित्री ने सोचा की कहीं पंडित जी जागने के बाद उठ कर बैठ ना गये हों और जैसे ही उसकी घबराई आँखें चौकी के तरफ पड़ी तो देखी की पंडित जी अभी भी आँखें मूंद कर लेटे हुए हैं. लेकिन दूसरे पल जैसे ही उसकी नज़र धोती के बाहर निकल कर खड़े हुए लंड पर पड़ी वह सर से पाँव तक काँप उठी और अपने सलवार के नाडे को जल्दी जल्दी बाँधने लगी. धन्नो मानो लाज़ के कारण अपने मुँह को भी लगभग ढक रखा था और सावित्री के बाँह को पकड़ कर एक झटका देते हुए बोली "जल्दी भाग उधेर..मैं मूत को पानी से बहा कर आती हूँ.." सावित्री तुरंत वहाँ से बिना देर किए दुकान वाले हिस्से मे आकर चटाई पर खड़ी हो गयी और हाँफने लगी. उसे समझ मे नही आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है. धन्नो ने तुरंत बगल मे एक बाल्टी मे रखे पानी को लोटे मे ले कर शौचालय के फर्श पर पड़े मूत को बहाने लगी. धन्नो कमर से काफ़ी नीचे झुक कर पानी से मूत बहा रही थी. इस वजह से धन्नो का बड़ा चूतड़ सारी मे एक दम बाहर निकल आया था. पंडित जी चौकी पर उठ कर बैठ गये. और जैसे ही पानी से मूत बहाकर धन्नो पीछे मूडी तो देखी की पंडित जी चौकी पर बैठे हैं और उनका लंड एक दम खड़ा है. इतना देखते ही लाज़ के मारे अपने दोनो हाथों से अपने मुँह को ढँक ली और धीरे धीरे दुकान वाले हिस्से की ओर जाने लगी जहाँ सावित्री पहले ही पहुँच गयी थी. धन्नो जैसे ही कुच्छ कदम बढ़ायी ही थी की पंडित जी ने चौकी पर से लगभग कूद पड़े और धन्नो के बाँह को पकड़ना चाहा. धन्नो पहले से ही सजग थी और वह भी तेज़ी से अपने बाँह को छुड़ाते हुए भागते हुए दुकान के हिस्से के पहले लगे हुए दरवाजे के पर्दे के पास ही पहुँची थी की पंडित जी धन्नो की कमर मे हाथ डालते हुए कस के जाकड़ लिया. धन्नो अब छूटने की कोशिस करती लेकिन कोई बस नही चल पा रहा था. पंडित जी धन्नो के कमर को जब जकड़ा तो उन्हे महसूस हुआ की धन्नो का चूतड़ काफ़ी भारी है और चुचियाँ भी बड़ी बड़ी हैं जिस वजह से धन्नो का पंडित जी के पकड़ से च्छुटना इतना आसान नही था. पंडित जी धन्नो को खींच कर चौकी पर लाने लगे तभी धन्नो ने छूटने की कोशिस के साथ कुच्छ काँपति आवाज़ मे गिड़गिदाई "अरे...पंडित जीइ...ये क्या कर रहे हैं...कुच्छ तो लाज़ कीजिए...मेरा धर्म मत लूटीए...मैं वैसी औरत नही हूँ जैसी आप समझ रहे हैं...मुझे जाने दीजिए.." धन्नो की काँपति आवाज़ सावित्री को सुनाई पड़ा तो वह एक दम सिहर उठी लेकिन उसकी हिम्मत नही पड़ी कि वह पर्दे के पीछे देखे की क्या हो रहा. है. वह चटाई पर एकदम शांत खड़ी हो कर अंदर हो रहे हलचल को भाँपने की कोशिस कर रही थी. धन्नो का कोई बस नही चल रहा था. धन्नो के गिड़गिदाने का कोई असर नही पड़ रहा था. पंडित जी बिना कुच्छ जबाब दिए धन्नो को घसीट कर चौकी पर ले आए और चौकी पर लिटाने लगे " धन्नो जैसे ही चौकी पर लगभग लेटी ही थी की पंडित जी उसके उपर चाड. गये. दूसरे ही पल धन्नो ने हाथ जोड़ कर बोली "मेरी भी इज़्ज़त है ...मेरे साथ ये सब मत करिए..सावित्री क्या सोचेगी ...मुझे बर्बाद मत करिए...पंडित जी मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ..." और इतना कह कर जैसे ही अपनी चेहरे को दोनो हाथों से च्छुपाने की कोशिस की वैसे ही पंडित जी ने अपने धोती को खोलकर चौकी से नीचे गिरा दिए. ढीली लंगोट भी दूसरे पल शरीर से दूर हो गया. अब पूरी तरह नंगे पंडित जी का लंड लहरा रहा था. धन्नो के शरीर पर पंडित जी अपने पूरे शरीर का वजन रखते हुए सारी को ब्लाउज के उपर से हटा कर चुचियो को मीसना सुरू कर दिए. चुचिओ का आकार सावित्री की चुचिओ से कुच्छ बड़ा ही था. वैसे ही धन्नो 43 साल की हो गयी थी. धन्नो ने अब कोई ज़्यादा विरोध नही किया और अपने मुँह को दोनो हाथों से च्छुपाए रखा. इतना देख कर पंडित जी धन्नो के शरीर पर से उतर कर एक तरफ हो गये और धन्नो के कमर से सारी की गाँठ को छुड़ाने लगे. तभी धन्नो की एक हाथ फिर पंडित जी के हाथ को पकड़ ली और धन्नो फिर बोली "पंडित जी मैं अपने इज़्ज़त की भीख माँग रही हूँ...इज़्ज़त से बढ़कर कुच्छ नही है.मेरे लिए..ऊहह" लेकिन पंडित जी ताक़त लगाते हुए सारी के गाँठ को कमर से बाहर निकाल दिए. कमर से सारी जैसे ही ढीली हुई पंडित जी के हाथ तेज़ी से सारी को खोलते हुए चौकी के नीचे गिराने लगे. आख़िर धन्नो के शरीर को इधेर उधेर करते हुए पंडित जी ने पूरे सारी को उसके शरीर से अलग कर ही लिए और चौकी के नीचे गिरा दिए. अब धन्नो केवल पेटिकोट और ब्लाउज मे थी. दूसरे पल पंडित जी ब्लाउज को खोलने लगे तो फिर धन्नो गिड़गिदाई "अभी भी कुच्छ नही बिगड़ा है मेरा पंडित जी...रहम कीजिए ...है ..रामम.." लेकिन ब्लाउज के ख़ूलते ही धन्नो की दोनो बड़ी बड़ी चुचियाँ एक काले रंग की पुरानी ब्रा मे कसी हुई मिली. पंडित जी बिना समय गवाए ब्लाउज को शरीर से अलग कर ही लिए और लेटी हुई धन्नो के पीठ मे हाथ घुसा कर जैसे ही ब्रा की हुक खोला की काफ़ी कसी हुई ब्रा एक झटके से अलग हो कर दोनो चुचिओ के उपर से हट गयी. पंडित जी ने तुरंत जैसे ही अपने हाथ दोनो चुचिओ पर रखने की कोशिस की वैसे ही धन्नो ने उनके दोनो हाथ को पकड़ने लगी और फिर गिड़गिदाई "अरे मैं किसे मुँह दिखाउन्गि ...जब मेरा सब लूट जाएगा...मुझे मत लुटीए..." लेकिन पंडित जी के शक्तिशाली हाथ को काबू मे रखना धन्नो के बस की बात नही थी और दोनो हाथ दोनो चुचिओ को मसल्ने लगे.
पंडित जी दोनो चुचिओ को मीसते हुए धन्नो के मांसल और भरे हुए शरीर का जायज़ा लेने लगे. धन्नो जब पंडित जी दोनो हाथों को अपनी चुचों पर से हटा नही पाई तो लाज़ दीखाते हुए अपनी दोनो हाथों से चेहरे को ढक ली. लेकिन पंडित जी अगले पल अपने एक हाथ से उसके हाथ को चेहरे पर से हटाते हुए अपने मुँह धन्नो के मुँह पर टीकाने लगे. इतना देख कर धन्नो अपने सर को इधेर उधेर घुमाने लगी और पंडित जी के लिए धन्नो के मुँह पर अपने मुँह को भिड़ना मुश्किल होने लगा. इतना देख कर पंडित जी उसके चुचिओ पर से हाथ हटा कर तुरंत अपने एक हाथ से धन्नो के सर को कस कर पकड़ लिए और दूसरे हाथ से उसके गाल और जबड़े को कस कर दबाया तो धन्नो का मुँह खूल सा गया और पंडित जी तुरंत अपने मुँह को उसके मुँह पर सटा दिया और धन्नो के खुले हुए मुँह मे ढेर सारा थूक धकेलते हुए अपने जीभ को धन्नो के मुँह मे घुसेड कर मानो आगे पीछे कर के उसके मुँह को जीभ से ही पेलने लगे. धन्नो का पूरा बदन झनझणा उठा. दूसरे पल धन्नो के ओठों को भी चूसने लगे. और अब हाथ फिर से चुचिओ पर अपना काम करने लगे. धन्नो की सिसकारियाँ दुकान वाले हिस्से मे खड़ी सावित्री को सॉफ सुनाई दे रहा था. सावित्री का कलेजा धक धक कर रहा था. थोड़ी देर तक ऐसे ही धन्नो के होंठो को कस कस कर चुसते हुए पंडित जी ने दोनो चुचिओ को खूब मीसा और नतीज़ा यह हुआ की पेटिकोट के अंदर गुदाज बुर की फांकों मे लार का रिसाव सुरू हो गया. सिसकिओं को सुन सुन कर सावित्री की भी बुर मे मस्ती छाने लगी. लेकिन वह जैसे की तैसे दुकान वाले हिस्से मे खड़ी थी और अंदर क्या हो रहा होगा यही सोच कर सिहर जा रही थी.तभी पंडित जी ने धन्नो के पेटिकोट के उपर से ही उसके जांघों को पकड़ कर मसल्ने लगे. धन्नो समझ गयी की पंडित जी अब उसके शरीर के अंतिम चीर को भी हरने जा रहे हैं. और अगले पल जैसे ही उनके हाथ धन्नो के पेटिकोट के नाडे को खोलने के लिए बढ़े ही थे की वह उठ कर बैठ गयी और मानो सावित्री को सुनाते हुए फिर से गिड़गिदाने का नाटक सुरू कर दी "मान जाइए ...आप जो कहिए मैं करूँगी लेकिन मेरी पेटिकोट को मत खोलिए.. उपर की इज़्ज़त पर तो हाथ फेर ही दिए हैं लेकिन पेटिकोट वाली मेरी अस्मत को मत लूटीए...मैं मोसाम्मि के पापा के सामने कैसे जाउन्गि...क्या मुँह दिखाउन्गि...ये तो उन्ही की अमानत है......अरी मान जाइए मेरा धर्म इस पेटिकोट मे है...ऊ राम..." लेकिन पंडित जी के हाथ तबतक अपना काम कर चुका था और धन्नो की बात ख़त्म होते ही पेटीकोत कमर मे ढीला हो चुका था. धन्नो इतना देखते ही एक हाथ से ढीले हुए पेटिकोट को पकड़ कर चौकी से नीचे कूद गयी. पंडित जी भी तुरंत चौकी से उतरकर धन्नो के पकड़ना चाहा लेकिन तबतक धन्नो भाग कर दुकान वाले हिस्से मे खड़ी सावित्री के पीछे खड़ी हो कर अपने पेटिकोट के खुले हुए नाडे को बाँधने की कोशिस कर ही रही थी कि तब तक पंडित जी भी आ गये और जैसे ही धन्नो को पकड़ना चाहा की धन्नो सावित्री के पीछे जा कर सावित्री को कस कर पकड़ ली और सावित्री से गिड़गिदाई "अरे बेटी ...मेरी इज़्ज़त बचा लो ....अपने पंडित जी को रोको ...ये मेरे साथ क्या कर रहे हैं...."
सावित्री ऐसा नज़ारा देखते ही मानो बेहोश होने की नौबत आ गयी. और लंड खड़ा किए हुए पंडित जी भी अगले पल धन्नो के पीछे आ गये और पेटिकोट के नाडे को दुबारा खींच दिया और दूसरे पल ही धन्नो का पेटिकोट दुकान के फर्श पर गिर गया. सावित्री पंडित जी के साथ साथ धन्नो चाची को भी एकदम नंगी देख कर एक झटके से धन्नो से अलग हुई दुकान के भीतर वाले कमरे मे भाग गयी. फिर एकदम नंगी हो चुकी धन्नो भी उसके पीछे पीछी भागती हुई फिर सावित्री के पीछे जा उसे कस कर पकड़ ली मानो अब उसे छ्होरना नही चाहती हो. दूसरे पल लपलपाते हुए लंड के साथ पंडित जी भी आ गये. सावित्री की नज़र जैसे ही पंडित जी खड़े और तननाए लंड पर पड़ी तो वा एक दम सनसना गयी और अपनी नज़रे कमरे के फर्श पर टीका ली. अगले पल पंडित जी धन्नो के पीछे आने की जैसे ही कोशिस किए धन्नो फिर सावित्री को उनके आगे धकेलते हुए बोली "अरे सावित्री मना कर अपने पंडित जी .को ...तू कुच्छ बोलती क्यूँ नही..कुच्छ करती क्यों नही...मेरी इज़्ज़त लूटने वाली है...अरे हरजाई कुच्छ तो कर....बचा ले मेरी इज़्ज़त....." सावित्री को जैसे धन्नो ने पंडित जी के सामने धकेलते हुए खूद को बचाने लगी तो सावित्री के ठीक सामने पंडित जी का तननाया हुया लंड आ गया जिसके मुँह से हल्की लार निकलने जैसा लग रहा था और सुपादे के उपर वाली चमड़ी पीछे हो जाने से सूपड़ा भी एक दम लाल टमाटर की तरह चमक रहा था. सावित्री को लगा की पंडित जी कहीं उसे ही ना पेल दें. सावित्री भले अपने समीज़ और सलवार और दुपट्टे मे थी लेकिन इतना सब होने के वजह से उसकी भी बुर चड्डी मे कुच्छ गीली हो गयी थी. धन्नो सावित्री का आड़ लेने के लिए उसे पकड़ कर इधेर उधेर होती रही लेकिन पंडित जी भी आख़िर धन्नो के कमर को उसके पीछे जा कर कस कर पकड़ ही लिया और अब धन्नो अपने चूतड़ को कही हिला नही पा रही थी. सावित्री ने जैसे ही देखा एकदम नगी हो चुकी धन्नो चाची को पंडित जी अपने बस मे कर लिए हैं वह समझ गयी अब पंडित जी धन्नो चाची चोदना सुरू करेंगे.
सावित्री को ऐसा लगा मानो उसकी बुर काफ़ी गीली हो गयी है और उसकी चड्डी भी भीग सी गयी हो. और सावित्री अब धन्नो से जैसे ही अलग होने की कोशिस की वैसे धन्नो ने सावित्री के पीछे से उसके गले मे अपनी दोनो बाँहे डाल कर अपने सर को सावित्री के कंधे पर रखते हुए काफ़ी ज़ोर से पकड़ ली और अब सावित्री चाह कर भी धन्नो से अलग नही हो पा रही थी और विवश हो कर अपनी दोनो हाथों से अपने मुँह को च्छूपा ली. इधेर पंडित जी भी धन्नो के कमर को कस कर पकड़ लिए थे और धन्नो के सावित्री के कंधे पर कुच्छ झुकी होने के वजह से धन्नो का चूतड़ कुच्छ बाहर निकल गया था और पंडित जी का तन्नाया हुआ लंड अब धन्नो की दोनो चूतदों के दरार के तरफ जा रहा था जिसे धन्नो महसूस कर रही थी. पंडित जी के एक हाथ तो कमर को कस कर पकड़े थे लेकिन दूसरा हाथ जैसे ही लंड को धन्नो के पीछे से उसकी गीली हो चुकी बुर पर सताते हुए एक ज़ोर दार धक्का मारा तो धक्का जोरदार होने की वजह से ऐसा लगा की धन्नो आगे की ओर गिर पड़ेगी और सावित्री के आगे होने की वजह से वह धन्नो के साथ साथ सावित्री भी बुरी तरह हिल गयी और एक कदम आगे की ओर खिसक गयी और लंड के बुर मे धँसते ही धन्नो ने काफ़ी अश्लीलता भरे आवाज़ मे सावित्री के कान के पास चीख उठी "..आआआआआआआआआआ ररीए माआई रे बाआअप्प रे बाप फट गया.... फट गया ................फ..अट गाइ रे बुरिया फट फाया ...फट गया रे ऊवू रे बाप फाड़ दिया रे फाड़ दिया ......अरे मुसाममी के पापा को कैसा मुँह देखाउन्गा मुझे तो छोड़ दिया रे......श्श्सश्..........अरे. ..बाप हो.....मार ....डाला ...बुर मे घूवस गया रे ..हरजाइइ...तेरे पंडित ने ...चोद दिया मेरी ...बुर....उउउहहारे अरे हरजाई रंडी....तेरे पंडित ने मुझे चोद दिया..रे ...आरे बाप रे बाप मैं किसे मुँह दिखाउन्गि....आजज्ज तो लूट लिया रे.....मैं नही जानती थी ....आज मेरी बुर ....फट जाएगी.....ऊवू रे मा रे बाप ...मेरी बुर मे घूस ही गया..रे..मैं तो बर्बाद हो गयी...रे.अयाया " पंडित जी का लंड का आधा हिस्सा बुर मे घुस चुका था.
सावित्री किसी ढंग से खड़ी हो पा रही थी क्योंकि धन्नो चाची उसके पीछे की ओर से झुकी हुई थी और पंडित जी धन्नो की बुर पीछे से चोद रहे थे. पंडित जी दुबारा धक्के धन्नो की बुर मे मारना सुरू कर दिए और धन्नो फिर सिसकारना सुरू कर दी. धन्नो की बुर गीली हो जाने की वजह से पंडित जी लंड काफ़ी आसानी से बुर मे घुसने लगा. धन्नो की अश्लील सिसकारीओं का असर सावित्री के उपर पड़ने लगा. सावित्री अपने जीवन मे कभी नही सोची थी की इस उम्र की अधेड़ औरत इतनी गंदी तरह से बोलती हुई चुदेगि. और पंडित जी समझ गये थे की धन्नो काफ़ी चुदी पीटी औरत है और वह सावित्री को अपने अश्लीलता को दिखा कर मज़ा लेना चाह रही है. पंडित जी ने जब लंड को किसी पिस्टन की तरह धन्नो की बुर मे अंदर बाहर करने लगे तब धन्नो को काफ़ी मज़ा आने लगा. फिर धन्नो ने देखा की सावित्री भी हर धक्के के साथ हिल रही थी मानो पंडित जी उसी को चोद रहे हों. सावित्री भी काफ़ी चुपचाप धन्नो के चुदाइ का मज़ा ले रही थी. उसकी बुर मे भी चुनचुनाहट सुरू हो गयी थी. अब धन्नो ने यह समझ गयी की सावित्री की भी बुर अब लंड की माँग कर रही होगी तो इज़्ज़त के लिए गिड़गिदाने की बजाय अपने इज़्ज़त को खूब लुटाने के लिए बोलना सुरू कर दी "सी सी ऊ ऊ ऊ अरे अब तो बहुत मज़ा आ रहा है...और ज़ोर से आ आ आ आ आ आ ह ज़ोर ज़ोर ज़ोर्से ज़ोर से चोदिए ऊ ओह ....." पंडित जी इतना सुन कर धक्के की स्पीड बढ़ा दिए और सावित्री ने जब धन्नो के मुँह से ऐसी बात सुनी तो उसकी चूछुना रही बुर मे आग लग गयी. अब वह अपनी जगह पर अकड़ कर खड़ी हो गयी और एक लंबी सांस खींची. धन्नो समझ गयी अब सावित्री को इस अश्लीलता और बेशर्मी का सीधा असर पड़ने लगा है. फिर धन्नो ने एक बार फिर पीछे की ओर से चोद रहे पंडित जी से बोली "अरे और ज़ोर से चोदिए...चोदिए...मेरी बुर को..अब क्या बचा है मेरे पास जब मुझे लूट ही लिए तो चोद कर अपनी रखैल बना लीजिए..पेल कर फाड़ दीजिए मेरी बुर को ....ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ................................इतना मज़ा आ रहा है की क्या बताउ....हाई राम जी करता है की रोज़ आ कर चुदाउ ...ओह ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊवू ऊवू ......अरे कस कर चोदिए की मैं बर्बाद हो जाउ...मेरे राजा..मेरे करेजा ....चोदिए ...आप तो एक दम किसी जवान लड़के की तरह चोद रहे हैं मेरी बुर को....." पंडित जी इतना सुन कर धक्के मारते हुए तपाक से बोल पड़े "कितने लड़के चोदे हैं इस बुर को...?" धन्नो ने सावित्री के शरीर को पकड़ कर झुकी स्थिति मे कुच्छ सोच कर जबाव दे डाली "अरे के बताउ अब कया छुपाउ आपसे आप तो मेरे गाओं की हालत जानते ही हैं आख़िर कैसे कोई बच सकता ही मेरे गाओं के .....ओहो ओह ओह ओह ऊ ऊ ओह अरे किस किस को बताउ जिसने मेरी......अरे लड़को से करवाने मे तो और भी मज़ा आता है....जवान लड़को की बात कुच्छ और ही होती है....ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊवू ......मेरे गाओं मे तो शायद ही कोई औरत बची हो इन........ऊ ऊ ऊ ऊ .....अरे बाप रे बाप ....खूब डालिए अंदर " पंडित जी को सावित्री के सामने ही लड़कों की तारीफ कुच्छ ठीक नही लगी तो कुच्छ धक्को मे तेज़ी लाते हुए बोले "अभी तो मादर्चोद शरीफ बन रही थी और अब बता रही है की तेरी बुर पर काईओं ने चढ़ाई कर ली है.....तेरी बेटी की बुर चोदु साली रंडी.....लड़के साले क्या मेरी तरह चोदेन्गे रे...जो मैं चोद दूँगा....लड़कों की तारीफ करती है और वो भी मेरे सामने......वी साले शराब और नशा कर ते हैं ....उनके लंड मे ताक़त ही कहा होती है की बुर चोदेन्गे....मादार चोद...तेरी बेटी को चोद कर रंडी बना दूं साली ....चल इस चौकी पर चिट लेट फिर देख मैं तेरी इस भोसड़ी को कैसे चोद्ता हूँ..."
इतना कहते ही पंडित जी कुच्छ गुस्साए हुए धन्नो के बुर से लंड को बाहर खींच लिए और भीगा हुआ लंड बाहर आ कर चमकने लगा. धन्नो अब सावित्री के कंधे के उपर से हटते हुए चौकी पर चढ़ गयी और फिर चित लेट गयी. पंडित जी पास मे खड़ी सावित्री की बाँह को पकड़ कर अपनी ओर खींचते हुए बोले "देख जब मैं इसकी बुर मे लंड घुसाउन्गा तब तुम पीछे बैठ कर इसकी बुर को अपने दोनो हाथों से कस कर फैलाना ताकि लंड को गहराई तक पेल सकूँ." सावित्री इतना सुन कर सन्न रह गयी. वैसे सावित्री भी तुरंत चुदना चाह रही थी. सावित्री वहीं खड़ी हो कर अपनी नज़रें झुका ली. तभी पंडित जी भी चौकी पर चढ़ कर धन्नो के दोनो घुटनो को मोड़ कर थोड़ा जांघों को चौड़ा कर दिए. धन्नो की बुर फैल गयी. लेकिन तभी पंडित जी ने सावित्री को कहा "तू पीछे बैठ कर अपने दोनो हाथो से इस चुदैल की बुर की फांकों को ऐसा फैलाओ की इसकी बुर की गहराई को चोद दूं." सावित्री ने अपने काँपते हाथों से धन्नो के बुर के दोनो फांको को कस फैलाया तो बुर का मुँह खूल गया. धन्नो सावित्री से बोली "अरे कस के फैलाना ...ताकि पंडित जी का पूरा लंड एक ही धक्के मे ऐसा घूस जाए मानो मेरे गाओं के आवारे मुझे चोद रहे हों...फैला मेरी बुर को मेरी बेटी रानी ऊ" सावित्री के फैलाए हुए धन्नो के बुर मे पंडित जी ने लंड को एक ही झटके मे इतनी तेज़ी से पेला की लंड बुर के गहराई मे घुस गया और दूसरे पल पंडित जी काफ़ी तेज़ी से पेलने लगे और सावित्री के हाथों से फैली हुई बुर की चुदाई काफ़ी तेज होने लगी. सावित्री के हाथ पर पंडित जी के दोनो अनदुए टकराने लगे. सावित्री की नज़रें पंडित जी के मोटे और गोरे लंड पर टिक गयी जो धन्नो की बुर मे आ जा रहा था और लंड पर काफ़ी सारा चुदाई का रस लगने लगा था. सावित्री की बुर भी चिपचिपा गयी थी. सावित्री का मन कर रहा था की वह धन्नो की बुर मे चुदाई कर रहे लंड को अपनी बुर मे डाल ले. बुर की आग ने सावित्री के अंदर की लाज़ और शार्म को एकदम से ख़त्म ही कर दिया था जो की धन्नो चाहती थी की सावित्री एक चरित्रहीं औरत बन जाए तो फिर उसकी सहेली की तरह गाओं मे घूम घूम कर नये उम्र के लड़कों को फाँस कर दोनो मज़ा ले सकें. धन्नो की बुर को इतनी कस कस कर चोद रहे थे की पूरी चौकी हिल रही थी मानो टूट जाए. कमरे मे चुदाइ और धन्नो की सिसकारीओं की आवाज़ गूँज उठी. सावित्री का मनमे एक दम चुदाई हो चुकी थी. सावित्री भी यही चाह रही थी पंडित जी उसे भी वही पर लेटा कर चोद दें. अब सावित्री लज़ाना नही चाह रही थी क्योंकि उसकी बुर मे लंड की ज़रूरत एक दम तेज हो गयी थी. धन्नो ने भी चुदते हुए फिर से अशीलता सुरू कर दी "चोदिए ऊ ऊवू ऊ ऊवू ऊ ह ऊओ हू रे ऊऊ मई ऊऊ रे बाप ...कैसे घूस रहा है ...अरे बड़ा मज़ा आ रहा है ऐसे लग रहा की कोई लड़का मुझे चोद रहाआ है अरे बेटी सावित्री...देख रे हरजाई मेरी बुर मे कैसे लंड जा रहा है....तेरी भी बुर .....अब पनिया गयी होगी रे.....देख मेरी बुर मे इस बुढ्ढे का लंड कैसे जा रहा है...ऊ ऊ ऊवू तू भी ऐसे ही चुदाना रे बढ़ा मज़ा आता है ...ऊओहू हूओ ऊओहू ऊ ऊ ऊवू ऊवू ऊवू ऊवू ऊओहूओ स्सो ओहो अरे इस गंदे काम मे इतना मज़ा आता है की क्या बताउ से हरजाई ...तू भी मेरी तरह चुदैल बन ....तेरी भी बुर ऐसी ही चुदेगि....ऊ..." और पंडित जी ने इतने तेज चोदना सुरू कर दिया की पूरी चौकी ऐसे हिलने लगी मानो अगले पल टूट ही जाएगी. तभी धन्नो काफ़ी तेज चीखी "म्*म्म्मममममममममम ससस्स व्व न कककककककककककककक ऊऊऊऊऊऊओह अरे कमीने चोद मेरी बुर और मेरी बेटी की भी चोद मेरी मुसम्मि को भी चोद.....चोद कर बना डाल रंडी....मैं तो झड़ी आऊऊह ओ हू " और इतना कहने के साथ धन्नो झड़ने लगी और तभी पंडित जी भी पूरे लंड को उसकी बुर मे चॅंप कर वीर्य की तेज धार को उदेलना सुरू कर दिए और पीछे बैठी सावित्री अपने हाथ को खींच ली और समझ गयी की पंडित जी धन्नो चाची की बुर मे झाड़ रहे हैं और एक हाथ से अपनी बुर को सलवार के उपर से ही भींच ली.
न्नो तृप्त हो चुकी थी और पंडित जी भी खुश थे. दोनोने कपड़े पहन लिए और पंडित जी दुकान भी खोल दिए. लेकिन सावित्री की प्यास वैसी ही बनी रही. मानो उसके साथ कोई बेईमानी हो रही हो. सावित्री के पास इतनी हिम्मत नही थी की पंडित जी से कह कर अपनी बुर चुदवा ले. एक गहरी साँस ले कर सावित्री भी दुकान मे बैठ गयी.धन्नो ने पंडित जी के दुकान से अपनी बेटी के लिए सौंदर्या के कुच्छ समान लिए फिर पंडित जी को पैसे देने लगी तब उन्होने ने पैसे वापस कर दिए.और बोले ......"धन्नो आज मैं तुमसे बहुत खुश हूँ...तुम्हारी तरह की बड़े दिल की औरतें खोजने से भी नही मिलती हैं..."इतना कह कर पंडित जी धन्नो की ओर देख कर मुस्कुरा उठे. नज़रें झुकाए बैठी हुई धन्नो से आगे बोले......"ये सब सौंदर्या का समान मेरे तरफ से तेरी बेटी को उपहार है."धन्नो अपनी तारीफ सुन कर और सौंदर्या का समान मुफ़्त मे पा कर अंदर ही अंदर प्रसन्नचित हो उठी और पंडित जी के इस नेक व्यवहार का जबाव देती हुई बोली........."आप जैसा नेक्दिल इंसान भी नही मिलते पंडित जी...और क्या कहूँ..."इतना कह कर धन्नो ने सावित्री की ओर देखी जो बगल मे बैठी थी लेकिन उसकी आँखों मे वासना के डोरे सॉफ दिख रहे थे. फिर धन्नो ने आगे कुच्छ लज़ाति हुई अपनी नज़रें झुकाए हुई बोली ........"पंडित जी आज जो भी हुआ ....किसी को पता ना चले...." इतना सुनते ही पंडित जी धन्नो को आश्वस्त करते हुए बोले......"तू इसकी फिक्र मत कर...मेरे दुकान पर भी कभी कभी आ जाया करना...मुझे तेरी जैसी औरतें बहुत पसंद हैं धन्नो.." पंडित जी की इस बात को धन्नो सुनते ही खुश हो उठी और उसने पंडित जी को अपने घर आने का न्योता दे डाली ...........
"मैं तो आपके दुकान पर आती जाती रहूंगी...आपको भी मेरे घर आना पड़ेगा....... मेरी भी इच्च्छा है की मैं आप को अपने घर पर देखूं.."फिर पंडित जी ने कहा ..........."ठीक है...समय तो मिलता नही फिर भी दस मिनट के लिए ही सही ...मैं आउन्गा ज़रूर..."धन्नो ने पंडित जी से आगे बोली ..........."मेरा घर गाँव के किनारे वाले बड़े बगीचे के पास मे है.. वहाँ दो घर मिलेंगे जो थोड़ी थोड़ी दूरी पर हैं उसमे से एक मेरा और दूसरा इसका है..." इतना कहते हुए धन्नो ने सावित्री की ओर इशारा किया.पंडित जी फिर आगे बोले..........."चलो इसी बहाने सावित्री का भी घर देख लेंगे...क्यों सावित्री...?" और सावित्री से पुच्छे तब सावित्री ने धीरे से मुस्कुराते हुए बोली"जी ...ठीक है...."फिर आगे बोले ..........."तुम अपने मर्द के बारे मे तो कुच्छ बताई नही..."फिर धन्नो कुच्छ खामोश रही फिर बोली ..........."उस कमीने के बारे मे क्या बताउ.....वो मेरे लिए मर्द कम मौत ज़्यादा है.....दूसरे शहर मे अपना कमाता ख़ाता है...और उस शराबी ने तो मेरी जिंदगी मे ज़हर ही घोल डाला है....घर से कोई मतलब ही नही रखता........... साल भर मे दो दिन के लिए ही घर आ जाय तो बहुत बड़ी बात है...
फिर आगे बोली ..........."वो जो कमाता है कमीना सब दारू पी जाता है..बेटी की पहली शादी मे भी कोई पैसा वैसा नही दिया ..आख़िर किसी तरह मुझे ही झेलना पड़ा..........सच कह रही हूँ कभी कभी गुस्सा इतना आता है कि सोचती हूँ कि वो दारुबाज मर जाता तो मैं अपनी माँग खुशी से धो डालती..."धन्नो का अपने पति के उपर गुस्से को देख कर बोले..........."क्या कह रही हो अपने मर्द के बारे मे...ऐसा नही कहते...आख़िर जैसा भी है तुम्हारा पति है..."इतना सुनना था की धन्नो के गुस्से मे तूफान आ गया..........."उस बुर्चोदा की बात मत कीजिए...वो मेरा पति नही बल्कि दोगला है...बुर्चोदा साला अपनी बाप के लंड के पानी से पैदा होता तब तो अपने घर बीबी बेटी बेटा को समझता...उसकी मा ना जाने किससे किससे चुदवा कर ऐसा दरुबाज़ पैदा कर डाली जो मेरी जिंदगी ही बर्बाद कर दिया,..................सच कहती हूँ......मुझे उसके उपर इतना गुस्सा लगती है की मैं भगवान से मनाती हूँ की मर जाता तो अच्च्छा होता..."धन्नो ने ये सारी बातें तेज़ी से कह डाली फिर भी उसे संतोष नही हुआ और आयेज बकना सुरू कर दी...........
"कौन ऐसा होगा इंसान इस दुनिया मे जिसकी बेटी और बेटे जवान हो गये हो और वो उनकी शादी के बजाय दारू मे ही मस्त रहता हो,.......उसी के वजह से बेटा भी एक जवान लड़की ले कर भाग गया और अभी तक हम दोनो मा बेटी की खोज खबर लेने नही आया...पता नही किसकी दया से हम दोनो मा बेटी इस दुनिया मे जिंदा हैं..."पंडित जी ने धन्नो की बात सुनकर चुप हो गये फिर एक गहरी साँस लेकर बोले..........."तुम ठीक ही कहती हो...नशा करने का ये मतलब नही होता की अपने पत्नी और संतानो से ही मुँह मोड़ ले..."फिर आगे बोले..........."मैं तुम्हारे घर जल्दी ही आउन्गाअ...वैसे जब शादी ठीक हो जाए तो मुझे भी बता देना जो मदद हो सकेगी मैं भी कर दूँगा.."फिर धन्नो बोली ..........."इस दुनिया मे आप जैसे लोग ना रहें तो मेरे जैसे किस्मत की मारी हुई औरतों और लड़कियो का एक पल जीना दूभर हो जाए.....मेरी बेटी की पहली शादी मे मेरे गाओं के चौधरी और कई लोगों ने पैसा दिया और मदद की ...नही तो मैं अकेली उसकी शादी कैसे कर सकती थी....."फिर धन्नो आगे बोली ..........."मेरे गाओं के चौधरी बहुत अच्छे आदमी हैं..हम ग़रीबों की बहुत मदद करतें हैं..."फिर धन्नो ने सावित्री की ओर इशारा करते बोली .........."अब इसी का बाप मर गया था तो इसकी मा के मुसीबत मे चौधरी ने बहुत सहारा दिया...लेकिन..."इतना कह कर धन्नो चुप हो गयी. फिर पंडित जी ने पुचछा ..........."लेकिन क्या..?"
फिर धन्नो ने कुच्छ मायूसी से सावित्री की ओर देखते बोली ..........."..क्या बताउ ...किसी ने ठीक ही कहा है ..होम करने से हाथ जल ही जाते हैं....बेचारे चौधरी ने इसकी मा को सहारा क्या दिया की गाओं मे ये हवा उड़ गयी की चौधरी इसकी मा को रख लिया है......, फिर इसकी मा चौधरी के घर जाना ही छोड़ दी...मेरा गाओं बहुत गंदा है...किसी को इज़्ज़त से जीने नही देता यहाँ तक की चौधरी को भी इसकी मा के चक्कर मे बे-इज़्ज़त होना पड़ा.."फिर पंडित जी ने उत्सुकता से पुचछा ..........."गाओं वाले क्या कहने लगे ....कैसे इस तरह की हवा उड़ गयी...?"फिर धन्नो ने सावित्री की ओर देखते हुए बोली ..........."....अरे बस मेरा गाओं किसी की इज़्ज़त खराब करने मे बहुत आगे रहता है...इसकी मा जब चौधरी के यहाँ काम करती थी तब कभी कभी चौधरी अपने खेत पर इसकी मा से अपना शरीर मे तेल मालिश करवा लेते थे........... और वो भी जब खेत पर कोई नही होता था तब..........क्योंकि की चौधरी जानते थे की इतनी सी बात गाओं मे अफवाह फैला सकती है............और किसी दिन गाओं की कुच्छ औरतें देख ली ....और शोर मच गया की इसकी मा चौधरी के घर का काम के साथ साथ चौधरी के खेत पर बने झोपड़ी मे जा कर उसे तेल मालिश के बहाने उससे मज़े लेती है...... "फिर पंडित जी बोले ..........."तुम तो जानती हो कि कुत्ते भोँकते है और हाथी चली जाती है...गाओं मे इस तरह के कुत्ते होते हैं जो कुच्छ ना तो कुच्छ कहते रहते हैं......इन मादरचोदो की इस तरह की बातों से डरना नही चाहिए..."धन्नो इस बात की हामी भरते हुए बोली ..........."और क्या ...गाओं मे सब कीचल उच्छालाने के अलावा कोई कुच्छ नही करता..."पंडित जी बोले ..........."इसकी मा को भी समझा दिया कर की इस तरह की बातों से डरा या घबराया ना करे...बहुत सीधी और लजाधुर औरत है सीता..."इतना सुनना था की धन्नो तपाक से बोली ..........."अरे इसकी मा तो मुझसे बात नही करती....क्या मुझे देखना नही चाहती...ये तो आपकी दुकान पर उसकी बेटी से दो बातें कर ले रही हूँ नही तो क्या मज़ाल की मैं इस लड़की से कुच्छ बोल दूं..."पंडित जी चौंकाते हुए पुच्छे ..........."ऐसी कौन सी दुस्मनि है तुम दोनो मे....?"
धन्नो मानो इस सवाल का जबाव पहले से ही तैयार रखी हो..........."मेरी तो किसी से कोई दुश्मनी नही है...इसकी मा ही सबसे कहती रहती है की मैं रंडी हूँ, छिनार हूँ और घूम घूम के मर्दों से चुदवाती रहती हूँ...यही नही बल्कि यहाँ तक कह देती है की मेरी बेटी भी रंडी और छिनार है...."फिर पंडित जी के कुच्छ बोलने के पहले ही बोली ..........."उस...हरजाई के उपर मुझे बहुत गुस्सा आता है लेकिन मैं कुच्छ बोलती नही..." इतना सुनकर पंडित जी शांत हो गये और कुच्छ पल बाद बोले ..........."तब तो वह बहुत रंडी है बुर्चोदि साली...जब वा दूसरे औरत के बारे मे ऐसी बात करती है..."फिर कुच्छ सोचते हुए आगे बोले..........." मैं तो उसे काफ़ी सीधी साधी समझता था....बहुत भोषड़ी है रांड़ कुत्तिअ..."गुस्से मे आ कर धन्नो अपनी ही बात से पलटते हुए आगे बोली ..........."....मुझे तो लगता है की गाओं की कुच्छ औरते सही ही कहती हैं इसकी मा के बारे मे की बस उपर से शरीफ बनती है और ........सही बात तो यही है की चौधरी ने चोद चोद कर उसका भोसड़ा बना दिया ... "लेकिन शायद यह सोच कर की कहीं सावित्री को बहुत बुरा ना लगे धन्न्नो बात बदलते हुए पंडित जी से बोली..........."..लेकिन इस लड़की का स्वाभाव अपनी मा से एकदम अलग ही है ... बेचारी बहुत सरल और मिलनसार है... इसकी मा के चलते मैं भी इससे कुच्छ नही बोलती..."धन्नो के बात को आगे बढ़ाते हुए पंडित जी बोले ..........."..ठीक तो है ..अपनी मा की बुराई इसके अंदर नही है.....बल्कि एक अच्छि औरत के सारे गुण हैं...और वैसे भी औरत को मीठे स्वाभाव का मिलनसार होना चाहिए..."
पंडित जी ने सावित्री की ओर देखते हुए बोला. सावित्री अपनी तारीफ सुनकर मुस्कुरा दी.फिर पंडित जी ने धन्नो से बोले..........." यदि इसकी मा तुम्हारी बदनामी करती है तो उसे मना कर दो एक दिन.."धन्नो इस सलाह को ना मानते हुए बोली ..........."मुझे किसी की परवाह नही है.....जिसको जो कहना है कहे ....बस कोई मुँह से कह ही सकता है....इससे ज़्यादे क्या कर सकता है....जब उसकी बुर मे लंड नही मिलता है तो दूसरे औरतों से तो जलेगी ही...."इतना कह कर धन्नो हँसने लगी और सावित्री की ओर देखी . धन्नो की ऐसी बात को सुनकर पंडित जी भी हंस पड़े और बोले ..........."तुम ठीक कहती हो...अरे थोड़ा सावित्री को भी ये सब समझा दिया करो...ये भी बहुत डरपोक किस्म की है..." धन्नो सावित्री के तरफ देखते बोली ..........."मेरे साथ रहेगी तो वैसे ही बहुत तेज़ हो जाएगी...उपर से भगवान ने इसका शरीर बहुत गजब का दिया है...मैं तो इसे गाओं की सबसे बड़ी चुदैल निकालूंगी..."इतना कह कर धन्नो ने लगभग ज़ोर से हंसते हुए बगल मे बैठी हुई सावित्री के कंधे पर एक हाथ रख दी और फिर उसकी ओर देखते हुए पुच्छी......................"क्यों ठीक कहा ना...?"
सावित्री एक बनावटी गुस्से से मुस्कुराइ और धन्नो के हाथ को अपने कंधे से झटकारेटे हुए बोली..........."मुझसे ऐसी बात मत किया करो...गंदी कहीं की...!"इतना सुन कर पंडित जी और धन्नो दोनो ही ज़ोर से हंस पड़े और दोनो के हँसने के कारण सावित्री अपने को रोक नही सकी और अपने मुँह को दोनो हाथों मे च्छूपा कर हँसने लगी.तीनो का हँसना जैसे ही शांत हुआ धन्नो पंडित जी से बोली ..........."अब मैं घर जाना चाहती हूँ लेकिन सावित्री को भी साथ ले जाउन्गी..."सावित्री धन्नो की ऐसी बात सुनकर चौंक सी गयी और पंडित जी की ओर देखने लगी. फिर पंडित जी ने सावित्री से कहा"....जाओ इसके साथ...लेकिन कल दुकान के समय आ जाना"इतना सुन कर धन्नो ने पंडित जी से बोली..........."कल ये दुकान पर कैसे आएगी .. कल तो इसे मैं अपने साथ ले जाउन्गि जहाँ अपनी लड़की को लड़के वालों को दीखानी है...अब परसों ही आएगी आपके दुकान पर.."पंडित जी फिर बोले"ठीक है...ले जाओ मैं कहाँ रोक रहा..."फिर कुच्छ मज़ाक के मूड मे बोले"....लेकिन कहीं इसकी मा दुकान पे आ गयी तो मैं उसे बता दूँगा की धन्नो अपने साथ ले गयी है.....चुदैल बनाने के लिए.."फिर तीनो ज़ोर से हंस पड़े. लेकिन इस बार सावित्री दोनो की ओर देख कर हंस रही थी. सावित्री के इस बदले रूप को देखकर दोनो ही मस्त हो गये.

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