Saturday, 30 September 2017

ganv ki majboor ladki part 7

कुछ दिन बीते हे थे की धन्नो सावत्री की माँ की नज़र बचा कर सावत्री से बोली :-"चल न आज गुलाबी के घर चला जाये !"
तब सावत्री ने बोला :-"लेकिन मुझे तो दूकान पर भी तो जाना हे ना ?"
तब धन्नो बोली :-"एक दिन ना ही सही .....कुछ बिगड़ेगा थोड़ी .....एक दिन मत जा दूकान पर .! " फिर कुछ सोच में पड़ी सावत्री इधर उधर देख ही रही थी की धन्नो तपाक से बोली :-" अरे काहे का फिकर कर रही हे .....चुपचाप चल घुमा लाऊं ....किसी को कानो कान खुछ खबर न पड़ेगी !"असमंजस में पड़ी सावत्री कुछ सोच नहीं पा रही थी ! कुंकी उसका भी मन घुमने को कर रहा था !

वह जान रही थी की धन्नो चाची के साथ घुमने का मतलब चोदा चोदी की खूब सारी बातें ,और गन्दी गन्दी कहानिया , और वो गुलाबी चाची की अश्लील बातें !
सावत्री का मन मचल उठा ! पर अपनी माँ का डर और दुसरे दिन पंडित जी को क्या जबाब देगी ये भी सोच रही थी !
उसको सोचते देख धन्नो दबाव बनाते बोली :-"कहे को चिंता में पड़ी हे मानो कोई मर गया हो ......अरे चल में दुसरे दिन खुद तेरे साथ चल कर पंडित जी को बोल दूंगी की तू मेरे साथ घुमने गई थी !" इतना सुनकर मनो तब उसे तसल्ली हुई तब सावत्री बोली :- "ठीक हे चाची ...तो में दूकान जाने के समय में तुम्हे गाँव के बाहर मिलूंगी ......हा माँ को नहीं पता चले नहीं तो फिर क्या होगा ....सावत्री अपनी चिंता जाहिर करते बोली !
तब धन्नो अपनी साडी के ऊपर से ही बूर खुजलाते हुए बोली :-"झांट पता चलेगा ....तू तो मुझे अनाड़ी समझ रही हे ..चल न अभी तू मुझे क्या समझी ...हजारों लंड खिलवा दूंगी ...और तुझे कुंवारी दुल्हन की तरह सजवा कर शादी भी करवा दूंगी "धन्नो से इस अंदाज़ से बातें सुनकर सावत्री शर्म से लाल हो गई ! फिर आगे बोली :-"ठीक हे गाँव के बाहर ...." तब धन्नो लगभग खुश हो गई !
सावत्री दूकान जाने के बहाने जैसे ही तेयार हो कर आई गाँव के बाहर बगीचे में धन्नो इन्तजार कर रही थी !
फिर धन्नो सावत्री को लेकर पास ही के गाँव अपने सहेली गुलाबी के घर चल पड़ी !
रस्ते में अपनी अपनी सहेली गुलाबी की तारीफ शुरू कर दी :- जानती हे गुलाबी मेरीबहुत पुरानी सहेली हे .....एक दम जिगरी दोस्त की तरह ....हम दोनों कोण से ऐसे राज हे जो नहीं जानते एक दुसरे के ....फिर आगे बोली दोस्ती हो तो मेरी और गुलाबी की तरह हो सच में री ...तारीफ करते आगे बोली ......"बड़ी मिलनसार हे ... नेकदिल इंसान भी हे ....और मुसीबत में साथ साथ कदम मिला कर चलने वाली .." सावत्री रस्ते नापते धन्नो की बातें सुन रही थी "तभी सोचती हु की मेरी तेरी अच्छी दोस्ती भी गुलाबी से करवा दू ...फिर आगे पूछी कैसी लगी वो जब तू उस दिन उससे मिली थी ,,,? 
सावत्री मानो कुछ बोलने के मूड में नहीं थी , पर एक बार वो भी गुलाबी से मिल चुकी थी ,और धन्नो चाची के पूछने पर बोली":-" ठीक थी !"" ठीक थी ?" ": बड़ा ही मुरझाया जबाब दे रही हे तू इसका मतलब तुझे पसंद नहीं आई मेरी सहेली ?"
इतनी सुनकर सावत्री को लगा उसका जबाब धन्नो को पसंद नहीं आया इस्ल्ये वो खुश करने के अंदाज़ में तपाक से बोली :-"नहीं चाची वो गुलाबी चाची भी बहुत अच्छी हे ....सच में ...!"
धन्नो सावत्री की माखन लगाने वाले अंदाज़ में बाते सुनकर बोली :-"तुम तो उस दिन उसकी बातें अनसुना कर रही थी न वो क्यों ? तब सावत्री कुछ असमंजस में पड गई और धन्नो के पीछे पीछे चलती रही !
तब धन्नो बोली :-"उस दिन तो तुझे उसकी बातें पसंद नहीं आई थी तो आज कैसे उसकी तारीफ कर रही हे ?" इतना बोल कर धन्नो रस्ते में खड़ी हो कर मुस्कराते हुए सावत्री की तरफ देखने लगी !
सावत्री खी खड़ी हो कर कुछ लाज भरे चेहरे से मुस्कराने लगी !

फिर धीमी सी आवाज़ में बोली :-"वो बहुत गन्दी बात करती हे ....गुलाबी चाची .....इसलिए मुझे लाज लगती हे !"
तब धन्नो बोली :-"अरी ...हरजाई ..उसे मेने बताया था ना की तू मेरी बहुत ही खाश सहेली हे ....और चोदा चोदी तुझे भी पसंद हे ..!"
फिर रास्ते पे चलते हुए आगे बोली :-"नहीं तो वो तो 44-45 साल हे और तू तो हे एक दम नई मानो उसकी बेटी की तरह ...तो भला इतना खुल कर केसे बोलती ....!"
तब सावत्री बोली :-"छी ....चाची तू मेरे बारे ऐसा क्यों बोलती हे ...सबसे?"
धन्नो फिर फुसलाते हुए अंदाज़ में रास्ते में रुक कर बोली:-"अरी ...छिनार ... में बोली ना की वो मेरी बहुत पुरानी और भरोसे वाली सहेली हे ...कोन सी बात छुपी हे उस से ...या कोन सी बात में नहीं जानती उसके बारे में ..?"फिर आगे बोली 'तू चिंता मत कर ..
अब तू भी तो सहेली हे हम दोनों की ...."फिर खेतों के बिच रास्ते पे चलने लगी !
और फिर बोली :-"गुलाबी भी कई मर्दों से फंसी हे ...बड़े मज़े लेती हे !"
ऐसी बात सुनकर सावत्री के मन में एक गुदगुदी की लहर सी दोड़ गई ! वो आगे भी सुन ना चाह रही थी ! लेकिन कुछ बोलने की बजाय चुप ही रही !
धन्नो सावत्री के मन को गरम करने के अंदाज़ में बोली :-" गुलाबी भी मुझ से कोई बात नहीं छुपाती हे .. फिर आगे बोली कई कई मर्दों से मज़े लेती हे ...!"तब सावत्री ने पूछी :-"लेकिन चाची उनके पति तो हे न ?"
तब फिर धन्नो को लगा सावत्री गुलाबी के बारे में जान ना चाह रही हे ! तब बोली :-"अरे पति तो हे लेकिन ...बस कहने के लिए ही पति हे ...सच में अब वो किसी बेकार और नामर्द की तरह हे "
सावत्री के कुछ समझ नहीं आई थी ये बात !
तब वो बोली :-: "क्या मतलब चाची ?"

लगा कि शायद सावत्री को बात समझ नहीं आई !
रास्ते में चलते चलते धुप भी लग रही थी ! तब धन्नो रास्ते के बगल में में एक छोटे से बगीचे की तरफ इशारा करती बोली :-"चल इस बगीचे में बैठ कर थोड़ी देर आराम कर ले और ........समझा भी देती हु…गुलाबी के बारे में ......"इतना कह कर धन्नो उस बगीचे में एक छायादार पेड़ के नीचे बैठती हु बोली :-"आ बैठ जा यहीं ... मेरा कहने का मतलब हे की ..गुलाबी के पति तो हे ...पर उसमे वो मर्दों वाली मर्दानगी का जज्बा नहीं हे ....."सावत्री सामने बेठी हुई थी और जिज्ञासा भरी नज़रों से धन्नो के चेहरे को देखती हुई ध्यान से सुन रही थी !फिर धन्नो बोली :-"भंडुआ का मतलब ऐसा मर्द जिसमे मर्द वाला जोश नहीं हो ...और दब्बू और डरपोक इतना की उसकी बीबी को कोई दूसरा चोदे और वो चुपचाप देखता रहे .....। भले ही उसके सामने ही कोई उसकी बीबी पर चढ़ जाये और वो कुछ न कर सके उसे भंडुआ कहते हे ..!"

सावत्री को ऐसी बातें कुछ अजीब लगी ! वो भडुआ जैसी गाली सुनती थी पर इसका अर्थ उसे आज समझ में आया था !धन्नो समझ रही थी की सावत्री के लिए ये सब जानना नया हे इसलिए वो दिलचस्पी से सुनना स्वाभाविक ही हे !शायद इसी दिलचस्पी के कारन सावत्री धन्नो से पूछ बेठी :-"लेकिन चाची .... वो गुलाबी चाची के पति को बुरा नहीं लगता ?"सावत्री का ऐसा पूछना स्वाभाविक ही था इसलिए धन्नो मनो उसकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए मानो सब कुछ बता देना चाहती थी !बगीचे में छाया के साथ साथ हवा भी लग रही थी !धन्नो ने एक नज़र चरों और दोडाई दूर दूर तक लहलहाते खेतों में कोई नहीं था ! फिर आगे बोली :-"बुरा तो किसी भी मर्द को लगेगा ....की उसकी बीबी किसी दुसरे के नीचे लेटे ......उससे मज़े ले ... पर ओरत जब छिनालपन पर उतर आये तो तो मर्द या तो उससे तलाक लेले या उसका भड़ुआ बन जाये ...."धन्नो सावत्री के विस्मय भरे चेहरे को पढ़ते हुए आगे बात जरी रखते हुए बोली ..."जब सावत्री गौना ले के आई तो सच में क्या जवानी लिए हुए थी .....पूरा शरीर मांसल ...और क्या बड़ी बड़ी चूचियां ....!

"अठारह साल में पूरी की पूरी ओरत थी गुलाबी !उसका पति रामदीन भी जवान था ! लेकिन गाँव का एक आदमी था सुख्खू जो रामदीन का दोस्त था और गाँव के ठाकुर साहब का पिठ्ठू था !
"धन्नो बगीचे में बेठी अपनी बात पूरी कर रही थी जिसे बड़े गौर से सावत्री सुन रही थी मानो कोई लम्बी कहानी की शुरुआत हो रही हो !फिर धन्नो आगे बोली :-"गुलाबी तो एक दुल्हन की तरह ही रहती थी ,
घर से बाहर शौच करने ही जाती थी बस !"

धन्नो बात जारी रखती हुई बोली :-"और वो भी अपनी ननद रामीया के साथ जो रामदीन के दोस्त सुक्खू से फंसी थी, उस समय रामीया जवान तो थी लेकिन उसकी शादी नहीं हुई थी ,
और रामीया को सुक्खू अक्सर रामदीन की नज़र बचा कर चौद लेता था, लेकिन जब रामदीन की शादी हुई और उसकी बीबी गुलाबी एक दुल्हन की तरह घर में आ गई ,तब सुक्खू का मन गदराई और बड़ी चुचिया और बड़े चूतडों वाली गुलाबी की तरफ खिचने लगा , रामीया को ये बात पसंद नहीं थी उसे छोड़ कर सुक्खू उसकी भाभी को चोदे !"

इतनी बात सुनकर सावत्री पूछी :-"लेकिन चाची वो गुलाबी तो एक नई दुल्हन थी फिर वो केसे सुक्खू के साथ ये सब करने को तेयार हो गई .... ?" तब धन्नो बोली :-"अरे वो गुलाबी भी अपने मायके में खूब खेली खाई थी ....और सुक्खू का रामदीन का दोस्त होने के कारन घर के अन्दर भी आना जाना भी लगा रहता था , और एक खेली खाई ओरत भला एक रंगीन मर्द को केसे नहीं पहचानती ..और यही हुआ ..सुक्खू रामदीन की पत्नी यानि गुलाबी को पठाना शुरू कर चूका था ...और सच्चाई भी हे री ..की सीओ कुछ ही हफ़्तों में फंस गई ...!"


तब सावत्री पूछी :-"लेकिन चाची तुम्हे ये सब एक एक बात केसे पता हे ...!"तब धन्नो बोली :-"तू हरजाई .... तू ये बात समझती नहीं हे… में पहले ही बोली न की वो मेरी बहुत अच्छी सहेली हे ......और हम दोनों आपस में कुछ भी छुपाते नहीं हे ...!"फिर आगे बात जारी रखती हुई बोली :-"तो फिर सुन ..गुलाबी ने अपने मुह से ही बताई हे ...गर्मी के दिन थे और दोपहर में रामदीन कही गया हुआ था ... , और रामीया भी गाँव में गई हुई थी और उस समय सुक्खू रामदीन को खोजते हुए आया और गुलाबी को अकेला पा कर उसे चोदने की फ़िराक में वाही रुक गया गुलाबी भी तेयार थी!
पर अन्दर ही अन्दर कुछ डर भी रही थी ..!" धन्नो सावत्री की किसी कहानी की तरह ये घटना सुना रही थी !बगीचे मद्धम मद्धम हवा भी चल रही थी !सावत्री भी पुरे मन से सुनती जा रही थी !
आगे आने वाली कहानी के बार में सोच कर उत्तेजना से उसका हलक सुख रहा था ! सांसे भी तेज हो गई थी !धन्नो अपनी सहेली के बारे में सुनती आगे बोली :-" फिर क्या था फिर सुक्खू गुलाबी की कोठरी में घुस गया, 
और गुलाबी को यहाँ वह पकड़ने लगा , गुलाबी सुक्खू से मन से फंसी जरूर थी पर उसे लाज तो लग ही रही थी , नई दुल्हन जो ठहरी ....फिर एक साँस छोड़ते हुए फिर बोली कोठरी के कोने में सुक्खू गुलाबी को कस कर मसलता रहा ...और कुछ्ह ही देर में गुलाबी भी गरम हो गई ...फिर तो सुक्खू के कहने पर दुल्हन की तरह सजी संवरी गुलाबी कोठरी के कोने में अपने हाथ से साड़ी और पेटीकोट को उठा कर खड़ी हो गई ..
और सुक्खू ने अपने मोटे तगड़े लंड को पकड कर गुलाबी की बुर में खड़े खड़े ही पेल दिया ...
गुलाबी ने बताया की रामदीन और उससे पहले के यारों से बड़ा और मोटा लंड सुक्खू का था ...
एक धक्के में सुखु का मोटा तगड़ा लंड गुलाबी की लिसलिसाती पनियाई बूर चूत की दीवारों को अलग अलग करता आधा घुस गया था गुलाबी की सिसकारी निकल गई हैईई और साथ में दर्द के कारन आँखों की कोर में पानी भी ...
उसका पूरा शरीर सुक्खू के मोटे लंड की चोट से लरज गया वो नीचे गिर जाती अगर सुक्खू ने उसे बाँहों से झकड़ा नहीं होता तो ...लेकिन ..."धन्नो एक लम्बी साँस लेकर बोली ! "लेकिन क्या चाची? 
उत्तेजना से भरी हुई सावत्री अपनी उत्कंठा रोक नहीं पाई !
तब धन्नो बोली :- अरी हरजाई वो ननद कहीं से आ गई और उसके आने की आहट सुनते ही सुक्खू ने अपना गुलाबी की चूत में फंसा कसा हुआ लौड़ा एक झटके से खींच लिया ...पक्क की आवाज आई जेसे किसी ने शीशी के मुह से कार्क निकाला हो सुक्खू ने अपने फनफनाते लौड़े को अपनी हुंडी की तरफ मोडते हुए धोती में छुपा लिया और गुलाबी ने भी अपनी साड़ी पेटीकोट को एक झटके से नीचे करते हुए कोठरी के दुसरे कोने में चली गई और छुपने की असफल कोशिश करने लगी !

और सुक्खू कोठरी से निकलने की सोच रहा था पर उसका लंड धोती में से भी खड़ा दिख रहा था !तभी गुलाबी की ननद रमिया उस कोठरी में दाखिल हो गई ! रमिया को माज़रा समझने में देर नहीं लगी !उसने एक नज़र अपनी भौजी पर डाली जो शर्म से पानी पानी हो रही थी और डर से कांपती हुई कोने में सिमटती ही जा रही थी !सुक्खू के लंड का चिकना सुपारा धोती के ऊपर हुंडी के पास चमक रहा था फनफना रहा था ! उसकी हालत ऐसी हो रही थी जैसे शेर से शिकार छीन गया हो !सुक्खू रमिया से नज़रें मिलाने की स्थिति में नहीं था ! और रमिया ने वाही दोनों को खूब गलियां दी !गुलाबी तो रो पड़ी , और उसने खूब रमिया को हाथ जोड़े पैर पकडे पर रमिया नहीं मानी !गुलाबी और सुक्खू समझ गए की ये अपने भाई को कह कर ही मानेगी !तब सुक्खू रमिया को धमकाने के अंदाज़ में बोल की तू भी तो मेरे से चुदाती हे साली ! में भी ये बात तेरे भाई को बता दूंगा की मेने इसकी चूत मार मार कर भोसडा बना दिया तब तो ये नहीं बोली छिनाल ! इतना सुन कर सावत्री आगे पूछी :-"फिर क्या हुआ ?" तब धन्नो ने कहा :-"अरे वो रमिया की गांड फट गई .....जब सुक्खू ने उसे बताया की वो भी चुदैल रंडी हे ... तब से 

रमिया अपनी इज्जत के मारे चुप रहने लग गई ...! फिर कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा पर गुलाबी की आँखों के सामने सुक्खू का मोटा और हल्ल्बी लंड घूमता रहा उसे हर वक़्त कानो में पक्क की आवाज़ सुने देती रही जब वो मुसल एक झटके से उसकी चूत से बाहर निकला था ! उसकी चूत की दीवारे अभी भी उस खींचाव को मह्शूश कर रही थी ! जब सुक्खू ने लंड खींचा था ! फिर मौका देख कर एक दिन सुक्खू ने गुलाबी को कोठरी में पकड़ लिया लेकिन ...!"सावत्री के मुह से अचानक निकल पड़ा :-"लेकिन क्या चाची ?" तब धन्नो बिना रुके बोली :-"लेकिन इस बार सुक्खू ने गुलाबी को खड़े खड़े ही बुरी तरह पूरा का पूरा चोदा ....!"सावत्री जो इस कहानी में खो सी गई थी उसे समझ नहीं आया और वो तुरंत बोल पड़ी :-"बुरी तरह से… .पूरा का पूरा ...इसका का क्या मतलब चाची ?" तब धन्नो बोली :-"हा पूरा का पूरा का मतलब उसने गुलाबी को इतना चोदा की गुलाबी ३ बार झड गई और सुक्खू ने भी अपना पानी गुलाबी की बूर में छोड़ दिया ! सुक्खू के पानी ने गुलाबी को सराबोर कर दिया और उसकी मर्दानगी ने गुलाबी को .....
फिर आगे बोली अरे गुलाबी की कहानी बड़ी लम्बी हे सुनेगी तो कई दिन बीत जायेंगे !"ना जाने क्यों सावत्री को गुलाबी बारे और जानने की बहुत इच्छा हो रही थी ! इस वजह से उसने आगे पूछी :-उसके बाद क्या हुआ ?" तब धन्नो बोली :-"फिर क्या सुक्खू अक्सर गुलाबी को चोदने लगा कभी रमिया को भी चोद देता , कभी कभी मौका होता तो ननद भोजाई की साथ ही बजाता एक ही बिस्तर पर ज्यादा गुलाबी की बजाता ! इस वजह से रमिया गुलाबी से डाह रखती कई कई दिन सुक्खू रमिया को नहीं चोदता तो रमिया को उसकी चूत का पानी काटने लगता तो वो गुलाबी से लड़ने लगती सुक्खू को लेकर ....लेकिन ये लड़ाई दोनों के ही बीच थी तीसरा कोई नहीं जानता लेकिन सुक्खू को गुलाबी की गुदाज बूर के आगे रमिया की बूर कतई अच्छी नहीं लगती रमिया भी जवान थी पर वो अपने भाई की तरह इकहरे बदन की थी दुबली पतली , फिर इन दोनों के झगड़े कोठरी के बाहर भी आने लग गए थे और एक दिन रामदीन के कान में सुक्खू का नाम पड़ा तो वो आग बबूला हो गया , रामदीन को कुछ ऐसा समझ आया की उसकी बहिन सुक्खू से फंसी हुई हे ..
वो खा जाने वाली नज़र से उसने रमिया से पूछा तो दोनों ननद भोजाई चुप हो गई ...लेकिन उसकी समझ में ये ही आया की उसकी बहिन सुक्खू से चुदाती हे और गुलाबी उसे ऐसा नहीं करने को ले कर समझा रही हे इसी तरह के सोच में रामदीन सूखता गया , पहले से ही दुबले पतले शरीर के रामदीन को कुछ समझ नहीं आरहा था की इस सांड जैसे सुक्खू से कैसे निपटे तब धन्नो आगे बोली रामदीन दिल में ऐसा सोच रहा था की इस सुक्खू का खून कर दे जिसने उसकी बहिन पर बुरी नज़र डाली और जिस पर उसने विश्वाश किया और उसे घर में आने दिया !"
सावत्री मानो एक एक बात जानने के लिए व्याकुल थी तो आगे पूछी :-"आगे क्या हुआ चाची ?तब धन्नो बोली :-"रामदीन गुस्से में तो था पर सुक्खू को घर आने से मना करने की हिम्मत नहीं जूटा पा रहा था ...!"तब सावत्री बोली :-"अरे चाची उसे तो मना कर देना था .....भला उसकी मर्ज़ी के बगैर उसके घर में भला कौन आ सकता था !"धन्नो सावत्री के इस मासूमियत भरी बात पर मुस्कुरा कर बोली :-"अरे मेरी रानी .... कहने और करने में बहुत फर्क होता हे ...रामदीन बिलकुल दब्बू मर्द था वो ताकतवर सुक्खू से पंगा नहीं ले सकता था ...वो दुबला पतला डरपोक किस्म का इंसान था तो सुक्खू हट्टा कट्टा ताकतवर पहलवान ऐसे जैसे कोई राक्षश की तरह गठीला !अब इसके सामने रामदीन की क्या बिसात ! अँधेरे में देख लो तो सुक्खू किसी शैतान की तरह दीखता साथ ही वो ठाकुर का पिट्ठू भी था यानि उनका चेला !"धन्नो के मुह से ताकतवर और सुड़ोल सुक्खू का वर्णन सुन कर सावत्री का चेहरा भी कुछ सहम सा गया ! तब धन्नो आगे बोली :-"इस लिए रामदीन सोच रहा था की सुक्खू को उसकी बहिन को चोदते अगर वो रेंज हाथ पकड़ ले तो तो शायद सुक्खू डर जाये और फिर उसके घर छोड़ दे ! इस में रामदीन को एक ऐसा लगा की सुक्खू उसके घर में जाने के लिए घूम रहा हे तो अपने घर से रामदीन छिप गया !

तभी रामदीन को लगा की उसकी बहिन यही पड़ोस में घूम रही हे ! ये सोच कर रामदीन कुछ देर इधर उधर घुमा और फिर घर चल दिया ! घर जाकर देखा की कोठरी का एक दरवाज़ा हल्का सा खुला था और कोई भी उसे इधर उधर नहीं दिख रहा था !रामदीन ने सोचा की उसकी बीबी सो रही होगी !ये ही सोच कर रामदीन धीमे धीमे कदमो से अंदर जाने ही वाला था की अन्दर उसे गुलाबी की आवाज़ आई ...आआआआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ......अरॆऎऎऎऎऎऎऎए .........उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह. मर……… गीईईईईईईईईइ रॆऎऎऎऎऎऎऎ ....ऒऒऒऒऒफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ .! वो चोंक गया उसे पता चल गया की अन्दर गुलाबी सिसकियाँ भर रही हे ! सिसकार रही हे !ये सुनकर उसने खुले दरवाज़े से थोडा भीतर झाँका तो उसके होश उड़ गए !

और कोई नहीं वो सुक्खू था जिसके भरे पुरे शरीर और हट्टे कट्टे सांड जैसे शरीर के नीचे गुलाबी दबी पड़ी थी और सुक्खू का मोटाऔर तन्नाया लंड पूरा का पूरा गुलाबी की चूत में घुस चूका था और सुक्खू उसे हुमच हुमच कर पेल रहा था और गुलाबी अपनी आँखे मूंदे हुए सिस्कार रही थी बडबडा रही थी हाँ ......मेरे .....राजा .........ठोकते रहो ........क्या लंड हे .....में तो तुम्हारी ......गुलाम हो गई रॆऎऎऎ ....आआआआआआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ! रामदीन पीछे खड़ा था तो उन दोनों को नज़र नहीं आ रहा था गुलाबी की टांगे ऊपर थी तो उसे लंड जाते आते दिख रहा था पर उसे विश्वाश नहीं हो रहा था की सुक्खू का लंड इतना मोटा और विशाल भी हो सकता हे बिलकुल अजगर की तरह नज़र आ रहा था ! अजगर बाहर आके फिर से गुलाबी की चुदी हुई चूत में फिर से घुस जाता मुसल की तरह लग रहा था !और गुलाबी की आहें तेज हो जाती ! वो कश कश कर धक्के लगा रहा था और गुलाबी की सिस्कारियां भी बढ़ रही थी वो रामदीन के कानो में पहुँच रही थी !"धन्नो की इस अश्लील कहानी को सुनकर सावत्री भी गरम होने लगी थी ! उसका मुह भी तमतमा गया था !लेकिन कुछ बोली नहीं उसकी सांसे तेज हो रही 

थी ये देख कर धन्नो आगे बोली :-" रामदीन को तो काटो तो खून नहीं ,बेचारगी उस पर हावी थी पर उसकी गांड में इतना दम नहीं था की वो इस हालत में सुक्खू का सामना कर सके या उसे अपनी बीबी के ऊपर से हटा सके !सुक्खू उसकी बीबी को पागलों की तरह चोद रहा था और वो देख रहा था बीबी भी पुरे मज़े ले रही थी और सुक्खू पूरा का पूरा लंड बाहर निकाल कर एक झटके वापिस ठूंस देता गुलाबी की चूत चूं चूं कर रही थी ! जब उसका लंड बाहर आता तो रामदीन को उसकी लम्बाई गधे के जैसे लग रही थी ! पूरा निकलते सुक्खू को काफी ऊपर होना पड़ता फिर एक झटके में वो नीचे आता और उसका पिस्टन गुलाबी की चूत में पूरा घुस जाता और सीओ गुलाबी के चिपक जाता ! सुक्खू के मुहं से 
ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्न्ह हन्न्न्न्न्न्ह्ह्ह्ह की आवाज़े आ रही थी जैसे लकडहारा लकड़ी फाड़ रहा हो !रामदीन सुक्खू की चुदाई तब तक देखता रहा जब तक सुक्खू उसकी बीबी की चूत के परखचे उड़ाता रहा और आखिर में उसे दबोच कर अपने विशाल काय लंड से अपना बीज गुलाबी की चूत में छोड़ नहीं दिया गुलाबी भी पूरी पस्त हो गई थी और आंखे मूंदे मूंदे मुस्कुरा रही थी और अपनी सांसे सही कर रही थी !

अभी वो इतना थक चुकी थी की उसने न तो सुक्खू का पानी पोंछा था और न ही अपने खजाने को छुपाने के लिए पेटीकोट नीचा किया था ! और जब सुक्खू ने अपना लंड गुलाबी की चूत से बाहर निकल तो रामदीन की आँखे फटी की फटी रह गई 1 फुट से थोडा ही छोटा होगा ! और बहुत मोटा भी उसे अपनी मर्दानगी पर शर्म आई उसका पतला ५ इंच का लंड और चुदाई भी ३-४ मिनिट की होती थी जबकि उसके देखते देखते सुक्खू १५ मिनिट से गुलाबी की बूर बजा रहा था तूफानी रफ़्तार से ! जबकि उसके आने से पहले ही वो एक्सप्रेस चल रही थी !भले ही वो गुस्से में था पर सुक्खू के लंड की लम्बाई मोटाई देख कर उसे इतनी शर्म आई की वो उसके सामने भी नहीं जा सकता था और वो तुरंत वह से बाहर भाग गया ! रामदीन को गुस्सा तो बहुत आया पर चुप रहा क्यूंकि उसकी खुद की इज्जत की भी बात थी !अभी तक तो वो सोचता था की उसकी बहिन ही सुक्खू से फंसी हुई हे अब उसे बीबी का भी पता चल गया की ये भी उसके नीचे लेती हुई थी तो कैसे बर्दास्त करे ! जब सुक्खू उसकी बीबी को चोद कर चला गया तो वो घर आया ! और अपनी बीबी से सुक्खू और उसके समंध के बारे में पूछा तो गुलाबी को ऐसा लगा मनो वो बर्बाद हो जाएगी !

उस दिन तो गुलाबी ने अपने पति के हाथ पैर पकड़ कर माफ़ी मांग ली ! लेकिन सुक्खू का घर पर आना जाना बंद नहीं हुआ था !तब गुलाबी को पता चल गया की उसका मर्द इतना डरपोक हे की सुक्खू को घर आने से मना भी नहीं कर सकता !धन्नो आगे कहानी सुनती बोली :-"फिर एक दिन दोपहर में सुक्खू ने गुलाबी को चोदने के लिए कोठरी में पकड़ा तो गुलाबी फिर से सुक्खू के मोटे लंड से चुदने की चाहत में चुद गई ...एक दम से समर्पण कर दिया खुद ही नीचे लेट कर उसके मुसल को अपने हाथो से अपनी ओखली में सरका दिया !उस दिन तो रामदीन की नज़रों से दोनों बच गए पर फिर एक दोपहर को सुक्खू उसे चोदने आया तो रामदीन को शक हो गया ! तम्दीन समझ रहा था की अगर वो जल्दी घर नहीं पहुंचा तो आज भी सुक्खू उसकी बीबी को मचका देगा ! इसलिए वो जल्दी जल्दी घर पहुंचा ! पर आज कोठरी का अंदर दरवाज़ा बंद था ! पर उस कोठरी के पास ही एक छप्पर की कोठरी थी उसमे एक सुराख था जिस से कोठरी के अन्दर झाँका जा सकता था ! रामदीन उस छप्पर में जा कर उस सुराख़ से कोठरी के अन्दर झाँकने लगा ! अन्दर कोठरी में रौशनी कम थी और सुक्खू को पता चल गया की रामदीन उस सुराख़ से झांक रहा हे तो उसने गुलाबी की चूत को उस सुराख़ की तरफ कर के गुलाबी को खूब चोदा ! हुमच हुमच कर चोदा गुलाबी की पेरों को कंधे पर रख कर शानदार तरीके से चोदा ! गुलाबी भरपूर सिसकियाँ ले रही थी आआआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ,उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ....हयॆऎऎऎऎऎऎऎऎ मर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र गैईईईईईईईईईई ....आदि क्र रही थी और सुक्खू को भी रामदीन का पता चल गया की वो क्या चाहता हे इसलिए वो गुलाबी को जबरदस्त तरीके से चोदता रहा ! रामदीन भी गुलाबी की सिसकियाँ सुनकर उत्तेजित हो गया और उसने भी अपना लंड निकाल कर मुठिया मारने लगा और जब सुक्खू उसकी बीबी की चूत में अपना पानी उड़ेल रहा था तब वह भी छप्पर में अपना पानी छोड़ रहा था ! जैसे सुक्खू उसकी बीबी को चोद कर हटा रामदीन वह से भाग गया !

सुक्खू धीरे से उस छप्पर में जा कर उस सुराख़ के पास जा कर देखा तो उसे पता चल गया की रामदीन यहाँ खाली हो कर गया हे !फिर रामदीन ने आकर अपनी बीबी से खूब झगडा किया पर सिर्फ उस कोठरी में ही !और गुस्से में आकर एक - दो थप्पड़ भी मारे ! लेकिन अब रामदीन कुछ भी करे अब गुलाबी को सुक्खू का मोटा लंड भा गया था वो सुक्खू से खूब चुदाना चाहती थी ! इधर रामदीन अपनी इज्जत को लेकर परेशां भी रहता था !और एक दिन उसने गाँव के बाहर खाली मकान में रामीया को जाते देखा तो उसने उसका पीछा किया की रामीया उस गाँव के बाहर खाली मकान में क्यों जा रही हे ! इस अँधेरे में और जब रामदीन ने हिम्मत कर के मकान के अन्दर ताक झांक कर देखा की उसकी बहिन भी सुक्खू से चुदवा रही हे !अपनी शलवार नीचे कर घोड़ी बनी हुई हे और सुक्खू उसे पीछे से पेले जा रहा था !रामीय भी मस्ती से सिस्कारियां भर रही थी ! अपनी दुबली पतली बहिन की वासना की आग को देख कर रामदीन अचंभित रह गया ! उसकी छोटी सी पतली सी चूत में सुक्खू का लौड़ा गपागप अंदर जा रहा था !

रामदीन को लगा आज वो मर जायेगा उसका दोस्त उसकी बीबी ही नहीं उसकी बहिन को फंसा कर चोदता हे !रामदीन ने पहली बार महसोस किया उसकी और सुक्खू की दोस्ती के पीछे ये ही राज हे !उस पुराने मकान में उसे झांकते कोई देख न ले इसलिए वो बिना समय गंवाए वह से सरक गया पीछे से उसे सुक्खू और रमिया की चुदाई की आवाज़े आ रही थी ! खप्प - खप्प , गप -गप ,शट -शट , फट -फट , चट -चट और आआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह हुन्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह !लेकिन अपनी बहिन को सुक्खू के मोटे लंड से चुदते देख कर आज फिर उसका पतला लंड खड़ा हो गया ! वो चुपचाप घर आगया , उसके आधे घंटे के बाद रमिया भी आई संतुस्ट चेहरे के साथ !

रामदीन बहुत गुस्से में था पर डरपोक किस्म का होने के कारन उसने अपनी बहिन से पूछा कुछ नहीं !रामीय कुछ देर इधर उधर की फिर लोटे में पानी लेकर घर के पिछवाड़े में अपनी बूर धोने चली गई !गुलाबी को छोड़ने सुक्खू कई दिन से नहीं आया था !इसलिए गुलाबी को ऐसा शक हुआ की कही रामीय चुदवा कर तो नहीं आ रही हे !और जैसे ही रामीय लोटे में पानी लेकर अपनी बूर धोने घर के पिछवाड़े गई गुलाबी भी धीरे से उसके पीछे चली गई !अँधेरा हो चूका था पर बिलकुल साफ साफ दिख रहा था ! रमिया अपनी शलवार ढीली कर के बेठ गई और सुक्खू के गिराए गए वीर्य को बूर में से अंगुली से निकालने लगी ! और ये भूल गई की उसकी भौजी उसके पीछे खड़ी हो कर उसे देख रही हे !गुलाबी समझ गई की वो मर्द का पानी निकाल रही हे अपनी बूर में से !"इतनी बात सुनकर सावत्री ने गरम हो कर एक लम्बी साँस ली तो दह्न्नो समझ गई की गुलाबी की कहानी सुन कर सावत्री गरम हो रही हे !

धन्नो समझ रही थी की सावत्री को ये सेक्सी कहानिया वेसे ही अच्छी लग रही हे जैसे किसी नई उम्र की लड़की को अच्छी लगती हे !फिर आगे बोली :-" वो रामदीन के गुस्से का ठिकाना नहीं रहा ,फिर उसने दुसरे ही दिन जा कर गाँव के ठाकुर साहब से सुक्खू की शिकायत कर डाली ! "इतना सुनकर सावत्री बोली :-"हा ठीक किया चाची ,.....लेकिन फिर क्या हुआ ....ठाकुर साहब जरूर सुक्खू को डांटे होगे ?"इतना सुनकर धन्नो बोली :-" तू एक दम अनाड़ी हे .....रामदीन की तरह .....अरी ....ठाकुर साहब भी तो जवान ही थे ...एक नम्बर के चोदु ....और सुक्खू तो ठाकुर साहब का ही चेला था ....ये रामदीन मुरख को क्या पता ....अरे ... जब ठाकुर साहब को पता चला की सुक्खू रामदीन की बीबी और बहिन दोनों की बजा रहा हे तो ...ठाकुर साहब ने भी रामदीन के जरिये समझाने के लिए पहले तो रमिया को बुला कर चोदा और फिर गुलाबी को भी रामदीन के जरिये अपनी हवेली बुलाया ! रामदीन को कहा पहले इन्हें समझा कर रोक देते हे फिर सुक्खू को समझा देंगे ......

और बेचारा रामदीन खुद उन्हें ठाकुर साहब की हवेली छोड़ के आया और फिर वह ठाकुर साहब ने आराम से गुलाबी को भी चौद दिया ....!" सावत्री ऐसी बातें सुनकर चौंक सी गई !फिर धन्नो आगे बोली :-" जब रामदीन को ये बात गुलाबी द्वारा मालूम हुई की ठाकुर साहब ने क्या समझाया हे उलटे चौद चौद के पस्त कर दिया हे तो फिर तो बेचारे की हिम्मत ही नहीं हुई और फिर जब चाहे सुक्खू और ठाकुर साहब उसकी बीबी और बहिन को चोदते ..फिर तो रामदीन भी एक नम्बर का भडुआ बन गया रमिया की तो शादी हो गई पर गुलाबी को आज भी सुक्खू खूब चोदता हे .... हा जब कोठरी में चोदता हे तो सुक्खू रामदीन के लिए अपनी बीबी को चुदते देखने का इंतजाम जरूर करता हे ......और रामदीन भी सुक्खू के मूसल लंड से चुदती बीबी को देख कर गरम हो जता हे और खुद ही मुट्ठी मार कर खुद को भी शांत कर लेता हे !" सावत्री ऐसी बाते सुनकर हैरान रह गई !फिर धन्नो ने पूछा :-" अब तो समझ आय की भडुआ किसे कहते हे ... वो रामदीन की तरह जिसके सामने कोई दूसरा मर्द उसकी बीबी को चोदता हे और वो मुठ मर क्र अपनी जिन्दगी जीता हो .......समझी ...और ऐसा मर्द जिसे अपनी बीबी को दुसरे से चुदाने में चुदाने की खबर सुन कर बहुत मज़ा आता हो और अकेले में मुठ भी मार लेता हो पर ...बीबी से विरोध करने की हिम्मत नहीं करता !" तब सावत्री ने पूछा :-" वो रामदीन कहा रहता हे चाची ?" 
"अपने घर में और कहा ...दिन में इधर उधर कुछ काम कर लेता हे फिर घर में आ जाता हे .....सुक्खू के आने पर तो शर्तिया और फिर उन्हें चोदा -बाटी करते देखना उसका खाश काम हे !" धन्नो ने नशीली आवाज़ में जबाब दिया !फिर सावत्री बोली :_" और वो सुक्खू ...?" धन्नो चहक के बोली :-" अरे ...कुछ न पूछ उस सुक्खू का हर वक़्त गुलाबी की घेरे रहता हे जैसे वो सांड हो और गुलाबी गाय .....बीएस रामदीन थोडा इधर उधर होता हे ...और वो घुस जाता हे गुलाबी को ले कर कोठरी में आज भी उसी ताकत से चोदता हे उसे ....आज दोपहर चल के देख ले उसे ...जैसे रामदीन देखता हे तुझे भी पता चल जायेगा ..
सुक्खू की ताकत का जैसे वो जवानी में था देख ले कितने जठ्के दे दे कर चोदता हे ...क्या उसका मोटा और फौलादी लंड हे ..और मोटा लंड ..बाप रे ...घुसाता हे तो मानो जान ही निकल जाती हे .....लम्बा ...बांस जैसा ...बड़ा चौदु हे !" इतनी बात सुनकर सावत्री लजा गई और बोली :-" धत्त चाची ...क्या बकती हे छी ...!" तब धन्नो बोली :-" अरी .. हा ..री ..अगर वो तुझे चोदेगा तो समझ ले बूर को फाड़ के रख देगा ..पूरा का पूरा मूसल हे बाप रे ...!"तब सावत्री कुछ गुस्से वाले अंदाज़ से बोली :-" छी ..चाची क्या कह रही हो क्या तुम भी चुदवाये हुए हो उस सुक्खू से ...!" धन्नो मानो ये ही बताना चाहती थी जो सावत्री पूछी थी इसलिए तुरंत बोली :-" अरे ..हा री ..हरजाई ...हम सब में ये सब चलता हे ...न जाने कितनी बार में सुक्खू के मूसल लंड से चुदवाई हु ...आज चल तुझे भी चखा दू सुक्खू का ....!" और इतना बोल कर धन्नो हंसने लगी !
तब सावत्री बगीचे में बेठे हुए अपने सर को दूसरी तरफ घुमाते हुए बोली :-" चाची ये बातें ठीक नहीं लगती !" और एक हलकी मुस्कराहट उसके चेहरे पर फ़ैल गई ! तब धन्नो बोली :-" जब लंड का चस्का लग जायेगा ... तो में देखती हु तू कैसे चुदवाने से कतराती हे ..अभी पंडित जी ज्यादा नहीं खोल पाए हे तुझे ... 

अब चल गुलाबी के गाँव चलते हे आधा ही दूर हे और दोपहर भीहोने वाली हे !" धन्नो उठते हुए बोली !धन्नो को खड़ी होते देख कर सावत्री भी खड़ी हो गई ! सावत्री को इतनी देर तक ऐसी बाते सुन कर पेशाब महसूस होने लगा था !धन्नो थोड़ी दूर हट कर अपने साडी और पेटीकोट को उठा कर मुतने लगी थी ! फिर बिना कुछ कहे सावत्री भी अपने सलवार और चड्डी को नीचे सरका कर बेठ गई और मूतने लगी ! तब धन्नो बोली :-" तुझे भी मूतवास लग गई ...चल कर आज गुलाबी के घर चल सुक्खू से चुदवाने का मन हो गया तुम्हरा लगता हे री !" और इतना बोल कर सावत्री खड़ी हो गई और साडी उठाये ही अपनी चूत का हिस्सा सावत्री के सामने दिखा कर सहलाने लगी ! सावत्री धन्नो की बाते सुन कर कुछ गुस्से जैसा मुह जरूर बनाई पर मुस्कुरा कर रह गई ! और जब सावत्री भी मूत कर अपनी चड्डी ऊपर सरका कर सलवार पहन कर नद बंधने लगी तो सावत्री उसके चूतडों को गोर से देखती हुई एक चुतद पर चांटा मारती हुई बोली :-" अरी तेरे भी चुतड पंडित जी से चुद चुद कर खूब शादीशुदा ओरतो की तरह चौड़े और मोटे हो गए हे री लगता हे रोज पंडित जी से चुदती हे तू ...!" अपने चुतद पर जैसे ही धन्नो का चांटा लगा सावत्री के पुरे शरीर में सनसनाहट दौड़ गई और पंडित जी से चुदने की बात सुन कर वो डर सी गई !

अब वो बार धन्नो को झूठा गुस्सा नहीं दिखा सकती थी उसकी कमजोरी धन्नो के पास थी ! उसका सांवला चेहरा शर्म से लाल हो गया था !पर फिर भी सावत्री अपनी सलवार के नाड़े को बंधती हुई हिम्मत कर बोल उठी पर उसकी आवाज़ में इस बार मुलायम भाव थे :-" धत्त चाची ..ये क्या करती हो कोई ....देख लेगा तो ..और मुझे ये सब बाते अच्छी नहीं लगती .....पंडित जी को मना करने की हिम्मत नहीं कर सकती डर जाती हु और इसी का वे रोज फायदा उठा लेते हे ...और फिर मुझे भी मज़ा आ जाता हे न ..!"इतना बोल कर सावत्री धन्नो को कुछ गुस्सा कुछ अदा दिखा रही थी ! खेली खाई धन्नो खूब समझ रही थी !और जानती थी की ऐसी घोड़ियों को केसे काबू में करते हे !और धन्नो जानती थी सावत्री की चिड़िया अब चहकने लगी हे और अन्दर ही अन्दर वो खूब मज़े ले रही हे !फिर धन्नो बोली :-" चल अब दूध की धूलि मत बन ...अब जब तेरी सील टूट ही गई हे तो क्या फायदा ऐसी बातों का कहे को झूठा नाटक कर रही हे वो कहावत नहीं सुनी क्या ....
" चार इंच का घुंघटा , अन छूई दुल्हनिया के ,
छ इंच का घुंघट तो मानो चूची दब्वाई हे ,
आठ इंच का घूँघट काढ़े तो समझो सील तुद्वाई हे ,
दस इंच का लटके घूँघट तो मानो जोड़ा लंड खाई हे,
एक फुट का घुंघट दुल्हन के तो मानो माइके में आधा गाँव से चुदवाई हो !
समझ जब भी कोई नई दुल्हन अपने मैके से ससुराल आती हो तो 
जो जितना ज्यादा चुद कर आती हे वो ऐसा दिखावा भी ज्यादा करती हे !
मानो एक दम कुंवारी हो जैसे तू कर रही हे हरजाई पंडित से रोज चुदती हे 

उस दिन मेने तुझे खंडहर में उस शराबी से खूब चुदवा दिया और तूने भी उससे खूब मज़े ले ले कर मरवाई थी फिर भी शरीफ होने का नाटक कर रही हे ! चल अब गुलाबी के गाँव चलते हे और खूब मजे लेते हे !:ऐसा कह कर धन्नो लहलहाते खेतों में से हो कर पगडण्डी पर चलने लगी और पीछे पीछे कुछ सोचती हुई सावत्री भी चल रही थी पर उसकी बूर में किसी से चुदवाई करवाने को ले कर चींटियाँ भी चल रही थी ! उसे ख्यालों में सुक्खू का मूसल दिख रहा था !खेतों के बीच चलते चलते थोड़ी ही देर में गुलाबी का गाँव नजदीक आ गया !लेकिन धन्नो गाँव की और जाने के बजाय दूसरी और सुनसान और निरजन जगह की और बढ़ने लगी !तब सावत्री पीछे पीछे चलती हुई बोली :-" चाची ...कहाँ जा रही हो ? ....गुलाबी चाची का गाँव तो उधर हे .!" तब धन्नो बोली :-" अरी ... दोपहर के बारह बजने वाले हे .....अभी गुलाबी घर थोड़े ही मिलेगी .....वो तो इधर ही होगी !" तब सावत्री बोली :-" किधर ? ..चाची इधर तो सन्नाटा हे ...यहाँ कहाँ होगी वो ...इधर तो कोई दिख भी नहीं रहा ......इधर कहाँ होगी और क्या कर रही होगी ?"तब धन्नो पत्तलों के झुरमुट के बीच एक पतले रस्ते पर चलते हुए ब बोली :-" अरी इधर गाँव के ठाकुर साहब के खेत हे और उन्होंने खेतों की रखवाली के लिए खेतों में एक कोठरी बनवा रखी हे ...और दोपहर में गुलाबी का अड्डा भी यही हे ....और ठाकुर साहब की सेवा भी करती हे ... समझी !" सावत्री झुरमुट वाले रास्ते पर धन्नो के पीछे पीछे चलती हुई कई तरह की बातें सोच रही थी !

कुछ देर चुपचाप चल कर फिर धन्नो आगे बोली :-" ठाकुर साहब अपनी गुलाबी को बहुत पसंद करते हे ....और बड़े लोग का मन जिस पर आ जाये तो समझ लो कोई भी उसे उनसे दूर नहीं रख सकता ....!" सव्रेइ के कानो में ये बात साफ सुनाई दे रही थी पर झुरमुट के रास्तों पर इतना सजग हो कर चलना पड रहा था की उसे समझ नहीं आया की धन्नो की इस बात का मतलब क्या हे !दुसरे पल बोली :-" चाची क्या ? ... समझ नहीं आया ...!" तब धन्नो बोली :-" अरी यही कह रही हु की गुलाबी की भरी पूरी जवानी के पीछे ठाकुर साहब भी लट्टू हो गए हे ....और उसे मानो एक रखैल की तरह रख लिया ...बड़े लोगों को भला किस बात का डर .....और वो भी गाँव के ठाकुर साहब ....!" इतनी बात सुनकर सावत्री समझ गई और आगे बोलना नहीं चाह रही थी !तभी वो झुरमुट ख़तम हो गए और एक छोटी सी कोठरी सामने थे ! इसके चारों और सिर्फ खेत ही खेत थे ! एक दम निर्जन स्थान !कोई सोच भी नहीं सकता था की ऐसी जगह पर कोई कोठरी भी हो सकती हे ! फिर धन्नो कोठरी के नजदीक जा कर बोली ;-'देख ये चारों तरफ जो खेत हे सब ठाकुर साहब के हे ...और जब कभी अपने खेत देखने आते हे तो इसी कोठरी में आराम भी करते हे ...और सच कहूँ तो इस कोटरी का इस्तेमाल रखवाली में कम और बूर चोदने में ज्यादा होता हे ...!" इतनी बात सुन कर सावत्री एक दम से सन्न रह गई ! फिर धन्नो की तरफ देखते हुए सावत्री धीमी आवाज़ में बोली :-" लेकिन चाची .. फिर गुलाबी चाची यहाँ क्या करती हे ..?" तब धन्नो कुछ झुंझलाते हुए बोली :-" तू तो एक दम मुर्ख की तरह बात करती हे ... इतना भी नहीं समझती ...अरे हरजाई वो भी एक ओरत हे .. और ठाकुर साहब के लंड की दीवानी भी हे .....और मेने तुझे बताया था न की वो यहाँ उनके खेत की 
देख भाल के लिए यहाँ आती हे और खूब ठाकुर साहब से चुद्वाती हे ..तू जाने कब समझेगी सब बाते ..!"इतना बोल कर धन्नो उस छोटी सी कोठरी की तरफ बढ़ गई !

सावत्री ने गौर से उस निर्जन स्थान पर बनी कोठरी को देखा उसमे एक दरवाज़ा लगा हुआ था पर कही भी कोई खिड़की नहीं थी !बस ऊंचाई पर एक रोशनदान था और दरवाज़ा भी पुराना सा ही थी !नीचे का हिस्सा टूट भी रहा था देखने से ही ऐसा ही लग रहा था की ये दरवाज़ा रोज़ बंद नहीं होता था !उस कोठरी के आस पास कोई नहीं था और दरवाज़ा भी खुला हुआ था धन्नो उस कोठरी के पास जा कर मानो कुछ सुनने की कोशिश कर रही थी ! सावत्री ऐसा देख कर कुछ सहम सी गई ! और फिर उसे अन्दर से कुछ फुसफुसाने की आवाज़ आई ये आवाज़ गुलाबी की थी !ओरत की आवाज़ सुनकर धन्नो भी समझ गई की गुलाबी हे पर इस दोपहर इ उसके साथ कौन होगा और धन्नो को पूरा यकीन था की अन्दर उसके साथ ठाकुर साहब ही होंगे !तभी कोठरी के अन्दर से किसी मर्द की आवाज़ आई आआआह्ह्ह्ह ...स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ....अरॆऎऎ ....अब रहने दे रॆऎए ...! धन्नो समझ गई की ये मोती आवाज़ ठाकुर साहब की हे !सावत्री को कुछ समझ नहीं आ रहा था ! तभी धन्नो उसकी तरफ मुद कर बोली :-" लगता हे ठाकुर साहब अन्दर हे ..और गुलाबी को मचका रहे हे !" इतना सुन कर सावत्री डरी हुई आवाज़ में बोली :-" तो चाची ... फिर चलो यहाँ से !"और शब्दों के ख़तम होते होते सावत्री के चेहरे पर एक खौफ पसर रहा था !

फिर धन्नो उस खुले दरवाज़े से झाकने की बजाय कुछ दूरी से आवाज़ लगनी शुरू की :-" यॆऎऎऎऎए गुलाबी .....यॆऎऎऎऎए गुलाबी !"धन्नो के मुह से निकली आवाज़ उस निरजन में मानो गूंज सी गई !कोठरी के अन्दर से कुछ जबाब तो नहीं मिला पर कुछ हलचल जरूर सुने दी !जैसे कोई चौकी से नीचे तेजी से उतरा हो ! फिर पायल की आवाज़ सुने दी ! और फिर अन्दर से गुलाबी की परिचित सुनाई दी ' कौन हे ? ... अरे धन्नो ...आओ ....!" सावत्री ने भी उस खुले दरवाज़े से गुलाबी को झांकते देखा पर जिस हालत में गुलाबी थी उसे देख कर मानो सावत्री को चक्कर आ गए हो ! गुलाबी ने जल्दी से अपने शरीर पर सिर्फ पेटीकोट ही डाला था !पेटीकोट से ही अपनी चूचियां ढके हुए थे इसलिए नीचे पेटीकोट सिर्फ उसकी गदराई गांड और झांगों से थोडा ही नीचे था !पहले तो वो सिर्फ अपना चेहरा ही बाहर लाइ थी पर जब देखा की उसकी सहेली धन्नो हे तो अपनी चुचिया और अपना नीचे वाला हिस्सा भी दिखा दिया था ! फिर दरवाज़े से अन्दर हो कर चौकी पर एक दम नंगे लेते ठाकुर साहब की तरफ देखते हुए हंस कर बोली :-"वो धन्नो हे बाबूजी !...तब ठाकुर साहब चौड़ी चौकी पर लेते और तेल की मालिश से अपने अकड़े हुए विकराल लाल लिंग पर धोती रखते हुए बोले :-"तो अन्दर बुला लो !" फिर गुलाबी ने अपने पेटीकोट को धन्नो की तरफ देखते हुए अपने कुल्हे के ऊपर बांध लिया ! फिर सावत्री की तरफ देखती हुई बोली :-' अरे धन्नो अच्छा किया जो सावत्री को भी खेत घुमाने ले आई ....आओ अन्दर तो आओ ....अन्दर सिर्फ ठाकुर साहब ही हे ...!" तब धन्नो बोली :-" हा मेने सोचा दोपहर को भला तू घर पर कहा होगी ...

तो यही आ गई ....और इसे भी इस बहाने घुमा दू ...!" तब गुलाबी बोली :-" ठीक ही किया जो इस बेचारी को भी घुमा दिया ...बाबूजी भी आ गए थे तो तेल लगा रही थी ....!" गुलाबी और धन्नो के बीच की बातें सुन कर ठाकुर साहब को लगा की धन्नो के साथ कोई और भी हे !इसलिए थोडा सजग होते हुए बोले :-" और कौन हे ?"तब गुलाबी बोली :-" वो धन्नो के गाँव की एक लड़की हे ... वो उसे भी साथ घुमाने लाइ हे ...फिर ठाकुर साहब के सामने सिर्फ पेटीकोट में खड़ी आगे बोली :-"धन्नो के पास में ही रहती हे घुमने आई हे ..!"ठाकुर साहब ने सुना की धन्नो के साथ ही रहती हे ये जवान लड़की तो उन्होंने चुदैल धन्नो के साथ रहने वाली लड़की का मतलब अपने हिसाब से निकाल ही लिया !और लेटे लेटे ही बोले :-" धन्नो आओ अन्दर ...क्या बहार ही खड़ी रहोगी ...!" इतना सुनकर धन्नो मुस्कुरा कर अन्दर गुसने से पहले अपने पीछे खड़ी सावत्री को देखते हुए बोली :-" आओ आओ अन्दर आओ ...!" सवरती जो गुलाबी को अर्धनग्न देख कर कुछ सन्न रह गई थी पर धन्नो चाची को कोठरी में दाखिल होते देख कर उसने भी अपने पांव कोठरी में धर दिए !और जैसे ही उसकी नज़र चौकी पर लेटे हुए ठाकुर साहब पर पड़ी वो कांप सी गई !नंगे ठाकुर साहब अर्धनग्न गुलाबी की और देख रहे थे और अपने तेल लगे लंड को धोती के ऊपर से ही मसलते हुए बोले :-"धन्नो ये कौन हे री ?'मानो सावत्री के बारे में धन्नो के मुह से सुन्ना चाह रहे थे ! तब धन्नो बोली :-" बाबु जी ये सावत्री हे ... मेरे गाँव की लड़की ..ये बहुत अच्छी हे ... मेने सोचा इसे भी घुमा दू ...फिर गुलाबी की और देखते हुए बोली :-" पर बाबूजी मुझे आज तो ऐसा लग रहा हे की में कबाब में हड्डी बन गई ...आपका मिजाज ख़राब हो गया !" तब ठाकुर साहब बोले :-" कोई बात नहीं ...धन्नो आज दोपहर में ये मेरे ओजार पर तेल लगा रही थी ....और कुछ नहीं ...!" तो धन्नो बोली :-" तो हम दोनों जा रहे हे बाबूजी आप तेल मालिश करवा लो इस गुलाबी से ..! इतना बोल कर धन्नो गुलाबी को छेड़ते हुए आहिस्ते से धकेल दी !गुलाबी की नंगी चुचिया हिल गई और गुलाबी ठनक के बोली :-" में तो तेल लगाती हु ..और तेरे लिए तैयार हे बाबूजी का लोडा ...."गुलाबी की बाते सुन कर ठाकुर साहब हँसते हुए चौकी पर बेठ गए !

सावत्री जब गुलाबी के मुह से ऐसी बाते सुनी तो वो सकपका गई ! ठाकुर साहब की नज़र सावत्री के चौड़े और कसे नितम्बो पर ही थी !तब धन्नो बोली :-' जब तू तेल लगाईं हे तो लंड थामे थामे तेरी चूत पनिया गई होगी ....तो अपनी गर्मी शांत कर ले !"फिर ठाकुर साहब की तरफ देख कर बोली :-" बाबूजी इसे पटक कर चोद दीजिये ....ये हरजाई चू रही होगी पेटीकोट में ....अब देर मत कीजिये ...!" ठाकुर साहब भी गुलाबी की सहेली धन्नो को भी न जाने कितनी बार पेल चुके थे !इसलिए उनके सामने कोई लाज शर्म नहीं थी ! एक दम खुल्लम खुल्ला बाते होती थी !पर सावत्री के लिए ये सब नया था ! उसका कलेजा ऐसे धक् धक् कर रहा था मानो कोई हथोडा चल रहा हो !ठाकुर साहब को भी समझते दी नहीं लगी की धन्नो छिनाल इस लड़की को घमने के साथ साथ अपनी तरह छिनाल बनाने लाइ हे !वो जानते थे की खेतो के बीच बनी निर्जन जगह इस कोठरी में दोपहर को क्या होता हे ये धन्नो को सब पता हे !फिर ठाकुर साहब सावत्री के नीचे झुके शर्म से लाल हुए चेहरे की तरफ देखते हुए बोले :-" अरे धन्नो ये गुलाबी तो साली रोज खाती हे तेल लगा कर आज तू ही खाले न ...फिर आगे बोले "ये लड़की डरेगी तो नहीं मेरा ओजार देख कर अच्छी के मूत आ जाता हे इसे देख कर ....!" 

तब गुलाबी बोली :-" नहीं बाबूजी ..ये दोनों की दोनों छिनाल हे ... ये क्या डरेगी ...आप तो जानते हे ना इनका गाँव चोदुओं का गाँव हे ....न जाने कितने लंड देखें होंगे इन्होने ......ये छोकरी " गुलाबी की इतनी गन्दी बात सुन कर एक बार तो सावत्री का खौल उठा !लेकिन कुछ आगे सोचती की धन्नो मानो बचाव करती हुई बोली :-" बाबूजी ये रंडी अपनी तरह सबको समझती हे ....बाबूजी ये लंड के लिए बेकरार हे इसी लिए बकबक कर रही हे हरामजादी ...!धन्नो और गुलाबी के बीच मानो शब्दों की जंग छिड़ने लगी थी ! दोनों हंस भी रही थी एक दुसरे पैर अश्लील बाते बोल कर !ठाकुर साहब दोनों की बैटन में रस ले रहे थे फिर बोलर ;-" ले गुलाबी तेरी बात मान लेता हु ये धोती हटा लेता हु ..."इतना बोल कर जैसे ही ठाकुर साहब ने अपनी धोती तेल से सने लंड से हटाकर चौकी पर राखी तीनो की नज़र जैसे ही विकराल लंड पर पड़ी ! सावत्री का तो उस फौलादी लंड को देखते ही कलेजा दहल गया ! पंडित जी और उस शराबी तो आधा ही था इसके सामने ! सावत्री उस मोती लोहे की सलाख जैसे काले लंड को देख कर कांप सी गई ! ठाकुर साहब ने दुसरे ही पल अपना हाथ लंड पर फेरना शुरु करते हुए सावत्री की तरफ देखा तो उनकी आँखे सावत्री से टकरा गई और सावत्री लाज से पानी पानी होती हुई अपने सर को कोठरी की जमीन में मानो धंसा ली !

इतना देख कर गुलाबी जो सिर्फ पेटीकोट में खड़ी थी बोली :_" देख ले सावत्री ये बाबूजी का ओजार हे ...पुरे ४ ८ साल के बाबूजी हे पर लौडा एक दम फौलाद हे जवानों को भी पीछे छोड़ा देता हे ये ....जी भर के देख ले !"सावत्री के मन में गुस्सा और लाज का समावेश इतना हो गया था की एक पल के लिए उसके मन में आया की वो वह से तुरंत भाग ले !सावत्री अपने सर को नीचे झुकाए खड़ी थी और धन्नो भी उसके चेहरे पर आये उतार चढाव को देख कर समझ रही थी की ठाकुर साहब का लंड देख कर इसके मन पर क्या बीत रही होगी !फिर धन्नो सावत्री की तरफ से गुलाबी को बोली :-" गुलाबी तुम भी एक दम रंडी हो ...ये बेचारी कल की छोकरी बेचारी ...कहीं डर गई तो इसे देख कर ...कोई तेरी जैसी ये चुदेल नहीं हे ना ..फिर ठाकुर साहब की तरफ देखते बोली " बाबूजी बच्ची हे ये अभी आप इसे धक् लो कही डर जाएगी बेचारी !"

इतना सुनकर गुलाबी बोली :-" कोई सांप या अजगर हे क्या जो ये डर जाएगी ...अरे बाबूजी आप इस धन्नो की बातो में मत आना ये खुद तो चुदती हे घूम घूम कर इसे भी चुद्वाती फिरती हे ....देखिये बाबूजी इसके चुतड पुरे शादीशुदा ओरतो की तरह हो गए लंड खाते खाते ...!" गुलाबी के मुह से ये बाते मानो सावत्री के अन्दर बचे आत्म सम्मान को मानो झकझोर रही थी !1 8 साल की की सांवली सलोनी सावत्री जिसके चेहरे पर नई जवानी की हलकी फुन्सिया दिख रही थी ! 4 8 साल के ठाकुर साहब उसे चोदे बिना छोड़ना नहीं चाहते थे ! वेसे भी वे कई दिनों से अधेड़ धन्नो और गुलाबी को चोद -चोद कर उब चुके थे !आज जो उन्हें ये मौका मिला हे नई जवानी चखने का तो कैसे गंवाते !थोड़ी देर पहले सांवले ठाकुर साहब जिनका कद साढ़े छ फुट और पूरा शरीर मानो पहलवान का सा था गुलाबी के नाजुक हाथों से सरसों के तेल की मालिश से उनका बदन चमक रहा था और घनी झांटों के बीच उनका विशाल काला लौड़ा तन्नाया हुआ सर उठाये खड़ा था और उसका सुपारा किसी लाल टमाटर की तरह चमक रहा था !एक तो निर्जन स्थान और अपने आप आई ये शर्माने वाली लड़की ठाकुर साहब का लौड़ा ,मस्ती में जैसे फूल कर फटने को तैयार था !धन्नो जैसी चुदेल के साथ आई लड़की और फिर गुलाबी की ललकार ने मानो ठाकुर साहब के मन में तूफ़ान भर दिया था और सोच लिया था की इस गदराई हुई जवानी वाली शर्मीली छोकरी को आज चोदे बिना नहीं जाने देंगे !ये दोनों रंडीया वेसे भी उसे चुदाने में सहयोग कर रही हे तो आज इसको रगड़े बिना नहीं जाने देंगे !ठाकुर साहब के लंड में खून का बहाव तेज हो गया था और लंड की नसें आई थी मानो कहीं फट न !जाए !

एक बार तो धन्नो लंड के इस विकराल रूप को देख कर अपनी बूर को साड़ी के ऊपर से ही सहला कर रह गई फिर कुछ सोच कर रुक गई !ठाकुर साहब जो सावत्री को मचकाने का पूरा सोच चुके थे :- " गुलाबी तू इस नाजुक कली को झूठा बदनाम कर रही हे री ...देखने में तो बड़ी भोली और शर्मीली लगती हे ...और तू कह रही हे की इसने कई लौड़े खाए हे और खूब चुदी हुई हे !"फिर ठाकुर साहब अपने तन्नाये लंड को चौकी पर बेठे बेठे ही सहलाते हुए धन्नो की तरफ देख कर बोले :-" धन्नो में तेरी बात पर भरोसा करता हु ... पर गुलाबी के कहने के कारण इसे ठीक से देखना भी होगा .....क्यूंकि किसी के शकल पर शराफत थोड़ी लिखी हुई होती हे ....अभी देख लेते हे की इसकी सील टूटी हुई हे या नहीं !"ठाकुर साहब की शरारत भरी बाते सुन कर बहुत सावत्री एक दम डर सी गई !छिनाल किस्म की गुलाबी ठाकुर साहब की बातों का मतलब समझती हुई उसी रसीले अंदाज़ में बोली :-" हाँ बाबूजी ...आप इस सावत्री की बूर चोडी करके देखिये की इसने लंड खाए हे या कुंवारी हे !"गुलाबी भी ठाकुर साहब के सामने अश्लील बातें कह कर स्वर्गिक आनद दे रही थी ! उसे धन्नो ने पहले ही दिन बता दिया था की सावत्री भी उनकी तरह छिनाल बनने के रास्ते पर चल रही हे और जल्दी ही एक बड़ी छिनाल उनके गुट का हिस्सा होगी !गुलाबी भी एक नई लड़की को छिनाल बनाने का मौका चूकना नहीं चाहती थी !उसे भी इस काम में असीम आनद आता था ! इसलिए सावत्री के अन्दर भरे लाज शर्म पर गुलाबी के अश्लीलता से बहरे शब्द भारी पड़ने लगे थे !

वेसे भी धन्नो ने गुलाबी को एक दिन पहले ही बता दिया था की सावत्री अब चालू हो गई हे और लंड खाने लगी हे !ये भी बताया की उसके अन्दर अभी शर्म लाज बहुत हे तो उसे गुलाबी ने बताया की जब वो कई कई मर्दों के नीचे दबेगी तो उसे किसम किसम के लंड खाने की आदत पड़ जाएगी और लाज शर्म भी पीछे छूट जाएगी और फिर वो पक्की छिनाल हो जाएगी !इसलिए आज धन्नो मौका पा कर जानबूझ कर सावत्री को इस निरजन स्थल पर बनी कोठरी में लाइ थी !उसे पता था वह ठाकुर साहब होंगे और उनके सामने गन्दी और अश्लील बातें करने का मज़ा भी मिल जायेगा !और आज मौका भी था और ठाकुर साहब ने भी उनके आने के पहले गुलाबी को नहीं चोदा था और उनका लंड तान्नाय्या हुआ लाल हो रहा था सावत्री को चोदने के लिए !वेसे धन्नो के मन में एक डर था की कही सावत्री बिदक न जाए ! इसलिए वो सावत्री से फूहड़ बातें अपनी तरफ से नहीं कर रही थी बल्कि उसका पक्ष ले कर गुलाबी के खिलाफ बोल रही थी ! ताकि वो उसे अपना हितेषी समझे !हा गुलाबी की फूहड़ बातों में आ रही तेजी से धन्नो अन्दर ही अन्दर खुश थी पर वो सावत्री के सामने इसका दिखावा नहीं कर रही थी और गंभीर बनी हुई थी !

धन्नो एक साहस से भरी ओरत थी और निर्णय लेने में भी बहुत तेज थी ! उसमे आत्म विश्वास भरा हुआ था उसने ना जाने अपने जीवन में कितनी ही बातें देखि थी कितनी ही बदनामिया झेली थी !कितने ही उतार चढ़ाव झेले थे पर अपने अन्दर मजबूती को कम ना होने दिया था !आज गुलाबी की अश्लील बैटन के बीच कोठरी में ठाकुर साहब की सावत्री को चोदने की आतुरता और शर्म से पानी पानी हो चुकी सावत्री को देख कर उसे सावत्री की माँ द्वारा उसे बदनाम करने की बातें याद कर और फंसी हुई हिरनी की तरह सावत्री को देख कर उसका मन प्रफुल्लित हो रहा था !क्यूंकि उसे सावत्री की शर्म लाज को एक निर्जन स्थान पर एक बार और स्खलित करने का मौका मिल गया था उससे पहले ऐसा वो खंडहर में शराबी से सावत्री को चुदवा कर कर चुकी थी !फिर ठाकुर साहब के चेहरे पर सावत्री को रगड़ने के उतावलेपन को भांपते हुए वो भी गुलाबी के इस छिनालपन खेल में शामिल हो गई ! और फिर गुलाबी के जबाब में सावत्री का पक्ष लेते हुए बोली :-" अरे क्या देखेगी ... में क्या झूठ बोलती हु क्या री हरजाई ...जो देखना हे देख ले ...और ठाकुर साहब को भी दिखा दे .... अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा ...और तू छिनाल झूठी पड़ जाएगी और मेरी बेटी सच्ची !" धन्नो की ये बातें सावत्री को एक दम तीर की तरह लगी और वो जैसे कांप उठी !
सावत्री पर मानो पहाड़ टूट पड़ा था ! तो गुलाबी भी एक दम से बोली :-" तो देर किस बात की ....बाबूजी भी हे ... ये तुरंत फैसला कर देंगे इस बात का ...खुलवा दे बूर को !" गुलाबी के मुह से इन शब्दों ने मानो सारी अश्लीलता की हदे तोड़ दी हो !सावत्री खुद की बूर की ऐसी बातें सुन कर एक दम से शर्मा और बुरी तरह से लजा गई थी उसका चेहरा लाल हो गया था शरीर कांपने लगा था कलेजा धक् धक् कर रहा था उसने सोचा आज दूकान में दोपहर को पंडित जी से नहीं चूदी तो यहाँ ठाकुर साहब अपना मूसल ले कर तेयार हे क्या किस्मत लिखी हे !

उसे विश्वास नहीं हो रहा था की ठाकुर साहब और गुलाबी के साथ धन्नो भी ऐसी बाते करती हे !शायद आज छिनाल किस्म की दो ओरतों और चोदु किस्म के महा चोदु ठाकुर साहब के साथ इसका पहली बार ही पाला पड़ा था और उसके मन में आ गया था की आज चुदे बिना यहाँ से छूट नहीं सकती !सावत्री के शरीर में डर के साथ एक सनसनाहट भी दौड़ रही थी ! उसे लग रहा था की कही सच में ही ये दोनों छिनाले उसे ठाकुर साहब के सामने नंगी न कर दे !क्यूंकि जिस तरह से ये दोनों उस निर्जन कोठरी में ठाकुर साहब के सामने बातें कर रही थी तो लगा यहाँ सब कुछ हो सकता हे और उसकी चुदाई भी !मस्ती का शमा बंधते देख कर अपने मूसल जैसे लंड पर हाथ फेरते ठाकुर साहब बोले :-" क्या नाम बताया स ...सावत्री ...तो इधर आ ... जरा मेरे पास तो आ री .....आ जा ...!" इतना कह कर खुद ही चौकी से उतर कर सावत्री के पास आने लगे !उनका मूसल लंड तन्नाय्या हुआ जैसे कोठरी की छत की तरफ झांक रहा हो ठाकुर साहब की हुंडी से सटा हुआ !और कोई कुछ समझ पता उससे से पहले ठाकुर साहब सावत्री के पास पहुँच गए और उसकी कलाई पकड़ कर उसे चौकी की तरफ ले जाने लगे ! सावत्री को लगा उसकी कलाई किसी लोहे के हाथ ने पकड़ ली हो और उसे अपनी तरफ खींचते ठाकुर साहब उसे किसी यमदूत की तरह लग रहे थे !सावत्री एक पल के लिए कुछ ठिटक कर रुकना चाह रही थी पर ठाकुर साहब उसे किसी छोटे बच्चे की तरह खींच के ले जा रहे थे मानो कसाई किसी बकरी को ले जाता हे हलाल करने के लिए .....!वो जैसे उनके पीछे घसीटती सी जा रही थी !

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