सावत्री अब पूरी तरह से घबरा चुकी थी ! ठाकुर साहब के पीछे पीछे घिसटते हुए उसने अपने दुसरे हाथ से ठाकुर साहब के पंजो में दबी अपनी कलाई छुडानी चाही , पर ठाकुर साहब का हाथ तो उसे लोहे जैसा लगा ! वे किसी दानव की तरह उसे खींचते ही जा रहे थे !फिर सावत्री किसी बच्चे की तरह रोने का मुह बनाती हुई धम से वाही बेठ गई जैसे छोटे बच्चे स्कूल नहीं जाने के लिए करते हे जब घर वाले खींच कर जबरदस्ती स्कूल ले जाते हे , और ठाकुर साहब से अपना हाथ छुडाने लगी ! हाथ तो उसका फिर भी नहीं छूटा पर ठाकुर साहब की चौकी की और जाने की रफ़्तार में ब्रेक लग गया ! उसका हाथ बुरी तरह से खिच रहा था !ठाकुर साहब सावत्री के चेहरे को देखते हुए बोले :-" अरी ..ये क्या कर रही हे री ...." फिर धन्नो की तरफ मुह करते हुए कुछ पूछने के अंदाज से बोले :-" किसी मर्द से इसका पाला नहीं पड़ा हे क्या अब तक ....ये ऐसे क्या कर रही हे ...अनछूई कुंवारी हे क्या ..किसी नई घोड़ी की तरह उछल रही हे ..!" तब धन्नो लपक कर सावत्री के पीछे पहुंची और अपने दोनों हाथों से उसे जबरदस्ती खड़ी करते हुए बोली :-" अये ..क्या कर रही हे ...हरजाई ..ऐसे पसर क्यों रही हे ...मानो ठाकुर साहब जान ले लेंगे तेरी ....अब ठीक से खड़ी हो और चल ...जा उनके पास ..!" फिर धन्नो ने पूरी ताकत से सावत्री को खड़ी कर दी और ठाकुर साहब की तरफ धकेलने लगी !ये सब देख कर गुलाबी भी हंस पड़ी और बोली :-" बाबूजी .... सांड देख कर इसकी गांड फट रही हे .....मूसल केसा तन्ना रहा हे ...हे ..हे ...हे ....!"ये सुन कर धन्नो भी मुस्कुरा उठी और बोली :-" अभी नई नई हे रे ....तो डर रही हे ...!"फिर गुलाबी बोली :-" तेरे साथ रहती हे और नई हे? .... न जाने कितनो ने चोद डाला होगा ....अरी अब तो तुझे चोदने वाले सभी इस नई गाड़ी को चलाते होंगे हे ..हे ...हे ...हा !" फिर दोनों हंस पड़ी ! सावत्री दोनों चुदैलो की बात सुन कर सन्न रह गई !वो समझ गई की ये सब प्लान से हो रहा था पर अब वो क्या कर सकती थी ! धन्नो द्वारा खड़ी कर के धकेलने की वजह से वो ठाकुर साहब के करीब पहुँच गई थी ! और फिर ठाकुर साहब ने चुन्नी के ऊपर से ही उसका उसका एक स्तन थाम लिया और लगे उसे मसलने !
तभी गुलाबी ने तपाक से उसका दुप्पटा खींच लिया और सावत्री की बड़ी बड़ी चुचीयां समीज में भी उभर कर ठाकुर साहब के सामने आ गई !ठाकुर साहब का एक हाथ सावत्री की चूची को मसल रहा था और दुसरे हाथ ने उसकी कलाई को पकड़ राखी थी !पीछे धन्नो किसी चट्टान की तरह रास्ता रोके खड़ी थी और साइड में गुलाबी खड़ी थी उसे दबोचने के लिए , सावत्री की की कातर आँखों में आंसुओं की बूंदे चमकने लगी ! ओए तभी अचानक मौका पा कर ठाकुर साहब ने उसे किसी फूल की तरह उठा लिया और चौकी पर लिटा दिया और खुद भी फटाक से चौकी पर चढ़ गए !सावत्री एक दम हक्का बक्का रह गई वो उठाना चाहती थी पर ठाकुर साहब का पहाड़ सा जिस्म उस पर आ गया और और ठाकुर साहब अपनी भारी झांगों से उसकी टांगो को दबा दिया और दोनों हाथों से उसके समीज और कुर्ते के ऊपर से ही गोल गोल भारी चूचियां मीजने लगे ! चुचियों को बेदर्दी से मसलते हुए बोले :-" अरी धन्नो इसकी चूचियां तो बहुत बड़ी और ठोस हे री ..कपड़ों में तो पता ही नहीं चल रहा था ...इतनी ठोस तो किसी अन छुई लड़की के ही हो सकते हे तुम्हारी बात कुछ सही लग रही हे अभी थोडा और चेक करना पड़ेगा ...!" धन्नो कुछ जबाब देती उससे पहले गुलाबी ने आ कर सावत्री के हाथ पकडे और बोली ;-"बाबूजी ... इसकी समीज उतार कर देखो छिनाल धन्नो ने इसे कहा छुपा कर रखा था .....चुचियों पर कोई निशान तो नहीं हे ..सावत्री अब ठाकुर साहब के चूचियां मसलने से अब कुछ गरम होने लग गई थी और मन को भी समझा रही थी की शायद ठाकुर साहब चेक कर के उसे छोड़ दे ! गुलाबी के कहने से उसे डर लगा पर गुलाबी उसकी समीज और कुर्ते को ऊपर करती हुई बोली :-" जब मिजवा भी रही हे तो ठीक से मिजवा ले ठाकुर साहब से री ..!" ठाकुर साहब ने भी अपनी भारी टांग से सावत्री को नीचे से दबाये रखा और अपने दोनों हाथ उसकी चुचियों से हटा कर समीज और कुरता साथ ही ऊपर करने लगे !सावत्री ने रुवांसे आवाज़ में गिडगिडाती धन्नो की और देखते हुए कहा :-'"च ..चाची ..नहीं ...ऐसा मत करो ..!:" और ऊपर हो रहे अपने कुर्ते ओर समीज को पकड़ लिया और उसे नीचे करने लगी !इतना देख कर गुलाबी सावत्री के सिरहाने आ कर सावत्री के दोनों हाथ सर की तरफ ले जाकर पकड़ लिया और ठाकुर साहब से बोली :-" आप बाबूजी निकालो इसका कुरता और समीज ...ये रंडी बहुत नाटक कर रही हे ....!" सावत्री के हाथ गुलाबी कास के पकडे थी ठाकुर साहब ने उसके कुर्ते ओए समीज को तेजी से ऊपर किया सावत्री ऊपर की और खिसकना चाहती थी आँखे मूँद खूब कसमसाई पर ठाकुर साहब के भारी टांगों से दबी थोडा सा हिल कर रह गई !
कुरता और समीज गुलाबी के पास पहुँच कर बाहर निकल चूका था अब ठाकुर साहब के सामने गुलाबी की भरी भरी चूचियां ब्रा में चमक रही थी ये सब पंडित जी की माया थी !तब गुलाबी बोली :-" लो बाबूजी मिजो अब ... बड़ी गदराई हुई हे !" ठाकुर साहब ने ब्रा के ऊपर दो-चार बार कस कस के मसला तो सावत्री की सिसकारी निकल गई ! फिर गुलाबी बोली :-" बस थोड़ी देर में ही तेरी बूर चूने लगेगी ...हरजाई .. ये ठाकुर साहब का हाथ हे ....बहुत करेंट मारता हे री ...अभी तू खुदबखुद अपनी टाँगे चौड़ी करेगी रंडी ..' फिर बगल में कड़ी धन्नो की तरफ देख कर मुस्कुराती बोली :-"अगर
बाबूजी चाहे तो चूची मीज मीज कर ही चूत का पानी निकाल दे ...और चोदने की
जरूरत ही ना पड़े वेसे ही झाड दे तुझे ..हे ..हे .हे !"फिर दोनों हंस पड़ी और ठाकुर साहब भी अपनी तारीफ सुन कर मुस्कुरा उठे और उनके हाथ और तेजी से सावत्री की गोलाइयों को मसलने उमेठने लगे ! वो पूरी ताकत से उनका मर्दन कर रहे थे ! उसकी ब्रा भी साथ ही मसली जा रही थी और वो शर्म के मारे आँखे मूंदी पड़ी थी ! लेकिन उसे गुलाबी की बात सच लग रही थी ठाकुर साहब द्वारा उसकी चुचियों को मीजने से उसकी बूर में तेज सनसनाहट होने लगी थी ! ये सब तब हो रहा था जब एक मर्द द्वारा उसकी चुचियों की मीजाई से उसका बदन चुदासी होता जा रहा था !फिर ठाकुर साहब उसके बगल में लेट गए और अपनी अंगुली से उन्होंने उसकी ब्रा के किनारे को उठा कर एक तरफ सरकाया की उसकी गोल और बड़ी एक चूची बाहर आ गई ! सावत्री की सांवले और कुछ मुहांसे भरे चेहरे पर पसीने की बुँदे चमक रही थी !जिस छोटी जात वाली को ठाकुर साहब अपनी चौकी छूने ही नहीं देते उस पर अपने साथ लेटा रखा हे और पंडित जी तो उसकी चूत का पानी भी पी गए थे इसी बात का सावत्री को अचम्भा आ रहा था और अपने शरीर पर गर्व भी हो रहा था !ठाकुर साहब ने बिना वक़्त गंवाए उस नंगी चूची को थम लिया और लगे मीजने जैसे आटा घुँथ रहे हो और एक बार फिर सावत्री कसमसा कर रह गई ! थोड़ी देर उसे मीजने के बाद अपनी अंगुली से दूसरी चूची के ऊपर से भी ब्रा को खिसकाया तो वो भी छलक कर ब्रा से बाहर आ गई ! फिर ठाकुर साहब ने दोनों नंगी चुचियों को मसलना जरी रखा ! तभी सावत्री ने गहरी साँस ली तो गुलाबी ने देखा साँस लेने के साथ उसका मुह खुला गया हे और वो मुह से ही गहरी गहरी सांसे ले रही थी !ठाकुर साहब के साथ धन्नो और गुलाबी तीनो ने महसूस किया की सावत्री अब गरम हो रही हे !गुलाबी ने उसके दोनों हाथों को आज़ाद कर दिया और सावत्री अपनी दोनों हाथों को नीचे करते हुए ठाकुर साहब द्वारा मीजते नंगी चुचियों की तरफ ले गई की गुलाबी चिल्लाई :-" अरी हरजाई ...तू क्यों नोटंकी कर रही हे ....रंडी ...मीजने दे बाबूजी ..चल हाथ हटा ले ....अच्छी तरह मसलवा .. बहुत मजा आएगा री !"
इतनी बात कहते कहते गुलाबी ने सावत्री के हाथों को उसकी चुचियों से दूर जटक दिया ! फिर सावत्री दर के मारे वापिस अपने हाथ चुचियों पर नहीं ले गई और फिर ठाकुर साहब से उसकी चूचियां मसलते रहे !कभी गुंडीयों तो कभी पूरी चुचियों जोर जोर को मसलना जारी रखा ! कुछ देर मीजाई के बाद ठाकुर साहब ने अपना हाथ सावत्री की पीठ की और बढाया और सावत्री की ब्रा का हुक खोल दिया !इस बार फिर सावत्री ने हरकत की पर ठाकुर साहब ने उसकी ब्रा को उसके बदन से हटाया और दूर फेंक दिया !अब सावत्री के बदन पर सलवार और उसके अन्दर चड्डी रह गई थी ! और उस चड्डी के अन्दर जैसे भट्टी दहक रही थी जो वो खुद भी महसूस कर रही थी ! उसे ये भी महसूस हो रहा था की उसकी बुर की गरम हो चुकी दोनों फांको के बीच कुछ गीला गीला सा हो रहा था ! ये सब चुचियों के मीजने के कारन हो रहा था ! बंद आँखों से लेती सावत्री को अपनी चूची पर कुछ गीला गीला सा लगा तो उसने झट से आँखे खोली तो देख ठाकुर साहब ने उसकी चूची को मुह में भर लिया हे और उसके निप्पल को चूस रहे हे !सावत्री एक दम शर्मा गई और उसने दुबारा आँखे मूँद ली !ठाकुर साहब चूची की गुंडी को किसी लेमन चूस की तरह चूस रहे थे और दुसरे हाथ से दूसरी चूची को मीज रहे थे और थोड़ी थोड़ी देर में बदल भी रहे थे ! चुचियों की इस चुसाई से सावत्री की बूर में मानो चीटियाँ रेंगने लगी थी और वो अपनी दोनों झांगो को आपस में रगड़ने लगी ठाकुर साहब समझ गए की चूचियां मीजी का असर बूर में होने लग गया हे !फिर ठाकुर साहब ने दूसरी चूची मुह में ली और अपने हाथ को नीचे कर के उसकी सलवार के ऊपर से ही पावरोटी की तरह उभरी हुई बुर को भींच लिया जैसे कोई हथेली में चूची को भींचता हे !इस वजह से उसकी बुर को थोड़ी रहत मिली पर दुसरे ही पल वो अपने हाथ को अपनी बुर पर रखे ठाकुर साहब के हाथ की और ले जनि चाही की गुलाबी ने उसका हाथ पकड़ कट झटक दिया और बोली :-" अरे हट ..साली पनिया रही हे तो ठीक से पनिया अब इधर उधर मत कर पनियाने दे बुर को ....तभी बाबूजी चेक करेंगे तेरी बूर की कितनो से पिटी हे ये ..." फिर धन्नो की तरफ देख कर धन्नो से बोली :-" बाबूजी से चूचियां रगडा चुसवा कर इसकी बुर पनियाने लगी हे देख तो साली को ..केसे पसर रही हे हरजाई .."फिर दोनों के नजर ठाकुर साहब के उस हाथ पर गड गई जो सावत्री के सलवार के ऊपर से ही उसकी बुर को मसल रहा था !सावत्री अब हर मसलाहट को मजे ले ले कर झेल रही थी अपनी आँखे पूरी तरह से अपने हाथों से ढांप चुकी थी !
तभी गुलाबी बोली :-" बाबूजी .. हे अब पनिया गई हे पूरी ....अब निकाल दो इसके सारे कपडे ....कर दो साली को पूरी नंगी फिर देखो कितनो के लंड खाए हे इसने ...!" अभी तक ठाकुर सहबुसकी चूचियां चूसने का ही लुत्फ़ उठा रहे थे !अब उनके हाथ ने सलवार का नाडा टटोला और एक झात्खे में उसे खोल दिया ! फिर ठाकुर साहब ने उसकी कमर पर ढीली हो चुकी सलवार को नीचे सरकाया तो सावत्री ने कोई हरकत नहीं की चुपचाप उसे गुटनो के पास जाने दिया पर जब उनका हाथ उसकी चड्डी को नीचे सरकने लगा तो उसका हाथ अनायास ही ठाकुर साहब के हाथ को रोकने लगा !बगल में कड़ी गुलाबी जो सब कुछ देख रही थी उसने लपक के सावत्री का हाथ पकड़ा और बोली :-"लंड खाने की बारी आई तो कुतिया फिर नाटक कर रही हे ...हठ पीछे रख हरामजादी वर्ना इस बार बांध दूंगी ..! फिर उसका हाथ छोड़ कर उसकी पैरों की तरफ गई और उसके गुटनो से उसकी सलवार निकाल कर चौकी के नीचे फेंक दी और उसकी चड्डी को नीचे खिसकाने लगी !अब सावत्री को बर्दास्त नहीं हुआ और वो मानो उठ कर बेठ गई और अपनी चड्डी को पकड़ने लगी ! इतना देख कर गुलाबी ने उसे धकेल कर लिटा दिया ठाकुर साहब का एक भरी हाथ उसके चेहरे पर पड़ा वो सन्न रह गई और गुलाबी ने उसकी चड्डी भी उसके टांगो के बीच से निकाल दी तीनो के नज़र जैसे ही उसके टांगों के जोड़ पर पड़ी उनकी आँखे फेल गई थी चड्डी के पास वाला हिस्सा चु रहा था और अन्दर भी सब गिला हो रहा था सावली सलोनी चूत जो थोड़ी कलि लग रही थी एक दम पावरोटी की तरह फूली थी और छोटी सी लग रही थी ! ठाकुर साहब के मानो लार पड़ने लगी थी !ओर सावत्री ने अपनी जनघो को सटा लिया था और एक हाथ से अपनी नंगी बुर को ढांप रही थी मानो उसके अन्दर कुछ भी नहीं जाने देगी ! ठाकुर साहब ने अपने हाथ से उसके हाथ को एक तरफ झात्ख दिया और पावरोटी की तरह फूली उसकी छोटी सी चूत पर अपना भरी हाथ जमा दिया !उनकी मोटी अंगुली बुर की दरार की और सरकने लगी !और पनिया चुकी बुर के पास जाती ही उनकी अंगुली गीली हो गई !बुर की फ़नको का हिस्सा बहुत गरम था अन्दर से आग की लपट सी आरही थी ! ठाकुर साहब अपने मुह से चूची निकालते हुए गुलाबी से बोले :-" हा री गुलाबी ..ये साली बहुत गरम हे ..बूर भी गीली हो गई लंड खाने के लिए ...आज तो इस छमिया को जी भर के चोदुंगा तुम चुदैलो देखती रहना की आज में इसको केसे बजाता हु .....लंड खाई हुई तो लग रही हे पर शायद छोटे छोटे ही आज इसे असली लंड का आनद दूंगा ..!" फिर अपने मुह को फिर से चुचियों पर रख लिया और दोनों चुचियों को बारी बारी से चूसने लगे !बुर पर रखे हाथ की बीच की अंगुली को जेसे ही कच से अन्दर पेले की सावत्री ने अपनी दोनों झांगो को भींच लिया !पर अंगुली गीली हो चुकी बुर में आधे से ज्यादा सरक गई !फिर ठाकुर साहब उस अंगुली को धीरे धीरे अन्दर बहार कर के पेलने लगे थोड़ी देर में झड तक वो अंगुली अन्दर सरक गई थी !
फिर सावत्री ने भी अपनी झांगो को इतना फ़ेला लिया था की ठाकुर साहब आराम से उसकी बुर में अंगुली अन्दर बाहर करने लगे !धन्नो और गुलाबी पास में कड़ी सब कुछ देख रही थी और धन्नो भी अन्दर ही अन्दर गरम हो रही थी !उसने अपनी साड़ी के ऊपर से ही अपनी बूर को खुजाया तो गुलाबी बोली :-" तू भी लंड लेना चाहती हे क्या री .. लगता हे तेरे गाँव वाले तेरी प्यास नहीं बुझा प् रहे हे !"धन्नो को भी ठरक चढ़ रही थी वो गुलाबी की बाते अनसुना कर के रसीली आवाज़ में ठाकुर साहब से बोली :-" देखा बाबूजी ..ये चूड़ी हुई नहीं हे न ....बिलकुल अनछुई हे गुलाबी के बातें झूठी हे न !"ठाकुर साहब बोले :-" नहीं गुलाबी सच्ची हे मेरी इतनो मोटी अंगुली जो छोटे मोटे लंड जितनी हे कितने आराम से अन्दर घुस लिया और इसकी सील का कही पता ही नहीं हे ये चुदेल हे इसको सजा मिलेगी !" आँखे ढांपे ढांपे सावत्री डर सी गई की क्या सजा होगी मेरी !उधर दोनों सहेलियों पर भी ठरक चढ़ रही थी ! गुलाबी के मुह से अपने बारे में न कर धन्नो बोल पड़ी :-" खेर ...तेरी तो आग बुझ जाती हे न ... ऐसा कर मेरी तरफ से तू ही लंड चुदवा ले ..."फिर आगे बोली :-" तुझे तो आज भी ठाकुर साहब मन से चोदते हे ,में तेरी तरह जवान नहीं हु ना ....तो भला कौन पूछे मुझे !" तभी गुलाबी टपक से बोल उठी :-" अब झांटे जलने वाली बात मत कर में जवान और तू बुढिया हो गई ....?" तो धन्नो बोली :-" और क्या ..तो में जवान हु क्या ....4 0 के उपर की तो हो गई हु .."तब गुलाबी तुनक कर कही :-" अरे तो में क्या सोलह साल की कुंवारी हु ...में भी तो तेरी उम्र की ही हु ना ...तू भले ही 4 0 के ऊपर की हो गई हो पर जवानी तो तेरी वेसी की वेसी ही हे !"दोनों ऐसी बाते करती करती चौकी के पास खड़ी सावत्री और ठाकुर साहब को भी देख रही थी सावत्री आँखें मूंदे पड़ी थी और ठाकुर साहब अपनी बीच वाली मोटी अंगुली की सावत्री के बूर में गच गच पेल रहे थे गीली अंगुली और गीली बूर के कारन चुदाई जैसी आवाज़े आरही थी चप्प चप्प , खच खच चच्च च्च्च , और साथ ही ठाकुर साहब उसके स्तनों को चूसते मसलते खींचते लाल कर रहे थे !ठाकुर साहब द्वारा सावत्री के स्तन चूसने और उसकी बूर की अंगुली द्वारा चुदाई की मस्ती के कारन सावत्री ने अपनी केले जैसी मांसल जांघे छितरा कर दूर दूर कर राखी थी और हलकी हलकी सिसकियो के साथ वो मस्ती भी ले रही थी !मस्ती के कारण बार बार सावत्री का मुह हल्का खुल रहा था !फिर धन्नो की बात का जबाब देती गुलाबी बोली :-" तेरी झांट क्यों सुलग गई साली ...अगर में जवान हु तो !"तब धन्नो बोली :-" झांट क्यों सुलगेगी मेरी ....क्या तू जवान नहीं हे ...तेरे मर्द को किनारे करके ना जाने कितने मर्द तेरी सवारी करते हे ...और तो और ये बाबूजी भी रोज तुझ पर चढ़ाई करते हे ...हरजाई क्या जवान नहीं हे तू ..कोई भी तुझे चोदने में पीछे नहीं रहना चाहता !"
वे दोनों जान बूझ कर ऐसी रसीली बातें कर रही थी साथ ही सावत्री की तरफ भी देख रही थी की उसकी बूर भी एक दम गरम हो गई हे और ठाकुर साहब की अंगुली ने उसको एक दम लिबलिबा दिए हे !फिर ठाकुर साहब अचानक सावत्री के ऊपर आ गए और उसके दोनों पैरों को खूब चोडा करके उसकी मांसल झांगों पर अपनी गठीली और सख्त झांगों को चढ़ा दिया !उनका लंड अब विशाल रूप ले चूका था किसी लोहे के मूसल की तरह सख्त और भारी हो चूका था !उनका सुपाडा पहाड़ी आलू की तरह मोटा और किसी बड़े लाल टमाटर की तरह दिख रहा था जिसे देख कर खेली खाई धन्नो और गुलाबी को भी झुरझुरी आ गई थी !उस भारी भरकम लंड पर ठाकुर साहब ने अपने मुह से ढेर सारा थूक ले कर लपेस दिया !लंड से चुदाई की तेय्यारियों को दोनों चुदेले आँखे फाड़ फाड़ कर देख रही थी !और फिर ठाकुर साहब ने एक बार और ठुक लगाया और अपने लौड़े के सुपारे को सावत्री की गीली और झानतो से भरी लिसलिसी और गरम हो चुकी बूर के छेद से भिड़ा दिया !उनके लंड के सुपारे में सावत्री के बूर का छेद क्या बूर भी ढक गई पर सुपारे का मुह थोडा नुकीला था वो छेद पर अटक गया !दहकते हुए लाल सुपाडे की गर्मी जैसे ही बूर के छेद में पहुंची की सावत्री एक दम से उछल पड़ी !लाल सुपारे की गर्मी से सावत्री एक दम से सिहर गई उसकी काली बूर में तेज सनसनाहट दौड़ गई और उसने थोडा मुह और खोल दिया !सुपाडे की गर्मी से सावत्री की बूर और उसके शरीर में हुई हरकत को देख कर दोनों गुलाबी और धन्नो के साथ ठाकुर साहब भी गनगना उठे !अब वे दोनों जो आपस में बाते कर रही थी उसे भूल सी गई और अपनी नज़रे ठाकुर साहब और सावत्री पर टिका दी !थोड़ी देर ऐसे ही टिकाये रखने के बाद ठाकुर साहब ने एक हाथ से सावत्री का कन्धा उठाया और दुसरे हाथ से अपने मूसल को पकड़ कर अपनी कमर को पूरी हवा में करके सुपाडे को बूर के छेद से टिकाये टिकाये ही हल्का सा धक्का मारा तो गुप्प ..से आधा सुपारा सावत्री की बूर में फंस गया !सावत्री की आँखे फट पड़ी वो दर्द से चिल्ला उठी और उठाना चाहती थी और अपनी जंघे भी एक दुसरे से सटाना चाही पर ठाकुर साहब की भारी झांघो के बीच दबा होने से सिर्फ हिल कर रह गई !सावत्री के चेहरे पर पीड़ा थी साथ ही ठाकुर साहब को भी लगा की उनका लंड किसी संकरी दरार में फंस सा गया हे !धन्नो ने सोचा अगर ये वापिस चलने लायक नहीं रही तो उसे भी मुस्किल होगी ! पर वो ठाकुर साहब से सावत्री को चुदाना भी चाहती थी ! ठाकुर साहब गुलाबी धन्नो की नज़रे मिली और आँखों आँखों में बात हो गई !गुलाबी ने आ कर सावत्री के हात पकडे , ठाकुर साहब ने अपना आधा सुपादा घुस लंड बाहर खींचा उसी पल सासों के तेल की शीशी लाइ ढेर सारा तेल ठाकुर साहब के मुसल पर लगाया सावत्री को लंड निकलने पर कुछ राहत सी मिली धन्नो ने सीसी में से ढेर सारा तेल उसकी बूर में भर दिया जब तक बह कर बहार नहीं आ गया !
अब ठाकुर साहब ने तेल से सना लौड़ा तेल से भरी बूर पर टिकाया और पहले की तरह उसे अन्दर धकेल दिया !इस बार तेल से चिकनी हो चुकी बूर में गुप्प ..की आवाज़ के साथ उनका पूरा सुपाडा घुस गया और फिर सावत्री कुनमुनाई पर इस बार उसे इतना दर्द नहीं हुआ और गुलाबी उसे पकडे भी थी !सुपाडे के घुसते ही वो मुह खोल कर सिस्कार उठी फिर झांगे सटाने की कोशिश की पर ठाकुर साहब के भारी झंगो के नीचे दब हिल भी नहीं सकी !बूर में घुसा सुपाडा भी बहुत भयंकर लग रहा था सिर्फ सुपाडे के घुसने से ही बूर की शकल बिगड़ गई थी दोनों फांके मनो चिर कर अलग अलग हो गई थी !ठाकुर साहब ने भी अपनी गर्दन झुक कर नीचे अपने लंड को देखा जो उसकी बूर की फांकों को फेलाकर मानो फंस सा गया था !मुह बिगाड़ रही सावत्री को धन्नो उसके चेहरे पर हाथ फेर कर हिम्मत बंधा रही थी !उन्हें लगा अब सुपाडा बहार नहीं निकलेगा तो उन्होंने अपना एक हाथ लंड से हटा कर अपने दोनों हाथ सावत्री के कंधो पर जमा दिए ! उन्होंने उसके कंधे झकड़े झकड़े ही अपनी कमर का जोर लगा कर एक जोर दार जटका उसकी चूत में मार दिया खच की आवाज़ के साथ उनका लंड एक इंच और अंदर सरक गया जैसे बिल में सांप सरकता हे ! फिर दूसरा धक्का और जोर से मारा तो एक इंच और अंदर सरक गया ! सावत्री का मुह खुल चूका था घों घों की आवाज़ आ रही थी वो लम्बी लम्बी सांसे ले रही थी किसी जिबह हो रहे बकरे की तरह तड़फ रही थी !अभी तक सुपाडा और दो इंच ही अन्दर घुस था पर गुलाबी सावत्री को बहलने के लिए बोली :-" बाबूजी आप तो इसे ..अपने बांस जैसे लंड से ऐसे पेल रहे हो मानो कोई अधेड़ ओरत हो दो धक्कों में ही साली आधा लंड खा गई ..!" जबकि हकीकत में ठाकुर साहब का ११ इंची लंड अभी तक ३ -४ इंच ही घुसा था !तब धन्नो बोली :-" तू देख नहीं रही बाबूजी कितना जोर लगा कर पेल रहे हे तब जा कर इतना सा घुस हे हरजाई ...तुझे ये कल की छोकरी अधेड़ ओरत लग रही हे .....तू होती तो बाबूजी की गोलिया तेरी गांड से गले मिल लेती .....क्यों बाबूजी में सही कह रही हु न !:ठाकुर साहब जिनके माथे पर पसीना आ गया था !गुलाबी बीच में ही बोल पड़ी :-" में अधेड़ थोड़ी कह रही हु री रंडी ... जब तेरे साथ घूम रही हे तो सील बंद माल थोड़े ही रही हे ...ये
कह रही हु मुझे भी पता हे ये जवान हे पर कुंवारी थोड़े ही बची हे ये ...ना
जाने कितनो से तुम इसे चुदवाई होगी ..ये कह रही हु ...!"तब धन्नो भी जबाब देने में पीछे क्यों रहती वो ठाकुर साहब के थोड़े से घुसे हुए लंड को देखती हु बोली :-" बाबूजी आप ही बता दीजिये की क्या ये रंडी की तरह चूदी हुई लग रही हे क्या ...गुलाबी तो ऐसा बोल रही हे मनो में इससे रंडी का धंधा करवा रही हु ...
अरी हरजाई विश्वास कर अभी तो ये इस चुदाई के खेल में नई नई ही आई हे !"लेकिन गुलाबी चुटकी लेती हुई बात जारी रखना चाह रही थी इसलिए फिर आगे बोली :-" अरे ले देख ले ये सावत्री केसे चित पसर कर लंड लेते हुए लेटी हे ...और तू कह रही हे न की ये नई हे इस खेल में हरजाई ...!"ये बात जैसे ही सावत्री के कानो में पड़ी वो अपनी आँखें ढांपे ढांपे ही लजा गई ! और ठाकुर साहब अब उसकी गोलियों को फिर से चूसने लगे थे ! उसकी कलि गोलाइयों पर गुन्डिया बिलकुल जमून की तरह लग रही थी और ठाकुर साहब उन्हें ही कस कर चूस रहे थे ,हलके हलके काट रहे थे ,उन्हें मसल रहे थे !तब धन्नो बोली :-" तू देखि की नहीं की कितने नाटक के बाद ये ठाकुर साहब के नीचे लेटी हे ..अब तू क्या ये चाहती हे की ये बिदक कर इनका लंड झटक के खड़ी हो जाये ...इतनी मुस्किल से तेयार हुई हे चुदवाने के लिए ..अरी इसे अब मत छेड़ चुदवाने दे !"तो गुलाबी बोली :-" अरे में कब मना कर रही हु की ये ना चुदवाये ...और हा रे अब कोई लंड बहर निकल सकता हे वो भी बाबूजी का ....अब ये तो अन्दर उड़ेल कर ही बहार निकलेगा मुझे पता हे एक बार घुस जाये तो फिर खाली हो कर ही बाहर आता हे !" इतनी बात ठाकुर साहब के कानो में पड़ी और उन्होंने एक धक्का और मारा तो आधा इंच लंड और अन्दर सरक गया !दोनों की नज़रे ठाकुर साहब के लंड पे ही टिकी थी जो करीब आधा घुस गया था सावत्री चित लेटी हुई थी और ठाकुर साहब अब उसके होंट चूस रहे थे , अपनी जीभ उसकी काली जीभ से टकरा रहे थे उसकी जीभ भी होंटो में ले कर चूस रहे थे !इस कारन सावत्री की बूर में खुजली अब और तेज होने लगी थी इसलिए अब वो अपनी गांड हिला कर उस मुसल को और अंदर लेने की कोशिश करने लगी !ये देख कर गुलाबी बोली:-" घोड़ी हिनहिना रही हे बाबूजी ....अब आप उसे चांप दीजिये और कस कर इसकी सवारी कीजिये ..और चेक कीजिये कितने सवारों को झेल चुकी हे ये घोड़ी ...!"फिर क्या था ठाकुर साहब ने उसके ओठों को आजाद किया और उसकी दोनों टांगों को अपने कन्धों पर चढ़ा दिए इस कारन सावत्री की बूर और चौड़ी हो गई ! फिर उन्होंने आधे घुसे हुए लंड को थोडा बहार की तरफ खींचा और फिर झटके से अन्दर धकेल दिया फिर ऐसा ही क्या सावत्री के दर्द फिर शुरू हो गया था उसे लग रहा था मानो कोई सरिया घुस रहा हो पर ठाकुर साहब अब बेदर्द हो गए थे और धचक धचक कर घुस रहे थे हुमच हुमच कर चोद रहे थे उनके हाथ सावत्री की सख्त गांड पर कसे हुए थे उनका हर एक धक्का अगला किला फ़तेह कर रहा था !सावत्री की बूर मानो पूरी तरह से खुल चुकी थी ठाकुर साहब का अजगर वह तक पहुँच रहा था जहा आज तक कोई नहीं पहुंचा था !उसके मुह से आआआआआ।ह्ह्ह्ह्ह अये…. माईईईइ ,,,,,अरी बप्पूऊऊउ… मर गैईईईईईईईइ ,,की आवाजें आ रही थी आँखों में गंगा जमुना बह रही थी !
वो उसमे गचा गच पेल रहे थे कोठरी में चुदाई का संगीत घुंज रहा था ..खप्प खप्प . ,पुच्च पुच्च ..,फक्क फक्क , सट सट , गप्प गप्प ! सावत्री को लग रहा था की आज उसकी बूर फट जाएगी पर अब उसे कुछ आनद भी आ रहा था वो भी कमर उचका रही थी और दोनों चुदेलो ने देखा सावत्री की बूर में ठाकुर साहब का लंड पूरा घुस चूका हे उनकी बड़ी बड़ी गोलियां उसकी काली गांड से टकरा रही हे !
आखिर इस हस्तिनी वर्ण की सावत्री ने गधे जैसा लंड पूरा लील ही लिया था !गुलाबी ने देखा की जड़ तक लंड अंदर जा रहा हे तो वो ठाकुर साहब से चिल्ला कर बोली :-" बाबूजी ...अब घोड़ी पूरी तरह से तेयार हे ... अब रफ़्तार दो बाबूजी .....अब इसे पूरी ताकत से चांपो ...अब दोड़ाने लायक हो गई हे ..पूरी चाल ले रही हे ....अब पूरी रफ़्तार से दोडाओ ..अब ये आपका पूरा ले रही हे बाबूजी ..!" ठाकुर समझ गए की अब उनका समुच लंड बूर में घुस गया हे तो अब पूरी ताकत और रफ़्तार से चोद्ने की बारी आ गई हे ! उन्होंने उसकी गांड पर अपने पंजे दबाये और हुमच हुमच कर तेज तेज धक्के मार मार कर तूफानी रफ़्तार से सावत्री को पेलने लगे !कोठरी में फच्च फच्च की आवाज़े तेज हो गई थी ठाकुर साहब के मुह से भी किसी कुलाहादा चलने वाले मजदूर की तरह आवाज़े आ रही थी आआहुन्ह्ह , आहुन्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह !उनका लंड धाच धच की आवजो से जैसे सावत्री की बूर में घुस रहा था !सावत्री भी अब सिकने लगी थी साथ ही अपनी चौड़े चौड़े चूतडों को चौकी से उचकाने लगी थी जब भी ठाकुर साहब की कमर नीचे आती वो उसका स्वागत करने के लिए ऊपर हो जाती और जब भी वो ऊपर होते और उनका लंड कासी चुत में फंसता फंसता सा बाहर आता साथ में उसकी दीवारों को बहार की और खींचता तब वो खुद नीचे हो कर उसे जाने का मौका देती पर जब वो फिर से वाही आता तो वो उसे लपक कर अन्दर ले लेती !ऐसा देख कर इस बार धन्नो भी चुप न रह सकी और वो भी चिल्ला कर बोली :-" बाबूजी ...देखिये कैसे उचल रही हे आपके मूसल को अन्दर लेने के लिए .. इसे कस कर चोदो .....केसे अपने चुतड उछाल रही हे ,..!" फिर आगे बोली ;-" शाबास सावत्री ..ऐसे ही चुदवा अपने चुतड उठा उठा कर देदे बाबूजी के लंड पर ...बूर को फेंक फेंक कर चुदवा ....आज पूरी तरह से खुल जा फिर तुझे किसी लंड से डर नहीं लगेगा हर जाई ...!" लेकिन तब तक ठाकुर साहब ने अपनी रेल की स्पीड इतनी तूफानी कर दी की सावत्री का मुह खुला ही रह गया और उसकी सिकिया आहे कराहे कोठरी में घुन्जने लगी ....आआआआअ…। ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह अरॆऎऎऎऎ .......मरी ईईईईईईईईइ रे में तो आआज ...आआआआआइ री माआआआईईईईईईईइ अये रे बपूऊऊऊऊऊऊऊऊ मर गई !धन्नो बोली :-" अरे माँ बापू को याद करेगी की कुछ और भी बोलेगी हर जाई ...!" गुलाबी अपनी चूत को पेटीकोट के ऊपर से ही खुजलाते चिल्ला पड़ी :-" अरी बोल ऋ रंडी बोल ....केसा लग रहा हे तुझे ये चूत और लंड का खेल ...मादरचोद ..पड़ी पड़ी केसे लंड खा रही हे .........और शरीफ बनती हे ......!" लेकिन सावत्री फिर भी कुछ नहीं बोली वेसे ही माई बाप कहती कहती सिसियती रही और चुतड उठा उठा कर चुदवाने के मजे लेती रही !कुछ भी नहीं बताने पर गुलाबी ने सावत्री की गांड पर एक तेज चिकोटी काटते हुए फिर पूछा :-" बता न कुतिया ....साली ...रंडी कुछ तो बोल ...कैसा लग रहा हे किसी सांड के नीचे लेटना ...बता इस लंड का केसा स्वाद हे ..पहले के केसे थे ....बता अच्छा लग रहा हे न !"
तब सावत्री तेज धक्को में सिसकते ही बोली :-" हा ....रे ...माई ...ठीक लग रहा हे ......बा रे ...बड़ा अच्छा लग रहा हे ...चाची ....अरी मेरे मूत निकल रहा हे री ....अरे माई ....अरे ....हा चाची वेसे ही चिकोटी और काट मेरे .....धन्नो चाची मेरे चुचिया मसल री ...आज तो मजे से मर ही जाउंगी में .. बड़ा नीक हे ...बड़ा नीक लग रहा हे बाआआआअ !फिर धन्नो धक्कों पर धक्के लगा तहे ठाकुर साहब और सिसक सिसक कर चुदवा रही सावत्री दोनों को देखती हुई गुलाबी से बोली :-" लगता हे की हरजाई जल्दी ही झडेगी .....देखो साली कैसे पूरी ऐंठ ऐंठ कर लंड खा रही हे ..!"तब गुलाबी बोली :-" हाँ ...अब तो ये भल भला कर झड़ेगी ....मुसल जैसे लंड से इसकी बूर पूरी फेंटा चुकी हे ..लापसी की तरह बूर सान गई हे इसकी ..!"धन्नो की भी सांसे अब तेज हो चुकी थी ! वो कई बार अपनी बूर को साड़ी के ऊपर से मसल चुकी थी दरार में खुजलाया भी था !फिर अपनी बूर को साड़ी के ऊपर से खुजलाते और लगभग चिल्लाती सी सावत्री से बोली :-"झडेगी क्या रे ...अरे जब झड़े तो बोलना बाबूजी से ....झडती बूर में जब लंड का पानी गिरता हे तो मज़ा बहुत आता हे ...संगम होता हे ना ....बता देना ...बाबूजी एन वक़्त पर पानी गिरा कर तुझे बहुत मज़ा देंगे .....!" सावत्री की काली बूर जो ठाकुर साहब के मूसल से चोटें खा खा कर लाल हो चुकी थी वो उसे खूब चोदते रहे रगड़ते रहे , हुमच हुमच कर पूरा पूरा लंड बहार निकल कर एक ही झटके में पूरा झड तक पलते रहे ! उस वक़्त सावत्री की जैसे सांसे रुक सी जाती थी !कोठरी में बस ठाकुर साहब की भारी सांसे और मुह से हच हच की आवाज़े और सावत्री की कामुक सिसकिया जो कभी कभी दर्द से भरी होती थी या उसके मुह हाय रे माई ...हाय रे बाप की आवाजें निकालती रही !ठाकुर साहब ने अपने इंजन को फुल स्पीड में दौड़ा दिया था अब एक्सप्रेस की तरह उनकी कमर हिल रही थी !सावत्री धन्नो की तरफ मुह कर के कुछ बोलना चाहती थी पर ठाकुर साहब के तेज धक्को की चुदाई के कारन उसकी आँखे बंद हो रही थी !धन्नो समझ गई की ये अब झड़ने वाली हे ! फिर से सिसक कर और चिल्ला कर चुद रही सावत्री से पूछी :-" क्या कह रही हे बोल ....झडेगी क्या ....बोल दे क्या बाबूजी से ......ताकि वे भी झड जाये और अपना टैंक तुझ में खाली कर दे ....बोल न हरजाई ..बोल दे ..!" ठाकुर साहब के मोटे लंड मोटा लाल सुपाडा सावत्री की बूर के रेशे रेशे को रगड़ कर लाल कर चूका था उसकी बूर के छेद को इतना चोडा कर चूका था की अब उसमे फच फच की आवाज़े आ रही थी और उसकी बूर मानो पस्त सी पड़ गई थी इस मोटे मेहमान को अंदर घुसने से रोकते रोकते ! इतनी तेज चुदाई ने मानो उसके बूर की नस नस को हिला कर रख दिया था ! आज जैसे वो रोड रोलर के नीचे आ गई थी ! फिर सावत्री चिल्ला कर बोली :-" आआआआआअ ..ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ...रॆऎऎऎऎऎऎऎ माईईईईईईइ ...आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह रॆऎऎऎऎऎऎऎऎए ब ब बाआअप्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प्प ....बा . बा . बाबूजी ...मोरा झड गई ..ईईईईईईई ..लगत बई रीईईईईईइ मैईईईईईइ ...मोरा झड जाईईईईईईइ यॆऎऎऎऎऎऎऎ बाबूजी .......मेरा निकल रहा हे !"
इतना सुनते ही ठाकुर साहब समझ गए की अब सही वक़्त आ गया हे वीर्यपात करने का ! तब तक गुलाबी भी चिल्ला कर बोली :-"बाबूजी ...लौंडिया पूरी ताव में हे .....मौका देख के मार दो पिचकारी भर दो इसकी बूर साली के बच्चे दानी में जाना चाहिए ..इधर उधर ना बाबूजी ....एक दम ठीक जगह मारो .....बाबूजी पूरी गहराई में डालना ...!"ठाकुर साहब ने उसके दोनों पांवो को अपने कंधे से नीचे करके अपनी कमर पर रख दिया और खूब तेज तेज धक्के मारने लगे .फिर हाथो हाथ उसके दोनों पांवो को नीचे बिछा दिया और उन पर अपनी झांघे फंसा कर कूद कूद कर चोदने लगे !धन्नो उसके मुह को सहला रही थी और गुलाबी ने सावत्री के हाथो को पकड़ कर ठाकुर साहब की कमर पर रख दिए और बोली ;-" कस कर पकड ले ठाकुर साहब जब झड़े तो बिलकुल इनसे चिपकी हुई रहनी चाहिए तू ...!" ये सब बहुत तेजी से हुआ था सावत्री ने ठाकुर साहब को कास कर पकड़ लिया था और अपना सर भी उनकी छाती में छुप्पा सा लिया था और पूरी तरह से उनसे चिपक गई थी !सिसकिया मार रही थी और ठाकुर साहब के धक्के भयंकर होते चले गए !सावत्री एक दम झड़ने के कगार पर पहुँच गई थी ठाकुर साहब के सीने में छुपे हुए मुह से भी बहुत तेज सिसकियों की आवाज़े आ रही थी अब वो उनके सीने को अपने दांतों से हल्का हल्का काट भी रही थी !उसके खुले मुह से सिसकिया मानो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी और वो लगातार आई रे माई आई रे बापू ही चिल्ला रही थी ...! और अब खप्प खप्प की आवजो से मानो कोठरी घुंज रही थी !ठाकुर साहब अपने लोहे जैसे हो चुके तन्नाय्ये मूसल से अब उसे और वेग से और अधिक गहराई तक चोद रहे थे गुलाबी को लग रहा था जैसे उनका मूसल उसकी पंस्लियो तक पहुँच गया हो !धक्के इतने तेज थे की कोठरी में रखे हुए लकड़ी की भारी चौकी {तख्ता } की चरमराहट भी गूंज रही थी इतना मजबूत तख्ता भी जैसे झूल रहा था !
धन्नो और गुलाबी दोनों आँखे फाड़ फाड़ कर देख रही थी ठाकुर साहब मानो देत्य की तरह हिरनी जैसी सावत्री को दबोचे हुए थेअब मानो उसका भक्षण नजदीक ही था !दोनों रह रह अपनी बूर को कपड़ों के ऊपर से सहला भी रही थी ! दोनों की आँखे मानो सावत्री और ठाकुर साहब के झड़ने का इन्तजार कर रही थी !तभी चित लेटी चुदवा रही सावत्री अपनी कमर को किसी धनुष की तरह ऊपर उठती हुई और अपनी चूतडो को ऊपर उठाते हुए और अपने पैरो को पूरा फेलाते हुए बूर में सटासट लंड लेटी हुई सावत्री चिल्ला पड़ी :-" आआआआआइ माआआआआआइ रीईईईईईई ...बाबूजी ..अब निकलत भैईईईईईइ आआइ रीइ बापू मर गई ...निकल गया रे ...बाबूजी ......मेरा छूट गया ....में गई ...!" इतना सुनते ही गुलाबी चिल्ला कर पूछी :-"अरे बोल री ...हरजाई ..का निकल गया तोहार ....साफ़ साफ़ बोल न ..का निकलत भया !'फिर सावत्री चौकी पर चुदाते और पूरी ऐंठ कर सिसकिया लेती हुई बोली :-" आई ऋ माई निकल गया रे बाप रे बाप ...अरे में झड गई रे चाची ....मेरा पानी निकल गया ....ये बाबूजी ने मोकु झडा दिया री चाची ...में झड रही हु चाची मेरा पानी छल छल कर नीकस रहा री !"तब गुलाबी ठाकुर साहब की तरफ देख कर चिल्लाती सी बोली :-" बाबूजी अब देर न करो ....अपने पाइप का मुह खोल दो ...भर दो इसकी बूर को अपने वीर्य से ...अपना देह बीज गाड दो इसके खेत में ...बाबूजी अपना बीज रोप दो इसके गर्भ में .....इसका खेत अब इसके ही पानी से गीला हो गया हे सही समय हे बीज बोने का ....." फिर आगे बोली :-" ये हरजाई ..अपने बाबूजी का का बीज उनकी ओलाद अपने पेट में लेकर सारे गाँव में घूमेगी ...बेइज्जत होएगी ...फुला दो इसका पेट बाबूजी इसकी शादी से पहले ही ....कर दो पूरी बदनाम इसकी जवानी बाबूजी ....इसको पूरी पतुरिया बना दो ....पूरी छिनाल लगनी चाहिए ये ...उड़ेल दो अब बाबूजी !" गुलाबी एक ही साँस में सब कुछ बोल गई !सावत्री जैसे ही जड़ने के बीच पहुंची उसकी बूर ने एक आध उलटी की थी उसकी बूर में तेज सनसनाहट हुई ही थी की ठाकुर साहब ने उसको बुरी तरह से दबोच लिया ठाकुर साहब के शरीर में एक तज झटका शुरू हो गया था !उनके बदन कोझाटके शुरू हो गए थे और उनके मुह से एक तेज और कांपती हुई आवाज़ निकली :-" तेरी माँ को चोदु ....मादरचोद ...रंडी ....चालू साली ..न जाने कितनो के लड खाए हे तूने ....भेन की लौड़ी ..मेरा पूरा मूसल खा गई ......ले ले ..आआअह ..साली ले मादरचोद निचोड़ ले पूरा मुझे ......पूरी गन्ने का रस निकालने वाली मशीन हे मादरचोद कुतिया ........!"
इतनी बात पूरी करते करते ठाकुर साहब सावत्री को चौकी पर पूरी ताकत चांपते हुए कस कर दबोच लिए !उनकी कमर का हिस्सा अब तेजी से झटके ले रहा था उन दोनों छिनालो की नज़र भी उस पर टिक नहीं प् रही थी !खच खच और भच भच की आवाज़े आ रही थी जैसे कोई कुल्हाड़ी से लकड़ी फाड़ रहा हो !सावत्री को ठाकुर साहब ने इतना कस कर पकड़ा हुआ था सावत्री को लगा आज जैसे उसकी हड्डिया कड कड़ा जाएगी !ठाकुर साहब की रीच जैसी ताकत उस पर भारी पड़ रही थी और वो चाह रही थी की ठाकुर साहब जल्दी छुट जाये और उसे इस पीड़ा से मुक्ति मिले इसलिए वो उचक उचक कर चुदवा रही थी !उनके तेज धक्को से पूरी चुकी हिल सी रही थी तूफानी रफ़्तार और ठाकुर साहब के मुह से निकलती गलिया और उनके दांतों के निशान सावत्री के गालों पर पड़ते देख वे दोनों समझ गई की अब ठाकुर साहब झड़ने के करीब ही हे !उनकी भी अंगुलिया अपनी बूर की दरार में चल रही थी !ठाकुर साहब के मोटे आलू की तरह आंडों से निकलती मोती और गाढ़ी वीर्य की धार ने ठाकुर साहब के लड की नसों का सफ़र तय करना शुरू कर दिया था !वीर्य की गाढ़ी और मोटी धार लंड की संकरी नलियों को फेला कर चौड़ा करती किसी तेज चलने वाली रेल गाड़ी की तरह लंड के मुह की और दौड़ने लगी !ठाकुर साहब सावत्री के ऊपर चढ़े हुए ही उसकी जड़ती हुई बूर में अपने लंड को झड तक चाम्पे हुए थे !इसी कारन उनके मूसल लंड का मोटा सुपाडा सावत्री की बूर में एक दम बच्चेदानी के मुह के बिलकुल पास ही था !इसी वजह से ही लंड के मुह पर आया हुआ गाढ़े वीर्य का फव्वारा किसी पिचकारी की तरह लंड के छेद से छूटा और बच्चेदानी के मूह से टकराते हुए पूरी बूर की मांसपेशियों में पसर गया ! वीर्य का फव्वारा बच्चेदानी के मुह से ऐसे टकराया मानो किसी ने पिचकारी को दीवार से सटाकर बहुत तेज छोड़ा हो ! और उसी वजह से पिचकारी से निकलने वाला सारा रंग जैसे पूरी दीवार पर फेल गया हो ! ठाकुर साहब के लंड से निकली वीर्य की पहली धार जैसे ही सावत्री की बूर में बच्चेदानी के मुह पर टकराई ,तो सावत्री उसकी तेज टकराहट और वीर्य की गर्मी को सावत्री सहन नहीं कर सकी और वो एक दम वो पूरी ताक़त से किसी छिपकली की तरह ठाकुर साहब के सीने से चिपक गई और अपने दोनों हाथों से उनकी पीठ को समेट लिया अपने नाखून ठाकुर साहब की नंगी पीठ में गडा दिए और अपने मुह को खोल कर पूरी ताक़त से चिल्ला पड़ी :-"आआआआआआआ ईईईईईईईईईइ ........माआआआआआआआआऐइ ......बाबु ...........जी .......मज्ज्जज्ज्ज़ा आआआ ...गया .... .....बहुत मज़ा आआवत ........हई ...बा ....रे बाप .....बड़ी गरम भई रे में ......बड़ी गरम भई ......हैईईईइ अरॆऎऎऎऎऎए !" इतना सुनते ही गुलाबी धन्नो की तरफ देखते हुए धीमे से बोली :-"लंड का गरम पानी पा गई ....ये हरजाई .....पूरी तरह आज खिल जाएगी ये बाबूजी के पानी से सिंचाई हो गई इसके खेत की आज तो !"
धन्नो कुछ जबाब देने की बजाय तेज तेज सांसे लेती लेती साड़ी के ऊपर से ही अपनी बूर की दरार में तेजी से अंगुली चलाती रही और अपनी नज़रे सावत्री की बूर और ठाकुर साहब के लंड पर जमाये राखी जो अब धीरे धीरे कमर चला कर सावत्री की बूर में झड़ते ही जा रहे थे और वो उनकी जठ्के ले रही ठाकुर साहब की मोटी गांड और कमर को आँखे फाड़ फाड़ कर देख रही थी !सावत्री की बात पूरी होते होते ठाकुर साहब के लंड से मोटी और गढ़े वीर्य की कई पिचकारियाँ फव्वारे के रूप में सावत्री की बूर में उसकी बच्चेदानी के मुह से टकराती रही ! उनका वीर्य उसके बच्चेदानी के ऊपर ऐसे टकरा रहा था मानो किसी बन्दूक से एक के बाद एक कई गोलियां छुट रही हो !हर फव्वारे को पिचकारी की तरह छोड़ने वाला ठाकुर साहब का मोटा लंड आज मानो ज्यादा ही लम्बा और मोटा हो गया था ,और अपनी पूरी लम्बाई में झटखे ले लेकर अपना वीर्य उड़ेल रहा हो , आज मानो ठाकुर साहब के आंड अपना पूरा स्टॉक खाली करने की कोशिश में थे ! लंड के पूरी तरह समा कर अन्दर झटके लेने को मानो सावत्री की बूर की मांसपेशियां पूरी तरह से महसूस कर रही थी , आज जैसे वो उसकी बच्चेदानी में ही घुस जाना चाहता हो !धन्नो की अंगुली अपने बूर की दरार पर पूरी स्पीड से दौड़ रही थी वो आज ये फिल्म पूरी तरह से देखने के लिए दोनों अपनी नज़रे चौकी पर ही टिकाये थी दोनों के चेहरे के हावभाव देख कर उत्तेजित हो रही थी और धन्नो की बूर ने भी पानी छोड़ दिया था उसके चहरे पर भी संतोष के भाव आ गए थे अपना पानी निकलने के कारण और सावत्री को छिनाल बनाने के लिए एक और कदम के कारन !ठाकुर साहब का पूरा लंड झड़ तक बूर में गुसा होने के कारन वो सिर्फ थोडा सा हिस्सा ही देख पा रही थी जो थोडा सा ऊपर नीचे हो रहा था ! एक के बाद एक वीर्य की पिचकारियाँ की टकराहट और वीर्य की गर्मी को सावत्री बर्दास्त नहीं कर पा रही थी ! उसे साफ़ महसूस हो रहा था की उसकी बूर की तह में जो वीर्य ठाकुर साहब उड़ेल रहे हे वो किसी उबलते पानी की तरह गरम हे और बहुत मात्र में उड़ेल भी रहे हे ! अभी आधा ही वीर्य उडेला की सावत्री को लगा की उसकी बूर पूरी तरह से भर गई हे ! लेकिन ठाकुर साहब के लंड के छेद से वीर्य की पिचकारियाँ जारी रही ! अब सावत्री को लगा की बूर की गहराइयों में गिरने वाला वीर्य अब बूर से बहार आने की कोशिश में हे पर अभी उसे आने का रास्ता नहीं मिल रहा हे उसकी बूर पर लंड ऐसे फंसा हो मनो किसी बोतल के मुह पर कार्क फंसा हो !उसके बूर में अब वीर्य को सामने की जगह ख़तम हो गई थी और अन्दर से वो किसी पानी भरे गुब्बारे की तरह फूल सी रही थी !
तभी
सावत्री चिल्ला उठी :-" भर ...गई रे ...मोरी बुरिया ...बाबूजी ....मेरी
बूर पूरी भर गई हे .....आ रे ..बाबूजी अब बस ....मेरे दर्द हो रहा हे अब जगह ही नहीं हे !"इतना सुनते ही धन्नो और गुलाबी समझ गई की सावत्री की बूर वीर्य से लबालब भर गई हे ! और फिर आखिर में और ठाकुर साहब ने भी बचे कुछे वीर्य को सावत्री की चुत की तलहटी में जबरदस्ती उतार ही दिया ! अब उन्हें महसूस हो रहा था की उनका वीर्य सावत्री की रज में मिल कर फिर से उनके लंड के छेद में गुस जाना चाहता हो ! जब तक वो पिचकारियाँ छोड़ रहे थे तब तो उसकी दाल नहीं गल रही थी पर अब उनका लंड जब शांत हुआ तो अंदर वाले पानी ने जोर मारना आरम्भ कर दिया था और अब उनके लंड के छेद पर गुदगुदी सी हो रही थी !और फिर पूरी तरह से झड़ चुके ठाकुर साहब तेज साँस लेते हुए सावत्री के ऊपर से अपनी मजबूत पकड़ को हल्का किये ! तभी सावत्री ने अपने दोनों हाथों को ठाकुर साहब की पीठ से हटा ली और उनके सीने में चिपके अपने चेहरे को भी पीछे कर के अपनी पीठ चौकी पर टिकाते हुए हलके हाथों से ठाकुर साहब के सीने को पीछे ठेलते हुए अपनी झानगे आपस में सटाने की कोशिश करने लगी !अब पूरी तरह झड़ चुकी सावत्री भी बुरी तरह से हांफ रही थी मानो ये कोस दो कोस दौड़ के आई हो और लम्बी लम्बी सांसे लेने लगी ! ठाकुर साहब भी सावत्री की दोनों झांगों के बीच चौकी पर घुटनों के बल बेठ से गए और अपने लंड को सावत्री की बूर से बहार खींचने लगे ! अभी भी उनका लंड वेसे का वेसे ही तना हुआ था ! अभी भी उनका लंड सावत्री की बूर में फंसा हुआ सा था उन्होंने उसकी बुरी तरह से चुदी हुई काली बूर में से कमर हिल कर अपने मूसल को बहार खींचा ! लंड खींचते ही साथ ही बूर भी खिंच गई सावत्री की गांड भी उठ गई बूर में फंसे हुए लंड को खींचने के कारन ! पर पुक्क की आवाज़ के साथ ठाकुर साहब का विशाल लौड़ा जो अभी भी तना हुआ था उनके वीर्य और सावत्री के रज से सना बाहर आ गया !लौड़ा बहुत ही भयंकर लग रहा था साथ ही सावत्री की बूर मानो उबल पड़ी उसकी बूर से लंड का कार्क हटते ही मानो वीर्य का बाँध फुट पड़ा हो छलल छलल करता पानी बाहर बहने सा लगा !ठाकुर साहब ने चुदी हुई बूर की तरफ देखा जिसके होट उनके विशाल लंड से चुदाई के बाद फेले के फेले ही रह गए थे !उसकी काली बूर अंदर से एक दम लाल हो रही थी और उसकी चूत से बहता पानी उसकी झांटो को भिगो रहा था और नीचे चौकी पर भी गिर रहा था ! झड जाने के बाद अब सावत्री के पुरे बदन शर्म की लहर सी दौड़ रही थी ! इसी वजह से ठाकुर साहब उसकी झांगों के बीच से हटे तो उसने अपनी झांगे सटा ली और एक तरफ करवट ले कर चुकी पर बेठ गई और अपनी टाँगे चुकी से नीचे लटका ली !तब ठाकुर साहब चौकी पर चित लेट् गए ! और सावत्री भी फटाफट चौकी से उतर कर खड़ी हो गई , ठाकुर साहब का अधेड़ बदन इतनी मेहनत के बाद हांफ रहा था उनका मूसल अभी खड़ा था पर अब नरम सा होता जा रहा था और किसी मोटे चूहे की तरह लग रहा था ! सावत्री शर्म के मारे नीचे नज़रे किये हुए थी और उसकी नज़रें अपने फेंके हुए कपड़ों को ढूंढ रही थी !
तभी उसकी नज़र चौकी से नीचे पड़े कपड़ों पर गई और वो उन्हें पहनने के लिए उनकी और बढ़ी !तभी गरम हो चुकी गुलाबी अंगुली से चूत का पानी निकाल चुकी धन्नो से बोली :-" अरे देख तो इसे कितना नहीं नहीं कर रही थी और फिर कितना मज़ा लिया इसने लंड और चूत के खेल का ...!"इतना सुन कर भी सावत्री कुछ नहीं बोली अपनी चड्डी को पहनने की सोच रही थी !तभी उसे लगा की उसकी बूर से पानी बह सा रहा हे तो उसने चुपके से अपनी चड्डी से अपनी बूर और झांग को पूँछ ली !अपनी नज़रे झुकाए हुए ही थी फिर उसके खड़े होने से अन्दर से वीर्य की और लहर आई तो उसे भी पूंछ लिया !उसे पता नहीं था दोनों छिनालों की नज़रे उस पर ही टिकी हुई हे और फिर गुलाबो बोली :-" अरी सावत्री क्या कर रही हे ? ..ओह्ह्ह लंड का पानी आ रहा होगा तेरी बूर से हरजाई ....ले ये तौलिया और ठीक से बूर पुंछ ले ....उस बिचारी चड्डी को क्यों गिला कर रही हे पहनने में दिक्कत होगी ...!ये बोल कर गुलाबी ने उसकी तरफ एक छोटा सा तौलिया उसकी और बढाया तो सावत्री ने उसे थाम लिया और अपनी बूर और झांगे पूंछने लगी !फिर उसने अपनी चड्डी ली और ठाकुर साहब की तरफ पीठ किये हुए और अपने सर को झुकाए झुकाए ही अपनी ब्रा भी पहन ली !दोनों चूचियां ब्रा में कसते ही फिर से एक दम तन गई ! फिर उसने अपनी शलवार पहन कर नाडा बांध लिया और और पहले शमीज और फिर कुरता पहले दोनों हाथो में पहना फिर सर में दाल कर पहन लिया और बिलकुल शरीफ लड़की बन गई जो अभी बिलकुल नंगी ठाकुर साहब से चुदवा रही थी ! फिर उसने चौकी के दूसरी तरफ गिरे दुप्पटे उठा कर अपनी चुचियों पर डालना चाहा की गुलाबी ने उसके हाथ से दुप्पटा छीन लिया और बोली :-"अरे कहे को दुप्पटा लगा रही ...हर जाई ...अब क्या बचा जो हमने और बाबूजी ने नहीं देख तुम्हारा ...अब ठाकुर साहब से केसा लाज री ...देख तो मेरी भी तो चूचियां नंगी हे कब से ..हे ..हे ..हे !"फिर गुलाबी उस दुपट्टे को चौकी पर लेते हुए नंगे ठाकुर साहब के बगल में रखती हुई बोली :-" अब जब बहार जाओ तो लगा लेना ....अभी ऐसे ही रह ...!" ठाकुर साहब चौकी पर निढाल हो कर लेटे लेटे सब सुन रहे थे पर सावत्री की नई बूर में वो इतना झड़े थे की उनको थकान भी लग रही थी ! उम्र से वे अधेड़ हो चुके थे पर चुदाई उन्हें उतनी ही पसनद थी जितनी उन्हें जवानी में थी !शलवार कुरता पहने जैसे ही सावत्री चौकी के किनारे खड़ी हुई की गुलाबी उसकी तरफ तौलिया बढ़ाते हुए बोली :-' ले पकड़ ..इसे ...और बाबूजी का लौड़ा तो पूँछ दे री ....ले ठीक से पूंछ कर साफ कर दे ...!" सावत्री ये सुन कर एक दम सन्न रह गई पर एक पल रुक कर उसने अपने हाथ में तौलिया पकड़ लिया !
ठाकुर साहब की नज़रे भी नीचे गर्दन किये सावत्री पर ही थी ! और फिर इतनी देर से सिर्फ पेटीकोट पहने खड़ी गुलाबी भी ब्लाउज पहनने लगी !अपने ब्लाउज के बटन बंद करते देखि तो सावत्री बिना हिले दुले हाथ में तौलिया पकडे खड़ी हे तो फिर से बोली :-" साली ....लंड पोंछने में लाज लग रही हे ...और जब तेरी बूर लंड का पानी पी रही थी तो लाज नहीं लग रही थी .....छिनाल साली .उस वक़्त तो गांड उठा उठा कर चुदवा रही थी अब छुई मुई शरीफ जादी बन रही हे लंड खोर कुतिया ...!"इतना कह कर गुलाबी मुस्कुराते हुए अपनी साड़ी पहनती हुई फिर सावत्री से कुछ कहना चाह की धन्नो सावत्री को डांटते हुए बोल पड़ी :-"पूँछ दे रे ... हर जाई .. पोंछ दे बाबु जी के लंड को .....साली ..मज़ा लेगी तू ......ऊपर कुद्वाएगी तू ....तो पोंछेगा कौन हरामजादी ......चल पोंछ लंड को !"इतना सुन कर सावत्री थोडा डर सी गई और वो शर्म से पानी पानी भी हो गई और एक दम घबडा कर ठाकुर साहब के मुर्झा रहे लंड पर लगे वीर्य और रज को डरती डरती पोंछने लगी !फिर धन्नो उसे डांटती सी बोली :-" अरे हरजाई कभी लंड नहीं पोंछा क्या ?....लंड को एक हाथ से पकड़ ले ...तब ठीक से इसे पोछ पायेगी ..ऐसे तो ये इधर उधर होता जा रहा हे री ......!"तब सावत्री ठाकुर साहब के लंड को एक हाथ से पकड़ कर उसे धीरे धीरे पोंछने लगी !झडे लंड पर तौलिये की रगड़ के दर्द से ठाकुर साहब सी सी करने लगे !फिर अच्छी तरह से लंड को पोंछ कर सावत्री ने गुलाबी के इशारे से उस तौलिये को कोठरी के कोने में फेंक दिया !तब तक गुलाबी भी साडी पहन कर यहाँ से चलने के लिए तेयार हो चुकी थी ! आज का काम उसके प्लान के अनुसार हो गया था !
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