Saturday, 30 September 2017

ganv ki majboor ladki part 5

फिर धन्नो ने सावित्री से हंस कर बोली ..........."देख तुझे कैसे डरा रहे हैं.."सावित्री पंडित जी के नज़रों मे देखते हुए धीरे से बोली ..........."मैं नही डरने वाली "पंडित जी सावित्री के मुँह से इस तरह की बात सुन कर कुच्छ चिढ़ाने के अंदाज मे बोले..........."तो कल जा धन्नो के साथ ...और मैं जा के तेरी मा से बोल दूँगा की आज दुकान पर नही आई है बल्कि धन्नो के साथ कहीं गयी है...मरवाने ...!"फिर तीनो ज़ोर से हंस पड़े.हँसी रुकते ही धन्नो उठी और सावित्री को भी उठने का इशारा की तब सावित्री भी खड़ी हो गई. अभी शाम होने मे कई घंटे थे फिर दोनो दुकान से निकले और घर की ओर चल दिए.रश्ते मे धन्नो ने सावित्री को धीरे से फुसलाते हुए बोली ..........."कल जब दुकान के लिए घर से निकलना तब मैं तुमसे रश्ते मे ही मिल जाउन्गि और फिर वहीं से तुम मेरे साथ सगुण चाचा के घर चला जाएगा...समझी..?"इतना सुन कर सावित्री ने जबाव मे बोली..........."ठीक है.सावित्री की रज़ामंदी पा कर धन्नो काफ़ी खुश हो गयी. फिर जैसे ही सुनसान रास्ता सुरू हुआ की सावित्री का बदन मस्ताने लगा. धन्नो ने सुनसान रश्ते के किनारे पेशाब करने बैठ गयी. धन्नो की चुदी हुई बुर ठीक सावित्री के सामने ही थी. सावित्री की नज़रें धन्नो की चुदी हुई बुर पर टिक से गयी.धन्नो ने सावित्री से बोली ..........."तू भी मूत ले.."
सावित्री को भी कुच्छ पेशाब महसूस हो रही थी. इतना सुनते ही सावित्री ने अपने सलवार और चड्धि सरका कर धन्नो के सामने ही बैठ गयी और मुतने लगी. धन्नो ने सावित्री के नज़रों मे बेशर्मी की झलक पाते ही खुश हो गयी थी. दोनो पेशाब कर के उठी तो धन्नो ने सावित्री के बुर के मुँह पर कुच्छ गीलापन देख कर धीरे से बोली"तेरी तो पनिया गयी है..अच्छा चल खंडहर के पास."इतना सुनते ही सावित्री ने अपने चड्धि को पहन ली और सलवार का नाडा बाँधते हुए धन्नो के पीछे पीछे चलाने लगी. उसे समझ मे नही आया की खंडहर के पास धन्नो चाची क्या करेगी. उसका कलेजा धक धक कर रहा था. धोड़ी देर मे धन्डहर भी आ गया. धन्नो ने खंडहर के पास खड़ी हो कर चारो ओर नज़र दौड़ाई तो कोई नज़र नही आया.फिर बोली ..........."चल कही कोई दीखाई नही दे रहा है...मेरे पीछे पीछे आ ...तेरी भी पानी निकाल दूं..तू भी बहुत गरम हो गयी है..."सावित्री भी धन्नो के पीछे पीछे चलने लगी और पुराने खंडहर को काफ़ी ध्यान से देखने लगी. धन्नो सावित्री को खंडहर के काफ़ी अंदर वाले हिस्से मे ले गयी जहाँ किसी की नज़र नही पड़ सकती थी. सावित्री को कुच्छ डर भी लग रहा था. तभी धन्नो ने अपने झोले को खंडहर के दीवार के किनारे रखती हुई धीरे से फुसफुसा .........."यहाँ कोई आ नही सकता..यह बहुत पुराना खंडहर है ..इसमे तो लोग आने से भी डरते हैं..."
इतना सुनकर सावित्री ने खंडहर के पुराने और छ्होटे छ्होटे कमरों की गिरी हुई दीवारों को ध्यान से देख रही थी की धन्नो ने सावित्री के सलवार के नाडे को खोल दिया. सावित्री की सलवार नीचे सरक गई. धन्नो ने जैसे ही अपनी हाथ सावित्री की चड्धि के उपर लगाई थी की खंडहर के अंदर से किसी औरत की हँसी सुनाई पड़ी. आवाज़ खंडहर के अंदर ही बगल वाले हिस्से से आ रही थी. सावित्री तुरंत अपने सलवार को उपर करके नाडे को बाँधने लगी तो धन्नो ने लगभग डाँटते हुए धीरे से फुसफुसा ..........."तू दर मत..इस बड़े और पुरानी खंडहर के अंदर यही सब होता है...अयाश किस्म के लोग औरतों को ला कर यहाँ खूब चोदते हैं...अच्च्छा रुक देखती हूँ कौन क्या कर रहा है.."
इतना कह कर धन्नो अपने पैर दबा कर खंडहर के उस हिस्से के तरफ धीरे धीरे चलाने लगी जिस तरफ से किसी औरत के हँसने और सिसकने की आवाज़ आ रही थी. खंडहर के अंदर उँची उँची और पुरानी दीवालो का आड़ लेते हुए धन्नो हल्की हँसी और फुसफुससहट वाली आवाज़ के तरफ बढ़ ही रही थी और सावित्री भी उसके पीछे पीछे अपने पैर ज़मीन पर दबा कर चल रही थी. आख़िर दीवार के अंदर बने दरार से अंदर की ओर देखने की कोशिस की तो धन्नो को बहुत कुच्छ सॉफ सॉफ दीखाई देने लगा. यह हिस्सा खंडहर के काफ़ी अंदर वाला होने के साथ साथ दीवारों से घिरा हुआ था, और इस हिस्से मे जल्दी कोई आता नही था. धन्नो के बगल मे खड़ी सावित्री भी अपनी नज़रें दीवाल के दरार मे लगा दी. धन्नो और सावित्री को जैसे ही अंदर का नज़ारा दीखा की वह चौंक सी गयी. दोनो ने देखा कि गाओं का ही 50-55 साल का अधेड़ बिरजू और उसकी नई नवेली बहू धनिया थी, जो 19-20 साल की लाल साड़ी पहनी हुई थी और मेहदी लगे हाथों मे ढेर सारी चूड़ीयाँ माँग मे सिंदूर माथे पर बिंदिया और ओठों पर लाल लिपीसटिक लगाए थी. एक दम सजी हुई दुल्हन थी. खंडहर के ज़मीन पर एक सूटकेस रखा था और उसके उपर एक प्लास्टिक की डोलची थी जो औरतें अपने साथ कही आते जाते समय रखती हैं. धन्नो समझ गयी कि अधेड़ बिरजू अपनी नई नवेली बहू को उसके मयके से घर ले आ रहा है और दोपहर का मौका देख कर अपनी बहू धनिया को सुन सान खंडहर मे ले आया है. और उस सूटकेस और उस प्लास्टिक की डोलची के बगल मे एक सफेद रंग का नया गमछा बिछि थी जिसपर वह अधेड़ बिरजू अपनी बहू को अपने गोद मे लेकर बैठा था और उसकी बहू एकदम दुल्हन के वेश भूषा मे अपने ससुर से चुचिओ को हंस हंस के मीसवा रही थी. बिरजू अपनी बहू की दोनो चुचिओ को ब्लाउज के उपर से ही कस कस के मीसते हुए चुचि के घुंडीओ को लगभग पीस देता तब उसकी बहू सिसकार उठती और अपने ससुर को भद्दी भद्दी गालियाँ देते हुए और अपने चूड़ियो से सजे हुए हाथ से धीरे से बिरजू के चुचियाँ मीस रहे हाथों पर थप्पड़ लगाते हुए हंस पड़ती थी.
चूड़ियो की खनखनाहट खंडहर के इस हिस्से मे एकदम सॉफ सुनाई पड़ रही थी. सन्नाटा होने के वजह से धन्नो और सावित्री को उन दोनो की फुसफुससहट एक दम सॉफ सुनाई देने लगी थी. बिरजू चुचिओ को दबाते हुए धीरे से मुस्कुराते हुए पुचछा"तुम अपने मायके मे कितने लोगो से फँसी है..?"बिरजू के इस शरारत पर उसकी बहू बड़ा सा मुँह खोलकर हँसने लगी और फिर धीरे से बोली"कोई खराब होने या घिसने वाली चीज़ थोड़ी है जो चिंता करूँ......वो जवानी कैसी जिसमे चार यार ना हो और खूब बदनामी ना हो...."इतना सुन कर बिरजू फिर बोला"मायके मे तो धूम मचा दी होगी जबसे जवान हुई ....""हा ससुर जी मैं और मेरी एक सहेली , हम दोनो के नाम के बारे मे पूरे गाओं मे चर्चा होती थी और हम दोनो जिधर भी घूमने निकल पड़ती थी उधर नौजवान क्या बुढ्ढे भी लाइन लगा देते थे....."बिरजू की बहू ने जबाव दिया और अगले पल अपनी बहू का ब्लाउज खोलते हुए बिरजू फिर बोला..........."उन बेचारों पर तुम सब दया भी करती थी की ऐसे ही जवानी दिखा कर मार डालती थी..."उसकी बहू अपनी चुचिओ को काले रंग की ब्रा मे मीज़वाती हुई फिर कुच्छ हँसते हुए बोली"आप भी कैसी बात करते हैं..... पीछे तो पूरे गाओं के मर्द ही हाथ धो कर पड़े थे...उफ्फ जबसे जवानी चढ़ि तबसे घर से बाहर निकलते ही हर मर्द इशारा करने लगते और मेरी जवानी को माँगने मे देरी नही करते...यही नही जब भी कोई मर्द कही रश्ते या गली मे अकेला पा जाते तो मेरी चुचिओ पर मुसीबत आ जाती और तब तक दबाते जबतक मैं उनके चंगुल से छ्छूट कर भाग नही जाती और थोड़ी भी देर करती तो फिर दरार मे उंगली घुसेड़ने की पूरी कोशिस करते..."फिर आगे मस्त होते हुए बोली"....लेकिन जब मैं फ्रॉक और चड्डी पहनती थी तब दरार मे उंगली आसानी से घुस जाती थी..मानो जवानी नही बल्कि मुसीबत हो..... मर्दों के हाथों से दोनो चुचियाँ इतनी मसली गयी की कुच्छ ही महीनो मे काफ़ी बड़ी हो गयी.."फिर हँसते हुए बोली.." जैसे ही मेरी छाती काफ़ी बड़ी होने लगी मेरी मा एक दिन डाँटते हुए कही की जब गाओं मे दिन रात घूमेगी तो मर्द सब इसे बड़ा कर ही देंगे और थोड़ा कम घुमा कर और अब तेरा शरीर फ्रॉक और चड्डी के लायक नही रह गया है..."
इतना सुन कर बिरजू ने बोला .."...तब तो तू छ्होटी उम्र से ही बड़ी बदमाश थी ....मुझे पता होता तो अपने बेटे की शादी तेरे से बिल्कुल ही नही करता..."बिरजू से ऐसा जबाव पा कर धनिया ने अपने दोनो चुचिओ पर बिरजू के दोनो हाथ को पकड़ कर रोकती हुई मुँह बिचकाती तपाक से बोली ..."अच्च्छा तो चाहो तो तलाक़ दिलवा दो.....मैं तैयार हूँ..."इतना कह कर धनिया अपने ससुर बिरजू के आँखों मे देखते हुए जबाव का इंतजार करने लगी.बिरजू तुरंत हंस पड़ा और बोला ...." अरे मैं तो मज़ाक कर रहा हूँ....इतना तो आजकल हर जगह होता है...शादी तक लड़कियाँ कहाँ बच पाती हैं मर्दों से....अच्च्छा अब आगे बता मुझे बदमाशी की बाते बहुत मस्त लग रही हैं..."फिर धनिया ने बिरजू के दोनो हाथों पर से अपने हाथ हटाते हुए कुच्छ नखडे वाले अंदाज़ मे बोली..."फिर ऐसी बात मैं सुनी तो अपने मयके भाग जाउन्गि और फिर कभी नही आउन्गी...ठीक...मेरे गुस्से के आगे किसी की नही चलती...."मुस्कुराता हुया बिरजू गिड़गिदाते हुए बोला"मैं कुच्छ नही कहूँगा....चल आगे बता...फिर क्या हुया..."फिर धनिया आगे बोलने लगी ......"और कुच्छ दिन बाद मा ने मेरे लिए नया कपड़ा खरीद कर गाओं के दर्ज़ी के पास सलवार समीज़ की नाप देने के लिए भेजी और जब मैं उस दर्ज़ी को नाप देने गयी तो उसने मुझे अकेले पा कर उसने मुझे दुकान के बगल वाले कमरे मे ले जाकर मेरी फ्रॉक के उपर से बढ़ी बढ़ी चुचिओ को खूब मीसा और फिर मेरी चड्धि के बगल से उंगली कर दी...और फिर चड्धि निकाल कर मुझे फर्श पर लेटा दिया और उस हरामी ने मेरी सील एक ही झटके मे तोड़ दी ..."

बिरजू ये सब सुनकर मस्त होता जा रहा था और अब वह चुचिओ को ब्रा के बाहर निकाल कर मीस्ते हुए फिर पुचछा"तो दर्ज़ी पर तुम्हे दया आ गयी और उस बेचारे की नसीब खूल गयी.."इतना सुन कर उसकी बहू ने फिर अपना मूह बड़ा सा खोली और कुच्छ मस्त होती अंदाज मे धीरे धीरे हँसने लगी और चुचिओ की मीसावट के कारण उसकी आँखे अब ढांप रही थी, फिर बोली ...."लेकिन उस कमीने ने मुझ पर थोड़ी सी रहम नही खाई...जिस दरार मे गाओं का कोई मर्द चाह कर भी उंगली नही घुसा पाया था उसी दरार मे उस दर्ज़ी ने अपनी मोटी उंगली पर थूक लगाकर इतनी ज़ोर से दरार मे चांपा की मैं चिल्ला उठी थी लेकिन वो कमीना दर्ज़ी कहा मानने वाला था ...उंगली तब तक चांपता रहा जबतक दरार मे पूरी उंगली घूस नही गयी. फिर मेरी चड्धि और फ्रॉक निकाल कर मुझे फर्श पर लेटा दिया और फिर अपने मोटे लंड मे थूक लगा कर मेरी सील तोड़ दी....बहुत दर्द दिया उस कमीने ने...लेकिन बाद मे बहुत मज़ा भी आया"धन्नो और सावित्री खंडहर की दीवार की पतली दरार मे अपनी आँखें लगाई हुई उन दोनो की बातें ध्यान से सुन रही थी. तभी बात आगे बढ़ाते हुए बिरजू की बहू धनिया बोली ....."सच कहती हूँ ससुर जी वो दर्ज़ी बहुत ही बदमाश था...मेरी सलवार और समीज़ को बहुत दीनो तक सील कर नही दिया और जब भी मेरी मा मुझे उसके दुकान पर भेजती तब वो मुझे दुकान के पास उस कोठरी मे फुसला कर धीरे से ले जाता और चोद डालता और कभी दोपहर को अपने कपड़े के बारे मे जाती तब अकेले मे दुकान मे ही लिटा कर चोद्ता और जब मैं अपने सीलि हुई कपड़े मांगती तब कहता था की तेरी उमर अभी फ्रॉक और चड्धि की है तो तुम सलवार समीज़ के लिए क्यो परेशान है, तब मैं उस दर्ज़ी से कहती की मेरी मा ने कहा है की तुम्हारी उम्र अब फ्रॉक और चड्धि पहनने की नही है इसीलिए वह सलवार समीज़ सिल्वा रही है.
इतना सुनकर उस दर्ज़ी ने कहा तुम अपनी मा को कल ले आना. ...जब दूसरे दिन मैं अपनी मा को दर्ज़ी के दुकान पर ले गयी तब दर्ज़ी ने मा को समझाया और कहा की तेरी बेटी की उम्र ही क्या है जो सलवार समीज़ के लिए परेशान हो रही है. तब मा उससे बोली की अब दुपट्टा लगाने की ज़रूरत पड़ रही है इस लिए सलवार समीज़ बनवा रही है. तब दर्ज़ी ने कहा तुम चिंता मत करो मैं सलवार समीज़ के कपड़े को दूसरे को बना दूँगा और उतने ही पैसे के कपड़े मे मैं तेरी बेटी को एक के बजाय दो फ्रॉक और दो चड्धि बना दूँगा, और इस तरह से बना दूँगा की दुपट्टे की कोई ज़रूरत नही पड़ेगी. ...ये बात मेरी लालची मा को फ़ायदे वाली लगी और मा ने तुरंत हामी भर दी. कुच्छ दीनो बाद उसने फ्रॉक तो सील दी लेकिन चड्धि नही बनाई. फ्रॉक भी इतनी टाइट और सिने के उपर कोई डिजाइन नही निकाली जिससे उस फ्रॉक मे मेरी चुचियाँ एकदम सॉफ झलकती थी. नीचे भी फ्रॉक काफ़ी छ्होटा बना दिया जिससे मेरी जंघें पूरी तरह दिखती थी. मा फ्रॉक को देखकर काफ़ी गुस्सा हुई और दूसरे दिन मेरे को साथ ले कर दर्ज़ी के पास गयी और उससे बोली की उसने फ्रॉक मे सीने के उपर डिजाइन क्यो नही बनाई और नीचे की ओर छ्होटा क्यों कर दिया है तब दर्ज़ी ने जबाव दिया की एक सलवार और समीज़ के कपड़े के जगह दो दो फ्रॉक और चड्धि बनाने मे तो कपड़ा कम पड़ गया. फिर मा ने गुस्से से बोली चड्धि भी नही दिए तो बेटी क्या पहनेगी तब दर्ज़ी ने तपाक से पुचछा तुम चड्धि पहनती हो बोलो तब मा ने कोई जबाव नही दी धीरे से हंस पड़ी, फिर दर्ज़ी ने कहा,' मैं जानता हूँ की औरतें खूद तो चड्धि नही पहनती और अपनी बेटी को चड्धि पहनाने के लिए परेशान रहती हैं.
दोपहर के समय उस दुकान पर और कोई नही था फिर उस दर्ज़ी ने मा से कहा की हो सकता है उस कोठरी मे कुच्छ बने हुए कपड़े हैं जिसमे चड्धि मिल सकती है फिर उस दर्ज़ी ने मुझे कहा तुम इस दुकान पर ही रहना और हम दोनो चड्धि खोज कर आ रहे हैं फिर उस दर्ज़ी के पीछे पीछे मेरी मा दुकान के पास वाली उस कोठारी मे चली गयी. दुकान पर अकेले मैं थी और दोपहर का समय होने से आसपास कोई दीखाई नही पड़ रहा था. मैं समझ गयी की उस कोठारी मे वह दर्ज़ी मेरी मा के साथ क्या कर रहा होगा. करीब आधा घंटा बाद दोनो उस कोठारी से वापस आए लेकिन दर्ज़ी और मा दोनो पसीने से भीगे हुए थे. मा के बाल और कपड़े भी कुच्छ अस्त व्यस्त लग रहे थे. फिर मा ने मुझसे कहा तेरी नाप की तो चड्धि नही मिली और यदि बाद मे मिलती है तो ये दे देंगे तब तक तुम फ्रॉक और पुरानी वाली चड्धि ही पहनो. "
बिरजू की मस्ती बढ़ रही थी और चुचिओ को खूब मसलने लगा और धनिया भी अपनी ढांप रही आँखों पर काबू पाते हुए आगे बोली'..."फिर मा मुझे लेकर घर की ओर चल दी और रश्ते मे सन्नाटा पा कर पेशाब करने बैठ गयी तो मैं देखी की उसकी बुर के मुँह से कुच्छ लसलसा चीज़ निकल रहा था जो मा भी सिर को झुकाए देख रही थी ....ससुर जी मैं भी तब तक कई बार दर्ज़ी से चुद चुकी थी तो भला समझते देर नही लगी की मा की बुर् से वह लसलसा चीज़ क्या है. फिर मा उठी और अपनी पेटीकोत से बुर के मुँह को ठीक से पोन्छि और फिर अपनी कपड़े ठीक की तब हम दोनो घर गये."फिर बिरजू ने अपनी बहू से कहा"गाओं मे तो भूकंप आ गया होगा जब तुम चड्धि और फ्रॉक मे निकलती होगी.."
तब उसकी बहू ने जबाव देते बोली "चड्धि की ही तो परेशानी थी ससुर जी...बस मेरे पास एक ही पुरानी चड्धि थी, और जैसे ही गाओं के मर्दों के हाथ दरार तक पहुँचना सुरू हुआ की मर्दों के दरार टटोलने के आदत के कारण चड्धि को बार बार इधेर उधेर खींचने, खिसकाने और उंगली अंदर बाहर करने और कभी कभी तो चड्धि के बगल से ही लंड घुसाने की कोशिस करने से चड्धि के पुराने धागे मर्दों की इस ताक़त और ज़ोर जबर्दाश्ती झेल नही पाई और एक दिन एक मर्द ने शाम के हल्के अंधेरे मे गाओं की एक गली मे मुझे पकड़कर फ्रॉक के उपर से मेरी चुचिओ को खूब मीसा और जब उंगली दरार मे डाली तब तक बुर पनिया गयी थी और फिर जोश मे आकर उसने खड़े खड़े ही चड्धि एक तरफ करके अपना मोटा तगड़ा लंड घुसाने लगा और उसकी कोशिस मेरे लिए महँगी पड़ गयी, नतीज़ा हुआ की उसने खड़े खड़े ही मेरी बुर मे मोटे लंड कई धक्को के साथ घुसा तो दिया, लेकिन मैं अपनी चड्धि को फटने से बचा नही पाई"फिर बिरजू ने धनिया के पेटिकोट को उपर की ओर खिसका कर झांतों से भरी बुर को सहलाते हुए पुचछा "तो फिर क्या हुआ..."फिर धनिया ने अपने हाथ से बिरजू के बर के पास वाले हाथ को अपनी गीली बुर मे घुसाने का इशारा करते बोली"और उस हरामी ने मुझसे यह कह कर मेरी फटी चड्धि ले ली की उसे सिल्वा कर दे देगा लेकिन बाद मे उसने पता नही कितनी बार मुझे चोदा लेकिन चड्धि को वापस नही दिया.
और फटी हुई चड्धि वह गाओं के दूसरे मर्दों को दे दिया, और जब भी भी सब मुझे देखते मेरी चड्धि मुझे ही दिखा कर खूब सीटी मारकर चिड़ाते और चोदने के लिए बुलाते.. सच कहती हूँ मेरी वो चड्धि मेरे गाओं के मर्दों के बीच चर्चा का विषय बन गयी. गाओं का हर मर्द मेरी उस फटी चड्धि को पाने की कोशिस करते और मेरी वो फटी हुई चड्धि जिसके पास चली जाती वो मुझे दिखाता और जब मैं उसे वापस मांगती तब मुझे देने का वादा तो करता लेकिन मुझे कुच्छ दीनो तक बुला बुला कर जी भर चोद लेने के बाद मुझे चड्धि देने के बजाय गाओं के दूसरे मर्द को दे देता और फिर दूसरा मर्द मुझे फिर मेरी फटी हुई चड्धि देने के वादे करके बुलाता और मैं भी अपनी फटी चड्धि के लालच मे जब जाती तब चुदे बगैर वापस नही आती. और यहाँ तक की मेरी उस फटी पुरानी चड्धि के लेन देन के लिए मर्दों के बीच कई बार लड़ाई झगड़े और मार पीट तक हो जाती. सच कहती हूँ ससुर जी मैने उस फटी पुरानी चड्धि के चक्कर मे गाओं के आधे मर्दों से चुद गयी लेकिन अंत मे अभी तक वह चड्धि मुझे मिल नही पाई. बाद मे वह चड्धि गाओं के एक अधेड़ के पास पहुँच गयी जिसकी उम्र आप के बराबर है और उसने कई बार मुझे अपने पास बुलाया तो मुझे लगा की हो सकता है चड्धि वापस कर दे लेकिन वो भी उन्ही मर्दों की तरह निकला बस अंतर यह था की उसने इतनी देर तक चोदा कि मैं कई बार झाड़ गयी तब जा कर वो झाड़ा.
लेकिन वो अधेड़ उन सभी मर्दों से हरामी निकला क्योंकि बाद मे मेरी उस फटी चड्धि को मेरी मा को दिखाया तब मा ने मुझे खूब डांटा और कहा की जब तेरी चड्धि गाओं के मर्दों के पास ही रहती है तो तुम चड्धि मत पहना कर वैसे भी जवान हो रही है और तेरी जवानी पर पहरा देना मेरे बस की बात नही है और जवानी किसी के संभलने वाली थोड़ी होती है जो मेरे हाथ पाँव मारने से बच जाय, मैं कितना भी कोशिस कर लूँ लेकिन कोई फयडा तो होने वाला है नही क्योंकि जब तेरी भट्टी गरम होने लगेगी तब तू मेरी एक ना सुनेगी और भत्ति की गर्मी लेकर तू खूद गाओं की गलिओ मे घूमने लगेगी और जब तक की गाओं के मर्द अपना मूसल डाल कर तेरी भट्टी की आग ठंढा ना कर दे, मेरे मना करने से तू थोड़ी ही मानेगी, मा ने मुझसे पुचछा और कहा आख़िर वो चड्धि मर्दों के बीच मे कैसे गयी सच तो ये है की अब तेरी भी भट्टी गरमाने लगी है, अच्च्छा इसी मे है की तू भले ही घूम घूम के गंद मरवा लेकिन चड्धि वाली बदनामी मेरे सामने ना आए. मा के इस डाँट के बाद से से मैने चड्धि पहनना ही छोड़ दिया" ऐसी बात सुनकर बिरजू ने एक हाथ से अपनी बहू की चुचियाँ तेज़ी से मीसते हुए और दूसरे हाथ से गीली बुर मे उंगली पेलते हुए पुचछा"फिर उस फटी हुई चड्धि का क्या हुआ...?"तब उसकी बहू ने जबाव मे बोली"होगा क्या, फिर उस अधेड़ आदमी ने मेरी मा को चड्धि देने के लिए दोपहर मे बुलाया, मा भी जब दोपहर को सज सवर कर उस बदमाश अधेड़ के पास चड्धि लेने अकेले गयी तो उस हरामी ने चड्धि वापस नही किया और मा को चोद्कर वापस भेज दिया. उस कमीने ने इतनी चुदाइ कर दी की मेरी मा उसके लंड की दीवानी हो गयी और हप्ते मे चार बार चुद ही जाती है. तभी से मैं समझ गयी की मर्द हमेशा धोखेबाज़ होते हैं."बिरजू की बहू के मुँह से इस तरह की बात सुनकर खंडहर के पुरानी दीवार के दरार से झाँक और सुन रही धन्नो ने बगल मे खड़ी सावित्री के कान मे धीरे से फुसफुसा "दारुबाज़ बिरजू की बीवी को मरे कई साल तो हो गये लेकिन ऐसी बहू पा गया है की इस रंडुए का भी काम चल जा रहा है...गाओं की औरतें सच ही कहती हैं की शराबी बिरजू की बहू जबसे आई है तबसे ये रंडुआ भी जवान हो गया है...."

सावित्री ने कोई जबाव नही दिया और अपनी आँखे उस दरार मे लगाए रही. फिर बिरजू ने अपनी बहू के पेटिकॉट को कमर तक हटा कर काली झांतों से भरी बुर मे उंगली काफ़ी अंदर तक डाल कर फिर पुचछा
"तेरे गाओं के मर्द तो खूब बहार लूटे होंगे..."
इस पर बिरजू की बहू ने झूठा गुस्सा दिखाती बोली
" हा ससुर जी ...उस फटी हुई चड्धि को पाने के चक्कर मे मेरी बुर ही चुद्वाते चुद्वाते फट गयी और वह चड्धि भी नही मिल सकी.."
इतना सुनकर बिरजू अपनी बहू के बुर मे उंगली तेज़ी से करने लगा. बुर चिपचिपा गयी थी. फिर बिरजू ने कहा ....
"घोड़ी बन जा.."
फिर तुरंत उसकी बहू उस बिछे हुए गमछे पर घोड़ी बन गयी और अपनी सारी और पेटिकोट को कमर और पीठ पर रख ली जिससे उसके बुर और गांद एकदम नंगे हो गये. बिरजू तुरंत अपनी धोती ढीली कर बगल से लंड बाहर निकाला. लंड काले रंग का और मोटा था. फिर उसने बहू के गीली बुर पर पीछे की ओर से लगा कर कस के धक्का मारा. लंड गपाक से अंदर घुस गया. फिर अपनी बहू की कमर पकड़ कर आगे पीछे चोदने लेगा. खंडहर मे चुदाइ और बहू के कहरने की आवाज़ सॉफ सुनाई दे रही थी. बिरजू के पसीने निकलने लगे. लेकिन उसने चुदाई मे कमी नही लाई और तेज़ी से चोद्ते हुए झड़ने लगा. तभी उसकी बहू भी अपने चूतड़ और कमर को हिला हिला कर झदाने लगी.
लंड के बाहर आते ही बिरजू की बहू खड़ी हुई और नीचे बीछे गमछे को उठा कर बुर को ठीक से पोन्छि फिर बगल मे खड़े अपने ससुर के लंड को भी उसी गमछे से पोन्छ्ते हुए बोली
"मेरी पेटिकोट एकदम नयी और सॉफ है..इसी लिए इस गमछे से पोंच्छ रही हूँ नही तो पेटिकोट गंदी हो जाएगी...इस गमछे को घर चल कर धो दूँगी..."
इतना कह कर उस गमछे को धनिया ने हाँफ रहे बिरजू को दे दी. फिर बिरजू ने कहा
" धोने की कोई ज़रूरत नही है...घर जाते जाते सुख जाएगी.."
बिरजू हाँफ रहा था और उसको काफ़ी पसीना हो गया था जिसे देख कर उसकी बहू ने अपनी साड़ी से उसके चेहरे को पोन्छ्ने लगी और बोली.....
"इसी लिए तो कहती हूँ की शराब ज़्यादा मत पिया करो ये शरीर को कमजोर कर देता है..देखो कैसे सांस तेज़ी से चल रही है..जवानी का मज़ा लूटना है तो माँस मुर्गा खूब खाया करो मेरे राजा"
फिर धनिया ने अपनी चुचिओ को ब्रा मे कर ली और ब्लाज ठीक करके जैसे ही बिरजू के तरफ देखी उसने अस्त व्यस्त कपड़े मे खड़ी धनिया को अपने बाँहों मे भर कर चूम लिया और बोला
"क्या करूँ जबसे सुंरी की मा मरी तबसे दारू की लत और तेज हो गयी..माँस मुर्गे के लिए पैसा ही नही बचता, नही तो किसका मन नही करता माँस मुर्गा खाने का, ...और माँस के दुकान वाले असलम के पैसे भी बाकी है ...साला जब देखता है माँगता है और अब तो वह उधार भी नही देगा"
बिरजू की बहू धनिया बोली ...
"आज तो मेरा भी मन माँस मुर्गा खाने का कर रहा है.."
इतना कह कर धनिया ने बिरजू से अलग हो गयी और आगे बोली
"अपने किसी दोस्त से कुच्छ पैसे उधार क्यों नही ले लेते..?"
इतना सुनकर बिरजू इधेर उधेर देखते हुए बोला
"कौन साला उधार देगा... जबसे तू मेरे घर बहू बन कर आई है तबसे दोस्त साले मुझे बहुत गाली देते हैं ..."
इस पर उसकी बहू ने हैरत होते हुए पूछी "क्यो गाली देते हैं..?"
फिर बिरजू ने कुच्छ गुस्साते हुए बोला
"साले सब बेतिचोद हैं...मेरे से बहुत मज़ाक करते हुए कहते हैं की ..तू अपनी बहू को अकेले ही पेलेगा या हम सब को भी मौका देगा..."
बिरजू ने आगे बोला
"साले सब एक नंबर के चोदु हैं..खूद तो बुड्ढे हो गये लेकिन नयी बुर ही खोजते रहते हैं..."
इतना सुन कर बिरजू की बहू हंस पड़ी फिर बोली
"ठीक तो है...भेज दीजिए सालों को...जब मेरी बुर की फाँक देखेंगे तब उनका लंड तुरंत उल्टी कर देगा..हे हे ए हे .."
और धनिया हँसने लगी
इतना सुनते ही बिरजू ने धनिया की ओर देखते हुए धीरे से कहा "चाहे जो कुच्छ हो बहू वो सब मेरे बहुत ख़ास दोस्त हैं और मैं अक्सर उनके ही पैसों का दारू पिता हूँ..तो भला इतना मज़ाक कर ही दिए तो क्या हो गया...आख़िर मुझे अपने साथ दारू पिलाने से कभी मना नही करते..सही मे वो सब सच्चे दोस्त हैं मेरे..." इतना सुनकर बिरजू की बहू ने कहा " दोस्त ही तो मज़ाक करते हैं...मैं इन बातों का भला क्यों बुरा मानु.." और फिर धनिया बिरजूकी ओर नंगी गांद करके बैठते मुतने लगी , फिर बिरजू ने धनिया के नंगे और चौड़े चूतदों पर नज़र रखते हुए धीरे से बोला "शंभू ने मुझसे यहाँ तक कहा की वो तुम्हे एक नई सारी खरीद कर देगा.." 

इतना सुनकर बिरजू की बहू बैठ कर पेशाब करते हुए बोली
"शंभू आपको उल्लू बनाता है..जब घर मे कोई नही रहता है तो वो आपको खोजते हुए मेरी कोठारी मे ही घूस जाता है और फिर बाहर निकलने का नाम नही लेता वो कमीना ..लंड लहराते हुए पीछे पड़ जाता है..."
इतना कहते हुए धनिया पेशाब करके उठी और गुस्से से बोली
"सच कहती हूँ ससुर जी जब भी मेरी कोठरी मे घुसा बिना चोदे बाहर नही गया..."
इतना सुन कर बिरजू कुच्छ चौंक सा गया और फिर बोला
"तभी वो हरामी मुझे दूर बगीचे मे ले जा कर रोज़ दोपहर को खूब दारू पिलाता है.."
इतनी बात कान मे जाते ही धनिया गुस्से मे मुँह बनाती हुई तपाक से बोल पड़ी
"हां और दारू पीने के बाद तो नीद मे सोना आपकी पुरानी आदत है ..फिर खर्राटे सुरू होने के बाद आपको क्या पता की घर मे अकेली बहू को शंभू और गाओं मे घूम रही बेटी को पूरा गाओं दोपहर मे चोदने मे लग जाता है" फिर गुस्से मे धनिया ने अपनी उंगलिओ से बुर की तरह छेद बना कर दूसरी उंगली से लंड बनाते हुए छेद मे तेज़ी से अंदर बाहर कर बिरजू को दीखाते हुए से बोली
"मेरी और सुंरी के बुर मे किसका लंड पूरे दिन दोपहर फँसा रहता है आपको कैसे मालूम चलेगा..जब आपकी नीद खुलती है तब तक तो आपकी बहू और बेटी के बुर को चोद चोद कर इतना भर देते हैं की लंड का पानी बुर के मुँह से बाहर आने लगता है..."
धनिया ने आँख नचाते हुए कही और आगे अपने कपड़े को सही करते बोली
"लेकिन मैं क्या करू आप तो दारू और शराब मे ही डूबे रहते हो..और सुंरी घर पर रह कर ही क्या करती, वो शंभू बहुत पहले से ही सुंरी को भी चोद्ता आ रहा है.."
फिर धनिया अपने सारी को कमर मे ठीक से खोन्स्ते हुए बोली..
"एक दिन तो वो घर पर ही मेरे पास थी की शंभू आया और सुंरी को ही पकड़ लिया.... फिर भी सुंरी हंस रही थी और शंभू के पास से जैसे ही च्छुटी की हंसते हुए बालों को लहराते हुए मुझे अकेली शंभू के पास छोड़ कर गाओं घूमने के लिए घर से भाग गयी उसके बाद शंभू ने मुझे अकेले पा कर खूब चोदा और बताया की उससे सुंरी बहुत पहले से ही फँसी है ." धनिया ने गुस्से से बोली तो बिरजू का चेहरा कुच्छ परेशान सा हो गया जिसे देखते हुए धनिया आगे बात जारी रखते हुए बोली
" शंभू ने सुनारी के बारे मे बहुत कुच्छ बताया और कहा की सुंरी चॅट पकोडे खाने की बहुत शौकीन है और एक बार पैसे नही होने पर चॅट पकोडे उधार ही माँगने लगी तब दुकान वाले ने सुंरी को दुकान के पीछे बने झोपड़ी मे ले जा कर सील तोड़ डाली फिर चॅट पकोडे उधार दिए ........और उसी चॅट पकोडे वाले ने शंभू से बताया की बिरजू की बेटी सुंरी की सील तोड़ डाली है और इसी खुशी मे उस दुकान वाले ने शंभू और अपने दोस्तों को शराब भी पिलाई. और यह बात गाओं के मर्दों मे जैसे ही फैली की चॅट पकोडे वाले ने सुनारी की सील तोड़ दी है तबसे गाओं के मर्द उस दुकान वाले की पीठ थपथपाते फिरते थे और सुनारी के पीछे भी पड़ गये. "
इतना सुनकर बिरजू अपना सिर कुच्छ नीचे कर लिया और खंडहर की ज़मीन को देखने लगा. उसके चेहरे पर एक अजीब सा अफ़सोस दीख रहा था. अपने कपड़ों को ठीक करती धनिया उसके चेहरे की ओर देखी और बोली
"फिर शंभू भी तभी से सुनारी के पीछे करीब एक हफ्ते तक पड़ा रहा और सुंरी के चक्कर मे दुकान वाले को दारू भी पिलाया. आख़िर एक दिन चॅट पकोडे खाने के लालच मे पहुँची सुनारी को दुकान वाले ने पीछे बने झोपड़ी मे ले गया और वहाँ पहले से ही बैठा शंभू को देखते ही सुंरी भागना लगी लेकिन दोनो ने तुरंत सुंरी को झोपड़ी के अंदर खींच लिया और सुंरी रोने लगी तब दुकान वाले ने सुंरी को कस के पकड़े रहे और शंभू ने जबर्दाश्ती चोद डाला फिर दुकान वाले ने भी चोदा और फिर दोनो से चुदने के बाद सुंरी उस झोपड़ी मे बहुत रोई.....और उस दिन चॅट पकोडे भी नही खाई ...और सीधे घर चली आई"
धन्नो की इस बात को सुनकर बिरजू के मुँह से अचानक ही निकल पड़ा
"कमीना साला शंभू...मादर्चोद.."
धनिया ने आगे कहा "शंभू ने आगे बताया की बस कुच्छ ही दीनो बाद सुंरी फिर पहुँच गयी उस दुकान पर, और उस दुकान वाले ने झोपड़ी मे ले जा कर फिर खूब चोदा और पुचछा की उस्दिन क्यों इतना रो रही थी, तब सुंरी ने बताया की शंभू उसके बाप के उम्र के हैं और बाप के दोस्त भी हैं जिन्हे वह शम्बभू चाचा कहती है, और उसे नही पता था की शंभू चाचा उसके साथ इस तरह का गंदा काम करने लगेंगे, और वो उनके साथ कोई गंदा काम नही करना चाहती थी ...और लाज़ भी लग रही थी...क्योंकि उसे यह नही पता था की इस उम्र के लोग भी इतना गंदा काम करते हैं..इसी वजह से रोने लगी थी., फिर उस दुकान वाले ने पुचछा की जब शंभू तुम्हे जबर्दाश्ती चोद रहे थे तो कैसा लग रहा था तब सुंरी ने उसे बताया की वह शंभू से चुदवाना नही चाहती थी लेकिन जब चोद रहे थे तब उसे बहुत मज़ा मिल रहा था.., तब उस दुकान वाले ने सुनारी को समझाया की तुम्हे कोई भी मर्द चोदेगा तो मज़ा आएगा चाहे वह किसी उम्र का क्यों ना हो..., फिर सुंरी ने पुचछा की बाप के उम्र के लोग भी इतना गंदा काम करने हैं क्या? तब दुकान वाले ने समझाया की अधेड़ और बुड्ढे तो गंदा काम बहुत ज़्यादे ही करते हैं और तेरी उम्र की लड़कियों को ज़्यादा खोजते हैं...जिसे सुनकर सुंरी चौंक सी गयी लेकिन सच्चाई को मान ली, दूसरे दिन सुंरी जैसे ही दुकान पर पहुँची, शंभू भी पहुँच गया, लेकिन शंभू को देखते ही सुंरी झोपड़ी के तरफ जाने से इनकार करती रही. फिर दुकान वाले ने शंभू को इशारे से कहा की थोड़ी देर के लिए इधेर उधेर चला जाय , और जैसे ही शंभू कहीं गया की सुनारी दुकान वाले ने झोपड़ी मे ले कर चला गया..जिसे देखकर कहीं च्छूपा हुआ शम्बभू भी झोपड़ी मे आ गया..फिर दोनो ने सुंरी को जी भर के चोदा उसी झोपड़ी मे, पहले तो थोड़ा बहुत आना कानी की लेकिन बाद मे खूब रज़ामंदी से चुड़वाई"
फिर धनिया आगे बोलती हुई कही
"सुंरी ने उस दिन खूब चॅट पकोडे खाए और उधार के सारे पैसे शंभू ने दुकान वाले को दे दिए और तबसे शंभू उसकी अक्सर चुदाई करता था और चॅट पकोडे के पैसे भी देता है, और जब भी सुंरी चॅट पकोडे खाने जाती है तब दुकान वाला बिना चोदे चॅट पकोडे नही देता, सच कह रही हूँ वो शंभू ठीक ही कहता है की सुंरी अब चुदैल हो गयी है."
अभी भी धनिया को संतोष नही हुआ फिर सुंरी के बारे मे आगे बोलने लगी ....
"शंभू क्या कहेगा आप खूद कभी ध्यान से देखो जब सुंरी पूरा गाओं घूम कर घर आती है ....हरजाई ..सीधे चल नही पाती.... , और दोनो पैर फैलाए हुए चलती है.. इतनी चुदाई सब करते हैं की बुर के साथ साथ पैर भी फैल जाता है....."
बात जारी रखते हुए बोली...
"मैं तो रोज देखती हू उस हरजाई को ....घर मे घुसते ही नाली के पास मूतने बैठती है और मुतेगि क्या हरजाई बुर मे तो कई मर्दों का गाढ़ा पानी भरा होता है........., और उसके बैठते ही मर्दों की मेहनत सामने दीखने लगती है...जहाँ उसकी बुर रगड़ से लाल होती है...., वहीं लाल बुर के चौड़े मुँह से जब एक एक पाव सफेद मलाई गिरने लगता है तो मेरी आखें फट जाती हैं..मैं तो ऐसा देख कर बोल देती हूँ की लगता है पूरे गाओं से चुदवा कर आ रही है लेकिन उस रंडी पर कोई असर नही पड़ता"
अपनी बेटी के बारे मे इतना सुनकर बिरजू चिड़चिड़ा मुँह बनाते हुए बोला "छोड़ो ये सब बातें...मेरी तकदीर ही बहुत खराब है...क्या करूँ..."
धनिया झल्ला कर बोली ...
"..जब सारा गाओं मिल कर चोद डाला , तब मिर्ची तो लगेगी ही सुनकर....."
इतना सुनकर बिरजू ने अपनी नज़र दूसरी ओर फेरते हुए बोला...
"सुंरी को घर से बाहर मत जाने दिया करो..."
धनिया ने अपने ससुर के इस बात का जबाव देते हुए कही...
"मेरे कहने पर क्या मानेगी ...जैसे आपके गले मे शराब गये बिना शांति नही मिलती...., वैसे ही उसे भी अपनी बुर मे लंड डलवाए बिना चैन थोड़ी मिलने वाला है"
आगे गुस्से मे बोली
फिर धनिया ने अपनी सारी के पल्लू को अपनी छाती पर ठीक करते हुए बोली...
"अब उसकी शादी के भी बारे मे सोचो...यही सही समय है ..... अब गाओं के मर्दों ने उसे रगड़ रगड़ कर बड़ा कर दिया है , और कोई भी लड़का उसकी कसी हुई जवानी को देखते ही शादी के लिए तैयार हो जाएगा....सच पुछिये तो आज कल के लड़के भी गरम लड़कियाँ ही खोजते हैं...जो सुंरी को गाओं वाले बना दिए हैं...., यदि लड़का तैयार हो गया तो कम पैसे मे शादी भी हो जाएगी,"
चुपचाप धनिया की बातें सुन रहे बिरजू को समझाते हुए आगे बोली
" सच मे सुंरी की चुचियाँ बहुत बड़ी बड़ी हो गयी हैं..लड़का तो देखते ही मर जाएगा .. "
फिर धनिया अपनी चुदाई के वजह से कुच्छ उलझ चुके बालों को ठीक करते हुए बोली...
"शंभू बहुत झूठ बोलता है आपसे..बहुत चोदु है साला दारू पीला कर बहू और बेटी दोनो का मज़ा लूट रहा है....अब उससे कहिए की कहीं से लड़का ढूँढ कर सुंरी की शादी करवा दे..."
फिर बिरजू कुच्छ सोच कर धनिया से बोला ..
" साला मेरी बात नही सुनेगा...तुम ही उससे कहो..."
"ठीक है.." धनिया राज़ी होते बोली
फिर बिरजू धनिया की ओर देखते बोला...
"इसीलिए मैं सोचता हूँ की शंभू को नाराज़ करना ठीक नही है.....जब साला बदमाशी किया है तो शादी भी कहीं करवा दे....उसके जानने वाले बहुत हैं...वह सुंरी के लिए लड़का ज़रूर ढूँढ लेगा....तुम भी कभी उसके उपर गुस्सा मत करना..."
फिर बहू हंस दी और बोली
"मैं कहा उसे रोक रही हूँ जबसे मेरा पति कमाने गया है तबसे तो शंभू मेरी आग शांत करता रहा है,,... और इस चाम की थैली मे ना जाने कितने लोग अपनी ताक़त लगा चुके है और इस शंभू के ज़ोर लगाने से क्या फरक पड़ता है.. वैसे भी ये कोई घिसने वाली चीज़ थोड़ी है.."
हंसते हुए अपने ससुर को कुच्छ चिढ़ाने के अंदाज़ मे बोली
" हर दूसरे दिन नई हो जाती है" इतना कह कर धनिया हँसने लगी.
फिर बिरजू की बहू ने सीसे मे देखकर अपने माथे की बिंदिया ठीक की और लिपीसटिक लगाते हुए आगे बोली
"आज घर चल कर मैं माँस मुर्गा बनाउन्गि .."
डोलची मे सीसा और कंघी रख कर डोलची को उठा ली और फिर बिरजू भी सूटकेस उठा लिया और दोनो खंडहर से बाहर निकलने लगे तब धनिया ने अपने सारी के पल्लू को सिर के उपर रख कर घूघाट निकाल ली और एक दुल्हन की तरह धीरे धीरे अपने ससुर के पीछे पीछे चलने लगी.
उन दोनो के जाने के बाद धन्नो एक गहरी साँस ली और सावित्री से बोली
"तुम तो नही जानती हो बिरजू की औरत बड़ी छिनार थी और बिरजू के सारे दोस्त उसे रात रात भर खूब चोदते थे...और एक दिन रात मे ही कही से चुद के आ रही थी की साँप ने डांस लिया और मर गयी. .अब तो इसकी बहू भी उसी रश्ते पर चल रही है .."
धन्नो की इस बात की हामी भरते हुए सावित्री धीरे से बोली
"..बहुत हरामी है..."
फिर धन्नो आगे बोली
"और क्या..,..देखी इसकी शादी के दो ही साल नही हुए की अपने सारे रंग ढंग दिखाने लगी"
लेकिन सावित्री को खूद की बुर की आग मिटाने की चिंता थी. इस वजह से सावित्री अपने हाथ से अपनी बुर को सलवार के उपर से ही मसल रही थी जिसे धन्नो ने देखा तो बोली..
"चल जल्दी से सलवार खोल तेरी बुर का पानी निकालु.."
इतना सुनते ही सावित्री ने तुरंत अपनी सलवार के नाडे को खोल कर चड्धि को नीचे सरका दी. फिर धन्नो ने सावित्री के इस उतावलेपन से समझ गयी की बुर मे कीड़ा तेज़ी से रेंग रहा है. धन्नो ने सावित्री को खंडहर की दीवार से पीठ सटा कर खड़ी कर दी और अपने हाथ से उसकी बुर को उपर से सहलाया तो सावित्री की आँखें धनपने लगीं और पीठ को दीवार पर एकदम टीका दी और दोनो पैरों के बीच फैलाव होने लगा. ऐसा देखकर दूसरे पल ही खड़ी सावित्री के बुर मे धन्नो ने अपनी दो उंगलिओ को एक साथ कस कर पेला तो सावित्री चिहुनक गयी अपने दोनो पैरों को आपस मे सटाने की कोशिस की लेकिन चालाक धन्नो ने मौका नही दिया और दोनो उंगलिओ को गीली हो चुकी बुर मे अंदर तक पेल कर चोदने लगी. सावित्री फिर टाँगों के बीच मे फैलाव लाते हुए अपनी सिर को खंडहर की दीवार मे सटाते हुए उपर की ओर कर ली और आँखे बंद थी लेकिन मुँह खोलकर मानो मुँह से ही साँस ले रही थी.
सावित्री के इस चुदासी हालत देख कर धन्नो को बहुत मज़ा आने लगा तब धन्नो ने अपनी दोनो उंगलिओ से सावित्री के बुर को खड़े खड़े पेलते हुए बोली
"मज़ा मिल रहा है की नही ..?"
इस पर सावित्री ने सिस्कार्ते हुए धन्नो को कस कर पकड़ते हुए बोली
"सस्सस्स...........स....हही...हां चाची बहुत मज़ा मिल रहा है...ऐसे ही करती जाओ "
फिर धन्नो अपनी दोनो उंगलिओ से उसकी गीली बुर को तेज़ी से चोद रही थी और उसकी बुर को ध्यान से देख रही थी , फिर सावित्री से बोली...
"अब तू अपनी जवानी बेकार मत होने दे...अब गाओं मे घुमा कर ताकि मर्दों की नज़र पड़े तेरे पर....घर मे बैठे बैठे तो तेरी ये जवानी ही बेकार हो जाएगी...क्या समझी...गाओं मे मेरे साथ घूमेगी की नही...बोल"
मस्त सावित्री ने जोश मे बोली
"..त त्त ठीक है..घूमूंगी .."
फिर धन्नो बोली ..
"....ठीक है...जब तक गाओं मे घूमेगी नही तबतक जवानी का मज़ा भला कैसे पाएगी...चल थोड़ा टांग और फैला..तेरी बुर एकदम पिलपिला गयी है ...मोटे लंड के लिए...फैला.."

इसी छप्पर के सामने दूसरी ओर मा बेटी के नहाने का इंतज़ाम था. जो बाँस और घास फूस, पुराने पालास्टिक और फटी पुरानी सारी से घेर कर बना हुआ था. इस छ्होटी सी जगह मे दरवाजे के आकर का जगह च्छुटा हुआ था. जिसका मुँह छप्पर की ओर ही था. मा बेटी नहाते समय इस खुले हुए जगह पर एक पुरानी साड़ी का परदा डाल लेती थी.
चूल्हा मे आग किसी तरह जल गई. अभी भी मा वापस नही आई थी. सावित्री को यह बढ़िया मौका था की घी वाली कटोरी को लाकर गरम कर लेती. फिर मा के वापस आने का डर मान मे दौड़ गया. लेकिन दूसरे पल धन्नो चाची की कही बात मन को हिम्मत देने लगी. धन्नो चाची कही थी की बिना हिम्मत के कोई मज़ा नही मिल पाएगा. यही सोच कर सावित्री उस चूल्*हे के पास खड़ी होकर कभी चूल्*हे मे जल रहे आग को देखती तो कभी मा के आने वाले रास्ते की ओर. और फिर हिम्मत वाली बात. इन तीनो के बीच सावित्री ने एक गहरी सांस ली और मन मे ज़िद पैदा करती हुई तेज़ी से कोठरी मे घुसी और कोने मे रखे पुराने लोहे के बॉक्स के नीचे रखी देसी घी की कटोरी को लेकर तेज़ी से वापस छप्पर मे जल रहे चूल्*हे के पास आ गयी. दूसरे पल मा के आने वाले रास्ते की ओर देखती हुई देसी घी के कटोरी को चूल्*हे के आग के किनारे ऐसे रख दी ताकि हल्की गरम हो और देसी घी मे गुनगुना पन आ जाए और लगाने मे जले नही. घी के हल्का गर्म होते देर नही लगी. सावित्री को अभी भी डर लग रहा था की कही मा आ ना जाए. फिर जल रहे चूल्*हे पर चावल बनाने के लिए पानी भरा बर्तन रख दी. और दूसरे पल गर्म हो चुके देसी घी की कटोरी ले कर तुरंत कोठरी मे भाग गयी. कोठारी के अंदर ही दिया जल रहा था. सावित्री ने तुरंत उस दिया को कोठारी के बाहर रख दी. अब कोठारी मे अंधेरा हो गया था और बाहर जल रहे दीपक से अंदर इतनी रोशनी आ रही थी की अंदर लगभग सब कुच्छ दीख जा रहा था. सावित्री ने दरवाजे से बाहर की ओर मा के आने वाले रास्ते की ओर देखना चाह रही थी लेकिन अंधेरा होने के वजह से ज़्यादे कुच्छ दीख नही पा रहा था. अब घी लगाने की बारी थी. सावित्री को सलवार खोलने मे डर लग रहा था की कहीं मा आ ना जाए. सावित्री ने फिर अपने को डरती हुई महसूस की और फिर धन्नो चाची की बाद याद आ गयी. दूसरे पल ही सावित्री ने अपने सलवार के नाडे को खोल कर और चड्धि को तुरंत थोड़ा नीचे सरका दी और अपनी नज़रें दरवाजे से बाहर की ओर भी टिकाए रही ताकि मा को आते देखते ही कपड़े ठीक कर देसी घी की कटोरी भी च्छूपा लेती. लेकिन अभी भी मा का कोई अता पता नही होने से सावित्री ने कटोरी मे रखे देसी घी मे उंगलिओ को दुबाई जो हल्की गर्म थी. और दूसरे पल ही अपनी बुर पर जल्दी जल्दी लगाने लगी. थोड़ी सी ही घी मे बर पूरी भीग सी गयी फिर अगले पल सावित्री खड़ी ही खड़ी अपनी बुर के दोनो फांकों को देसी घी से लगे हाथ और उंगलिओ से ठीक से मालिश करने लगी. ऐसा करते हुए उसकी नज़रें दरवाजे के बाहर भी लगी रही. देसी घी की मालिश पाते ही बुर की पुट्तियाँ मानो थिरकने लगी. सावित्री को बहुत आनंद आने लगा. इसी आनंद से सराबोर हो कर सावित्री ने देसी घी से अपनी बुर को खूब चिपोडा. फिर क्या था झांतों को भी खूब सहलाई और घी से झांतों को भी तर कर डाली. अब बुर मे बस एक मीठी दर्द ही रह गयी थी. बर और झांतों को देसी घी से मालिश करने के बाद सावित्री ने देसी घी से डूबी उंगलिओ को बुर के मुँह पर लगाई तो खुद को रोक नही पाई और उंगली को कस के अंदर की ओर पेल दी और देसी घी से च्यूपडा हुआ उंगली बुर मे सरक गयी और सावित्री आनंद से सिहर उठी. लगभग चार पाँच बार बुर के अंदर बाहर उंगलिओ को कर के घी को ठीक से लगा ली. फिर एक बार अपनी बुर को उपर से अच्छि तरह मसल कर मस्त हो चुकी सावित्री को धन्नो चाची की कही बात पर भरोसा हो गया की यदि उसके साथ रही तो बहुत मज़ा करेगी. फिर सावित्री ने अपनी चड्धि को उपर को खिसका कर पहन ली और फिर सलवार के नाडे को भी बाँध ली. फिर देसी घी के कटोरी को जल्दी से हल्की रोशनी मे कोठरी के कोने मे रखे लोहे के पुराने बॉक्स के नीचे च्छूपा दी. काम हो गया था. सावित्री फिर बाहर रखे दिए को वापस अंदर कोठारी मे ला कर रख दी. और खुद छप्पर मे चूल्*हे पर उबाल रहे पानी मे चावल डालने चली गयी. अभी भी मा वापस नही आई थी. यही सोच कर सावित्री छप्पर मे चूल्*हे के बगल मे बिछि खाट पर लेटटी हुई एक बार फिर अपनी बुर को सलवार के उपर से ही हल्की सी मसली तो सारा बदन मस्ती मे झंझणा उठा. तभी मा के कदमो की आहट आते ही सावित्री खाट पर से उठ कर खड़ी हो गयी और मा के हाथों मे सब्जी और कुच्छ समान और दूसरे हाथ मे मिट्टी के तेल का भरा हुआ डिब्बा को थामते हुए पुछि "....क्यों इतनी देर हो गयी है. अच्च्छा होता की दिन मे ही ये सब ले आती ...देखो तो कितना अंधेरा हो गया है...." इतना सुन कर सीता कुच्छ सोची और फिर कुच्छ झल्लते हुए बोली "...समान लेने मे देर तो लगेगी ही....और..मिट्टी का तेल ख़त्म हो गया था... ......" इतना कह कर सीता चुप हो गयी, फिर सावित्री ने अपने हाथ मे लिए मिट्टी के तेल के डिब्बे को अंदर रखती हुई फिर पुछि "...कहाँ से मिट्टी का तेल लाई हो..?" सावित्री के इस सवाल का जबाव दिए बगैर सीता घर के पीच्छवाड़े मुतने चली गयी.






कोई जबाव ना पा कर सावित्री के मन मे एक सवाल उठी की आख़िर मा मिट्टी का तेल लेने अंधेरा होने के बाद क्यों गयी. दिन मे भी तो जा सकती थी. दूसरी बात ये की मिट्टी का तेल तो गाओं के दूसरी छ्होर पर एकांत मे बने गोदाम पर बिकता है और ये गोदाम वाले मिट्टी के तेल की दुकान का मालिक जग्गू भाई था जो गुंडा किस्म का आदमी था. तो क्या मा वहाँ गयी थी मिट्टी का तेल लाने?. कोठरी मे खड़ी हो कर इन सवालों मे उलझी सावित्री फिर बाहर आ गयी. थोड़ी देर बाद उसकी मा मूत कर घर के पीच्छवाड़े से वापस आ गयी और अपने पैरों को धोने के बाद मुँह को भी पानी से धोने लगी और मुँह मे पानी ले कर कुल्ली करने लगी. ये सब सावित्री को कुच्छ अजीब लग रही थी. फिर सावित्री ने सोचा की हो सकता है उसकी मा के साथ कोई दूसरी औरत भी मिट्टी का तेल लेने गयी होगी क्योंकि अंधेरा होने के बाद उसकी मा अकेले भला कैसे जा सकती है उस एकांत सुनसान गोदाम के पास जहाँ मिट्टी का तेल बिकता है. यही मन मे सोच रही थी की लक्ष्मी चाची ही गयी होगी उसके साथ और दूसरे पल सावित्री ने अपने अंदाज़ा को सही ठहराने के लिए पुछि "..लक्ष्मी चाची भी गयी थी क्या ..मिट्टी का तेल लेने...तुम्हारे साथ...." इतना कह कर सावित्री अपनी मा के तरफ देखने लगी जो पानी अपने मुँह मे ले कर बार बार कुल्ली करते हुए पीचकारी की तरह निकाल रही थी. सीता अपना मुँह को ठीक से धोने के बाद कुच्छ देर तक चुप रही मानो वो सावित्री के सवाल का जबाव नही देना चाहती हो. अपने मुँह को सारी मे पोन्छते हुए कोठारी मे जाते हुए बोली "...जब तेल नही था तो लाना ही पड़ेगा ...नही तो अंधेरे मे भला कैसे कोई रहेगा.." इतना कह कर सीता चुप हो गयी और अपना मुँह कोठरी के दीवार मे लगे छोटे सीसे मे दिया के रोशनी मे निहारने लगी. सावित्री को आभास हुआ की उसके सवाल का जबाव उसकी मा नही देना चाह रही हो. यही सोच कर सावित्री ने बाहर से ही कोठरी के अंदर सीसे मे देख कर अपने बालों को ठीक करती सीता को एक नज़र देखी. सावित्री को कुच्छ ऐसा लगा मानो उसकी मा के बाल कुच्छ उलझ से गये हों जिसे वो ठीक कर रही है. लेकिन अपनी मा के उपर ज़्यादे नज़र रखना उसे ठीक नही लगा और वह चुपचाप छप्पर मे आ गयी और चूल्*हे पर पक रहे चावल को देखने की कोशिश करने लगी. छप्पर मे कोई दिया ना जलाने से अंधेरा था. घर मे बस एक ही दिया था जो अंदर कोठारी मे जल रहा था. चावल कहीं चूल्*हे पर जल ना जाए यही सोच कर सावित्री दिया लाने के लिए कोठारी मे जैसे ही घुसी तो देखी की उसकी मा अपनी सारी को ठीक कर रही थी. जो कुच्छ अस्त-व्यस्त हो गयी थी शायद. दिया के रोशनी मे अपनी सारी और कपड़े को ठीक कर रही सीता का पीठ सावित्री की ओर थी. सावित्री को यह सब कुच्छ अजीब लग रही थी. लेकिन उसे दिया की ज़रूरत थी ताकि उसकी रोशनी मे चावल को देख लेती की कहीं जल ना जाए. सावित्री यही सोच कर दिया को हाथ मे लेती बोली "...चावल देखना है...इससे.." सीता ने कोई जबाव नही दी बल्कि अपनी सारी को कमर मे ठीक करते हुए पहनने लगी. दिया को लेकर सावित्री छप्पर मे चूल्*हे पर पक रहे चावल को देखने लगी. और फिर दिए को वापस कोठारी मे ले कर आई तो दिए की रोशनी फैल गयी जिसमे सावित्री ने देखा की उसकी मा अपने पीठ को तेज़ी से उसके तरफ करके ब्लाउज को ठीक करने लगी. सावित्री को ऐसा लगा मानो उसकी मा उससे अपनी छाती को छिपाना चाह रही हो और शायद उसे इस बात का अंदाज़ा नही था की इतनी जल्दी सावित्री दिया को वापस कमरे मे ले आएगी. अब सावित्री के मन मे कुच्छ शक़ पैदा होने लगा. लेकिन उसे अपनी मा पर बहुत विश्वास था. इस वजह से वह कोठारी से बाहर आ कर सोचने लगी की उसे कही भ्रम तो नही हो रहा. आख़िर मा के बारे मे ऐसी बात क्यों सोच रही है. तभी सीता ने कोठारी मे से दिया खुद ही लेकर छप्पर मे जा कर पक रहे चावल को देखते हुए कुच्छ गुस्से मे बोली "....तू हमेशा चावल मे पानी कम डालती है...और ..चावल रोज़ जल जाता है...पता नही कब तुझे खाना बनाने आएगा......" इतना कह कर गुस्से से सीता ने सावित्री की ओर देखने लगी तो गुस्से मे लाल चेहरे को सावित्री ने अनायास ही देखने लगी और दिया सीता के हाथ मे ही होने से रोशनी सीधे सीता के मुँह पर पड़ रही थी जिसमे जल्द ही धोया हुया चेहरा ऐसे लग रहा था मानो अभी नहा कर आई हो लेकिन दूसरे ही पल सावित्री की नज़र अपनी मा के निचले होंठ पर पड़ी तो उसे ऐसे लगा की चक्कर आ जाएगा और जल रहे चूल्*हे पर ही गिर पड़ेगी. सावित्री बिना किसी जबाव दिए और पक रहे चावल को बिना देखे ही छप्पर से बाहर आ गयी. उसने दिया के रोशनी मे जो कुच्छ देखा यकीन नही हो रहा था. उसकी मा के निचले होंठ पर कुच्छ नीले और काले रंग का दाग लग रहा था. जो किसी के दाँत के काटने के वजह से हो सकता था.


सावित्री यही समझने की कोशिस कर रही थी की आख़िर मा आज अंधेरा होने के बाद कहाँ मिट्टी का तेल लेने गयी थी और कुच्छ देर के बाद वापस आई. आने के तुरंत बात पेशाब करने गयी और फिर अपने मुँह को पानी के ठीक से धोइ और मूह मे पानी ले कर गलगाला भी की. इन्सब के अलावा उसके निचले होंठ पर कुच्छ दाँत के कटे के निशान तो यही बता रहे हैं की मा किसी मर्द के पास गयी थी. और यदि ऐसा सच है तो आख़िर मा इतना गंदा कम कब सुरू कर दी और वो कौन है जो मा के साथ ये सब किया होगा. इन्ही सोचों मे उलझी सावित्री को कुच्छ समझ नही आ रहा थी. थोड़ी देर बाद जैसे ही खाना तैयार हुया की मा बेटी दोनो खाना खाए. सावित्री को काफ़ी भूख लगी थी और थकान तो इतना की लगता था खड़े खड़े ही गिर जाएगी. कारण भी था की कई बार झाड़ गई थी और तेजू भी खूब जम के चुदाई कर दिया था. सावित्री को अब सोने के अलावा कुछ नही दिखाई दे रहा था.
बिस्तर पर पड़ते ही सावित्री को कब नीद लगी उसे पता ही नई चला. जैसे ही सोई थी ठीक वैसे ही सुबह हो गयी और एक करवट भी नही ले सकी थी. सुबह जब उसकी मा ने उसे ज़ोर से झकझोर कर उठाया तब जा कर चौंक कर उठी. एक गहरी साँस छ्चोड़ते हुए अपनी आँखे मीस्ते हुए उठी और लड़खड़ाते कदमो से घर के पीच्छवाड़े मूतने चली गयी. पेशाब भी बहुत तेज लगी थी. ढेर सारा मूतने के बाद सावित्री महसूस की कि उसकी बुर मे एक अजीब ताज़गी भर गयी है मानो उसके साथ साथ उसकी बुर की भी थकान मिट चुकी हो.
थोड़ी देर बाद पीच्छले दीनो की बाते फिर दिमाग़ मे उठने लगी. कुच्छ समय बिता और उसकी मा बाहर रखे बाल्टी का पानी ले कर नहाने के लिए बनी जगह मे चली गयी और चारो ओर से घीरे हुए इस स्थान मे केवल एक तरफ से थोड़ा सा खुली जगह जो किसी दरवाजे की बराबर था उसमे सारी का परदा लगा दी और नहाना सुरू कर दी. सावित्री छप्पर मे बैठ कर सुबह के खाना बनाने की तैयारी मे लग गयी थी सब्जी काटते हुए पीच्छले दिन की बातों को थोड़ी देर के लिए भूल गयी थी. तभी उसे सब्जी धोने के लिए पानी की ज़रूरत थी. आज देर से उठने के वजह से घर के पीछे बड़े बगीचे के कुआँ से पानी भी भर के नही लाई थी. और पानी घर मे और कहीं नही था बल्कि उस नहाने वाले जगह मे कुच्छ पानी रखा रहता था जो कभी कम पड़ जाने की स्थिति मे उपयोग होता था. अगले पल सावित्री ने सब्जी धोने के लिए तुरंत पानी लेने नहा रही मा के पास गयी और परदा हटाई तो देखी की उसकी मा एकदम नंगी खड़ी थी और उसका पूरा बदन भीगा हुआ था. उसकी नज़र अपनी मा के दोनो चुचिओ के काले घुंडीओ के आस पास चारो ओर लाल और सुर्ख रंग के दाँत के काटने के निशान एकदम साफ साफ दीख रहे थे. लेकिन सीता ने कुच्छ बोले बगैर चुप चाप अपनी बदन को रगड़ रगड़ कर मैल छुड़ा रही थी और दोनो चुचियाँ हिल रही थी जिसको सावित्री बार बार देख रही थी. तभी सीता ने पुचछा "क्या चाहिए..." इतना सुनकर सावित्री के सूखे गले से आवाज़ निकली "...प पानी व वो सब्जी धोने के..लिए.." फिस सीता ने कहा "...पानी क्या ले जा रही है..सब्जी ही ले आ यहीं धो ले...जा ले आ.." इतना सुन कर सावित्री जाने के पहले एकदम नंगी खड़ी हो कर नहा रही अपनी मा के बुर को देखी तो और चौंक गयी. बुर पर एक भी बाल नही थे मानो ऐसा लगता था जैसे पीच्छले ही दिन झांतों को सॉफ की हो. लेकिन अपनी नज़रें उसकी सॉफ सुथरे बुर से हटाने के तुरंत वापस सब्जी लाने चली गयी. अब सावित्री का कलेजा धक धक कर रहा था. उसे अपनी आँखों पर यकीन ही नही हो रहा था की उसकी मा आज एकदम नंगी ही नहा रही थी और उसकी दोनो चुचिओ को किसी ने दाँतों से खूब काटा था. उसने वर्तन मे सब्जी को उठाई तो उसे महसूस हुआ मानो हाथ कांप रहे हों और सब्जी कभी भी गिर जाए. आख़िर फिर नहाने वाली जगह गयी और परदा को हटा कर अंदर हुई तो देखी की उसकी मा झांतों से एकदम सॉफ सुथरी बुर को ठीक सामने करके बैठी थी और पानी को डाल कर नहा रही थी. सावित्री किसी तरह पानी से सब्जी को धोने लगी और रह रह कर बुर और चुचिओ को देख भी लेती थी. तभी उसकी मा सावित्री के सामने ही अपने दोनो जांघों को फैला कर बुर पर पानी डालते हुए दूसरे हाथ से बुर को रगड़ रगड़ कर धोने लगी. कभी कभी बीच वाली उंगली भी अपनी बुर मे घुसा कर धोने लगती दो सावित्री को लगता की वह अपनी बुर मे नही बल्कि उसी की बुर मे उंगली कर रही है. सावित्री यह भूल गयी की उसकी मा उसे देख रही थी की वो बुर को पानी से धोते हुए ध्यान से देख रही है. सीता ने सावित्री की ओर देखा और जैसे ही आँखे मिली सीता ने बोली "तुम भी अपनी जंगल झाड़ की सफाई कर लिया करो...जंगल पाल कर रखी हो पता नही क्या करोगी..." सावित्री अपनी आँखें अब सब्जी धोने पर लगा दी. तभी सीता ने फिर कहा "कल मैं बाल बनाने वाला ले आई हूँ नहाने के पहले ही बना लेना.....इस जगह को भी सॉफ रखा करो..." इतना सुनते ही सावित्री की साँसे तेज हो गयी और सब्जी धोने के बाद जल्दी से वापस छप्पर मे आ गयी.
तभी उसकी मा ने बुलाया "थोड़ा मेरी पीठ मल तो ....मैल बैठ गया है...पीछे हाथ ही नही पहुँच पाती...सुन रही है..." इतनी बात कान मे पड़ते ही सावित्री की मुँह से बस " ह ह हूँ " निकला और तेज धड़कानो के साथ नहाने वाले बाथरूम की तरह बने जगह पर गयी और परदा हटा कर अंदर हो गयी. तभी एकदम नंगी बैठी हुई सीता ने अपनी पीठ उसकी ओर कर दी. सावित्री के काँपते हाथ उसके पीठ पर फिसलने लगे. रगड़ने पर भी मैल का कही नामो निशान नही था. तभी उसकी मा ने कहा " थोड़ा नीचे कमर की ओर भी मल...पीछे हाथ ना जाने से मैल छूट ही नही पाती..." सावित्री अपने हाथों को पीठ पर नीचे की ओर ले जा कर मलने लगी. थोड़ा सा मैल निकला ही था की उसकी मा ने फिर बोला " थोड़ा और नीचे रगड़....शरमाती क्या है...अब तू सयानी हो गयी है ..सब 'समझने' लगी है.." इतना सुनते ही सावित्री फिर से सनसना गयी. और नीचे का मतलब था सीता के बड़े बड़े दोनो चूतड़ और दोनो चूतदों के बीच एक मोटी लकीर जो बैठी होने की स्थिति मे एकदम फैली हुई थी देखने मे एकदम धन्नो चाची की तरह थी. जल्दी जल्दी अपने हाथों से रगड़ रही थी की उसकी मा ने फिर कहा " दोनो के बीच वाली जगह मे उंगली डाल के रगड़...ज़ोर लगा के रगड़...ऐसे क्या फूल की तरह छ्छू रही है. " अब सावित्री के सामने कोई चारा नही था. उसने अपनी मा के चूतदों के बीच वाली धारी मे उंगली रगड़ने लगी तो सीता ने अपनी आँखे मूंद कर हल्की सी सिसकारी ले ली जो सावित्री के कान मे पड़ते ही उसकी बुर चुनचुना उठी. 

फिर सावित्री अपनी टाँगों को जैसे ही फैलाई की धन्नो ने अपनी तीन उंगलिओ को बुर मे घुसाने लगी और पूरी तरह से गीली बुर मे तीनो उंगलियाँ आसानी से घुस गई. इतना देख कर धन्नो ने सावित्री से कही ..."तू मेरे साथ घूमेगी तो ऐसे ही खूब मज़ा पाएगी और तुझे दूसरे हर उमर के मर्दों से भी चुदवा दूँगी..समझी "सिस्कार्ति हुई सावित्री ने मस्ती मे हामी भरते हुए बोली "घूमूंगी चाची ...आप के साथ ही रहूंगी..आप जैसे बोलॉगी वैसे ही करूँगी...और तेज करो आहह ..."धन्नो अपनी तीनो उंगलिओ से सावित्री की बुर चोदने लगी और उसको आगे फुसलाते हुए उसी बात को दोहराते बोली"जब तक गाओं मे खूब घूमेगी नही तब तक गाओं के मर्द तेरे पीछे पड़ेंगे कैसे....चल तुम मेरे साथ घुमा करना और देख की गाओं के मर्द तेरी जवानी के लिए कैसे पीछे पड़ते हैं...मेरे साथ गाओं मे घूम कर देखना की कितने लंड तेरी बुर मे घुसने लगेंगे....ठीक..!"सावित्री के बुर मे धन्नो की उंगलियाँ तेज़ी से चल रही थी और सावित्री पूरी तरह मस्ती से कांप रही थी और आँखें एक दम बंद हो चुकी थी और जबाव मे बोली"आ ससस्स हाँ चाची खूब घूमूंगी दिन भर तेरे साथ ही रहूंगी ..आ और तेज़ करो ...हमेशा तेरे साथ रहूंगी...आअहह सस्स अर्र सस्स्सरर.र्र्र्ररर.र.र.र.र."इतना कहते ही सावित्री काँपने लगी और झड़ने लगी. धन्नो की उंगलियाँ पूरी तरह से भीग गयीं और हाथ भी दर्द करने लगा. झदाने के बाद सावित्री हाँफने लगी थी. धन्नो ने अपनी उंगलिओ को अपने पेटिकोट मे पोंच्छ दिया फिर सावित्री की बुर भी अपनी पेटीकोत से पोन्छि. फिर सावित्री अपने कपड़े ठीक की और उसके बाद धन्नो अपनी झोली (समान) को ली और दोनो खंडहर से बाहर आने लगे.
धन्नो आगे आगे चल रही थी और सावित्री उसके पीछे पीछे. खंडहर से जैसे ही दोनो बाहर निकलने वाले थे ही ठीक सामने ही गाओं का एक शराबी नशे मे धुत हो कर लड़खड़ा रहा था. और वह शराबी जैसे ही दोनो को देखा की अपनी लड़खड़ाती ज़ुबान से गंदी गंदी गालियाँ देना सुरू कर दिया"क्या री रॅंडियो ...दोपहर मे इस खंडहर मे क्या कर रही थी....आएँ बोल चुदवायेगी तुम सब तो ले मेरा लंड...ले ले कहाँ जा रही है ले मेरा लंड.."और उसने लड़खड़ते कदमो से किसी तरह खड़ा होता हुआ अपने पैंट की चैन खोल कर काला लंड बाहर निकाल कर दीखाने लगा. सावित्री तो घबरा कर तेज़ी से रश्ते पर चलने लगी तब धन्नो ने सावित्री का हाथ पकड़ ली और बोली "अरे घबरा मत ये अपने ही गाओं का तेजू है .....काफ़ी नशे मे है....रुक भाग मत इस दोपहर मे देख चारो ओर कोई दीखाई नही दे रहा है.और इतना बड़ा खंडहर भी एक दम खाली है. घबरा मत थोड़ा रुक देख तुझे बताउ की नशे मे शराबिओं से कैसे मज़े लेते हैं..तू बस चुप चाप देख और सुन.."धन्नो के इस तरह की बात सुनकर सावित्री को डर लग रहा था क्योंकि वह शराबी जो 35 साल के आस पास था अपनी चैन खोल चुका था और काले काले झांतों से घिरा हुआ काले रंग का लंड बाहर निकल कर लटक रहा था और वह शराबी उसे अपने हाथ मे ले कर दोनो को दिखाते हुए अपने लड़खड़ाते कदमो पर खड़ा रहने की कोशिस करता और दूसरे हाथ से खंडहर की दीवार को भी पकड़ कर सहारा लेते हुए खंडहर के अंदर उन दोनो के तरफ आते हुए बोला"आई ..ई...ले ले रे ले मेरा लंड ले...ए लड़की कौन है रे ...किसकी लड़की है ये ..ले चुदवा ले रे हमसे "
धन्नो जो कुच्छ दूरी पर खड़ी थी, सावित्री का हाथ पकड़ कर खंडहर मे अंदर की ओर खिसकने लगी और सावित्री से धीरे से बोली"तुम चिंता मत कर वो खूद बहुत नशे मे है की हम लोगो तक आ नही सकता बस जो कर रहा है और बोल रहा है उससे ज़्यादा कुच्छ नही कर सकता..."फिर धन्नो ने सावित्री को आँख मारते हुए बोली"देख शराबी से कैसे मज़ा लेते हैं"इतना कह कर धन्नो ने शराबी की ओर देखते हुए गुस्से का भाव बनाती हुई उसे डाँटते हुए बोली...."औरतों को अकेले मे पा कर ये क्या कर रहा है हरामी कहीं का."इतना सुनकर उस शराबी खूद को संभालते हुए बोला"त त त त त तू इस खंडहर मे इस दोपहर मे क्या करने आई है अएइन बोल रे कुती.."फिर धन्नो अपनी आँखे बड़ी बड़ी करके डाँटते हुए बोली"पहले तुम ज़बान संभाल के बोल कुत्ता हरामी.....हम दोनो यहा पेशाब करने आई थी समझे कमीने.....हम लोगो से बट्मीज़ी से बात मत कर.."शराबी को ये बात बर्दाश्त नही हुई और उसने कहा"त त ते तेरी मा मा की चोदु...इस खंडहर मे ही तेरी ब ब ब बुर से मूत निकलता है ..चल ठीक है अब तो ..मूत ली है तो हमसे चुदवा ले"इतना सुनते ही धन्नो ने लगभग झगड़ा करते हुए बोली" ..तेरी मा बहन नही हैं क्या...जा कर उन्ही को चोद ...हरामी साला ...देख इस कुत्ते को ये औरतों को अकेले मे पा कर कैसे बट्मीज़ी कर रहा है..
इतना सुन कर शराबी ने काफ़ी गुस्से मे बोला"त त त तेरी मा को चोदु..और तेरी ब ब बेटी को चोदु..और तुम्हे चोदु...तू मुझे गाली देती है...र र र रंडी कहीं की .....तू तेजू को गाली देती है..तू जानती है इसका अंजाम क्या होगा ...मैं नशे मे भले हूँ.....ल ल लेकिन मैं तुम दोनो को खूब अच्छि तरह से पहचानता हूँ रंडी साली ..."इतना सुनते ही सावित्री सहम गयी और धन्नो से धीरे से बोली ..."चाची चलो यहाँ से इस शराबी के मुँह लगना ठीक नही है.."तब तक उस शराबी की नज़र सावित्री के इस फुसफुसाहट पर पड़ गयी और आगे वह बोला"आई रंडी साली ...क्या इस धन्नो से कह रही है ...तू तो सीता की बेटी है मैं तुझे खूब पहचान रहा हूँ...अब तक तो तेरा कुच्छ पता नही था अब तू भी इस धन्नो के साथ.......अयीन....साली...धन्नो के साथ ...घूम रही है...ये तो साली पुरानी....र्र...रंडी है और अब तू भी....रंडी बन ...रही ...ह है ...तो .ले मेरा लंड ले ले.."सावित्री की नज़र जैसे ही उस शराबी लंड पर पड़ी डर गयी क्योंकि अब उसका लंड कुच्छ मोटा हो कर हवा मे लहराने लगा था.धन्नो ने फिर सावित्री से कहा"डर मत हरजाई..देख चारो ओर कोई दीख नही रहा है..इस सन्नाटे मे कोई देखने सुनने वाला थोड़ी है और ये तो नशे मे है.....कोई देख भी लेगा तो बोल देंगे की ये नशे मे है और ग़लती इसी की है...समझी...डर मत ...और अब तू कुच्छ उल्टी सीधी बोल... देख कैसे चिड़ेगा और गुस्साएगा..बोल उसे कुच्छ.."
धन्नो ने सावित्री को ऐसा कहते हुए उसकी बाँह पकड़ कर अपने आगे कर ली. लेकिन सावित्री ने कुच्छ बोला नही और धीरे से फुसफुसा"धात्त मैं क्या बोलूं..मैं कुच्छ नही बोलूँगी..आप ही बोलो"फिर धन्नो ने सावित्री को डाँटते हुए धीरे से बोली" ..तू डर मत..उसे डाँटते हुए गाली दे ..किसी शराबी को तो लोग ऐसे ही गाली देते फिरते हैं और ये तो हमलोगों से बदतमीज़ी कर रहा है..."फिर भी सावित्री की हिम्मत नही हुई की उस शराबी को गाली दे जिसे देखकर डन्नो फिर बोली"चल बोल तो हरजाई बड़ा मज़ा आएगा बोल के देख ..चल गाली दे उस हरामी को...."इतना सुनकर सावित्री एकदम सनसना गयी इसके बावजूद उसकी हिम्मत नही हो रही थी की उस शराबी को कुच्छ बोले इस लिए चुप रही, इतना देखकर धन्नो ने सावित्री के गांद मे चिकोटी काटते बोली"इतनी डरेगी तो झाँत मज़ा लूटेगी मर्दों से..बोल हरजाई बोल..चल बोल..बोल..गाली दे कमीने को..."धन्नो के दबाव और उकसाव से सावित्री उस शराबी को कुच्छ बोलने और गाली देने की हिम्मत इकट्ठा की और काँपते होंठो के बीच से घबराई आवाज़ निकली"सीसी क क कमीना...क सीसी क्या है..हरामी...क क कुत्ता .."इतना बोल कर सावित्री चुप हो गयी और धन्नो सावित्री के ठीक पीछे खड़ी थी और उसे पकड़ी थी ताकि सावित्री पीछे ना हटे. सावित्री के मुँह से गाली सुनते ही शराबी तेजू का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया. वह गुस्से से तमतमाते हुए लगभग चिल्ला उठे"एयेए आ रे तेरी मा की बुर चोदु साली ...कल की लड़की मुझे गाली दे रही है...मैं आज तेरी बुर फाड़ कर दम लूँगा...भोसड़ी साली तू मेरे को गाली दे दी...त त त त्तेरी मा की तो हिम्मत ना हुई कि मेरी तरफ देखे और तू गाली दे दी....अब देख..तेरी बुर को चोद डालूँगा...ले मेरा लंड..ले आ चल आज मैं तेरी बुर चोदुन्गा..."

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