धन्नो ने सावित्री को फिर फुसफुससते हुए ललकारा"चल गाली दे दे आगे बोल
...देख कितना चिड रहा है..दे गाली"फिर सावित्री गाली देते हुए बोली "तू
अपनी मा को छोड़" इतना कहते ही सावित्री का बदन झंझणा गया. किसी मर्द को
गंदी गाली बकते ही एक अजीब सी मस्ती आ गयी. सावित्री को विश्वास हो गया की
धन्नो चाची सच ही कह रही थी की गाली देने मे बहुत मज़ा आएगा. यह सावित्री
का पहला अनुभव था. सावित्री को लगा की थोड़ी देर पहले ही झाड़ चुकी बुर मे
एक मस्ती उठने लगी थी और अब शायद उसी मस्ती के वजह से आगे बोली..."अपनी बहन
को चोद चोद...ल ल ल ल लंड से चोद..प प प्पेल बुर पेल ...मा को पेल..."इतना
कह कर सावित्री मस्ती और डर दोनो वजह से कांप रही थी उसकी साँस तेज चल रही
थी. फिर उस शराबी ने गालियाँ देते हुए आगे बढ़ने लगा..."क क क कुती कामिनी
आज...देख की मैं किसको चोद्ता हूँ...आ अब त त तेरे को बिना चोदे नही
छ्चोड़ूँगा.."उसके लड़खड़ाते कदम अब धीरे धीरे उन दोनो की ओर बढ़ने लगे.
ऐसा देख कर सावित्री घबडा गयी तो धन्नो ने सावित्री के बाँह को कस कर पकड़े
हुए खंडहर के अंदर की ओर जाने लगी जिधर काफ़ी सन्नाटा था और उसी तरफ वो
शराबी भी धीरे धीरे आ रहा था और सावित्री को गालिया देते हुए रोक रहा था.
उसका लंड पॅंट के बाहर अब एकदम खड़ा था और वो शराबी बार बार यही कह रहा
था"आज मैं तेरी बुर फाड़ कर ही दम लूँगा..आज तेरी बुर फाड़ कर ही छोड़ूँगा
...आज मैं तेरी बुर का भरता बना दूँगा...तेरी मा को चोदु रुक अब भाग मत रुक
साली रुक तेरी बुर को चोदु"धन्नो सावित्री को लेकर खंडहर के काफ़ी अंदर आ
गयी सावित्री को बहुत डर लग रहा था. वह घबरा कर धन्नो की ओर देखी तब धन्नो
ने उससे काफ़ी धीरे से पुछि"क्यों गाली देने मे मज़ा आया की नही..."तब
सावित्री ने कहा "चलो यहाँ से वो इधेर ही आ रहा है...चलो "फिर धन्नो ने
कुच्छ कस के बोली"अरे मैं जो पुच्छ रही हूँ वो बता...मज़ा आया की नही..."इस
पर सावित्री ने धीरे से कही"हूँ"धन्नो ने सावित्री की बाँह को कस के पकड़
रखी थी और उस शराबी की ओर ही देखते हुए धीरे से बोली"चल अब मैं तुझे
बताउन्गि की जब कोई शराबी बदमाशी करता है तो एक लड़की या औरत को कैसे बचना
चाहिए...तू डर मत ......"ऐसी बात सुनकर सावित्री घबदाती हुई बोली"रहने दो
चाची ..अब घर चलो..."फिर धन्नो गुस्साती हुई सावित्री की बाँह पकड़ कर
झकझोरते हुए बोली..'..ज ज्ज झाँत मज़ा लोगि ..जब इतनी गांद फट रही
है...इतना डरेगी तब बुर झंघों के बीच मे सूख कर बेकार हो जाएगी ...और लंड
सपने मे ही मिलेंगे...रुक मैं जैसा कह रही हूँ बस वैसा ही कर..."
धन्नो
के गुस्से भरे चेहरे को देखकर सावित्री एकदम चुप हो गयी.उसके बाद धन्नो ने
उस शराबी को लल्कार्ते हुए बोली"तू अपनी बाप की असली औलाद है तो इस लड़की
पर हाथ लगा कर देख..."धन्नो की इस तरह की बात से सावित्री एक दम घबरा गयी
और आगे बढ़ रहे शराबी से बचने के लिए धन्नो की पकड़ से हटने की कोशिस करने
लगी. धन्नो ने सावित्री को कस के पकड़ी रही और डाँटती हुई बोली"तू डरती
क्यों है..ये तेरा कुच्छ नही कर सकता...ये तो हिजड़ा है..."इतना सुन कर
शराबी बोला"ले मेरा लंड ले साली मैं हिजड़ा हूँ..देख ले मेरा लंड ...तेरी
बुर चोद कर फाड़ दूँगा..."इतना कहते हुए उसने अपनी पैंट निकालने लगा. इतना
देखकर धन्नो ने सावित्री के उपर आग बाबूला होते धीरे कान मे डाँटते हुए
बोली"....तेरी जैसे तो डरपोक लड़की मैने आज तक नही देखी........ज़्यादे
इधेर उधेर करेगी तो सब गड़बड़ हो जाएगा...इसी लिए कह रही हूँ की डर मत
...थोड़ी देर और हिम्मत से काम ले ...बस आज तेरा काम बन जाएगा...हिम्मत
रख..."सावित्री के कान मे धन्नो की ऐसी बात पड़ते ही लगा की वो बेहोश हो
जाएगी. अब धन्नो की चाल समझ मे आ रही थी शायद इसी लिए धन्नो ने सावित्री के
पीछे खड़ी हो कर उसे कस के पकड़ रखी थी. सावित्री इस स्थिति के लिए तैयार
नही थी. लेकिन सावित्री ने आज धन्नो का सबसे गुस्सा वाला चेहरा देख कर
विरोध करने की हिम्मत नही हो पा रही थी. अब शराबी पैंट निकाल कर लंड लहराते
हुए लड़खड़ाते हुए कदमो से आगे बढ़ रहा था.और अब सावित्री के ठीक सामने आ
गया था, उसका लंड पूरा खड़ा हो कर लहरा रहा था. धन्नो के काफ़ी गुस्से का
वजह यह था की आज उसे एक बहुत बढ़िया मौका था अपने आँख के सामने सावित्री को
दूसरे मर्द से जबर्दाश्ती चुदवाने का. धन्नो यह सोच चुकी थी की सावित्री
को किसी तरह इस शराबी से ज़बरदस्ती चुदवा कर खूद देखेगी की कैसे सावित्री
छटपटाती है. धन्नो के मन मे यह गुस्सा ज़रूर था की पंडितने यदि सावित्री की
सील नही तोड़ी होती तो आज इस शराबी से अपने आँख के सामने ही सील टूटते हुए
देखती और ये भी देखती की अपनी कुँवारीपन को लूटवाते हुए कैसे रोती और
सिसकती है
धन्नो को उस पल अपनी जवानी के दिन याद आ गये जब उसकी
चुचियाँ किसी नीबू की तरह ही थे. जवानी चढ़ना सुरू ही की थी और एकदम से
कोरी और कुँवारी थी, जब उसके मायके मे ही पड़ोस की एक औरत ने अपने
रिश्तेदार से कमसिन और कुँवारी धन्नो की सील जबर्दाश्ती अपने सामने ही
तोड़वा दी थी, धन्नो को खूब याद है की खूब खून निकला था और धन्नो खूब रोई
थी. बाद मे वह औरत धन्नो को अपने घर मे बुला बुला कर कई बार अपने उस
रिश्तेदार से धन्नो को चुदवाइ. अगले पल यह छनिक सोच धन्नो के मन से हवा की
तरह गायब हो गयी लेकिन धन्नो की इच्च्छा थी की वह अपने आँखों के सामने
सावित्री को इस तरह से मजबूर करे जिससे उसकी लाज़ और हया ख़त्म हो जाय और
एक सीधी साधी लड़की से पक्की छिनार बन जाय. किसी जवान लड़की के चरित्रा को
खराब करने या दूसरे से चुदवा देने मे धन्नो को इस उम्र मे बहुत मज़ा आता था
और इतना मज़ा तो उसे खूद चुदवाने मे भी नही आता था.उसकी यह अब एक पुरानी
आदत हो गयी थी. इसी आदत के वजह से धन्नो अपने जीवन मे कई लड़कियो को
ज़बरदस्ती दूसरे मर्दों से चुदवाने के लिए मजबूर कर देती और धन्नो के जाल
मे जो भी लड़कियाँ फँसी वी सभी पक्की चुदैल बन चुकी थी. और यह बात गाओं के
बहुत लोग जानते भी थे की धन्नो नई उम्र की लड़कियो को खराब करने मे देर नही
करती. इसी वजह से सीता भी अपनी बेटी सावित्री को बगल मे ही रहने वाली
धन्नो के घर नही जाने देती थी.तभी उस शराबी तेजू ने सावित्री के ठीक सामने आ
कर अपनी लाल लाल आँखों से सावित्री को घूरते हुए पुचछा"बोल क्या बोल रही
थी तेरी बुर चोदु"इतना बोलना ही था की सावित्री के नाक मे शराब की गंध
घुसने लगी. वह भागना चाहती थी लेकिन धन्नो ने सावित्री के दोनो बाँह को
उसके पीछे से कस के पकड़ कर उस शराबी को ललकार्ने लगी"तू असली मर्द है तो
इस लड़की पर हाथ लगा..हिजड़ा साला "अब सावित्री शराबी को अपने इतने करीब
देखकर भागने की कोशिस करने लगी लेकिन धन्नो इतनी ज़ोर से पकड़ी थी की
सावित्री उससे खूद को छुड़ा नही पा रही थी. सावित्री रोने जैसे मुँह बनाती
चिल्ला पड़ी" मुझे छोड़ दे चाची ..छोड़ मेरी बाँह...आरीए...ये क्या कर रही
हो....छोड़..."लेकिन धन्नो सावित्री को छोड़ने के बजाय कस कर पकड़ी रही.
शराबी तेजू को अब बढ़िया मौका था. उसने तुरंत सावित्री की चुचिओ को पकड़ कर
मीस दिया जिससे सावित्री छॅट्पाटा गयी और अपने चुचिओ को उसके हाथ से
छुड़ाने की जैसे ही कोशिस की, धन्नो ने सावित्री के दोनो हाथों को अपनी ओर
पीछे कस कर खींच ली. अब सावित्री की दोनो चुचियाँ शराबी तेजू के सामने निकल
आईं. जिसे तेजू ने लपक कर फिर पकड़ लिया और बड़ी बड़ी चुचिओ को मीसने लगा.
थोड़ी देर तक जैसे ही मीसा की धन्नो ने तेजू को बोली
"...लगता
है दारू पीते पीते चुचि पीना भूल गया है....अरे जवान लौंडिया है...और तू
तो पुराना चोदु है...भूल गया की इसकी चुचि चूसना भी है... दारू बाज...चल
चुचि चूस..."इतना सुनते ही तेजू ने नशे की हालत मे बोला"..मैं जानता था की
त्त तुम सब खंडहर मे चुदवाने के लिए ही घूम रही हो...ह हे हे हे ..."और
शायद नशे की हालत के वजह से अभी भी चुचिओ को दोनो हाथों से समीज़ के उपर से
ही मसल ही रहा था. जिसे देख कर धन्नो फिर गुस्सा कर बोली"...अच्च्छा जो कर
रहा है जल्दी कर...चुचि चूस...""...अरे पहले ये कपड़े तो निकाले...अच्च्छा
चल समीज़ उ उ उपर कर..कर ...."इतना कह कर तेजू खुद सावित्री की समीज़ को
उपर की ओर खिसकाने लगा. ऐसा देख कर धन्नो ने सावित्री के कान मे कुच्छ ज़ोर
देते हुए बोली .."...मैं तो कह रही हूँ की नीचे लेट जा..खड़े खड़े कुच्छ
भी मज़ा नही आएगा....चल समीज़ और ब्रा निकाल कर लेट जा..."सावित्री इसके
लिए तैयार नही हुई तब धन्नो का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. फिर धन्नो
ने अपनी दाँत पीसती हुई बोली"..अगर मैं जानती की तू इतना नाटक करेगी तो मैं
तेरे को यहाँ लाती ही नही...अभी भी मौका है मज़ा ले ले ...शराबी सब बहुत
जोश मे चुचि चुसते हैं एक बार चुस्वा के तो देख ...वो नशे मे भी है खूब
चुसेगा ...एक दम लहरा जाएगी...मेरी माँ कपड़े निकाल के लेट जा,.."इतना कहते
ही धन्नो ने सावित्री के समीज़ को पीछे से खुद ही निकालने लगी. तेजू ने तब
तक समीज़ को आगे से उपर की ओर चढ़ा दिया था इसलिए सावित्री के पीठ के तरफ
से धन्नो को समीज़ निकालने मे आसानी हो गयी. धन्नो ने सावित्री के दोनो
बाँहो को आज़ाद करते हुए समीज़ को बाँहो से होते हुए अलग कर दी और खंडहर के
ज़मीन पर गिरा दी. फिर धन्नो गुस्सा दिखाते बोली.."...इतना डरेगी तो झांट
लंड का मज़ा लेगी...चल इसे भी निकाल..."
और इतना कहते ही
धन्नो ने सावित्री की ब्रा के हुक को पीछे से जैसे ही खोली दोनो चुचियाँ
एकदम आज़ाद हो कर लटकने लगी. जिसे तेजू अपनी आँखे फाड़ फाड़ कर देखने
लगा.लेकिन धन्नो काफ़ी तेज निकली. ब्रा जैसे ही सावित्री के शरीर से अलग
हुआ की धन्नो सावित्री की बाँह पकड़ कर झटकार्टे हुए डाँटते बोली.."..अब
लंड की तरह खड़ा क्या है जल्दी ज़मीन पर लेट ....मज़ा भी लेने का मन कर रहा
है ...और लाज़ भी लग रही है...इतना इधेर उधेर करेगी तो कोई मर्द ठीक से
चढ़ नही पाएगा...."धन्नो का सावित्री के उपर गुस्सा देख कर तेजू ने धन्नो
से कहा.." ...आ आ आ. अरे क क्यों इस बच्ची पर इतना गुस्सा कर रही ह
है....अभी बेचारी नई है...धीरे धीरे सब सीख लेगी...मत गुस्सा इतना ...जब
इसे मज़ा लेने की आदत पड़ जाएगी तब खुद ही आराम से बिना क कहे लेट कर
चुदवाने लगेगी..."धन्नो के कहने पर सावित्री ज़मीन पर बैठ गयी और उगे हुए
हरे घास पर लेटने के बारे मे सोच ही रही थी की धन्नो ने तेजू को जबाव देते
बोली .."...हा तू ठीक कहता है...लेकिन अभी तो इसे मर्द के नीचे धकेलना ही
पड़ेगा नही तो नया लंड देखकर उच्छलने कूदने लगेगी... मर्दों के लुंडो से जब
खूब चुद जाएगी तब खुद ही चुदती फ़िरेगी...चल चुचि चूस..."इतना कहते धन्नो
ने सावित्री को घास पर लेटने के लिए मजबूर करते हुए लगभग धकेल ही दी और
सावित्री अपनी दोनो चुचिओ को अपने हाथों से च्छूपा कर जैसे ही घास पर लेटने
लगी ही थी की धन्नो ने सावित्री के सलवार का नाडा पकड़ कर खींच दी और
सलवार सावित्री के कमर मे ढीली हो गयी.
नशे की हालत मे भी तेजू
तुरंत ढीली हो चुकी सलवार को खींच कर बाहर निकाल दिया. सावित्री सिर्फ़
चड्धि मे थी जिसे दूसरे पल तेजू ने कस के सरकाते हुए निकाल दिया. अब
सावित्री की झांतों से भरी काली बुर तेजू के ठीक सामने थी. जिसे देख कर
अगले पल तेजू ने सावित्री के दोनो टाँगों को चौड़ा करने लगा तो सावित्री ने
लाज़ के मारे अपनी बुर को एक हाथ से छिपाने की कोशिस करने लगी. जिसे देख
कर बगल मे खड़ी धन्नो ने तेजू को लल्कार्ते हुए बोली.."पेल इसे" धन्नो के
इस सब्द को सुनते ही तेजू काफ़ी जोश मे आ गया और सावित्री के उपर चढ़ गया.
सावित्री के मुँह मे अपना मुँह जैसे ही लगाया की शराब की गंध तेजू के मुँह
से सावित्री के नाक मे घुसने लगी. जीवन मे पहली बार सावित्री को शराब की
गंध का आभास हुआ था. लेकिन अगले पल ही तेजू ने सावित्री के जबड़े को एक हाथ
से कस कर पकड़ते हुए अपने शराब के गंध से भरे मुँह को सावित्री के मुँह मे
लगा दिया और उसके दोनो होंठो को ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा. सावित्री का बदन
एकदम से झंझणा उठा. तेजू का लंड खड़ा था और सावित्री के कमर के निचले
हिस्से से रगड़ खा रहा था. इतना देख कर धन्नो ने ज़मीन पर बैठते हुए तेजू
के लंड को एक हाथ से पकड़ कर सावित्री के बुर के मुँह पर रगड़ने लगी.
सावित्री तेजू के लंड की गर्मी अपनी बुर के मुँह पर पाते ही सिसकार उठी और
अपनी मुँह खोल दिया. तेजू मौका पा कर ढेर सारा थूक सावित्री के मुँह मे
धकेल दिया. सावित्री तेजू के मुँह से निकले थूक को निगल गयी. उसे ऐसा लगा
मानो उसके थूक मे कोई अजीब सा नशा हो. उसका शरीर मस्ती से भरने लगी. तभी
तेजू ने धीरे से कहा "जीभ निकाल.." सावित्री की बुर पर धन्नो ने तेजू के
लंड को तेज़ी से रगड़ना सुरू कर दिया था. इस वजह से सावित्री की मदहोशी
बढ़ती जा रही थी. फिर तेजू सावित्री की चुचिओ को मीज़ते हुए फिर से उसके
मुँह पर अपना मुँह भिड़ा दिया और फिर थूक सावित्री के मुँह मे धकेल दिया
सावित्री ने थूक को निगल गयी और दूसरे पल अपने जीभ को थोडा सा बाहर की जिसे
तेजू अपने मुँह मे ले लेकर तेज़ी से चूसने लगा.
सावित्री अब
सातवें आसमान पर उड़ रही थी. धन्नो ने सावित्री के बुर के दरार मे तेजू का
खड़ा लंड रगड़ते हुए हल्की सी हँसी लेते हुए फुसफुससाई "अरे जल्दी से चोद
ले देर मत कर तेजू....घर भी जाना है...कहीं देर हो गया तो इसकी मा इसके उपर
शक करेगी...जल्दी चोद..." और इतना कहते हुए धन्नो ने तेजू के लंड को बुर
के ठीक बीचोबीच लगा दी. तेजू मौका देख कर कस कर लंड पेल दिया. लंड सावित्री
की बुर मे घुस गया. सावित्री सीत्कार उठी. फिर अगले पल तेजू अपने शरीर को
दोनो घुटनो पर ठीक करते हुए सावित्री को चोदना सुरू कर दिया. इतना देख कर
धन्नो उठाकर खड़ी हो गयी और बोली "थोड़ा हूमच हूमच कर चोद इसे .....ताकि
इसकी नानी याद आ जाए..."फिर तेजू नशे की हालत मे सावित्री को कस कस कर
पेलने लगा. सावित्री हर धक्के के साथ मस्ती से सिहर उठती और अपनी मुँह को
खोल कर सिसकार रही थी. फिर धन्नो खंडहर के अंदर इधेर उधेर नज़र दौड़ाई मानो
यह जायजा ले रही हो की कहीं कोई है तो नही. फिर मानो उसका मन संतुष्ट हो
गया की कहीं कोई नही है. फिर धन्नो की नज़रें तेजू के मोटे काले लंड पर जा
टिकी जो सावित्री के बुर के अंदर बाहर हो रहा था. खंडहर मे चुदाई की आवाज़
होना सुरू हो गया. सावित्री के मुँह से सिसकारने और कहरने की आवाज़ भी
काफ़ी मादक थी. तेजू काफ़ी जोश मे बुर को चोद रहा था. धन्नो की भी बुर मे
सनसनी उठने लगी. जिस वजह से धन्नो ने अपने एक हाथ से अपनी बुर को सारी के
उपर से ही भींच ली और अपनी नज़रें सावित्री के बुर पे टिकाई रही जिसमे तेजू
का लंड किसी पिस्टन की तरह काफ़ी तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था. तेजू अब
हुंकार मारते हुए चोद रहा था. मानो सावित्री की बुर को फाड़ देगा. तेजू को
देखने से ऐसा लग ही नही रहा था की थोड़ी देर पहले नशे मे था की सीधा चल ही
नही पा रहा था. क्योंकि जिस अंदाज मे सावित्री की बुर को चोद रहा था उससे
तेजू के नशे की हालत का कोई आता पता नही चल रहा था. शराब नही बल्कि कोई
ताक़त की दवा ले रखी हो. तेजू के लंड का चौड़ा सूपड़ा सावित्री के बुर का
रेशा रेशा इतना रगड़ रहा था की सिसक रही सावित्री को महसूस हो गया की इस
चुदाई के सामने पंडित जी की चुदाई कुच्छ नही थी. उसे भी यकीन नही हो रहा था
की थोड़ी देर पहले शराब के नशे मे चूर तेजू उसकी बुर को इतनी तेज़ी और
बेरहमी से चोदेगा. धन्नो भी सावित्री की बुर की धुनाई अपनी आँखों से देख कर
मस्त हो रही थी.
फिर धन्नो ने चुद रही सावित्री को लल्कार्ते
हुए बोली "छिनाल .....कुच्छ बोलेगी की बस चुपचाप लंड खाएगी..बस सिसकने से
काम नही चलेगा...कुच्छ बोल..." चुद रही सावित्री बस धन्नो की ओर देखी लेकिन
कुच्छ बोली नही. वैसे मुँह खुला हुआ था जिसमे से सिसकी और कराहने की आवाज़
हल्की हल्की आ रही थी. इतना देख कर धन्नो ने तेज़ी से चोद रहे तेजू को
ललकर्ते हुए धीमी आवाज़ मे दाँत पीसते हुए बोली "अरे और ज़ोर से चोद इस
रंडी को......फाड़....बुर को इसकी बुर मे लंड जाए पूरे गाओं का." फिर धन्नो
ने गाओं की गर्म या चुदैल किस्म के औरतों की तरह चोद्ते समय मर्द को जोश
दिलाने वाली चोदगीत को कुच्छ सिस्कार्ते हुए गाने लगी "..इसकी बुरिया
को.......पूरा गाओं चोदे..रे पूरा गाओं चोदे.....लड़के चोदे...रे ...बुढ्ढे
चोदे....पूरा गाओं चोदे रे पूरा गाओं चोदे....." इतना सुनकर तेजू समझ गया
की धन्नो एक चुदैल किस्म की औरत होने के वजह से चोद्ते समय चोदगीत गा कर
मज़े ले रही है. फिर तेजू और ज़ोर से चोदने लगा फिर धन्नो ने दाँत पीसते
हुए उत्तेजना मे आगे सावित्री को कुच्छ चिढ़ाने की अंदाज़ मे गुनगुनाने लगी
""पूरा गाओं चोदे....रे....पूरा गाओं चोदे .....इसकी बुरिया को पूरा गाओं
चोदे... अंधेरिया मे चोदे....अजोरिया मे चोदे...चोदे खड़ी दोपहरिया मे
चोदे...पूरा गाओं चोदे....रे....पूरा गाओं चोदे ......अँगनवा मे चोदे
....दुवारवा पे चोदे...चोदे बीच बज़ारिया मे चोदे......खेतवा मे
चोदे....खलिहनवा मे चोदे ......चोदे छिनरि के बीच अरहरिया मे चोदे....ये
हरजइया के पूरा गाओं चोदे......" फिर धन्नो चोदगीत को आगे सुनाती हुई बोली
"साधु चोदे...रे...कसाई चोदे..मलाई लगा के हलवाई चोदे...पूरा गाओं चोदे
..रे... पूरा गाओं चोदे....खटिया पे चोदे रे चौकी पे चोदे...नंगा लेटा के
ज़मीन पे चोदे...तेल लगा के चोदे रे थूक लगा के चोदे....तोरी बुरिया के
फैला फैला के चोदे...पूरा गाओं चोदे रे पूरा गाओं चोदे...." सावित्री के
कान मे पहली बार कोई चोदगीत के अश्लील शब्द पड़ते जी उसकी चुद रही बुर् मे
आग लग गयी और उसके खुले मुँह से सिसकारी के साथ हल्की से चिल्लाहट निकल
गयी.."अयाया रे माई ....आ री...माई रे आ रे चाची...मोरे बुरिया ...मोर बू
....बुरिया...के....मोर बुरिया के चुदवा.....दा ...रे चाची......आ मोर
बुरिया के....फदवा दा ....रे चाची...."
सावित्री के मुँह से
निकली इतनी बात तेजू के कान मे जैसे ही पड़ा की चोदगीत सुनकर मस्ती मे चोद
रहे तेजू हुमच हुमच कर चोदने लगा. लेकिन धन्नो ने तुरंत मस्ती मे चुद रही
सावित्री को सुनाते हुए जबाव देते हुए उत्तेजना मे दाँत पीसती हुई बोली
..".....तोर बुर फदवा देब ....रे... बुर फदवा देब....तोर लहसुन रगडवा
देब... रे... लहसुन रगडवा देब....गाओं की रॅंडुवन से तोर झांट नोचवा
देब...अपने मरदा से चोदवा देब रे भासुरा से चोदवा देब ......दर्वरा तो
देवरा अपने ससुरा से चोदवा देब ......जावने बुरिया मे सींक ना घुसे ..वही
बुरिया मे जोड़ा लंड घुस्वा देब.....माँग मे सेंदुर पदाले के पहीले ..तोर
बुर चोदवा के भोसड़ा बनवा देब....ससुराल जाए के पहीले टोक रंडी के कोठा पे
चोदवा देब...बुर फाडवा देब रे बुर फदवा देब...." चोदगीत सुन सुन कर चोद रहे
तेजू अब झदाने के करीब आ गया और उसके कमर ने झटके लेना सुरू किया ही था की
चुदैल धन्नो ने तुरंत सावित्री की हवा मे उठी दोनो टाँगों को पकड़ कर और
चौड़ा करते हुए जैसे ही नीचे की ओर ज़ोर से दबाई की सावित्री की चुद रही
बुर फैलते हुए और उपर की ओर उठ गयी जिसमे तेजू ने ज़ोर से धक्के मारते हुए
झड़ने लगा. इतना देख कर धन्नो ने झटके से एक हाथ को सावित्री की बुर के पास
ले गयी और चुद रही बुर के एक किनारे से लंड के ठीक बगल से अपनी एक उंगली
काफ़ी ज़ोर लगा कर सावित्री की बुर मे धन्से हुए लंड के साथ साथ पेल दी और
जैसे ही लंड के साथ धन्नो की उंगली भी सावित्री की बुर मे घुसा तो एक तीखी
दर्द उसके बुर से उठी और जीवन मे पहली बार सील टूटने के बाद बुर के फटने का
दर्द महसूस हुआ और दूसरी तरफ लंड से वीर्य निकल कर बुर मे गिर भी रहा था.
फिर मौका देखते ही धन्नो भी अपनी उंगली सावित्री की बुर मे डाले हुए बुर को
फैला रही थी. लंड के घुसे होने से और धन्नो की उंगली से लगने वाले ज़ोर से
सावित्री को लगा की उसकी बुर एकदम से फट रही है और सीत्कार मार कर अपने
बुर फ़टाई के दर्द के आनंद मे झाड़ते हुए चीखी ..."एयेए ह ह रे बाप बुर फाट
गाईएल...फात गाईएल...रे बाप...".
तेजू के लंड से वीर्य निकल कर
सावित्री की बुर को भरने लगा. तेजू सावित्री को काफ़ी कस कर पकड़ कर लंड
बुर मे चांपे हुए झाड़ता रहा. जब उसे आभास हो गया की अब लंड का सारा माल
बुर के अंदर बह कर निकल चुका है तब हन्फते हुए सावित्री के उपर से उठा और
बगल मे खंडहर के घास पर लेट ने लगा की तभी उसका लंड भी बुर से बाहर सरक कर
निकल गया. धन्नो की नज़र सावित्री की बुर पर पड़ी तो चौंक गयी क्योंकि बुर
के मुँह पर हल्की सी खून रिस रही थी. धन्नो समझ गयी उसने ज़ोर लगा के अपनी
उंगली से बुर को काफ़ी चौड़ा कर दी थी और शायद इसी वजह से बुर थोड़ी सी फट
गयी है. धन्नो एक हल्की सी मुस्कान के साथ बोली "अरे अब उठेगी और घर चलेगी
की अभी और चुदयेगि....जल्दी कर.." सावित्री बस अपने जांघों को आपस मे सटा
कर बुर को ढँकने की कोशिस कर सकी थी और अब उसके पास ना तो हिम्मत थी ना ही
ताक़त. उसे अपनी बुर मे हल्की सी दर्द महसूस हो रही थी जो शायद बुर के
थोड़ी सी फट जाने की वजह से थी. लेकिन तेजू के सामने नंगी लेटना सावित्री
को ठीक नही लग रहा था और जल्दी से उठी और अपने कपड़े पहनने लगी तभी धन्नो
ने तुरंत अपने पेटिकोट के नीचले हिस्से से सावित्री की बुर को पोंचछते हुए
धीरे से बोली "देख तेरी बुर आज थोड़ी और फट गयी है...खून चू रहा है ...ला
पोंच्छ दूं नही तो तेरी मा कहीं देख ली तो गड़बड़ हो जाएगा.." सावित्री भी
चौंकते हुए अपनी बुर देखी जिसमे से रिस रहा खून धन्नो के पेटीकोत मे लग
चुका था और अब खून का रिसना लगभग बंद हो रहा था. सावित्री डर सी गयी लेकिन
धन्नो ने खंडहर के ज़मीन पर लगभग बेहोश स्थिति मे लेटे तेजू की ओर देखते
हुए सावित्री से बोली "...देख कमीना कैसे तेरी बुर फाड़ कर सो रहा है..."
सावित्री भी कपड़े पहनते हुए तेजू की ओर देखी तो सो रहे तेजू के लंड पर
नज़र पड़ी जो अब कुच्छ ढीला हो रहा था जिसपर चुदाई का पानी और हल्का सा खून
भी लगा था जो शायद बुर के फटने के वजह से था. सावित्री के मन मे यही सवाल
उठा की बुर को तेजू के लंड ने नही फाडा बल्कि धन्नो खुद अपनी उंगली डाल कर
काफ़ी ज़ोर लगा कर फाड़ दी थी. अभी यही बात मन मे चल रही थी की धन्नो ने
सावित्री से कही "जब बुर खूब चौड़ी हो जाएगी तब तू किसी भी मर्द को पछाड़
देगी चुदाई के खेल मे...........और मर्द का कितना भी मोटा लंड हो उसे तू
हंसते हुए बुर मे लील जाएगी और वो भी एक ही झटके मे....एक नंबर की चुदैल
निकालूंगी तुझे...." इतना कह कर धन्नो ने तेजू की ओर देखी जिस पर अब शराब
का नशा लगभग एकदम कम हो गया था और अब कुच्छ सुसताने के बाद धीरे से उठा और
अपनी पॅंट ले कर धीरे धीरे पहनने लगा. फिर धन्नो ने तेजू से धीरे से बोली
"....देख तेजू...ये गाओं की लड़की है... कोई बात नही उतनी चाहिए..गाओं
मे...तुझे मैं बहुत दीनो से जानती हूँ इसी लिए इसे मैं खुद आज तेरे सामने
इसका सब कुच्छ करवा दी हूँ...समझे..." तेजू को शायद ये बात पसंद नही आई
"...धन्नो मैं एक शराबी और नशेड़ी ज़रूर हूँ लेकिन इसका ये मतलब नही की मैं
बेवकूफ़ हूँ...मैं जिस थाली मे ख़ाता हूँ उसमे छेद नही करता ...मेरे पर
भरोसा कर..." इतना कहते हुए तेजू अपनी पेंट पहन लिया. तेजू का यह जबाव
सावित्री अपनी बुर मे मीठी दर्द लिए बड़े ही ध्यान से सुन रही थी. तेजू के
इस जबाव से एक बात सॉफ थी की शराब का नशा अब ख़त्म होने के करीब था. तेजू
का यह आश्वासन सावित्री को काफ़ी राहत देने वाला ज़रूर था लेकिन धन्नो
अच्छि तरह जानती थी की हर मर्द चोदने के बाद यही राग अलपता है और कुच्छ ही
दीनो मे दूसरे मर्दों तक बात पहुँच ही जाती है. लेकिन धन्नो बस यही चाहती
थी की सावित्री के मन मे कोई बदनाम होने का डर कही तुरंत सताने ना लगे.
क्योंकि सावित्री का खेल तो अभी सुरू ही हुआ था. धन्नो तेजू के इस जबाव का
असर सावित्री के चेहरे पर पड़ता सॉफ देख रही थी. फिर धन्नो ने जबाव मे तेजू
से बोली ".....भरोसा है ...खूब है तेजू...बस जब मैं इशारा किया करूँ तब
तुम मेरी इस नई सहेली की धुनाई कर दिया करना .....इसे पूरा मज़ा देना
है.....बेचारी को मज़ा ठीक से नही मिल पाया है...इसकी उमर की लड़कियाँ तो
कभी का बुर फदवा कर घूम रहीं हैं ....और ये है अभी एक दम अनाड़ी......अच्छा
अब हम दोनो घर चलते हैं और तू थोड़ी देर बाद खंडहर से बाहर निकलना...."
इतना कह कर धन्नो सावित्री का एक हाथ पकड़ कर जल्दी से खंडहर से बाहर आने
लगी. तेजू वहीं खंडहर के पुराने दीवार का सहारा लेता हुआ ज़मीन पर बैठा और
धीरे से मन मे ही फुसफुसाया "गाओं की औरतें भी खूब हैं.....गांद नचा नचा के
चुदवाती हैं ....और ....चुदने के बाद इज़्ज़त का दोहा रटती हैं.. मेरे
गाओं की सभी चुदेले...और ये भी साली वही करती है.......हे हे ,....हे
."इतना कह कर तेजू ज़मीन पर थूक दिया
रास्ते मे
धन्नो आगे चल रही थी और उसके पीछे पीछे सावित्री. धन्नो ने सावित्री को
समझाते हुए अंदाज मे बोली "...आज घर जा कर थोड़ा सा देसी घी गरम करके लगा
लेना.....आज थोड़ी सी और फटी है...ठीक हो जाएगी. ...."लेकिन पीछे पीछे चल
रही सावित्री ने कोई जबाव नही दिया. फिर धन्नो ने पुचछा...."....सुनी हो
क्या कही मैं....वैसे नही लगओगि तो भी कोई बात नही... लेकिन ...घी तेल
लगाने से औरतों का समान फिट रहता है और मर्द इसे पसंद भी करते हैं...." फिर
सावित्री ने धीरे से कहा " ...वो..देसी घी तो नही होगी..मेरे घर मे.."इतना
सुनकर धन्नो रास्ते पर रुक गयी और सावित्री की ओर देखते हुए बोली "तेल तो
होगा ...सरसो का तेल ही गरम कर के लगा लेना.....हाँ देसी घी से चमक आ जाती
है.,..तुझ को कुच्छ पता ही नही है...वैसे भी मर्दों का मज़ा लोगि तो अपने
शरीर और जवानी को ठीक ठाक रखना पड़ेगा......" फिर धन्नो रास्ते पर चलने
लगी. सावित्री केवल सुन ही रही थी. फिर धन्नो रास्ते पर रुक गयी और हल्की
मुस्कुराहट के साथ सावित्री से पुछि "...मज़ा आया की नही ....उस शराबी के
साथ..." सावित्री अपनी नज़रें दूसरी ओर फेर ली और मुस्कुरा उठी. धन्नो को
जबाव मिल चुका था और वो फिर रास्ते पर चलने लगी. पीछे पीछे सावित्री भी चल
रही थी. फिर धन्नो बोली "मेरे साथ रहेगी तो बहुत मज़े करेगी....मर्दों की
लाइन लगवा दूँगी तेरी जवानी के उपर...अब तू डरा मत कर....जब तक निडर नही
बनेगी तबतक मज़े भी नही ले पाएगी....मर्दों का सामना करने के लिए हिम्मत की
ज़रूरत होती है...जो तुझमे नही है....एकदम नही..." ये सब सावित्री सुन कर
चुप चाप धन्नो के पीछे पीछे चल रही थी. फिर धन्नो आयेज बोली ".....कल के
लिए तैयार रहना ...मुसम्मि की शादी के लिए लड़के वाले उसे देखने आएँगे...तो
सगुण चाचा के घर चलना होगा...." इतना सुन कर सावित्री कुच्छ बोलने की सोच
ही रही थी की धन्नो रुक कर सावित्री की ओर देखते हुए पुछि "....चलोगि
ना....कि डर लग रहा है...अपनी मा से..." सावित्री देखी की धन्नो गंभीर हो
कर पुच्छ रही है तो तपाक से बोली "...हाँ हां चलूंगी चाची...क कैसा
डर...उससे नही डरती...अब..." धन्नो के लिए यह बहुत खुशी की बात थी.
सावित्री के शब्दों मे 'उससे' के खिलाफ हिम्मत की बात सुनकर धन्नो गदगद हो
गयी और बोली "शाबाश मेरी बेटी...यही तो मैं सुनना चाहती थी..." कह कर धन्नो
फिर रास्ते पर चलने लगी. सावित्री के मन मे अपनी मा के खिलाफ विद्रोह की
सोच पैदा कर के सावित्री को एक नयी दिशा देने लगी थी. धन्नो को इन जवान और
कच्ची उम्र की लड़कियो को रंगीन बनाने का पुराना अनुभव था. भले ही सावित्री
के लिए ये सब कुच्छ नया और अजीब लगने वाला था.गाओं करीब आते ही धन्नो ने
सावित्री से बोली "....अब तू जा अपने घर मैं थोड़ी देर मे आउन्गि...ठीक...
"फिर धन्नो गाओं के बाहर ही रुक गयी और सावित्री को जाते हुए देखने लगी.
थोड़ी देर मे सावित्री गाओं के अंदर चलते हुए गाओं के कुच्छ बाहर बने अपने
घर आ गयी. घर पर मा बर्तन धो रही थी. सावित्री को देखते ही सीता बोली
"...इन बर्तनो को तुम धो देना ....अभी मुझे गाओं के दुकान से सब्जी और
कुच्छ समान लाना है..." इतना कह कर सीता बर्तनो के पास से उठी और हाथ धो कर
गाओं मे ही एक दुकान पर जाने लगी. शायद अब अंधेरा होने लगा था इसीलिए.
सावित्री बुझे मन से घर के बाहर ही बिछे खाट पर अपनी ओढनी को रखी और बर्तन
धोने की जगह बैठ गयी और बाकी बचे बर्तनो को धीरे धीरे धोने लगी और सीता
गाओं के दुकान पर सब्जी और समान के लिए चल दी. सीता के हाथ मे मिट्टी के
तेल का डिब्बा भी था. जो उसने एक झोले मे छिपा कर ले जा रही थी. तबतक धन्नो
भी अपने घर आ चुकी थी. सीता को दुकान की ओर जाते देख धन्नो ने तुरंत एक
छ्होटी सी कटोरी मे देसी घी ले कर सावित्री के पास आ गयी. सावित्री धन्नो
को अपने घर के सामने कटोरी मे कुच्छ लिए देख कर हड़बड़ा गयी और बर्तन माजना
छ्चोड़ कर खड़ी हो गयी "..क सीसी क्या है चाची..." धन्नो ने सीता के जाने
वाले गाओं के रास्ते की ओर देखते हुए बोली "...घी है ...तेरी मा को गाओं मे
जाते देख ..मैं झट से देसी घी लाई हूँ.... ले इसे घर मे रख दे और मौका देख
कर थोड़ा गरम कर के लगा लेना...समझी ...अब तो चूल्हा भी जलाएगी तो मा के
आने के पहले गरम करके लगा ही लेना. .." इतना कह कर धन्नो ने देसी घी की
कटोरी सावित्री को थमाने लगी तो सावित्री ने जल्दी से अपना हाथ धो कर कटोरी
को थाम ली और घर के अंदर जाने से पहले कटोरी मे नज़र डाली तो अनायास ही
उसके मुँह से धीरे से निकल गया "..आ आ रे इतना घी क्या होगा चाची ..ये तो
बहुत ज़्यादे है..."
धन्नो धीरे से बोली "अरे रख ले..कहीं घर मे
चुरा के..और ..रोज-रोज लगाती रहना गरम करके ....कई दिन मालिश कर लेगी तो
तेरी जवानी किसी भी मर्द का चोट झेलने लायक तैयार रहेगी....देसी गीयी है
...खाने और लगाने ...दोनो मे फ़ायदा करता है..." इतना कह कर धन्नो जाने के
लिए मूडी ही थी की सावित्री धीरे से बोली "...ये .....क कटोरी ..चाची.."
तभी धन्नो तपाक से डाँटते हुए बोली "...कटोरी की चिंता मत कर....बाद मे कभी
दे देना...मैं चलती हूँ...कहीं तेरी मा आ गयी तो आग लग जाएगी..." इतना
कहते हुए धन्नो थोड़ी ही दूर पर अपने घर चली गई. सावित्री ने तुरंत कटोरी
को ले कर अपने घर के एक ही कोठरी मे जगह तलाशने लगी जहाँ वह उस कटोरी को
च्छूपा सके. आख़िर कोठारी के कोने मे रखे एक पुराने लोहे के बॉक्स के नीचे
कुच्छ जगह थी , उसी मे अंदर धीरे से देसी घी वाली कटोरी रख दी. और फिर
तुरंत बाहर आ गयी. मा के आने मे कुच्छ समय लग सकता था. सावित्री को पेशाब
भी लगी थी. इसलिए तुरंत घर के पीछे चली गयी और सलवार खोल कर चड्धि सर्काई
और मुतने बैठ गयी. बैठते समय बुर मे कुच्छ दर्द महसूस हो रही थी. लेकिन ये
दर्द काफ़ी कम था मानो कोई मीठा दर्द हो. अब अंधेरा होना सुरू हो गया था
लेकिन फिर भी सावित्री अपनी बुर को सॉफ तरीके से देख पा रही थी और बुर की
सूरत तेजू के चुदने के बाद कुच्छ बदल सी गयी थी. पेशाब करने के बाद खड़ी
हुई और अनायास ही चड्धि पहनने से पहले झांतो से भरी बर को एक हाथ से सहलाई
तो पूरा शरीर सिहर उठा. एक अजीब सी मस्ती दौड़ गयी. मन मे मर्द के प्रति एक
तेज आकर्षण पैदा होने लगा. ये सब मन की तरंगे सावित्री को एक आनंद मे सींच
ही रही थी की उसे याद आया की बर्तन धोना रह गया है और मा थोड़ी ही देर मे
गाओं के दुकान से वापस आती ही होगी. फिर तुरंत चड्धि को पहन सलवार को उपर
कमर मे ला कर सलवार के नाडे को बाँध ली और ज़मीन पर थूकते हुए घर के आगे की
ओर आ गयी और बर्तन माज्ने की जगह बैठ कर बर्तन धोने लगी. बर्तन धोते समय
भी सावित्री के मन मे तेजू का चेहरा और चुदाई दोनो लगातार घूम रहा था. बार
बार उसे तेजू की चुदाई और धन्नो चाची की उंगली का बुर मे घुसना और बुर को
फाड़ने वाली यादें मन मे मस्ती भरी सिहरन पैदा कर दे रही थी. आज दिन मे जो
कुच्छ भी हुआ वह कभी सपने मे भी नही सोची थी. मानो आज का दिन कोई एकदम अलग
दिन था. यही सब सोच सोच कर बर्तनो को रख धो रही सावित्री ने देखा की अंधेरा
गहराता जा रहा था और बर्तन भी सारे धूल चुके थे. और अभी तक मा वापस नही आई
थी. सावित्री को अपनी मा का अंधेरा सुरू होते होते गाओं मे या कहीं जाना
बहुत अजीब लग रहा था. क्योंकि गाओं मे तो दिन मे चलना मुस्किल होता था
अवारों के डर से और अंधेरा के बाद तो औरतों का कहीं भी आना जाना ठीक नही
होता था. यही सोच कर सावित्री अपने से सवाल कर रही थी की आख़िर मा को क्या
ज़रूरत थी अंधेरा होने के बाद कहीं जाने की. फिर भी अपने रंगीन सोचों मे
डूबी सावित्री को याद आया की अंधेरा होते होते यदि चिराग नही जला तो मा
गुस्सा करेगी. मा हमेशा कहती है की अंधेरा होते यदि चिराग नही जलता तो घर
मे शैतान का वास सुरू हो जाता है. यही सोच कर सावित्री ने तुरंत घर मे रखी
एक छ्होटी सी दिया को जला दी. उसमे मिट्टी का तेल इतना ही था की रात दस बजे
तक ही जलता. शायद घर मे मिट्टी का तेल भी ख़त्म हो गया था. तब उसे याद आया
की मा जाते समय मिट्टी के तेल का डिब्बा भी ले जा रही थी. लेकिन मिट्टी का
तेल तो गाओं के दूसरी छ्होर पर मिलता है और वो भी एकदम एकांत और सुनसान
जगह. तो क्या मा वहाँ गयी होगी. तभी सावित्री की माँ ने जबाव दिया "नही मा
ऐसा कैसे कर सकती है भला..." तभी उसे याद आया की चूल्*हे मे आग जलाने का
समय हो चुका था. और खाना बनाने वाला चूल्हा कोठरी से सटे एक छ्होटी सी
छप्पर मे थी. उस चूल्*हे पर लकड़ी और गोबर की उपली से खाना बनता. कोठारी के
अलावा उठने बैठने के लिए यह छप्पर ही था..छप्पर मे काफ़ी कम जगह थी जहाँ
चूल्*हे के जगह को छोड़ कर बस एक ही खाट किसी तरह पड़ जाती थी.
इसी
छप्पर के सामने दूसरी ओर मा बेटी के नहाने का इंतज़ाम था. जो बाँस और घास
फूस, पुराने पालास्टिक और फटी पुरानी सारी से घेर कर बना हुआ था. इस छ्होटी
सी जगह मे दरवाजे के आकर का जगह च्छुटा हुआ था. जिसका मुँह छप्पर की ओर ही
था. मा बेटी नहाते समय इस खुले हुए जगह पर एक पुरानी साड़ी का परदा डाल
लेती थी.चूल्हा मे आग किसी तरह जल गई. अभी भी मा वापस नही आई थी. सावित्री
को यह बढ़िया मौका था की घी वाली कटोरी को लाकर गरम कर लेती. फिर मा के
वापस आने का डर मान मे दौड़ गया. लेकिन दूसरे पल धन्नो चाची की कही बात मन
को हिम्मत देने लगी. धन्नो चाची कही थी की बिना हिम्मत के कोई मज़ा नही मिल
पाएगा. यही सोच कर सावित्री उस चूल्*हे के पास खड़ी होकर कभी चूल्*हे मे
जल रहे आग को देखती तो कभी मा के आने वाले रास्ते की ओर. और फिर हिम्मत
वाली बात. इन तीनो के बीच सावित्री ने एक गहरी सांस ली और मन मे ज़िद पैदा
करती हुई तेज़ी से कोठरी मे घुसी और कोने मे रखे पुराने लोहे के बॉक्स के
नीचे रखी देसी घी की कटोरी को लेकर तेज़ी से वापस छप्पर मे जल रहे चूल्*हे
के पास आ गयी. दूसरे पल मा के आने वाले रास्ते की ओर देखती हुई देसी घी के
कटोरी को चूल्*हे के आग के किनारे ऐसे रख दी ताकि हल्की गरम हो और देसी घी
मे गुनगुना पन आ जाए और लगाने मे जले नही. घी के हल्का गर्म होते देर नही
लगी. सावित्री को अभी भी डर लग रहा था की कही मा आ ना जाए. फिर जल रहे
चूल्*हे पर चावल बनाने के लिए पानी भरा बर्तन रख दी. और दूसरे पल गर्म हो
चुके देसी घी की कटोरी ले कर तुरंत कोठरी मे भाग गयी. कोठारी के अंदर ही
दिया जल रहा था. सावित्री ने तुरंत उस दिया को कोठारी के बाहर रख दी. अब
कोठारी मे अंधेरा हो गया था और बाहर जल रहे दीपक से अंदर इतनी रोशनी आ रही
थी की अंदर लगभग सब कुच्छ दीख जा रहा था. सावित्री ने दरवाजे से बाहर की ओर
मा के आने वाले रास्ते की ओर देखना चाह रही थी लेकिन अंधेरा होने के वजह
से ज़्यादे कुच्छ दीख नही पा रहा था. अब घी लगाने की बारी थी. सावित्री को
सलवार खोलने मे डर लग रहा था की कहीं मा आ ना जाए. सावित्री ने फिर अपने को
डरती हुई महसूस की और फिर धन्नो चाची की बाद याद आ गयी. दूसरे पल ही
सावित्री ने अपने सलवार के नाडे को खोल कर और चड्धि को तुरंत थोड़ा नीचे
सरका दी और अपनी नज़रें दरवाजे से बाहर की ओर भी टिकाए रही ताकि मा को आते
देखते ही कपड़े ठीक कर देसी घी की कटोरी भी च्छूपा लेती. लेकिन अभी भी मा
का कोई अता पता नही होने से सावित्री ने कटोरी मे रखे देसी घी मे उंगलिओ को
दुबाई जो हल्की गर्म थी. और दूसरे पल ही अपनी बुर पर जल्दी जल्दी लगाने
लगी. थोड़ी सी ही घी मे बर पूरी भीग सी गयी फिर अगले पल सावित्री खड़ी ही
खड़ी अपनी बुर के दोनो फांकों को देसी घी से लगे हाथ और उंगलिओ से ठीक से
मालिश करने लगी. ऐसा करते हुए उसकी नज़रें दरवाजे के बाहर भी लगी रही. देसी
घी की मालिश पाते ही बुर की पुट्तियाँ मानो थिरकने लगी. सावित्री को बहुत
आनंद आने लगा. इसी आनंद से सराबोर हो कर सावित्री ने देसी घी से अपनी बुर
को खूब चिपोडा. फिर क्या था झांतों को भी खूब सहलाई और घी से झांतों को भी
तर कर डाली. अब बुर मे बस एक मीठी दर्द ही रह गयी थी. बर और झांतों को देसी
घी से मालिश करने के बाद सावित्री ने देसी घी से डूबी उंगलिओ को बुर के
मुँह पर लगाई तो खुद को रोक नही पाई और उंगली को कस के अंदर की ओर पेल दी
और देसी घी से च्यूपडा हुआ उंगली बुर मे सरक गयी और सावित्री आनंद से सिहर
उठी. लगभग चार पाँच बार बुर के अंदर बाहर उंगलिओ को कर के घी को ठीक से लगा
ली. फिर एक बार अपनी बुर को उपर से अच्छि तरह मसल कर मस्त हो चुकी
सावित्री को धन्नो चाची की कही बात पर भरोसा हो गया की यदि उसके साथ रही तो
बहुत मज़ा करेगी. फिर सावित्री ने अपनी चड्धि को उपर को खिसका कर पहन ली
और फिर सलवार के नाडे को भी बाँध ली. फिर देसी घी के कटोरी को जल्दी से
हल्की रोशनी मे कोठरी के कोने मे रखे लोहे के पुराने बॉक्स के नीचे च्छूपा
दी. काम हो गया था. सावित्री फिर बाहर रखे दिए को वापस अंदर कोठारी मे ला
कर रख दी. और खुद छप्पर मे चूल्*हे पर उबाल रहे पानी मे चावल डालने चली
गयी. अभी भी मा वापस नही आई थी. यही सोच कर सावित्री छप्पर मे चूल्*हे के
बगल मे बिछि खाट पर लेटटी हुई एक बार फिर अपनी बुर को सलवार के उपर से ही
हल्की सी मसली तो सारा बदन मस्ती मे झंझणा उठा. तभी मा के कदमो की आहट आते
ही सावित्री खाट पर से उठ कर खड़ी हो गयी और मा के हाथों मे सब्जी और कुच्छ
समान और दूसरे हाथ मे मिट्टी के तेल का भरा हुआ डिब्बा को थामते हुए पुछि
"....क्यों इतनी देर हो गयी है. अच्च्छा होता की दिन मे ही ये सब ले आती
...देखो तो कितना अंधेरा हो गया है...." इतना सुन कर सीता कुच्छ सोची और
फिर कुच्छ झल्लते हुए बोली "...समान लेने मे देर तो लगेगी ही....और..मिट्टी
का तेल ख़त्म हो गया था... ......" इतना कह कर सीता चुप हो गयी, फिर
सावित्री ने अपने हाथ मे लिए मिट्टी के तेल के डिब्बे को अंदर रखती हुई फिर
पुछि "...कहाँ से मिट्टी का तेल लाई हो..?" सावित्री के इस सवाल का जबाव
दिए बगैर सीता घर के पीच्छवाड़े मुतने चली गयी.
कोई जबाव ना पा
कर सावित्री के मन मे एक सवाल उठी की आख़िर मा मिट्टी का तेल लेने अंधेरा
होने के बाद क्यों गयी. दिन मे भी तो जा सकती थी. दूसरी बात ये की मिट्टी
का तेल तो गाओं के दूसरी छ्होर पर एकांत मे बने गोदाम पर बिकता है और ये
गोदाम वाले मिट्टी के तेल की दुकान का मालिक जग्गू भाई था जो गुंडा किस्म
का आदमी था. तो क्या मा वहाँ गयी थी मिट्टी का तेल लाने?. कोठरी मे खड़ी हो
कर इन सवालों मे उलझी सावित्री फिर बाहर आ गयी. थोड़ी देर बाद उसकी मा मूत
कर घर के पीच्छवाड़े से वापस आ गयी और अपने पैरों को धोने के बाद मुँह को
भी पानी से धोने लगी और मुँह मे पानी ले कर कुल्ली करने लगी. ये सब
सावित्री को कुच्छ अजीब लग रही थी. फिर सावित्री ने सोचा की हो सकता है
उसकी मा के साथ कोई दूसरी औरत भी मिट्टी का तेल लेने गयी होगी क्योंकि
अंधेरा होने के बाद उसकी मा अकेले भला कैसे जा सकती है उस एकांत सुनसान
गोदाम के पास जहाँ मिट्टी का तेल बिकता है. यही मन मे सोच रही थी की
लक्ष्मी चाची ही गयी होगी उसके साथ और दूसरे पल सावित्री ने अपने अंदाज़ा
को सही ठहराने के लिए पुछि "..लक्ष्मी चाची भी गयी थी क्या ..मिट्टी का तेल
लेने...तुम्हारे साथ...." इतना कह कर सावित्री अपनी मा के तरफ देखने लगी
जो पानी अपने मुँह मे ले कर बार बार कुल्ली करते हुए पीचकारी की तरह निकाल
रही थी. सीता अपना मुँह को ठीक से धोने के बाद कुच्छ देर तक चुप रही मानो
वो सावित्री के सवाल का जबाव नही देना चाहती हो. अपने मुँह को सारी मे
पोन्छते हुए कोठारी मे जाते हुए बोली "...जब तेल नही था तो लाना ही पड़ेगा
...नही तो अंधेरे मे भला कैसे कोई रहेगा.." इतना कह कर सीता चुप हो गयी और
अपना मुँह कोठरी के दीवार मे लगे छोटे सीसे मे दिया के रोशनी मे निहारने
लगी. सावित्री को आभास हुआ की उसके सवाल का जबाव उसकी मा नही देना चाह रही
हो. यही सोच कर सावित्री ने बाहर से ही कोठरी के अंदर सीसे मे देख कर अपने
बालों को ठीक करती सीता को एक नज़र देखी. सावित्री को कुच्छ ऐसा लगा मानो
उसकी मा के बाल कुच्छ उलझ से गये हों जिसे वो ठीक कर रही है. लेकिन अपनी मा
के उपर ज़्यादे नज़र रखना उसे ठीक नही लगा और वह चुपचाप छप्पर मे आ गयी और
चूल्*हे पर पक रहे चावल को देखने की कोशिश करने लगी. छप्पर मे कोई दिया ना
जलाने से अंधेरा था. घर मे बस एक ही दिया था जो अंदर कोठारी मे जल रहा था.
चावल कहीं चूल्*हे पर जल ना जाए यही सोच कर सावित्री दिया लाने के लिए
कोठारी मे जैसे ही घुसी तो देखी की उसकी मा अपनी सारी को ठीक कर रही थी. जो
कुच्छ अस्त-व्यस्त हो गयी थी शायद. दिया के रोशनी मे अपनी सारी और कपड़े
को ठीक कर रही सीता का पीठ सावित्री की ओर थी. सावित्री को यह सब कुच्छ
अजीब लग रही थी. लेकिन उसे दिया की ज़रूरत थी ताकि उसकी रोशनी मे चावल को
देख लेती की कहीं जल ना जाए. सावित्री यही सोच कर दिया को हाथ मे लेती बोली
"...चावल देखना है...इससे.." सीता ने कोई जबाव नही दी बल्कि अपनी सारी को
कमर मे ठीक करते हुए पहनने लगी. दिया को लेकर सावित्री छप्पर मे चूल्*हे पर
पक रहे चावल को देखने लगी. और फिर दिए को वापस कोठारी मे ले कर आई तो दिए
की रोशनी फैल गयी जिसमे सावित्री ने देखा की उसकी मा अपने पीठ को तेज़ी से
उसके तरफ करके ब्लाउज को ठीक करने लगी. सावित्री को ऐसा लगा मानो उसकी मा
उससे अपनी छाती को छिपाना चाह रही हो और शायद उसे इस बात का अंदाज़ा नही था
की इतनी जल्दी सावित्री दिया को वापस कमरे मे ले आएगी. अब सावित्री के मन
मे कुच्छ शक़ पैदा होने लगा. लेकिन उसे अपनी मा पर बहुत विश्वास था. इस वजह
से वह कोठारी से बाहर आ कर सोचने लगी की उसे कही भ्रम तो नही हो रहा.
आख़िर मा के बारे मे ऐसी बात क्यों सोच रही है. तभी सीता ने कोठारी मे से
दिया खुद ही लेकर छप्पर मे जा कर पक रहे चावल को देखते हुए कुच्छ गुस्से मे
बोली "....तू हमेशा चावल मे पानी कम डालती है...और ..चावल रोज़ जल जाता
है...पता नही कब तुझे खाना बनाने आएगा......" इतना कह कर गुस्से से सीता ने
सावित्री की ओर देखने लगी तो गुस्से मे लाल चेहरे को सावित्री ने अनायास
ही देखने लगी और दिया सीता के हाथ मे ही होने से रोशनी सीधे सीता के मुँह
पर पड़ रही थी जिसमे जल्द ही धोया हुया चेहरा ऐसे लग रहा था मानो अभी नहा
कर आई हो लेकिन दूसरे ही पल सावित्री की नज़र अपनी मा के निचले होंठ पर
पड़ी तो उसे ऐसे लगा की चक्कर आ जाएगा और जल रहे चूल्*हे पर ही गिर पड़ेगी.
सावित्री बिना किसी जबाव दिए और पक रहे चावल को बिना देखे ही छप्पर से
बाहर आ गयी. उसने दिया के रोशनी मे जो कुच्छ देखा यकीन नही हो रहा था. उसकी
मा के निचले होंठ पर कुच्छ नीले और काले रंग का दाग लग रहा था. जो किसी के
दाँत के काटने के वजह से हो सकता था.
सावित्री यही समझने की
कोशिस कर रही थी की आख़िर मा आज अंधेरा होने के बाद कहाँ मिट्टी का तेल
लेने गयी थी और कुच्छ देर के बाद वापस आई. आने के तुरंत बात पेशाब करने गयी
और फिर अपने मुँह को पानी के ठीक से धोइ और मूह मे पानी ले कर गलगाला भी
की. इन्सब के अलावा उसके निचले होंठ पर कुच्छ दाँत के कटे के निशान तो यही
बता रहे हैं की मा किसी मर्द के पास गयी थी. और यदि ऐसा सच है तो आख़िर मा
इतना गंदा कम कब सुरू कर दी और वो कौन है जो मा के साथ ये सब किया होगा.
इन्ही सोचों मे उलझी सावित्री को कुच्छ समझ नही आ रहा थी. थोड़ी देर बाद
जैसे ही खाना तैयार हुया की मा बेटी दोनो खाना खाए. सावित्री को काफ़ी भूख
लगी थी और थकान तो इतना की लगता था खड़े खड़े ही गिर जाएगी. कारण भी था की
कई बार झाड़ गई थी और तेजू भी खूब जम के चुदाई कर दिया था. सावित्री को अब
सोने के अलावा कुछ नही दिखाई दे रहा था
बिस्तर पर पड़ते ही
सावित्री को कब नीद लगी उसे पता ही नई चला. जैसे ही सोई थी ठीक वैसे ही
सुबह हो गयी और एक करवट भी नही ले सकी थी. सुबह जब उसकी मा ने उसे ज़ोर से
झकझोर कर उठाया तब जा कर चौंक कर उठी. एक गहरी साँस छ्चोड़ते हुए अपनी आँखे
मीस्ते हुए उठी और लड़खड़ाते कदमो से घर के पीच्छवाड़े मूतने चली गयी.
पेशाब भी बहुत तेज लगी थी. ढेर सारा मूतने के बाद सावित्री महसूस की कि
उसकी बुर मे एक अजीब ताज़गी भर गयी है मानो उसके साथ साथ उसकी बुर की भी
थकान मिट चुकी हो.थोड़ी देर बाद पीच्छले दीनो की बाते फिर दिमाग़ मे उठने
लगी. कुच्छ समय बिता और उसकी मा बाहर रखे बाल्टी का पानी ले कर नहाने के
लिए बनी जगह मे चली गयी और चारो ओर से घीरे हुए इस स्थान मे केवल एक तरफ से
थोड़ा सा खुली जगह जो किसी दरवाजे की बराबर था उसमे सारी का परदा लगा दी
और नहाना सुरू कर दी. सावित्री छप्पर मे बैठ कर सुबह के खाना बनाने की
तैयारी मे लग गयी थी सब्जी काटते हुए पीच्छले दिन की बातों को थोड़ी देर के
लिए भूल गयी थी. तभी उसे सब्जी धोने के लिए पानी की ज़रूरत थी. आज देर से
उठने के वजह से घर के पीछे बड़े बगीचे के कुआँ से पानी भी भर के नही लाई
थी. और पानी घर मे और कहीं नही था बल्कि उस नहाने वाले जगह मे कुच्छ पानी
रखा रहता था जो कभी कम पड़ जाने की स्थिति मे उपयोग होता था. अगले पल
सावित्री ने सब्जी धोने के लिए तुरंत पानी लेने नहा रही मा के पास गयी और
परदा हटाई तो देखी की उसकी मा एकदम नंगी खड़ी थी और उसका पूरा बदन भीगा हुआ
था. उसकी नज़र अपनी मा के दोनो चुचिओ के काले घुंडीओ के आस पास चारो ओर
लाल और सुर्ख रंग के दाँत के काटने के निशान एकदम साफ साफ दीख रहे थे.
लेकिन सीता ने कुच्छ बोले बगैर चुप चाप अपनी बदन को रगड़ रगड़ कर मैल छुड़ा
रही थी और दोनो चुचियाँ हिल रही थी जिसको सावित्री बार बार देख रही थी.
तभी सीता ने पुचछा "क्या चाहिए..." इतना सुनकर सावित्री के सूखे गले से
आवाज़ निकली "...प पानी व वो सब्जी धोने के..लिए.." फिस सीता ने कहा
"...पानी क्या ले जा रही है..सब्जी ही ले आ यहीं धो ले...जा ले आ.." इतना
सुन कर सावित्री जाने के पहले एकदम नंगी खड़ी हो कर नहा रही अपनी मा के बुर
को देखी तो और चौंक गयी. बुर पर एक भी बाल नही थे मानो ऐसा लगता था जैसे
पीच्छले ही दिन झांतों को सॉफ की हो. लेकिन अपनी नज़रें उसकी सॉफ सुथरे बुर
से हटाने के तुरंत वापस सब्जी लाने चली गयी. अब सावित्री का कलेजा धक धक
कर रहा था. उसे अपनी आँखों पर यकीन ही नही हो रहा था की उसकी मा आज एकदम
नंगी ही नहा रही थी और उसकी दोनो चुचिओ को किसी ने दाँतों से खूब काटा था.
उसने वर्तन मे सब्जी को उठाई तो उसे महसूस हुआ मानो हाथ कांप रहे हों और
सब्जी कभी भी गिर जाए. आख़िर फिर नहाने वाली जगह गयी और परदा को हटा कर
अंदर हुई तो देखी की उसकी मा झांतों से एकदम सॉफ सुथरी बुर को ठीक सामने
करके बैठी थी और पानी को डाल कर नहा रही थी. सावित्री किसी तरह पानी से
सब्जी को धोने लगी और रह रह कर बुर और चुचिओ को देख भी लेती थी. तभी उसकी
मा सावित्री के सामने ही अपने दोनो जांघों को फैला कर बुर पर पानी डालते
हुए दूसरे हाथ से बुर को रगड़ रगड़ कर धोने लगी. कभी कभी बीच वाली उंगली भी
अपनी बुर मे घुसा कर धोने लगती दो सावित्री को लगता की वह अपनी बुर मे नही
बल्कि उसी की बुर मे उंगली कर रही है. सावित्री यह भूल गयी की उसकी मा उसे
देख रही थी की वो बुर को पानी से धोते हुए ध्यान से देख रही है. सीता ने
सावित्री की ओर देखा और जैसे ही आँखे मिली सीता ने बोली "तुम भी अपनी जंगल
झाड़ की सफाई कर लिया करो...जंगल पाल कर रखी हो पता नही क्या करोगी..."
सावित्री अपनी आँखें अब सब्जी धोने पर लगा दी. तभी सीता ने फिर कहा "कल मैं
बाल बनाने वाला ले आई हूँ नहाने के पहले ही बना लेना.....इस जगह को भी सॉफ
रखा करो..." इतना सुनते ही सावित्री की साँसे तेज हो गयी और सब्जी धोने के
बाद जल्दी से वापस छप्पर मे आ गयी.तभी उसकी मा ने बुलाया "थोड़ा मेरी पीठ
मल तो ....मैल बैठ गया है...पीछे हाथ ही नही पहुँच पाती...सुन रही है..."
इतनी बात कान मे पड़ते ही सावित्री की मुँह से बस " ह ह हूँ " निकला और तेज
धड़कानो के साथ नहाने वाले बाथरूम की तरह बने जगह पर गयी और परदा हटा कर
अंदर हो गयी. तभी एकदम नंगी बैठी हुई सीता ने अपनी पीठ उसकी ओर कर दी.
सावित्री के काँपते हाथ उसके पीठ पर फिसलने लगे. रगड़ने पर भी मैल का कही
नामो निशान नही था. तभी उसकी मा ने कहा " थोड़ा नीचे कमर की ओर भी
मल...पीछे हाथ ना जाने से मैल छूट ही नही पाती..." सावित्री अपने हाथों को
पीठ पर नीचे की ओर ले जा कर मलने लगी. थोड़ा सा मैल निकला ही था की उसकी मा
ने फिर बोला " थोड़ा और नीचे रगड़....शरमाती क्या है...अब तू सयानी हो गयी
है ..सब 'समझने' लगी है.." इतना सुनते ही सावित्री फिर से सनसना गयी. और
नीचे का मतलब था सीता के बड़े बड़े दोनो चूतड़ और दोनो चूतदों के बीच एक
मोटी लकीर जो बैठी होने की स्थिति मे एकदम फैली हुई थी देखने मे एकदम धन्नो
चाची की तरह थी. जल्दी जल्दी अपने हाथों से रगड़ रही थी की उसकी मा ने फिर
कहा " दोनो के बीच वाली जगह मे उंगली डाल के रगड़...ज़ोर लगा के
रगड़...ऐसे क्या फूल की तरह छ्छू रही है. " अब सावित्री के सामने कोई चारा
नही था. उसने अपनी मा के चूतदों के बीच वाली धारी मे उंगली रगड़ने लगी तो
सीता ने अपनी आँखे मूंद कर हल्की सी सिसकारी ले ली जो सावित्री के कान मे
पड़ते ही उसकी बुर चुनचुना उठी.
सावित्री अपनी
माँ के अन्दर सम्माहित हो रहे खुलेपन को देख कर हैरान सी हो रही थी ! अब
उसे महसूस हो रही थी की कुछ ही दिन पहले तक इज्जत की बातें करने वाली उसकी
माँ के स्वभाव में इतना बड़ा परिवर्तन कैसे हो गया !कहीं किसी से फंस जाने
की वजह से तो नहीं ?लेकिन सावत्री के मन में एक बात तो साफ हो चुकी थी की,
उसकी माँ किसी से फंस गई हे और इसी वजह से वो किसी छिनाल की तरह बातें कर
रही हे ! दुसरे दिन वादे के मुताबिक सावत्री धन्नो के साथ जाने के लिए
तैयार हो कर बहार आई ! धन्नो उसका इन्तजार कर रही थी !फिर धन्नो सावत्री को
देख कर बोली :-".अरे सावत्री ......आज तो में जा नहीं पाऊँगी री वो लड़के
के बाप ने सन्देशा भिजवाया था की वो मेरी लड़की को देखने दो-तीन हफ्ते बाद
आएगा .............!"इतना सुनकर सावत्री बोली :- "उं ...तो .....में क्या
करूं चाची ........दूकान पर जाऊं ...?" तब धन्नो बोली :-"ठीक हे तू दूकान
पर जा पर जब लड़के बाप मेरी बेटी को देखने के लिए शगुन चाचा के घर आएगा तो
तू मेरे साथ चोरी से चलना ................तेरी माँ को खबर न हो
.....!"इतना कहते ही धन्नो गाँव के बाहर सुनसान जगह पर साड़ी उठा कर बैठ गई
और मूतने लगी !सावत्री कुछ सोच कर हामी भरते हुए बोली :- "ठीक हे चाची
.....में चलूंगी ........" फिर धन्नो बैठे बैठे ही बोली :_"अरे हजारी जब
तेरे को मौका लगे तब मेरे से भी मिल लिए करना ....अपनी माँ से चोरी चोरी
......" फिर कुछ मुस्कराते बोली :- "वो अपने गाँव का लड़का ...मन्नू
....तेरे को बहुत पूछ रहा था .." इतना कहते ही धन्नो मूत के खड़ी हुई और
अपने साडी से अपने नंगे चुतड और नंगे पैरों को ढक लिए !सावत्री ऐसा सुन कर
कुछ नखरे वाले अंदाज़ में बोली :-'धत्त ....रे मुझ से ऐसी बात मत बोल ...छी
"! फिर धन्नो हँसते हुए सावत्री की एक बांह पकड़ कर बोली :-" अरी रंडी
..मन्नू का लौड़ा एक दम मुसल हे ..रे .....पूरा का पूरा 22 साल का नया चोदु
निकला हे वो ...मन्नू ... कितनी गाँव की बुढीया तक चुद गई ..और तू धत्त
बोलती हे !"इतना सुनकर सावत्री एक बार तो सनसना गई फिर बोली :-"चाची मेरे
को दूकान पर जाना हे "! तब धन्नो बोली :- "में जो पूछ रही हु वो तो भला
बताना "! तब सावत्री बोली :-"क्या?""अरी मन्नू को लाइन मार ना ..सच में बड़ा
ओजार वाला हे वो "इतना बोल कर धन्नो सावत्री का मुह देखने लगी !एक दम खुले
तरीके से बेबाक अंदाज़ में धन्नो के बात करने से मानो सावत्री को झकझोर
दिया था !वो आवाक रह गई थी ! फिर किसी अनाड़ी खिलाडी की तरह धीरे से बोली
:-"मेरे को कुछ पता नहीं चाची ...में दूकान पे जा रही हु ..."! तब धन्नो
कुछ फुसलाते अंदाज़ में बोली :-"क्या दुकान पे जाओगी चल आज दिन मेरे साथ ही
घूम कर बिता ले "! तब सावत्री कुछ सहम कर बोली :-"लेकिन वो माँ जान गई तो
....नहीं मुझे जाने दो ...!"तब कुछ झिझक कर धन्नो बोली :- "अरे ...वो रंडी
..क्या जानेगी कोई अपने गाँव में थोड़े ही घुमने ले जाउंगी ..अरे तेरे को ये
बगल वाले गाँव ले चलूंगी .... वह मेरी एक सहेली रहती हे ...गुलाबी ...
मेरी पुरानी सहेली "आगे बोली "चल मिला दू तुझे उस से ... बहुत ही अच्छी हे
रे ..."अपनी सहेली की तारीफ करते हुए मानो धन्नो ने अपने साथ उसे घुमाने का
इरादा बना ही लिया हो ! पुरे दिन धन्नो उसे गाँव में इधर उधर घुमाती रही
और गाँव की चोदा चोदी की कहानिया सुनाती रही ! सावत्री को भी चोदा चोदी की
कहानिया पसंद आने लगी थी !खूब चाव से सुनती रही !पर जब सावत्री गुलाबी से
मिली जो 44 के आस पास थी पर उसे भरोसा नहीं हुआ की धन्नो की सहेली भी उस की
तरह खुली हुई थी !गुलाबी अपने घर अकेले थी और धन्नो से खूब गन्दी गन्दी
बातें की !उसने सावत्री से भी एक दम अश्लील ढंग से मजाक की तो सावत्री
शर्मा गई तब गुलाबी बोली :-"अरी मेरी रानी ...शादी से पहले खूब लूट लो
मर्दों का मज़ा ...शादी के बाद तो भगवान् ही मालिक हे .... पता नहीं कैसा
ससुराल मिले ..समझी ...खूब चुदाओ .. ये चुदाने की उम्र हे ...जी भर के
चुदवाओ !"फिर सब हंस पड़े !सावत्री अपने माँ की नज़रों से बाख कर धन्नो से
मिल लेती और चोरी छिपे घूम भी लेती !और धन्नो चाची के मुह से गाँव के लोगों
की चोदा चोदी की गन्दी गन्दी कहानिया सुन भी लेती जिसे सुन कर उसे खूब मज़ा
आता !
एक एक दिन बीत रहे थे , सावत्री को
भी पंडित जी की दूकान का मज़ा आ ही रहा था तो कभी मौका प् कर धन्नो चाची के
साथ घुमने और चुदाई की बातें सुनने का मज़ा मिल ही जाता था !
पंडित
जी की रोज़ चुदाई की वजह से वो भी एक पूरी ओरत बन चुकी थी ! इधर सीता भी
गाँव में ही चोट खाने लगी थी , सावत्री की शक सही था उसकी माँ सच में फंस
चुकी थी !
एक दिन सावत्री अपने छप्पर में सोई हुई थी पर पूरी
नींद में नहीं थी और धीर धीरे शाम ढलने लगी थी ! तभी उसकी माँ गाँव में से
घूम के आई और कुछ रंगीन मूड में लग रही थी ! एक नज़र उसने सोई हुई सावत्री
की तरफ दौड़ाई और फिर उसे सोया जान कर अपने आप को रोक न सकी ! और फिर अपने
तसल्ली के लिए धीमी आवाज में एक अश्लील गीत गुन गुनाने लगी !
सोई हुई सावत्री के कानो में जैसे ही अश्लील गीत की आवाज़ आई वो सोई ही सोई सन्न रह गई !
फिर कुछ समझ कर सावत्री चुप सी पड़ी रही और गीत सुनने लगी !
और
सीता इस फूहड़ गीत को अक्सर अकेले में गा कर अपने मन को मस्त कर लेती थी !
और कभी सावत्री को आते देखती तो चुप हो जाती थी ! पर आज सोया जान कर गीत
गति रही 1
और उस दिन सावत्री थकी हुई थी पंडित जी की दूकान से ही
थक के आई थी और आकर छप्पर में खाट पे लेती थी की उसे नींद आ गई थी !लेकिन
फिर जब कुछ मच्छरों ने काटा तो नींद खुल सी गई ! फिर सावत्री के कानो में
जो सुनाई दिया उसे विश्वाश नहीं हुआ ! शायद नींद में सोया जान कर सीता
बर्तन मांजते हुए गुनगुना रही थी !
मोरी चुदैल जवानी मोरी चुदैल जवानी ,
रात को नींदिया न आवे राज मोरी चुदैल जवानी ,
अरे जोबना में उठे गुदगुदिया नीचे चुवे पानी ,
मोरी चुदेल जवानी पिलवा मोहे पानी ,
मोरी चुदेल जवानी ............!
इतना सुनकर सावत्री सन्न रह गई और आगे सुनने की नीयत से चुपचाप पड़ी रही !
वो चुपचाप लेती रही उसकी माँ बर्तनों को धोती धोती फिर धीमी आवाज़ में गुनगुनाने लगी !
मुझे मर्द चाही दूसरा , जो घुसावे मुसरा हो जो घुसावे मुसरा ,
वही मुसल्वा पे लगाये सरसों का तेलवा , हो तिल्ली का तेलवा ,
मोहे चोदे जब राजा हिला के हिला मुसरा हो हिला हिला के मुसरा ,
मोहे मर्द चाही दूसरा जे का भारी मुसरा हो घुसावे मुसरा ,
हो मोटा मुसरा हो मोटा मुसरा ,
मोहे मर्द चाही दुसरा जे का मोटा मुसरा ,
बांस जैसा मोटा और नाग जैसा काला ,
तेल पी के खड़ा हो जाये जैसे हो कोई भाला ,
मोहे टांग दे उसपे ऐसे जैसे खूंटी पे टंगा हो घाघरा ,
अरे ऐसा मुसरा हो की ऐसा मुसरा ,
मोहे मर्द चाही दुसरा मोहे मर्द चाही दुसरा .
ऐसा गीत सुनकर सावत्री को यकीन होने लग गया की उसकी माँ भी दूध की धूलि नहीं हे !
जब इतना अश्लील गीत गुनगुना सकती हे तो किसी से चुदवाने में नहीं हिचकिचाएगी !
एक बार तो सावत्री की बूर में कश के टीस पैदा हुई !
पर वो उसे ऊपर से खुजला कर शांत रह गई !
कुछ दिन बीते हे थे की धन्नो सावत्री की माँ की नज़र बचा कर सावत्री से बोली :-"चल न आज गुलाबी के घर चला जाये !"
तब सावत्री ने बोला :-"लेकिन मुझे तो दूकान पर भी तो जाना हे ना ?"
तब
धन्नो बोली :-"एक दिन ना ही सही .....कुछ बिगड़ेगा थोड़ी .....एक दिन मत जा
दूकान पर .! " फिर कुछ सोच में पड़ी सावत्री इधर उधर देख ही रही थी की धन्नो
तपाक से बोली :-" अरे काहे का फिकर कर रही हे .....चुपचाप चल घुमा लाऊं
....किसी को कानो कान खुछ खबर न पड़ेगी !"असमंजस में पड़ी सावत्री कुछ सोच
नहीं पा रही थी ! कुंकी उसका भी मन घुमने को कर रहा था !
वह
जान रही थी की धन्नो चाची के साथ घुमने का मतलब चोदा चोदी की खूब सारी
बातें ,और गन्दी गन्दी कहानिया , और वो गुलाबी चाची की अश्लील बातें !
सावत्री का मन मचल उठा ! पर अपनी माँ का डर और दुसरे दिन पंडित जी को क्या जबाब देगी ये भी सोच रही थी !
उसको
सोचते देख धन्नो दबाव बनाते बोली :-"कहे को चिंता में पड़ी हे मानो कोई मर
गया हो ......अरे चल में दुसरे दिन खुद तेरे साथ चल कर पंडित जी को बोल
दूंगी की तू मेरे साथ घुमने गई थी !" इतना सुनकर मनो तब उसे तसल्ली हुई तब
सावत्री बोली :- "ठीक हे चाची ...तो में दूकान जाने के समय में तुम्हे गाँव
के बाहर मिलूंगी ......हा माँ को नहीं पता चले नहीं तो फिर क्या होगा
....सावत्री अपनी चिंता जाहिर करते बोली !
तब धन्नो अपनी साडी के
ऊपर से ही बूर खुजलाते हुए बोली :-"झांट पता चलेगा ....तू तो मुझे अनाड़ी
समझ रही हे ..चल न अभी तू मुझे क्या समझी ...हजारों लंड खिलवा दूंगी ...और
तुझे कुंवारी दुल्हन की तरह सजवा कर शादी भी करवा दूंगी "धन्नो से इस अंदाज़
से बातें सुनकर सावत्री शर्म से लाल हो गई ! फिर आगे बोली :-"ठीक हे गाँव
के बाहर ...." तब धन्नो लगभग खुश हो गई !
सावत्री दूकान जाने के बहाने जैसे ही तेयार हो कर आई गाँव के बाहर बगीचे में धन्नो इन्तजार कर रही थी !
फिर धन्नो सावत्री को लेकर पास ही के गाँव अपने सहेली गुलाबी के घर चल पड़ी !
रस्ते
में अपनी अपनी सहेली गुलाबी की तारीफ शुरू कर दी :- जानती हे गुलाबी
मेरीबहुत पुरानी सहेली हे .....एक दम जिगरी दोस्त की तरह ....हम दोनों कोण
से ऐसे राज हे जो नहीं जानते एक दुसरे के ....फिर आगे बोली दोस्ती हो तो
मेरी और गुलाबी की तरह हो सच में री ...तारीफ करते आगे बोली ......"बड़ी
मिलनसार हे ... नेकदिल इंसान भी हे ....और मुसीबत में साथ साथ कदम मिला कर
चलने वाली .." सावत्री रस्ते नापते धन्नो की बातें सुन रही थी "तभी सोचती
हु की मेरी तेरी अच्छी दोस्ती भी गुलाबी से करवा दू ...फिर आगे पूछी कैसी
लगी वो जब तू उस दिन उससे मिली थी ,,,?
सावत्री मानो कुछ बोलने
के मूड में नहीं थी , पर एक बार वो भी गुलाबी से मिल चुकी थी ,और धन्नो
चाची के पूछने पर बोली":-" ठीक थी !"" ठीक थी ?" ": बड़ा ही मुरझाया जबाब दे
रही हे तू इसका मतलब तुझे पसंद नहीं आई मेरी सहेली ?"
इतनी
सुनकर सावत्री को लगा उसका जबाब धन्नो को पसंद नहीं आया इस्ल्ये वो खुश
करने के अंदाज़ में तपाक से बोली :-"नहीं चाची वो गुलाबी चाची भी बहुत अच्छी
हे ....सच में ...!"
धन्नो सावत्री की माखन लगाने वाले अंदाज़
में बाते सुनकर बोली :-"तुम तो उस दिन उसकी बातें अनसुना कर रही थी न वो
क्यों ? तब सावत्री कुछ असमंजस में पड गई और धन्नो के पीछे पीछे चलती रही !
तब
धन्नो बोली :-"उस दिन तो तुझे उसकी बातें पसंद नहीं आई थी तो आज कैसे उसकी
तारीफ कर रही हे ?" इतना बोल कर धन्नो रस्ते में खड़ी हो कर मुस्कराते हुए
सावत्री की तरफ देखने लगी !
सावत्री खी खड़ी हो कर कुछ लाज भरे चेहरे से मुस्कराने लगी !
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