सावित्री रोज केवल समीज ही निकाल कर नहा लेती थी। लेकिन आज वह सलवार
और ब्रेसरी को भी निकल करकेवल अपने पुरानी चड्डी में हो गयी। आज पहली बार
जवान होने के बाद केवल चड्डी में नहाने जा रही थी। पतानहीं क्यों भोला
पंडित से चुद जाने के बाद अब ज्यादे शर्म लाज नहीं आ रही थी। वैसे सावित्री
कोई देखने वाला नहींथा। लेकिन पता नहीं क्यों उसका मन कुछ रंगीन सा हो गया
था। सवित्री की दोनों बड़ी बड़ी चूचियां काफी सुडौललग रही थीं। सावित्री
अपने चुचिओं को देख कर मस्त हो गयी। उसे याद आया की इन्हीं दोनों चुचिओं को
पंडित जीने कल खूब मीज़ा और चूसा। सावित्री को आज चूचियां कुछ बड़ी लग रही
थीं। सावित्री जब पानी अपने शरीर पर डाल कर नहाने लगी तब उसका मन बड़ा ही
रंगीन होने लगा। वह अपने चुचियोंको खूब मल मल कर नहाने लगी। बड़ा मज़ा आ रहा
था। आज केवल चड्डी ही शरीर पर होने से एक सनसनाहट होरही थी। फिर चड्डी को
सरकाकर बुर और झांटों में साबुन लगाकर नहाने लगी। बुर पर हाथ फेरने पर इतना
मज़ाआता की सावित्री का जी चाहता की खूब हाथ से सहलाये। खैर जल्दी से नहा
कर सावित्री दुकान पर जाने के लिए तैयार हो गयी। और आज उसका मन कुछ ज्यादा
ही फड़करहा था की दुकान पर जल्दी से पहुंचे। शायद पिछले दिन लन्ड का स्वाद
मिल जाने के वजह से । उसके मन मेंपंडित जी के प्रति एक आकर्षण पैदा होने
लगा था। यह उसके शरीर की जरूरत थी। जो की पंडित जी पूरा करसकते थे।
सावित्री के मन में जो आकर्षण भोला पंडित के तरफ हो रही थी उसे वह पूरी तरह
समझ नहीं पा रहीथी। लेकिनउसे लगता था की पंडित जी ने उसे बहुत आनंद दिया।
सावित्री उस आनंद को फिर से पाना चाहती थी। लेकिन जोसबसे चिंता की बात थी
वह यह की पंडित जी का वीर्य जो बुर में गिरा उससे कहीं गर्भ ठहर न जाये।
आखिर इसी उधेड़बुन में लगी सावित्री फिर दुकान पर पहुंची और रोज की तरह
पंडित जी का प्रणाम की तो पंडितजी उसके और देखकर मुस्कुराते हुए उसे अन्दर
आने के लिए कहा। सावित्री चुपचाप दुकान के अंदर आ गयी। यहपहली बार था की
पंडित जी ने सावित्री को मुस्कुराकर दुकान के अन्दर आने के लिए कहे थे।
सावित्री के मन मेंअपने शरीर की कीमत समझ में आने लगी। वह सोच रही थी की आज
क्या होगा। पंडित जी कुर्सी पर बैठे ही बैठेसावित्री की और देख रहे थे।
सावित्री अपने स्टूल पर बैठी नज़रें झुकाई हुई थी। उसे लाज लग रहा था। वह
यही सोचरही थी की पंडित जी ने उसे कैसे नंगी कर के चोदा था। कैसे उसे चोदकर
एक औरत बना दिया। और अब कुछ दुरीपर बैठ कर उसे देख रहे थे। उसके मन में यह
बात भी आती थी की क्यों न वह पंडित जी से ही यह कहे की उसका पेट में जो
वीर्य गिरा दिया है तो उसका क्या होगा। सावित्री को अपने सहेलिओं से इतना
पता था की कुछ ऐसी दवाएं आती है जिसके खाने से गर्भ नहीं ठहरता है। लेकिन
सावित्री के सामने सबसे बड़ी परेशानी यह थी की वह उस दवा को कहाँ से ले कर
खाए। यही सब सोचते रही की दोपहर हो गयी और पंडित जी पिछले दिन की तरह दुकान
को बंद कर के खाना खाने और आराम करने की तैयारी में लग गए। दूकान का बाहरी
दरवाजा बंद होने के बाद सावित्री का दिल जोर जोर से धड़कने लगा। वह पंडित
जी के हर गतिविधि को ध्यान से देखने लगी। पंडित जी दूकान के अंदर वाले
हिस्से में आ गए। तब सावित्री ने चटाई को लेकर दूकान वाले हिस्से में आ गयी
और चटाई बिछा कर बैठ गयी। उसके मन में एक घबराहट साफ दिख रहा था। अंदर
वाले कमरे में पंडित जी की हर हरकत को सावित्री ध्यान से समझने की कोशिस
करती। वह दूकान वाले हिस्से में होने के वजह से पंडित जी को देख तो नहीं पा
रही थी लेकिन अपने कान से अंदर की हर हरकत को समझने की कोशिस करती थी। उसे
लगा की पंडित जी दोपहर का खाना खा रहे हैं। थोड़ी देर बाद उनके खर्राटे की
आवाज सावित्री को सुनाई देने लगी तब वह समझ गयी की पंडित जी खाना खाने के
बाद कल की तरह अब आराम करने लगे। तब दुकान वाले हिस्से में चटाई पर बैठी
सावित्री भी लेट गयी और दुकान में रखे सामानों को लेटे लेटे देखने लगी।
उसके मन में पिछले दिन की चुदाई की बात याद आने लगी। दोपहर के सन्नाटे में
दुकान के भीतर चटाई लेती सावित्री का भी मन अब जवानी के झोंके में कुछ
बहकने सा लगा
उसके मन में एक अलग तरह की उमंग
जन्म लेने लगा था। ऐसा उसे पहले कभी भी नहीं होते था। पिछले दिन जो कुछ भी
पंडित जी ने किया उसे बार बार यद् आने लगा। लेटे लेटे उन बातों को सोचना
बहुत ही अच्छा लगने लगा था। ऐसा लगता मानो उन्होंने ने कुछ भी गलत नहीं
किया बल्कि जो कुछ किया उसके साथ बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। शायद यह
सावित्री के जवान उम्र और गर्म खून होने के वजह से हो रहा था। कुछ ही देर
पहले उसके दिमाग में जो पंडित जी के वीर्य को ले कर डर था कहीं ख़त्म सा हो
गया था। वह यही नहीं सोच पा रही थी कि उसका मन ऐसा क्यों बदल सा रहा है।
सावित्री का अनाड़ीपन अपने धारणा के अंदर हो रहे बदलाव को समझने में नाकाम
हो रहा था। शायद सावित्री के शरीर कि भूख ही इसके लिए जिम्मेदार थी। लेकिन
यह भूख पहले क्यों नहीं लगाती थी सिर्फ कल कि घटना के बाद ही इस भूख का
लगना सुरु हुआ था? शायद हाँ । सावित्री के मन कि स्थिति काफी पहेली कि तरह
होती जा रही थी। सावित्री को लग रहा था कि पंडित जी के लन्ड ने जहाँ बुर के
शक्ल को बदल दिया वहीँ उनके गर्म वीर्य ने सावित्री के सोच को बदल कर जवान
कर दिया। मानो वीर्य नहीं एक ऐसा तेजाब था जो सावित्री के अंदर के शर्म और
लाज को काफी हद तक गला दिया हो। सावित्री के मन में जो कुछ उठ रहा था वह
कल के पहले कभी नहीं उठता था। उसे याद है कि कैसे उसकी माँ सीता ने
सावित्री की इज्जत को गाँव के आवारों से बचाने के लिए कितनी संघर्ष किया।
सावित्री की पढाई आठवीं पूरी होने के बाद ही बंद करा कर घर में ही रखा ताकि
गाँव के गंदे माहौल में सावित्री कहीं बिगड़ न जाये। लेकिन अब सावित्री को
यह सब कुछ सही नहीं लग रहा था। जहाँ सावित्री की माँ को इज्जत से रहने की
जरूरत थी वहीँ अब सावित्री को अपने शरीर के भूख को मिटाने की जरूरत महसूस
हो रही थी। आखिर यह भूख पहले क्यों नहीं लगी? कुछ देर सोचने के बाद
सावित्री के मन में एक बात समझ में आई की उसे तो पता ही नहीं था की मर्द जब
औरत को चोदता है तो इतना मज़ा आता है। फिर दूसरा सवाल उठा की आखिर क्यों
नहीं पता था कि इतना मजा आता है? इसका जबाव मन में आते ही सावित्री को कुछ
गुस्सा लगने लगा। क्योंकि इसका जबाव कुछ अलग था। सावित्री समझ गयी की कभी
वह चुद ही नहीं पाई थी किसी से। बस उसे कभी कभी किसी किसी से पता चलता था
की गाँव की फलां लड़की या औरत किसी के साथ पकड़ी गयी या देखि गयी। और उसके
बाद अपने माँ से ढेर सारा उपदेश सुनने को मिलता की औरत या लड़की को इज्जत से
रहनी चाहिए और सावित्री शायद यही सब सुन कर कई सालों से जवान होने के
बावजूद घर में ही रह गयी और किसी मर्द का स्वाद कभी पा न सकी और जान न सकी
की मर्द का मजा क्या होता है। ये तो शायद पैसे की मज़बूरी थी जिसके वजह से
भोला पंडित के दुकान में काम करने के लिए आना पड़ा और मौका देख कर भोला
पंडित ने सावित्री को जवानी का महत्व बता और दिखा दिया था। उसके मन में जो
गुस्सा उठा था वह माँ के ऊपर ही था। अब सावित्री का मन अपने शरीर की जरूरत
की वजह से अपनी माँ की व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह करना सुरु कर दिया था।
उसे लगा की अपनी माँ सीता का उपदेश सुन कर घर में ही बंद रहना शायद काफी
बेवकूफी का काम था। वह अपने कुछ सहेलिओं के बारे में जानती थी जो इधर उधर
से मज़ा ले लेती थीं लेकिन सावित्री ने अपने माँ के उपदेशों के प्रभाव में आ
कर कभी कोई ऐसी इच्छा मन में पनपने नहीं दिया था। सावित्री दुकान वाले
हिस्से में लेती हुई यही सब सोच रही थी। पंडित जी अंदर वाले कमरे में चौकी
पर खर्राटे ले रहे था। सावित्री ने अपने एक हाथ को अपने सलवार के ऊपर से ही
बुर और झांटों को सहलाया और काफी आनंद मिला और यह भी अनुभव हुआ की अब दर्द
ख़त्म हो गया था जो कल सील तोड़ने के वजह से हुआ था। कुछ सोच कर सावित्री
चटाई में लेती हुई एक तरफ करवट हुई और सोचने लगी कि आज क्या होगा जब पंडित
जी सो कर उठेंगे। यह बात मन में आते ही सावित्री एकदम सनसनाती हुई मस्त सी
हो गयी। सावित्री के दिमाग में पंडित जी का लन्ड दिखने लगा। उसे ये सब बहुत
अच्छा लग रहा था। उसने दुबारा अपने हाथ को बुर पर ले जाकर सलवार के ऊपर से
ही थोडा सहलाया तो उसका बदन एक बार फिर झनझना उठा। दोपहेर का सन्नाटा ही
था जो सावित्री के शरीर मे एक आग धधकने का काम कर रहा था. उसके शरीर मे
जवानी की आग लगना सुरू हो गया था. वह पंडित जी के बारे मे सोचना सुरू कर
दी. एक दिन पहले जिस काम से वह इतना डरती थी आज उसे उसी काम की ज़रूरत समझ
मे आने लगी थी. चटाई पर लेटे लेटे ही उसका मन अब लहराने लगा था. वह यही सोच
रही थी कि आज पंडित जी सोकर उठेंगे तो उसे बुलाकर चोदेन्गे. ऐसी सोच उसे
मस्त कर दे रही थी. वह यही बार बार मन मे ला रही थी कि आज फिर से चुदाई
होगी. शायद सावित्री कुछ ज़्यादा ही जल्दबाजी मे थी इसी वजह से उसको पंडित
जी का खर्राटा ठीक नही लग रहा था. उसे इस बात की जल्दी थी कि पंडित जी उठे
और उसे अंदर वाले कमरे मे बुला कर चोद डालें. उसका ध्यान पंडित जी के
खर्राटे और अपनी शरीर की मस्ती पर ही था. आख़िर यह सब होते करीब एक घंटा
बीता ही था का पंडित जी का खर्राटा बंद हो गया. और अगले पल सावित्री को लगा
कि पंडित जी चौकी पर उठकर बैठ गये हैं. सावित्री का कलेजा धक धक करने लगा.
सावित्री भी अपने चटाई पर उठकर बैठ गयी. उसे कुछ घबराहट सी हो रही थी. कुछ
पल पहले ही वह सोच रही थी कि पंडित जी आज भी चोदेन्गे तो बहुत अच्छा होगा
लेकिन जब पंडित जी की नीद खुली तब सावित्री को डर लगने लगा. शायद उसके अंदर
इतनी हिम्मत नही थी कि वह उनका सामना आसानी से कर सके. थोड़ी देर बाद
शौचालय से पंडित जी के पेशाब करने की आवाज़ आने लगी. सावित्री यह आवाज़
सुनकर लगभग हिल सी गई. चटाई मे बैठे बैठे अपने दुपट्टे को भी ठीक ठाक कर
लिया. अब अगले पल मे होने वाली घटना का सामना करने के लिए हिम्मत जुटा रही
थी. तभी पंडित जी पेशाब करके वापस आए और चौकी पर बैठ गये. तभी सावित्री के
कान मे एक आवाज़ आई और वह कांप सी गई. पंडित जी ने उसे पुकारा था "आओ इधेर"
सावित्री को लगा कि वह यह आवाज़ सुनकर बेहोश हो जाएगी. अगले पल सावित्री
चटाई पर से उठी और अंदर के हिस्से मे आ गयी. सावित्री ने देखा कि पंडित जी
चौकी पर बैठे हैं और उसी की ओर देख रहे हैं. अगले पल पंडित जी ने कहा "चटाई
ला कर बिच्छा यहाँ और तैयार हो जा, अभी काफ़ी समय है दुकान खुलने मे"
सावित्री समझ गयी कि पंडित जी क्या करना चाहते हैं. उसने चटाई ला कर पिछले
दिन वाली जगह यानी चौकी के बगल मे बिछा दी.
अब
पंडित जी के कहे गये शब्द यानी तैयारी के बारे मे सोचने लगी. उसका मतलब
पेशाब करने से था. उसे मालूम था कि पंडित जी ने उसे तैयार यानी पेशाब कर के
चटाई पर आने के लिए कहे हैं. लेकिन उनके सामने ही शौचालय मे जाना काफ़ी
शर्म वाला काम लग रहा था और यही सोच कर वह एक मूर्ति की तरह खड़ी थी. तभी
पंडित जी ने बोला "पेशाब तो कर ले, नही तो तेरी जैसी लौंडिया पर मेरे जैसा
कोई चढ़ेगा तो मूत देगी तुरंत" दूसरे पल सावित्री शौचालय के तरफ चल दी.
शौचालय मे अंदर आ कर सीत्कनी बंद कर के ज्योन्हि अपनी सलवार के जरवाँ पर
हाथ लगाई कि मन मस्ती मे झूम उठा. उसके कानो मे पंडित जी की चढ़ने वाली बात
गूँज उठी. सावित्री का मन लहराने लगा. वह समझ गयी कि अगले पल मे उसे पंडित
जी अपने लंड से चोदेन्गे. जरवाँ के खुलते ही सलवार को नीचे सरकई और फिर
चड्डी को भी सरकाकर मूतने के लिए बैठ गयी. सावित्री का मन काफ़ी मस्त हो
चुका था. उसकी साँसे तेज चल रही थी. वह अंदर ही अंदर बहुत खुश थी. फिर
मूतने के लिए जोरे लगाई तो मूत निकालने लगा. आज मूत की धार काफ़ी मोटी थी.
मूतने के बाद खड़ी हुई और चड्डी उपर सरकाने से पहले एक हाथ से अपनी बुर को
सहलाई और बुर के दोनो फांकों को अपने उंगलिओ से टटोल कर देखा तो पाया कि
सूजन और दर्द तो एकदम नही था लेकिन बुर की फांके अब पहले की तरह आपस मे सॅट
कर लकीर नही बना पा रही थी. चड्डी पहन कर जब सलवार की जरवाँ बाँधने लगी तो
सावित्री को लगा कि उसके हाथ कांप से रहे थे. फिर सिटकनी खोलकर बाहर आई तो
देखी कि पंडित जी अपना कुर्ता निकाल कर केवल धोती मे ही चटाई पर बैठे उसी
की ओर देख रहे थे
अब सावित्री का कलेजा तेज़ी से
धक धक कर रहा था. वह काफ़ी हिम्मत करके पंडित जी के तरफ बढ़ी लेकिन चटाई से
कुछ दूर पर ही खड़ी हो गयी और अपनी आँखें लगभग बंद कर ली. वह पंडित जी को
देख पाने की हिम्मत नही जुटा जा पा रही थी. तभी पंडित जी चटाई पर से खड़े
हुए और सावित्री का एक हाथ पकड़ कर चटाई पर खींच कर ले गये. फिर चटाई के
बीच मे बैठ कर सावित्री का हाथ पकड़ कर अपनी गोद मे खींच कर बैठाने लगे.
पंडित जी के मजबूत हाथों के खिचाव से सावित्री उनके गोद मे अपने बड़े बड़े
चूतादो के साथ बैठ गयी. अगले पल मानो एक बिजली सी उसके शरीर मे दौड़ उठी.
सावित्री अपने पूरे कपड़े मे थी. गोद मे बैठते ही पंडित जी ने सावित्री के
दुपट्टे को उसके गले और चूचियो पर से हटा कर फर्श पर फेंक दिए. अब सावित्री
की बड़ी बड़ी चुचियाँ केवल समीज़ मे एक दम बाहर की ओर निकली हुई दीख रहीं
थी. सावित्री अपनी आँखें लगभग बंद कर रखी थी. लेकिन सावित्री ने अपने हाथों
से अपने चुचिओ को ढकने की कोई कोशिस नही की और दोनो चुचियाँ समीज़ मे एक
दम से खड़ी खड़ी थी. मानो सावित्री खुद ही दोनो गोल गोल कसे हुए चुचिओ को
दिखाना चाहती हो. पिछले दिन के चुदाई के मज़ा ने सावित्री को लालची बना
दिया था. सावित्री पंडित जी के गोद मे बैठे ही बैठे मस्त होती जा रही थी.
पंडित जी ने सावित्री के दोनो चुचिओ को गौर से देखते हुए उनपर हल्के से हाथ
फेरा मानो चुचिओ की साइज़ और कसाव नाप रहे हों. सावित्री को पंडित जी का
हाथ फेरना और हल्का सा चुचिओ का नाप तौल करना बहुत ही अच्छा लग रहा था. इसी
वजह से वह अपनी चुचिओ को छुपाने के बजाय कुछ उचका कर और बाहर की ओर निकाल
दी जिससे पंडित जी उसकी चुचिओ को अपने हाथों मे पूरी तरह से पकड़ ले.
सावित्री पंडित जी की गोद मे एकदम मूर्ति की तरह बैठ कर मज़ा ले रही थी.
फिर उसे याद आया कि कल की तरह आज भी समीज़ नही निकाल पाई थी. फिर अगले पल
वह खुद ही पंडित जी के गोद मे आगे की ओर थोड़ी सी उचकी और अपने समीज़ को
दोनो हाथों से खुद ही निकालने लगी. आज वह खुद ही आगे आगे चल रही थी.
सावित्री को अब देर करना ठीक नही लग रहा था. आख़िर समीज़ को निकाल कर फर्श
पर रख दी. फिर पंडित जी की गोद मे खुद ही काफ़ी ठीक से बैठ कर अपने सिर को
कुछ झुका ली. लेकिन दोनो छातियो को ब्रा मे और उपर करके निकाल दी. पंडित जी
सावित्री के उतावलेपन को देख कर मस्त हो गये. वह सोचने लगे कि कल ही सील
तुड़ाई और आज लंड के लिए पग्लाने लगी है. फिर भी पंडित जी एक पुराने चोदु
थे और अपने जीवन मे बहुत सी लड़कियो और औरतों को चोद चुके थे इस वजह से वे
कई किस्म की लड़कियो और औरतों के स्वाभाव से भली भाँति परिचित थे. इस वजह
से समझ गये की सावित्री काफ़ी गर्म किस्म की लड़की है और अपने जीवन मे एक
बड़ी छिनाल भी बन सकती है, बस ज़रूरत है उसको छिनाल बनाने वालों की. अगले
पल मे यही सोचने लगे की सावित्री को उसके गाओं वाले खुद ही एक बड़ी चुड़ैल
बना देंगे बस उन्हे मौका मिल जाए. क्योंकि सावित्री के गाँव मे भी एक से एक
चोदु आवारा रहते थे. पंडित जी यही सब सोच रहे थे और ब्रा के उपर से दोनो
चुचिओ को अपने हाथों से हल्के हल्के दबा रहे था. सावित्री अपने शरीर को
काफ़ी अकड़ कर पंडित जी के गोद मे बैठी थी जैसे लग रहा था कि वह खुद ही
दब्वाना चाहती हो. पंडित जी नेब्रा के उपर से ही दोनो चुचिओ को मसलना सुरू
कर दिया और थोड़ी देर बाद ब्रा की हुक को पीछे से खोल कर दोनो चुचिओ से
जैसे ही हटाया की दोनो चुचियाँ एक झटके के साथ बाहर आ गयीं. चुचियाँ जैसे
ही बाहर आईं की सावित्री की मस्ती और बढ़ गयी और वह सोचने लगी की जल्दी से
पंडित जी दोनो चुचिओ को कस कस कर मीसे. और पंडित जी ब्रा को फर्श पर पड़े
दुपट्टे और समीज़ के उपर ही ब्रा को फेंक कर चुचिओ पर हाथ फिराना सुरू कर
दिया.
नंगी चुचिओ पर पंडित जी हाथ फिरा कर चुचिओ
के आकार और कसाव को देख रहे थे जबकि सावित्री के इच्छा थी की पंडित जी उसकी
चुचिओ को अब ज़ोर ज़ोर से मीसे. आख़िर सावित्री लाज़ के मारे कुछ कह नही
सकती तो अपनी इस इच्छा को पंडित जी के सामने रखने के लिए अपने छाति को बाहर
की ओर उचकाते हुए एक मदहोशी भरे अंदाज़ मे पंडित जी के गोद मे कसमासाई तो
पंडित जी समझ गये और बोले "थोड़ा धीरज रख रे छिनाल,, अभी तुझे कस कस के
चोदुन्गा,,, धीरे धीरे मज़ा ले अपनी जवानी का समझी, तू तो इस उम्र मे लंड
के लिए इतना पगला गयी है आगे क्या करेगी कुतिया साली,,,,,"" पंडित जी भी
सावित्री की गर्मी देख कर दंग रह गये. उन्हे भी ऐसी किसी औरत से कभी पाला
ही नही पड़ा था जो सील टूटने के दूसरे दिन ही रंडी की तरह व्यवहार करने
लगे. सावित्री के कान मे पंडित जी की आवाज़ जाते ही डर के बजाय एक नई मस्ती
फिर दौड़ गयी. तब पंडित जी ने उसके दोनो चुचिओ को कस कस कर मीज़ना सुरू कर
दिया. ऐसा देख कर सावित्री अपनी छातियो को पंडित जी के हाथ मे उचकाने लगी.
रह रह कर पंडित जी सावित्री के चुचिओ की घुंडीओ को भी ऐंठने लगे फिर दोनो
चुचिओ को मुँह मे लेकर खूब चुसाइ सुरू कर दी. अब क्या था सावित्री की आँखें
ढपने लगी और उसकी जांघों के बीच अब सनसनाहट फैलने लगी थोड़ी देर की चुसाइ
के बाद बुर मे चुनचुनी उठने लगी मानो चींटियाँ रेंग रहीं हो. अब सावित्री
कुछ और मस्त हो गयी और लाज़ और शर्म मानो शरीर से गायब होता जा रहा था.
पंडित जी जो की काफ़ी गोरे रंग के थे और धोती और लंगोट मे चटाई के बीच मे
बैठे और उनकी गोद मे सावित्री काफ़ी साँवली रंग की थी और चुहियाँ भी साँवली
थी और उसकी घुंडिया तो एकदम से काले अंगूर की तरह थी जो पंडित जी के गोरे
मुँह मे काले अंगूर की तरह कड़े और खड़े थे जिसे वी चूस रहे थे. पंडित जी
की गोद मे बैठी सावित्री पंडित जी के काफ़ी गोरे होने के वजह से मानो
सावित्री एकदम काली नज़र आ रही थी. दोनो के रंग एक दूसरे के बिपरीत ही थे.
जहाँ पंडित जी लंड भी गोरा था वहीं सावित्री की बुर तो एकदम से काली थी.
सावित्री की चुचिओ की चुसाइ के बीच मे ही पंडित जी ने सावित्री के मुँह को
अपने हाथ से ज़ोर से पकड़ कर अपने मुँह मे सताया. फिर सावित्री के निचले और
उपरी होंठो को चूसने और चाटने लगी. सावित्री एकदम से पागल सी हो गयी. अब
उसे लगा की बुर मे फिर पिछले दिन की तरह कुछ गीला पन हो रहा है. सावित्री
पंडित जी के गोद मे बैठे ही बैठे अपने होंठो को चूसा रही थी तभी पंडित जी
बोले "जीभ निकाल" सावित्री को समझ नही आया की जीभ का क्या करेंगे. फिर भी
मस्त होने की स्थिति मे उसने अपने जीभ को अपने मुँह से बाहर निकाली और
पंडित जी लपाक से अपने दोनो होंठो मे कस कर चूसने लगे. जीभ पर लगे सावित्री
के मुँह मे का थूक चाट गये. सावित्री को जीभ का चटाना बहुत अच्छा लगा. फिर
पंडित जी अपने मुँह के होंठो को सावित्री के मुँह के होंठो पर कुछ ऐसा कर
के जमा दिए की दोनो लोंगो के मुँह एक दूसरे से एकदम सॅट गया और अगले ही पल
पंडित जी ने ढेर सारा थूक अपने मुँह मे से सावित्री के मुँह मे धकेलना सुरू
कर किया. सावित्री अपने मुँह मे पंडित जी का थूक के आने से कुछ घबरा सी
गयी और अपने मुँह हटाना चाही लेकिन सावित्री के मुँह के जबड़े को पंडित जी
ने अपने हाथों से कस कर पकड़ लिए था. तभी पंडित जी के मुँह मे से ढेर सारा
थूक सावित्री के मुँह मे आया ही था की सावित्री को लगा की उसे उल्टी हो
जाएगी और लगभग तड़फ़ड़ाते हुए अपने मुँह को पंडित जी के मुँह से हटाने की
जोरे मारी. तब पंडित जी ने उसके जबड़े पर से अपना हाथ हटा लिए और सावित्री
के मुँह मे जो भी पंडित जी का थूक था वह उसे निगल गयी. लेकिन फिर पंडित जी
ने सावित्री के जबड़े को पकड़ के ज़ोर से दबा कर मुँह को चौड़ा किए और मुँह
के चौड़ा होते ही अपने मुँह मे बचे हुए थूक को सावित्री के मुँह के अंदर
बीचोबीच थूक दिया जो की सीधे सावित्री के गले के कंठ मे गिरी और सावित्री
उसे भी निगल गयी.
सावित्री के मुँह मे पंडित जी
का थूक जाते ही उसके शरीर मे अश्लीलता और वासना का एक नया तेज नशा होना
सुरू हो गया. मानो पंडित जी ने सावित्री के मुँह मे थूक नही बल्कि कोई
नशीला चीज़ डाल दिया हो. सावित्री मदहोशी की हालत मे अपने सलवार के उपर से
ही बुर को भींच लिया. पंडित जी सावित्री की यह हरकत देखते समझ गये कि अब
बुर की फाँकें फड़फड़ा रही हैं. दूसरे पल पंडित जी के हाथ सावित्री के
सलवार के जरवाँ पर पहुँच कर जरवाँ की गाँठ खोलने लगा. लेकिन पंडित जी की
गोद मे बैठी सावित्री के सलवार की गाँठ कुछ कसा बँधे होने से खुल नही पा
रहा था.. ऐसा देखते ही सावित्री पंडित जी की गोद मे बैठे ही बैठे अपने दोनो
हाथ जरवाँ पर लेजाकर पंडित जी के हाथ की उंगलिओ को हटा कर खुद ही जरवाँ की
गाँठ खोलने लगीं. ऐसा देख कर पंडित जी ने अपने हाथ को जरवाँ की गाँठ के
थोड़ा दूर कर के सावित्री के द्वारा जरवाँ को खुल जाने का इंतजार करने लगे.
अगले पल जारवा की गाँठ सावित्री के दोनो हाथों नेकी उंगलियाँ खोल दी और
फिर सावित्री के दोनो हाथ अलग अलग हो गये. यह देख कर पंडित जी समझ गये की
आगे का काम उनका है क्योंकि सावित्री सलवार के जरवाँ के गाँठ खुलते ही हाथ
हटा लेने का मतलब था कि वह खुद सलवार नही निकलना चाहती थी. शायद लाज़ के
कारण. फिर सावित्री का हाथ हटते ही पंडित जी अपने हाथ को सलवार के जरवाँ को
उसके कमर मे से ढीला करने लगे. पंडित जी के गोद मे बैठी सावित्री के कमर
मे सलवार के ढीले होते ही सलवार कमर के कुछ नीचे हुआ तो गोद मे बैठी
सावित्री की चड्डी का उपरी हिस्सा दिखने लगा. फिर पंडित जी अगले पल
ज्योन्हि सावित्री की सलवार को निकालने की कोशिस करना सुरू किए की सावित्री
ने अपने चौड़े चूतदों को गोद मे से कुछ उपर की ओर हवा मे उठा दी और मौका
देखते ही पंडित जी सलवार को सावित्री के चूतदों के नीचे से सरकाकर उसके
पैरों से होते हुए निकाल कर फर्श पर फेंक दिए. अब फिर केवल चड्डी मे
सावित्री अपने बड़े बड़े और काले चूतदों को पंडित जी के गोद मे बैठ गयी.
सावित्री के दोनो चूतड़ चौड़े होने के नाते काफ़ी बड़े बड़े लग रहे थे और
फैले से गये थे. जिस अंदाज़ मे सावित्री बैठी थी उससे उसकी लंड की भूख एकदम
सॉफ दिख रही थी. चेहरे पर जो भाव थे वह उसके बेशर्मी को बता रहे थे. शायद
पिछले दिन जो चुदाई का मज़ा मिला था वही मज़ा फिर लेना चाह रही थी. अब
सावित्री की साँसे और तेज चल रही थी. . सलवार हटते ही सावित्री के जंघें भी
नंगी हो गयी जिसपर पंडित जी की नज़र और हाथ फिसलने लगे. सावित्री की जंघें
काफ़ी मांसल और गोल गोल साँवले रंग की थी. लेकिन बुर के पास के जाँघ का
हिस्सा कुछ ज़्यादा ही सांवला था. पंडित जी सावित्री के नंगी और मांसल
साँवले रंग की जांघों को आज काफ़ी ध्यान से देख रहे थे. अट्ठारह साल की
सावित्री जो की पंडित जी के गोद मे ऐसे बैठी थी मानो अब पंडित जी के गोद से
उठना नही चाहती हो. पंडित जी का लंड भी धोती के अंदर ढीले लंगोट मे खड़ा
हो चुका था. जिसका कडापन और चुभन केवल चड्डी मे बैठी सावित्री अपने काले
चूतदों मे आराम से महसूस कर रही थी. फिर भी बहुत ही आराम से एक चुदैल औरत
की तरह अपने दोनो चूतदों को उनके गोद मे पसार कर बैठी थी. पंडित जी
सावित्री को गोद मे बैठाए हुए उसकी नंगी गोल गोल चुचिओ पर हाथ फेरते हुए
काफ़ी धीरे से पुचछा "मज़ा पा रही हो ना" इस पर सावित्री ने धीरे से बोली
"जी". और अगले पल अपनी सिर कुछ नीचे झुका ली. साँसे कुछ तेज ले रही थी.
लेकिन पंडित जी ने धीरे से फिर पुचछा "तुम्हे कभी कोई चोदने की कोशिस नही
की थी क्या,,, तेरे गाओं मे तो बहुत सारे आवारा हैं." इस सवाल पर सावित्री
ने कुछ जबाब नही दिया बल्कि अपनी नज़रे झुकाए ही रही. "गाँव मे इधेर उधेर
घूमने फिरने नही जाती थी क्या" पंडित जी ने दुबारा धीरे से पुछा तो
सावित्री ने नही मे सिर हिलाया तो पंडित जी बोले "घर पर ही पड़ी रहती थी
इसी वजह से बची रही नही तो घर से बाहर कदम रखी होती तो आज के माहौल तुरंत
चुद जाती., वैसे तेरे गाओं मे आवारे भी बहुत ज़्यादे हैं..... तेरी मा
बेचारी भी कुछ नही कर पति उन बदमाशों का और वो सब तेरे को चोद चोद कर गाओं
की कुतिया बना देते."
पंडित जी अपने गोद मे बैठी
हुई सावित्री के जांघों पर हाथ फेरते हुए फिर बोले "बेचारी तेरी मा अपनी
हिफ़ाज़त कर ले वही बहुत है नही तो विधवा बेचारी का कहीं भी पैर फिसला तो
गाओं के लोफरों और अवारों के लंड के नीचे दब्ते देर नही लगेगी." आगे फिर
बोले "और अवारों के लंड का पानी बहुत ज़्यादे ही नशीला होता है" आगे फिर
बोले "और जिस औरत को आवारा चोद कर उसकी बुर मे अपने लंड का नशीला पानी गिरा
देते हैं वह औरत अपने जीवन मे सुधर नही सकती,...और एक पक्की चुदैल बन ही
जाती हैं, समझी....... तुम भी बच के रहना इन आवारों से, .....इनके लंड का
पानी बहुत तेज होता है" पंडित जी सावित्री के चड्डी के उपर से ही बुर को
मीज़ते हुए यह सब बातें धीरे धीरे बोल रहे थे और सावित्री सब चुप चाप सुन
रही थी. वह गहरी गहरी साँसें ले रही थी और नज़रें झुकाए हुए थी. पंडित जी
की बातें सुन रही सावित्री खूब अच्छी तरह समझ रही थी कि पंडित जी किन
आवारों की बात कर रहें हैं. लेकिन वह नही समझ पा रही थी कि अवारों के लंड
का पानी मे कौन सा नशा होता है जो औरत को छिनार या चुदैल बना देता है. वैसे
सावित्री तो बस पिछले दिन ही किसी मर्द के लंड का पानी अपनी बुर मे गिरता
महसूस की थी जो कि पंडित जी के लंड का था. पंडित जी यह सब बता कर उसे
अवारों से दूर रहने की हिदायत और सलाह दे रहे थे. शवित्री को पंडित जी की
यह सब बातें केवल एक सलाह लग रही थी जबकि वास्तव मे पंडित जी के मन मे यह
डर था कि अब सावित्री को लंड का स्वाद मिल चुका है और वह काफ़ी गर्म भी है.
ऐसे मे यदि को गाओं के आवारा मौका पा के सावित्री का रगड़दार चुदाई कर
देंगे तो सावित्री केवल पंडित जी से चुद्ते रहना उतना पसंद नही करेगी और
अपने गाओं के आवारे लुंडों के चक्कर मे इधेर उधेर घूमती फिरती रहेगी. जिससे
हो सकता है कि पंडित जी के दुकान पर आना जाना भी बंद कर दे. इसी वजह से
पंडित जी भी आवारों से बचने की सलाह दे रहे थे. बुर को चड्डी के उपर से
सहलाते हुए जब भी बुर के छेद वाले हिस्से पर उंगली जाती तो चड्डी को छेद
वाला हिस्सा बुर के रस से भीगे होने से पंडित जी की उंगली भी भीग जा रही
थी. पंडित जी जब यह देखे कि सावित्री की बुर अब बह रही है तो उसकी चड्डी
निकालने के लिए अपने हाथ को सावित्री के कमर के पास चड्डी के अंदर उंगली
डाल कर निकालने के लिए सरकाना सुरू करने वाले थे कि सावित्री समझ गयी कि अब
चड्डी निकालना है तो चड्डी काफ़ी कसी होने के नाते वह खुद ही निकालने के
लिए उनकी गोद से ज्योन्हि उठना चाही पंडित जी ने उसका कमर पकड़ कर वापस गोद
मे बैठा लिए और धीरे से बोले "रूको आज मैं तुम्हारी चड्डी निकालूँगा,,,
थोड़ा मेरे से अपनी कसी हुई चड्डी निकलवाने का तो मज़ा लेलो." सावित्री
पंडित जी के गोद मे बैठने के बाद यह सोचने लगी कि कहीं आज चड्डी फट ना जाए.
फिर पंडित जी चड्डी के किनारे मे अपनी उंगली फँसा कर धीरे धीरे कमर के
नीचे सरकाने लगे. चड्डी काफ़ी कसी होने के वजह से थोड़ी थोड़ी सरक रही थी.
सावित्री काफ़ी मदद कर रही थी कि उसकी चड्डी आराम से निकल जाए. फिर
सावित्री ने अपने चूतादो को हल्के सा गोद से उपर कर हवा मे उठाई लेकिन
पंडित जी चूतड़ की चौड़ाई और चड्डी का कसाव देख कर समझ गये कि ऐसे चड्डी
निकल नही पाएगी. क्योंकि कमर का हिस्सा तो कुछ पतला था लेकिन नीचे चूतड़
काफ़ी चौड़ा था. फिर उन्होने सावित्री को अपने गोद मे से उठकर खड़ा होने के
लिए कहा "चल खड़ी हो जा तब निकालूँगा चड्डी .....तेरा चूतड़ का हिस्सा
बड़ा चौड़ा है रे .....लगता है किसी हथिनी का चूतड़ है..." इतना सुनते ही
सावित्री उठकर खड़ी हो गयी और फिर पंडित जी उसकी चड्डी निकालने की कोशिस
करने लगे. चड्डी कोशिस के बावजूद बस थोड़ी थोड़ी किसी तरह सरक रही थी.
पंडित जी धोती और ढीले लंगोट मे चटाई पर बैठे ही चड्डी निकाल रहे थे.
सावित्री का चौड़ा चूतड़ पंडित जी के मुँह के ठीक सामने ही था. जिस पर
चड्डी आ कर फँस गयी थी. जब पंडित जी चड्डी को नीचे की ओर सरकाते तब आगे
यानी सावित्री के झांट और बुर के तरफ की चड्डी तो सरक जाती थी लेकिन जब
पिछला यानी सावित्री के चूतदों वाले हिस्से की चड्डी नीचे सरकाते तब चूतदों
का निचला हिस्सा काफ़ी गोल और मांसल होकर बाहर निकले होने से चड्डी जैसे
जैसे नीचे आती वैसे वैसे चूतड़ के उभार पर कस कर टाइट होती जा रही थी.
आख़िर किसी तरह चड्डी नीचे की ओर आती गयी और ज्योन्हि चूतदों के मसल उभार
के थोड़ा सा नीचे की ओर हुई कि तुरंत "फटत्त" की आवाज़ के साथ चड्डी दोनो
बड़े उभारों से नीचे उतर कर जाँघ मे फँस गयी. चड्डी के नीचे होते ही
सावित्री के काले और काफ़ी बड़े दोनो चूतदों के गोलाइयाँ अपने पूरे आकार मे
आज़ाद हो कर हिलने लगे. मानो चड्डी ने इन दोनो चूतदों के गोलाईओं को कस कर
बाँध रखा था. चूतदों के दोनो गोल गोल और मांसल हिस्से को पंडित जी काफ़ी
ध्यान से देख रहे थे. सावित्री तो साँवले रंग की थी लेकिन उसके दोनो चूतड़
कुछ काले रंग की थी.
चूतड़ काफ़ी कसे हुए थे.
चड्डी के नीचे सरकते ही सावित्री को राहत हुई कि अब चड्डी फटने के डर ख़त्म
हो गया था. फिर पंडित जी सावित्री के जांघों से चड्डी नीचे की ओर सरकाते
हुए आख़िर दोनो पैरों से निकाल लिए. निकालने के बाद चड्डी के बुर के सामने
वाले हिस्से को जो की कुछ भीग गया था उसे अपनी नाक के पास ले जा कर उसका
गंध नाक से खींचे और उसकी मस्तानी बुर की गंध का आनंद लेने लगे. चड्डी को
एक दो बार कस कर सूंघने के बाद उसे फर्श पर पड़े सावित्री के कपड़ों के उपर
फेंक दिए. अब सावित्री एकदम नंगी होकर पंडित जी के सामने अपना चूतड़ कर के
खड़ी थी. फिर अगले पल पंडित जी चटाई पर उठकर खड़े हुए और अपनी धोती और
लंगोट दोनो निकाल कर चौकी पर रख दिए. उनका लंड अब एकदम से खड़ा हो चुका था.
पंडित जी फिर चटाई पर बैठ गये और सावित्री जो सामने अपने चूतड़ को पंडित
जी की ओर खड़ी थी, फिर से गोद मे बैठने के बारे मे सोच रही थी कि पंडित जी
ने उसे गोद के बजाय अपने बगल मे बैठा लिए. सावित्री चटाई पर पंडित जी के
बगल मे बैठ कर अपनी नज़रों को झुकाए हुए थी. फिर पंडित जी ने सावित्री के
एक हाथ को अपने हाथ से पकड़ कर खड़े तननाए लंड से सटाते हुए पकड़ने के लिए
कहे. सावित्री पिच्छले दिन भी लंड को पकड़ चुकी थी. सावित्री ने पंडित के
लंड को काफ़ी हल्के हाथ से पकड़ी क्योंकि उसे लाज़ लग रही थी. पंडित जी का
लंड एकदम गरम और कड़ा था. सुपादे पर चमड़ी चड़ी हुई थी. लंड का रंग गोरा था
और लंड के अगाल बगल काफ़ी झांटें उगी हुई थी. पंडित जी ने देखा की
सावित्री लंड को काफ़ी हल्के तरीके से पकड़ी है और कुछ लज़ा रही है तब धीरे
से बोले "अरे कस के पकड़ .. ये कोई साँप थोड़ी है कि तुम्हे काट लेगा....
थोड़ा सुपादे की चॅम्डी को आगे पीछे कर....अब तुम्हारी उमर हो गयी है ये सब
करने की... थोड़ा मन लगा के लंड का मज़ा लूट" आगे बोले "पहले इस सूपदे के
उपर वाली चॅम्डी को पीछे की ओर सरका और थोड़ा सुपादे पर नाक लगा के सुपादे
की गंध सूंघ ...." सावित्री ये सब सुन कर भी चुपचाप वैसे ही बगल मे बैठी
हुई लंड को एक हाथ से पकड़ी हुई थी और कुछ पल बाद कुछ सोचने के बाद सुपादे
के उपर वाली चमड़ी को अपने हाथ से हल्का सा पीछे की ओर खींच कर सरकाना चाही
और अपनी नज़रे उस लंड और सूपदे के उपर वाली चमड़ी पर गढ़ा दी थी. बहुत
ध्यान से देख रही थी कि लंड एक दम साँप की तरह चमक रहा था और सुपादे के उपर
वाली चमड़ी सावित्री के हाथ की उंगलिओ से पीछे की ओर खींचाव पा कर कुछ
पीछे की ओर सर्की और सुपादे के पिछले हिस्से पर से ज्योन्हि पीछे हुई की
सुपादे के इस काफ़ी चौड़े हिस्से से तुरंत नीचे उतर कर सुपादे की चमड़ी लंड
वाले हिस्से मे आ गयी और पंडित जी के लंड का पूरा सुपाड़ा बाहर आ गया जैसे
कोई फूल खिल गया हो और चमकने लगा. ज्योन्हि सुपाड़ा बाहर आया कि पंडित जी
सावित्री से बोले "देख इसे सूपड़ा कहते हैं और औरत की बुर मे सबसे आगे यही
घुसता है, अब अपनी नाक लगा कर सूँघो और देखा कैसी महक है इसकी" "इसकी गंध
सूँघोगी तो तुम्हारी मस्ती और बढ़ेगी चल सूंघ इसे" सावित्री ने काफ़ी ध्यान
से सुपादे को देखा लेकिन उसके पास इतनी हिम्मत नही थी कि वह सुपादे के पास
अपनी नाक ले जाय. तब पंडित जी ने सावित्री के सिर के पीछे अपना हाथ लगा कर
उसके नाक को अपने लंड के सुपादे के काफ़ी पास ला दिया लेकिन सावित्री उसे
सूंघ नही रही थी. पंडित जी ने कुछ देर तक उसके नाक को सुपादे से लगभग सटाये
रखा तब सावित्री ने जब साँस ली तब एक मस्तानी गंध जो की सुपादे की थी,
उसके नाक मे घुसने लगी और सावित्री कुछ मस्त हो गयी. फिर वह खुद ही सुपादे
की गंध सूंघने लगी. और ऐसा देख कर पंडित जी ने अपना हाथ सावित्री के सिर से
हटा लिया और उसे खुद ही सुपाड़ा सूंघने दिया और वह कुछ देर तक सूंघ कर
मस्त हो गयी. फिर पंडित जी ने उससे कहा "अब सुपादे की चमड़ी को फिर आगे की
ओर लेजा कर सुपादे पर चढ़ा दो" यह सुन कर सावित्री ने अपने हाथ से सुपादे
के चमड़ी को सुपादे के उपर चढ़ाने के लिए आगे की ओर खींची और कुछ ज़ोर
लगाने पर चमड़ी सुपादे के उपर चढ़ गयी और सुपादे को पूरी तरीके से ढक दी
मानो कोई नाप का कपड़ा हो जो सुपादे ने पहन लिया हो.
पंडित
जी ने देखा की सावित्री लंड को काफ़ी ध्यान से अपने हाथ मे लिए हुए देख
रही थी. और उन्होने ने उसे दिखाने के लिए थोड़ी देर तक वैसे ही पड़े रहे और
उसके साँवले हाथ मे पकड़ा गया गोरा लंड अब झटके भी ले रहा था. फिर बोले
"चमड़ी को फिर पीछे और आगे कर के मेरे लंड की मस्ती बढ़ा कि बस ऐसे ही बैठी
रहेगी...अब तू सयानी हो गयी है और तेरी मा तेरी शादी भी जल्दी करेगी ....
तो लंड से कैसे खेला जाता है कब सीखेगी.... और मायके से जब ये सब सिख कर
ससुराल जाएगी तब समझ ले कि अपने ससुराल मे बढ़े मज़े लूटेगी और तुम्हे तो
भगवान ने इतनी गदराई जवानी और शरीर दिया है कि तेरे ससुराल मे तेरे देवर और
ससुर का तो भाग्य ही खूल जाएगा." "बस तू ये सब सीख ले की किसी मर्द से ये
गंदा काम कैसे करवाया जाता है और शेष तो भगवान तेरे पर बहुत मेरहबान है..."
पंडित जी बोले और मुस्कुरा उठे. सावित्री ये सब सुन कर कुछ लज़ा गयी लेकिन
पंडित जी के मुँह से शादी और अपने ससुराल की बात सुनकर काफ़ी गर्व महसूस
की और थोड़ी देर के लिए अपनी नज़रें लंड पर से हटा कर लाज़ के मारे नीचे
झुका ली लेकिन अपने एक हाथ से लंड को वैसे ही पकड़े रही. पंडित जी ने देखा
की सावित्री भी अन्य लड़कियो की तरह शादी के नाम पर काफ़ी खुश हो गयी और
कुछ लज़ा भी रही थी. तभी सावित्री के नंगे काले काले मासल चूतदों पर हाथ
फेरते वो आगे धीरे से बोले "अपनी शादी मे मुझे बुलाओगी की नही" ग़रीब
सावित्री ने जब पंडित जी के मुँह से ऐसी बात सुनी तो उसे खुशी का ठिकाना ही
नही रहा और नज़ारे झुकाए ही हल्की सी मुस्कुरा उठी लेकिन लाज़ के मारे कुछ
बोल नही पाई और शादी के सपने मन मे आने लगे तभी पंडित जी ने फिर बोला
"बोलो ..बुलाओगी की नही..." इस पर सावित्री काफ़ी धीरे से बोली "जी
बुलाउन्गि" और एकदम से सनसना गयी. क्योंकि पंडित जी का लंड उसके हाथ मे भी
था और वह एकदम से नंगी पंडित जी के बगल मे बैठी थी और उसके चूतदों पर पंडित
जी का हाथ मज़ा लूट रहा था. ऐसे मे शादी की बात उठने पर उसके मन मे उसके
होने वाले पति, देवर, ससुर, ननद, सास और ससुराल यानी ये सब बातों के सपने
उभर गये इस वजह से सावित्री लज़ा और सनसना गयी थी. पंडित जी की इन बातों से
सावित्री बहुत खुश हो गयी थी. किसी अन्य लड़की की तरह उसके मन मे शादी और
ससुराल के सपने तो पहले से ही थे लेकिन पंडित जी जैसे बड़ा आदमी ग़रीब
सावित्री के शादी मे आएगा उसके लिए यह एक नयी और गर्व वाली बात थी. शायद यह
भी उसके सपनों मे जुड़ गया. इस वजह से अब उसका आत्म विश्वाह भी बढ़ गया और
लंड को थामे थामे ही वह शादी के सपने मे डूबने लगी तभी पंडित जी ने कहा
"तेरी मा बुलाए या नही तू मुझे ज़रूर बुलाना मैं ज़रूर आउन्गा ...चलो लंड
के चमड़ी को अब आगे पीछे करो और लंड से खेलना सीख लो...." कुछ पल के लिए
शादी के ख्वाबों मे डूबी सावित्री वापस लंड पर अपनी नज़रे दौड़ाई और सुपादे
की चमड़ी को फिर पीछे की ओर खींची और पहले की तरह सुपाड़ा से चमड़ी हटते
ही खड़े लंड का चौड़ा सुपाड़ा एक दम बाहर आ गया. सावित्री की नज़रे लाल
सूपदे पर पड़ी तो मस्त होने लगी. लेकिन उसके मन मे यह बात बार बार उठ रही
थी कि क्या पंडित जी उसकी शादी मे आएँगे, वह इतनी ग़रीब है तो उसके शादी मे
कैसे आएँगे? यदि आएँगे तो कितनी इज़्ज़त की बात होगी उसके लिए.. यही सोच
रही थी और सुपादे की चमड़ी को आगे पीछे करना सुरू कर दी और सोचते सोचते
आख़िर हिम्मत कर के पूछ ही लिए "सच मे आएँगे" और पंडित जी के जबाव मिलने से
पहले अपनी नज़रें लंड पर से हटा कर नीचे झुका ली लेकिन लंड पर सावित्री का
हाथ वैसे ही धीरे धीरे चल रहा था और खड़े लंड की चमड़ी सुपादे पर कभी
चढ़ती तो कभी उतरती थी. इतना सुन कर पंडित जी ने अपने एक हाथ से उसके चूतड़
और दूसरे हाथ मे एक चुचि को ले कर दोनो को एक साथ कस कर मसल्ते हुए बोले
"क्यो नही आउन्गा ....ज़रूर ऑंगा तेरी शादी मे...." फिर पंडित जी के दोनो
हाथों से चूतड़ और चुचि को कस कर मीज़ना सुरू किए और आगे बोले "मैं तेरे
मर्द से भी मिल कर कह दूँगा कि तुम्हे ससुराल मे कोई तकलीफ़ नही होनी
चाहिए....आज का जमाना बहुत खराब हो गया है साले दहेज और पैसे के लालच मे
शादी के बाद लड़की को जला कर मार डालते हैं और तेरी मा बेचारी बिध्वा है
क्या कर सकती है यदि तेरे साथ कुछ गड़बड़ हो गया तो"" सावित्री के चुचिओ और
चूतदों पर पंडित जी के हाथ कहर बरपा रहे थे इस वजह से उसके हाथ मे लंड तो
ज़रूर था लेकिन वह तेज़ी से सुपादे की चमड़ी को आगे पीछे नही कर पा रही थी.
वह
यह सब सुन रही थी लेकिन अब उसकी आँखे कुछ दबदबाने जैसी लग रही थी. पंडित
जी के सॉफ आश्वासन से कि वह उसकी शादी मे आएँगे, वह खुश हो गयी लेकिन उनकी
दूसरी बात जो दहेज और ससुराल मे किसी आतायाचार से था, कुछ डर सी गयी. लेकिन
पंडित जी की इस बात की वह उसके मर्द और ससुराल वालों को यह इशारा कर देंगे
की उसके साथ ऐसा कुछ नही होना चाहिए, सावित्री को संतुष्टि मिल गयी थी. अब
चूतदों और चुचिओ के मीसाव से मस्त होती जा रही थी. फिर पंडित जी बोले "और
मेरे ही लंड से तुम एक लड़की से औरत बनी हो.. तो मेरे ही सामने शादी के
मंडप तुम किसी की पत्नी बनोगी तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा क्योंकि मैं ये तो
देख लूँगा के मैने जिसकी सील तोड़ी उसकी सुहागरात किसके साथ मनेगि......सही
बात है कि नही"" इतना कह कर पंडित जी मुस्कुरा उठे और आगे बोले "लंड तो
देख लिया, सूंघ लिया और अब इसे चाटना और चूसना रह गया है इसे भी सीख
लो...चलो इस सुपादे को थोड़ा अपने जीभ से चॅटो..." "आज तुम्हे इतमीनान से
सब कुछ सीखा दूँगा ताकि ससुराल मे तुम एक गुणवती की तरह जाओ और अपने गुनो
से सबको संतुष्ट कर दो. " फिर आगे बोले " चलो जीभ निकाल कर इस सुपादे पर
फिराओ..."
सावित्री अगले पल अपने जीभ को सुपादे
पर फिराने लगी. सुपादे के स्पर्श से ही सावित्री की जीभ और मन दोनो मस्त हो
उठे. सावित्री की जीभ का थूक सुपादे पर लगने लगा और सुपाड़ा गीला होने
लगा, सावित्री के नज़रें सुपादे की बनावट और लालपन पर टिकी थी. सावित्री
अपने साँवले हाथों मे पंडित जी के खड़े और गोरे लंड को कस के पकड़ कर अपने
जीभ से धीरे धीरे चाट रही थी. पंडित जी सावित्री के चेहरे को देख रहे थे और
लंड चूसने के तरीके से काफ़ी खुश थे. सावित्री के चेहरे पर एक रज़ामंदी और
खुशी का भाव सॉफ दीख रहा था. पंडित जी की नज़रें चेहरे पर से हट कर
सावित्री के साँवले और नंगे शरीर पर फिसलने लगी. पंडित जी अपना एक हाथ आगे
बढ़ाकर उसकी काली रंग के बड़े बड़े दोनो चूतदों पर फिरने लगे और चूतदों पर
के मांसल गोलाईओं के उठान को पकड़ कर भींचना सुरू कर दिए. ऐसा लग रहा था कि
पंडित जी के हाथ सावित्री के चूतदों पर के माँस के ज़यादा होने का जयजा ले
रहे हों. जिसका कसाव भी बहुत था. और उनके गोरे हाथ के आगे सावित्री के
चूतड़ काफ़ी काले लग रहे थे. सावित्री बगल मे बैठी हुई पंडित जी के लंड और
सुपादे पर जीभ फिरा रही थी. पंडित जी से अपने चूतदों को मसलवाना बहुत अछा
लग रहा था. तभी पंडित जी बोले "कब तक बस चाटती रहेगी.............अब अपना
मुँह खोल कर ऐसे चौड़ा करो जैसे औरतें मेला या बेज़ार मे ठेले के पास खड़ी
होकर गोलगापा को मुँह चौड़ा कर के खाती हैं....समझी" सावित्री यह सुन कर
सोच मे पड़ गयी और अपने जीवन मे कभी भी लंड को मुँह मे नही ली थी इस लिए
उसे काफ़ी अजीब लग रहा था. वैसे तो अब गरम हो चुकी थी लेकिन मर्द के पेशाब
करने के चीज़ यानी लंड को अपने मुँह के अंदर कैसे डाले यही सोच रही थी. वह
जीभ फिराना बंद कर के लंड को देख रही थी फिर लंड को एक हाथ से थामे ही
पंडित जी की ओर कुछ बेचैन से होते हुए देखी तो पंडित जी ने पूछा "कभी
गोलगापा खाई हो की नही?" इस पर सावित्री कुछ डरे और बेचैन भाव से हाँ मे
सिर हल्का सा हिलाया तो पंडित जी बोले "गोलगप्पा जब खाती हो तो कैसे मुँह
को चौड़ा करती हो ..वैसे चौड़ा करो ज़रा मैं देखूं..." पंडित जी के ऐसी बात
पर सावित्री एक दम लज़ा गयी क्योंकि गोलगप्पा खाते समय मुँह को बहुत
ज़्यादा ही चौड़ा करना पड़ता हैं और तभी गोलगापा मुँह के अंदर जाता है. वह
अपने मुँह को वैसे चौड़ा नही करना चाहती थी लेकिन पंडित जी उसके मुँह के
तरफ ही देख रहे थे. सावित्री समझ गयी की अब चौड़ा करना ही पड़ेगा. और अपनी
नज़रें पंडित जी के आँख से दूसरी ओर करते हुए अपने मुँह को धीरे धीरे चौड़ा
करने लगी और अपंदिट जी उसके मुँह को चौड़ा होते हुए देख रहे थे. जब
सावित्री अपने मुँह को कुछ चौड़ा करके रुक गयी और मुँह के अंदर सब कुछ सॉफ
दिखने लगा. तभी पंडित जी बोले "थोड़ा और चौड़ा करो और अपने जीभ को बाहर
निकाल कर लटका कर आँखें बंद कर लो."
इतना सुन कर
सावित्री जिसे ऐसा करने मे काफ़ी लाज़ लग रही थी उसने सबसे पहले अपनी आँखें
ही बंद कर ली फिर मुँह को और चौड़ा किया और जीभ को बाहर कर ली जिससे उसके
मुँह मे एक बड़ा सा रास्ता तैयार हो गया. पंडित जी नेएक नज़र से उसके मुँह
के अंदर देखा तो सावित्री के गले की कंठ एक दम सॉफ दीख रही थी. मुँह के
अंदर जीभ, दाँत और मंसुड़ों मे थूक फैला भी सॉफ दीख रहा था. "मुँह ऐसे ही
चौड़ा रखना समझी.....बंद मत करना....अब तुम्हारे मुँह के अंदर की लाज़ मैं
अपने लंड से ख़त्म कर दूँगा और तुम भी एक बेशर्म औरत की तरह गंदी बात अपने
मुँह से निकाल सकती हो.....यानी एक मुँहफट बन जाओगी.., और बिना मुँह मे लंड
लिए कोई औरत यदि गंदी बात बोलती है तो उसे पाप पड़ता है... गंदी बात बोलने
या मुँहफट होने के लिए कम से कम एक बार लंड को मुँह मे लेना ज़रूरी होता
है " अगले पल पंडित जी ने बगल मे बैठी हुई सावित्री के सर पर एक हाथ रखा और
दूसरे हाथ से अपने लंड को सावित्री के हाथ से ले कर लंड के उपर सावित्री
का चौड़ा किया हुआ मुँह लाया और खड़े और तननाए लंड को सावित्री के चौड़े
किए हुए मुँह के ठीक बीचोबीच निशाना लगाते हुए मुँह के अंदर तेज़ी से थेल
दिए और सावित्री के सिर को भी दूसरे हाथ से ज़ोर से दबा कर पकड़े रहे. लंड
चौड़े मुँह मे एकदम अंदर घुस गया और लंड का सुपाड़ा सावित्री के गले के कंठ
से टकरा गया और सावित्री घबरा गयी और लंड निकालने की कोशिस करने लगी लेकिन
पंडित जी उसके सिर को ज़ोर से पकड़े थे जिस वजह से वह कुछ कर नही पा रही
थी. पंडित जी अगले पल अपने कमर को उछाल कर सावित्री के गले मे लंड चाँप दिए
और सावित्री को ऐसा लगा कि उसकी साँस रुक गयी हो और मर जाएगी. इस
तड़फ़ड़ाहट मे उसके आँखों मे आँसू आ गये और लगभग रोने लगी और लंड निकालने
के लिए अपने एक हाथ से लंड को पकड़ना चाही लेकिन लंड का काफ़ी हिस्सा मुँह
के अंदर घुस कर फँस गया था और उसके हाथ मे लंड की जड़ और झांते और दोनो गोल
गोल अंदू ही आए और सावित्री के नाक तो मानो पंडित जी के झांट मे दब गयी
थी. सावित्री की कोसिस बेकार हो जा रही थी क्योंकि पंडित जी सावित्री के सर
के बॉल पकड़ कर उसे अपने लंड पर दबाए थे और अपनी कमर को उछाल कर लंड मुँह
मे चॅंप दे रहे थे.
दूसरे पल पंडित जी सावित्री
के सिर पर के हाथ को हटा लिए और सावित्री तुरंत अपने मुँह के अंदर से लंड
को निकाल कर खांसने लगी और अपने दोनो हाथों से आँखों मे आए आँसुओं को
पोंछने लगी. इधेर लंड मुँह के अंदर से निकालते लहराने लगा. लंड सावित्री के
थूक और लार से पूरी तरह नहा चुका था. पंडित जी खाँसते हुए सावित्री से
बोले "चलो तुम्हारे गले के कंठ को अपने सुपादे से चोद दिया हूँ अब तुम किसी
भी असलील और गंदे शब्दों का उच्चारण कर सकती हो और एक बढ़िया मुहफट बन
सकती हो. मुहफट औरतें बहुत मज़ा लेती हैं.." आगे बोले "औरतों को जीवन मे कम
से कम एक बार मर्द के लंड से अपने गले की कंठ को ज़रूर चुदवाना
चाहिए....इसमे थोडा ज़ोर लगाना पड़ता है ...ताकि लंड का सुपाड़ा गले के कंठ
को छ्छू सके और कंठ मे असलीलता और बेशर्मी का समावेश हो जाए. " सावित्री
अभी भी खांस रही थी और पंडित जी की बातें चुपचाप सुन रही थी. सावित्री के
गले मे लंड के ठोकर से कुछ दर्द हो रहा था. फिर सावित्री की नज़रें पंडित
जी के तननाए लंड पर पड़ी जो की थूक और लार से पूरा भीग चुका था. फिर पंडित
जी ने सावित्री से बोला "मैने जो अभी तेरे साथ किया है इसे कंठ चोदना कहते
हैं..और जिस औरत की एक बार कंठ चोद दी जाती है वह एक काफ़ी रंगीन और बेशरम
बात करने वाली हो जाती है. ऐसी औरतों को मर्द बहुत चाहतें हैं ..ऐसी औरतें
गंदी और अश्लील कहानियाँ भी खूब कहती हैं जिसे मर्द काफ़ी चाव से सुनते
हैं..वैसे कंठ की चुदाई जवानी मे ही हो जानी चाहिए. गाओं मे कंठ की चुदाई
बहुत कम औरतों की हो पाती है क्योंकि बहुत लोग तो यह जानते ही नही हैं.
समझी ...अब तू मज़ा कर पूरी जिंदगी ... " पंडित जी मुस्कुरा उठे. सावित्री
के मन मे डर था कि फिर से कहीं लंड को गले मे ठूंस ना दें इस वजह से वह
लॅंड के तरफ तो देख रही थी लेकिन चुपचाप बैठी थी. तभी पंडित जी बोले "चलो
मुँह फिर चौड़ा करो ..घबराव मत इस बार केवल आधा ही लंड मुँह मे
पेलुँगा...अब दर्द नही होगा...मुँह मे लंड को आगे पीछे कर के तुम्हारा मुँह
चोदुन्गा जिसे मुँह मारना कहतें हैं..यह भी ज़रूरी है तुम्हारे लिए इससे
तुम्हारी आवाज़ काफ़ी सुरीली होगी..चलो मुँह खोलो " सावित्री ने फिर अपना
मुँह खोला लेकिन इस बार सजग थी की लंड कहीं फिर काफ़ी अंदर तक ना घूस जाए.
पंडित जी ने सावित्री के ख़ूले मुँह मे लंड बड़ी आसानी से घुसाया और लंड
कुछ अंदर घुसने के बाद उसे आगे पीछे करने के लिए कमर को बैठे ही बैठे
हिलाने लगे और सावित्री के सिर को एक हाथ से पकड़ कर उपर नीचे करने लगे.
उनका गोरे रंग का मोटा और तननाया हुआ लंड सावित्री के मुँह मे घूस कर आगे
पीछे होने लगा. सावित्री के जीभ और मुँह के अंदर तालू से लंड का सुपाड़ा
रगड़ाने लगा वहीं सावित्री के मुँह के दोनो होंठ लंड की चमड़ी पर कस उठी थी
मानो मुँह के होंठ नही बल्कि बुर की होंठ हों. पंडित जी एक संतुलन बनाते
हुए एक लय मे मुँह को चोदने लगे. आगे बोले "ऐसे ही रहना इधेर उधेर मत
होना...बहुत अच्छे तरीके से तेरा मुँह मार रहा हूँ...साबाश..." इसके साथ ही
उनके कमर का हिलना और सावित्री के मुँह मे लंड का आना जाना काफ़ी तेज होने
लगा. सावित्री को भी ऐसा करवाना बहुत अछा लग रहा था. उसकी बुर मे लिसलिसा
सा पानी आने लगा. सावित्री अपने मुँह के होंठो को पंडित जी के पिस्टन की
तरह आगे पीछे चल रहे लंड पर कस ली और मज़ा लेने लगी. अब पूरा का पूरा लंड
और सुपाड़ा मुँह के अंदर आ जा रहा था.
कुछ देर तक
पंडित जी ने सावित्री की मुँह को ऐसे ही चोदते रहे और सावित्री के बुर मे
चुनचुनी उठने लगी. वह लाज के मारे कैसे कहे की बुर अब तेज़ी से चुनचुना रही
है मानो चीटिया रेंग रही हों. अभी भी लंड किसी पिस्टन की तरह सावित्री के
मुँह मे घूस कर आगे पीछे हो रहा था. लेकिन बुर की चुनचुनाहट ज़्यादे हो गयी
और सावित्री के समझ मे नही आ रहा था कि पंडित जी के सामने ही कैसे अपनी
चुनचुना रही बुर को खुज़लाए. इधेर मुँह मे लंड वैसे ही आ जा रहा था और बुर
की चुनचुनाहट बढ़ती जा रही थी. आख़िर सावित्री का धीरज टूटने लगा उसे लगा
की अब बुर की चुनचुनाहट मिटाने के लिए हाथ लगाना ही पड़ेगा. और अगले पल
ज्योन्हि अपने एक हाथ को बुर के तरफ ले जाने लगी और पंडित जी की नज़र उस
हाथ पर पड़ी और कमरे मे एक आवाज़ गूँजी "रूको.....बुर पर हाथ मत
लगाना...लंड मुँह से निकाल और चटाई पर लेट जा" और सावित्री का हाथ तो वहीं
रुक गया लेकिन बुर की चुनचुनाहट नही रुकी और बढ़ती गयी. पंडित जी का आदेश
पा कर सावित्री ने मुँह से लंड निकाल कर तुरंत चटाई पर लेट गयी और बर की
चुनचुनाहट कैसे ख़त्म होगी यही सोचने लगी और एक तरह से तड़पने लगी. लेकिन
पंडित जी लपक कर सावित्री के दोनो जांघों के बीच ज्योहीं आए की सावित्री ने
अपने दोनो मोटी और लगभग काली जांघों को चौड़ा कर दी और दूसरे पल पंडित जी
ने अपने हाथ के बीच वाली उंगली को बुर के ठीक बीचोबीच भीदाते हुए लिसलिशसाई
बुर मे गाच्छ.. की आवाज़ के साथ पेल दिया और पंडित जी का गोरे रंग की बीच
वाली लंबी उंगली जो मोटी भी थी सावित्री के एकदम से काले और पवरोती के तरह
झांतों से भरी बुर मे आधा से अधिक घूस कर फँस सा गया और सावित्री लगभग चीख
पड़ी और अपने बदन को मरोड़ने लगी. पंडित जी अपनी उंगली को थोड़ा सा बाहर
करके फिर बुर मे चॅंप दिए और अब गोरे रंग की उंगली काली रंग की बुर मे पूरी
की पूरी घूस गयी. पंडित जी ने सावित्री की काली बुर मे फँसी हुई उंगली को
देखा और महसूस किया कि पवरोती की तरह फूली हुई बुर जो काफ़ी लिसलिसा चुकी
थी , अंदर काफ़ी गर्म थी और बुर के दोनो काले काले होंठ भी फड़फड़ा रहे थे.
चटाई मे लेटी सावित्री की साँसे काफ़ी तेज थी और वह हाँफ रही थी साथ साथ
शरीर को मरोड़ रही थी. पंडित जी चटाई मे सावित्री के दोनो जांघों के बीच मे
बैठे बैठे अपनी उंगली को बुर मे फँसा कर उसकी काली रंग की फूली हुई बुर की
सुंदरता को निहार रहे थे कि चटाई मे लेटी और हाँफ रही सावित्री ने एक हाथ
से पंडित जी के बुर मे फँसे हुए उंगली वाले हाथ को पकड़ ली. पंडित जी की
नज़र सावित्री के चेहरे की ओर गयी तो देखे कि वह अपनी आँखें बंद करके मुँह
दूसरे ओर की है एर हाँफ और कांप सी रही थी. तभी सावित्री के इस हाथ ने
पंडित जी के हाथ को बुर मे उंगली आगे पीछे करने के लिए इशारा किए.
सावित्री
का यह कदम एक बेशर्मी से भरा था. वह अब लाज़ और शर्म से बाहर आ गयी थी.
पंडित जी समझ गये की बुर काफ़ी चुनचुना रही है. इसी लिए वह एकदम बेशर्म हो
गयी है. और इतने देखते ही पंडित जी ने अपनी उंगली को काली बुर मे कस कस कर
आगे पीछे करने लगे. सावित्री ने कुछ पल के लिए अपने हाथ पंडित जी के हाथ से
हटा ली. पंडित जी सावित्री की बुर अब अपने हाथ के बीच वाली उंगली से कस कस
कर चोद रहे थे. अब सावित्री अपने जाँघो को काफ़ी चौड़ा कर दी. सावित्री की
जंघें तो साँवली थी लेकिन जाँघ के बुर के पास वाला हिस्सा काला होता गया
था और जाँघ के कटाव जहाँ से बुर की झांटें शुरू हुई थी, वह काला था और बुर
की दोनो फांके तो एकदम से ही काली थी जिसमे पंडित जी का गोरे रंग की उंगली
गच्छ गच्छ ..जा रही थी. जब उंगली काले बुर मे घूस जाती तब केवल हाथ ही
दिखाई पड़ता और जब उंगली बाहर आती तब बुर के काले होंठो के बीच मे कुछ
गुलाबी रंग भी दीख जाती थी. पंडित जी काली और फूली हुई झांतों से भरी बुर
पर नज़रें गढ़ाए अपनी उंगली को चोद रहे थे कि सावित्री ने फिर अपने एक हाथ
से पंडित जी के हाथ को पकड़ी और बुर मे तेज़ी से खूद ही चोदने के लिए जोरे
लगाने लगी.
सावित्री की यह हरकत काफ़ी गंदी और
अश्लील थी लेकिन पंडित जी समझ गये कि अब सावित्री झदने वाली है और उसका हाथ
पंडित जी के हाथ को पकड़ कर तेज़ी से बुर मे चोदने की कोशिस करने लगी
जिसको देखते पंडित जी अपने उंगली को सावित्री की काली बुर मे बहुत ही तेज़ी
से चोदना शुरू कर दिया. सावित्री पंडित जी के हाथ को बड़ी ताक़त से बुर के
अंदर थेल रही थी लेकिन केवल बीच वाली उंगली ही बुर मे घूस रही थी. अचानक
सावित्री तेज़ी से सिस्कार्ते हुए अपने पीठ को चटाई मे एक धनुष की तरह तान
दी और कमर का हिस्सा झटके लेने लगा ही था की सावित्री चीख पड़ी "आररीए माई
री माईए सी उउउ री माएई रे बाप रे ...आअहह " और पंडित जी के उंगली को बुर
मानो कस ली और गर्म गर्म रज बुर मे अंदर निकलने लगा और पंडित जी की उंगली
भींग गयी. फिर पंडित जी के हाथ पर से सावित्री ने अपने हाथ हटा लिए और चटाई
मे सीधी लेट कर आँखे बंद कर के हाँफने लगी. पंडित जी ने देखा की सावित्री
अब झाड़ कर शांत हो रही है. फिर काली बुर मे से अपने उंगली को बाहर निकाले
जिसपर सफेद रंग का कमरस यानी रज लगा था और बीच वाली उंगली के साथ साथ बगल
वाली उंगलियाँ भी बुर के लिसलिसा पानी से भीग गये थे. पंडित जी की नज़र जब
सावित्री की बुर पर पड़ी तो देखा की बुर की दोनो होंठ कुछ कांप से रहे थे.
और बुर का मुँह, अगाल बगल के झांट भी लिसलिस्से पानी से भीग गये थे. तभी
बीच वाली उंगली के उपर लगे कमरस को पंडित जी अपने मुँह मे ले कर चाटने लगे
और सावित्री की आँखें बंद थी लेकिन उसके कान मे जब उंगली चाटने की आआवाज़
आई तो समझ गयी की पंडित जी फिर बुर वाली उंगली को चाट रहे होंगे. और यही
सोच कर काफ़ी ताक़त लगाकर अपनी आँखे खोली तो देखी की पंडित जी अपनी बीच
वाली उंगली के साथ साथ अगल बगल की उंगलिओ को भी बड़े चाव से चाट रहे थे.
उंगलिओ को चाटने के बाद सावित्री ने देखा की पंडित जी बीच वाली उंगली को
सूंघ भी रहे थे. फिर सावित्री के बुर के तरफ देखे और उंगली चुदाई का रस और
बुर के अंदर से निकला रज कुछ बुर के मुँह पर भी लगा था. सावित्री अपने दोनो
मोटी मोटी साँवले रंग के जांघों को जो को फैली हुई थी , आपस मे सटना चाहती
थी लेकिन पंडित जी उसकी बुर को काफ़ी ध्यान से देख रहे थे और दोनो जांघों
के बीच मे ही बैठे थे और इन दोनो बातों को सोच कर सावित्री वैसे ही जंघें
फैलाए ही लेटी पंडित जी के चेहरे की ओर देख रही थी. झाड़ जाने के वजह से
हाँफ रही थी. तभी उसकी नज़र उसकी जांघों के बीच मे बैठे पंडित जी के लंड पर
पड़ी जो अभी भी एक दम तननाया हुआ था और उसकी छेद मे से एक पानी का लार
टपाक रहा था. अचानक पंडित जी एक हाथ से सावित्री की बुर के झांतों को जो
बहुत ही घनी थी उसे उपर की ओर फिराया और बुर पर लटकी झांटें कुछ उपर की ओर
हो गयीं और बुर का मुँह अब सॉफ दिखाई देने लगा. फिर भी बुर के काले होंठो
के बाहरी हिस्से पर भी कुछ झांट के बॉल उगे थे जिसे पंडित जी ने अपनी
उंगलिओ से दोनो तरफ फैलाया और अब बुर के मुँह पर से झांटें लगभग हट गयीं
थी. पंडित जी ऐसा करते हुए सावित्री की काली काली बुर के दोनो होंठो को
बहुत ध्यान से देख रहे थे और सावित्री चटाई मे लेटी हुई पंडित जी के मुँह
को देख रही थी और सोच रही थी की पंडित जी कितने ध्यान से उसकी बुर के हर
हिस्से को देख रहे हैं और झांट के बालों को भी काफ़ी तरीके से इधेर उधेर कर
रहे थे.
पंडित जी का काफ़ी ध्यान से बुर को
देखना सावित्री को यह महसूस करा रहा था की उसकी जांघों के बीच के बुर की
कितनी कीमत है और पंडित जी जैसे लोंगों के लिए कितना महत्व रखती है. यह सोच
कर उसे बहुत खुशी और संतुष्टि हो रही थी. सावित्री को अपने शरीर के इस
हिस्से यानी बुर की कीमत समझ आते ही मॅन आत्मविश्वास से भर उठा. पंडित जी
अभी भी उसकी बुर को वैसे ही निहार रहे थे और अपने हाथ की उंगलिओ से उसकी
बुर के दोनो फांकों को थोड़ा सा फैलाया और अंदर की गुलाबी हिस्से को देखने
लगे. सावित्री भी पंडित जी की लालची नज़रों को देख कर मन ही मन बहुत खुश हो
रही थी की उसकी बुर की कीमत कितनी ज़्यादा है और पंडित जी ऐसे देख रहे हैं
मानो किसी भगवान का दर्शन कर रहे हों. तभी अचानक पंडित जी को बुर के अंदर
गुलाबी दीवारों के बीच सफेद पानी यानी रज दिखाई दे गयी जो की सावित्री के
झड़ने के वजह से थी. पंडित जी नेअब अगले कदम जो उठाया की सावित्री को मानो
कोई सपना दिख रहा हो. सावित्री तो उछल सी गयी और उसे विश्वास ही नही हो रहा
था. क्योंकि की पंडित जी अपने मुँह सावित्री के बुर के पास लाए और नाक को
बुर के ठीक बेचोबीच लगाकर तेज़ी से सांस अंदर की ओर खींचे और अपनी आँखे बंद
कर के मस्त हो गये. बुर की गंध नाक मे घुसते ही पंडित जी के शरीर मे एक
नयी जवानी की जोश दौड़ गयी. फिर अगला कदम तो मानो सावित्री के उपर बिजली ही
गिरा दी. पंडित जी सावित्री के काले बुर के मुँह को चूम लिए और सावित्री
फिर से उछल गयी. सावित्री को यकीन नही हो रहा था की पंडित जी जैसे लोग जो
की जात पात और उँछ नीच मे विश्वास रखते हों और उसकी पेशाब वाले रास्ते यानी
बुर को सूंघ और चूम सकते हैं. वह एक दम से आश्चर्या चकित हो गयी थी. उसे
पंडित जी की ऐसी हरकत पर विश्वास नही हो रहा था. लेकिन यह सच्चाई थी.
सावित्री अपने सहेलिओं से यह सुनी थी की आदमी लोग औरतों के बुर को चूमते और
चाटते भी हैं लेकिन वह यह नही सोचती थी की पंडित जी जैसे लोग भी उसकी जैसे
छ्होटी जाती की लड़की या औरत के पेशाब वाले जगह पर अपनी मुँह को लगा सकता
हैं. सावित्री चटाई पर लेटी हुई पंडित जी के इस हरकत को देख रही थी और एकदम
से सनसना उठी थी. उसके मन मे यही सब बाते गूँज ही रही थी कि पंडित जी ने
अगला काम शुरू कर ही दिया सावित्री जो केवल पंडित जी के सिर को की देख पा
रही थी क्योंकि चटाई मे लेटे लेटे केवल सिर ही दिखाई पड़ रहा था , उसे
महसूस हुआ की पंडित जी क़ी जीभ अब बुर के फांकों पर फिर रहा था और जीभ मे
लगा थूक बुर के फांको भी लग रहा था. पंडित जी का यह कदम सावित्री को हिला
कर रख दिया. सावित्री कभी सोची नही थी की पंडित जी उसके पेशाब वाले जगह को
इतना इज़्ज़त देंगे. उसका मन बहुत खुश हो गया. उसे लगा की आज उसे जीवन का
सबसे ज़्यादा सम्मान या इज़्ज़त मिल रहा है. वह आज अपने को काफ़ी उँचा
महसूस करने लगी थी. उसके रोवे रोवे मे खुशी, आत्मविश्वास और आत्मसम्मान
भरने लगा. उसने अपने साँवले और मोटे मोटे जांघों को और फैला दी जिससे उसके
पवरोती जैसी फूली हुई बुर के काले काले दोनो होंठ और खूल गये और पंडित जी
का जीभ दोनो फांकों के साथ साथ बुर की छेद मे भी घुसने लगा. सावित्री जो
थोड़ी देर पहले ही झाड़ गयी थी फिर से गर्म होने लगी और उसे बहुत मज़ा आने
लगा. बुर पर जीभ का फिरना तेज होने लगा तो सावित्री की गर्मी भी बढ़ने लगी.
उसे जहाँ बहुत मज़ा आ रहा था वहीं उसे अपने बुर और शरीर की कीमत भी समझ मे
आने लगी जी वजह से आज उसे पंडित जी इतने इज़्ज़त दे रहे थे. जब पंडित जी
बुर पर जीभ फेरते हुए सांस छोड़ते तब सांस उनकी नाक से निकल कर सीधे झांट
के बालों मे जा कर टकराती और जब सांस खींचते तब झाँत के साथ बुर की गंध भी
नाक मे घूस जाती और पंडित जी मस्त हो जाते. फिर पंडित जी ने अपने दोनो
हाथों से काली बुर के दोनो फांकों को फैला कर अपने जीभ को बुर छेद मे
घुसाना शुरू किया तो सावित्री का पूरा बदन झंझणा उठा. वह एक बार कहर उठी.
उसे बहुत मज़ा मिल रहा था. आख़िर पंडित जी का जीभ बुर की सांकारी छेद मे
घुसने की कोशिस करने लगी और बुर के फांकों के बीच के गुलाबी हिस्से मे जीभ
घुसते ही सावित्री की बुर एक नये लहर से सनसनाने लगी. और अब जीभ बुर के
गुलाबी हिस्से मे अपने घुसने के लिए जगह बनाने लगी.
जीभ
का अगला हिस्सा हो काफ़ी नुकीला जैसा था वह बुर के अंदर के गुलाबी भाग को
अब फैलाने और भी अंदर घुसने लगा था. यह सावित्री को बहुत सॉफ महसूस हो रहा
था की पंडित जी का जीभ अब उसकी बुर मे घूस रहा है. सावित्री बहुत खुस हो
रही थी. उसने अपने बुर को कुछ और उचकाने के कोशिस ज्योन्हि की पंडित जे ने
काफ़ी ज़ोर लगाकर जीभ को बुर के बहुत अंदर घुसेड दिया जी की बुर की गुलाबी
दीवारों के बीच दब सा गया था. लेकिन जब जीभ आगे पीछे करते तब सावित्री एकदम
से मस्त हो जाती थी. उसकी मस्ती इतना बढ़ने लगी की वह सिसकारने लगी और बुर
को पंडित जी के मुँह की ओर ठेलने लगी थी. मानो अब कोई लाज़ शर्म सावित्री
के अंदर नही रह गया हो. पंडित जी समझ रहे थे की सावित्री को बहुत मज़ा आ
रहा है बुर को चटवाने मे. फिर पंडित जी ने अपने दोनो होंठो से बुर के दोनो
फांकों को बारी बारी से चूसने लगे तो सावित्री को लगा की तुरंत झाड़ जाएगी.
फिर पंडित जी दोनो काले और मोटे बुर के फांको को खूब चूसा जिसमे कभी कभी
अगल बगल की झांटें भी पंडित जी के मुँह मे आ जाती थी. दोनो फांकों को खूब
चूसने के बाद जब सावित्री के बुर के दरार के उपरी भाग मे टिंग जो की किसी
छोटे मटर के दाने की तरह था , मुँह मे लेकर चूसे तो सावित्री एकदम से उछल
पड़ी और पंडित जी के सर को पकड़ कर हटाने लगी. उसके शरीर मे मानो बिजली
दौड़ गयी. लेकिन पंडित जी ने उसके टिंग तो अपने दोनो होंठो के बीच ले कर
चूसते हुए बुर की दरार मे फिर से बीच वाली उंगली पेल दी और सावित्री चिहूंक
सी गयी और उंगली को पेलना जारी रखा. टिंग की चुसाई और उंगली के पेलाई से
सावित्री फिर से ऐंठने लगी और यह काम पंडित जी तेज़ी से करते जा रहे थे
नतीजा की सावित्री ऐसे हमले को बर्दाश्त ना कर सकी और एक काफ़ी गंदी चीख के
साथ झड़ने लगी और पंडित जी ने तुरंत उंगली को निकाल कर जीभ को फिर से बुर
के गहराई मे थेल दिए और टिंग को अपने एक हाथ की चुटकी से मसल दिया. बुर से
रज निकल कर पंडित जी के जीभ पर आ गया और काँपति हुई सावित्री के काली बुर
मे घूसी पंडित जी के जीभ बुर से निकल रहे रज को चाटने लगे और एक लंबी सांस
लेकर मस्त हो गये. सावित्री झाड़ कर फिर से हाँफ रही थी. आँखे बंद हो चुकी
थी. मन संतुष्ट हो चुका था. पंडित जी अपना मुँह बुर के पास से हटाया और एक
बार फिर बुर को देखा. वह भी आज बहुत खुस थे क्योंकि जवान और इस उम्र की
काली बुर चाटना और रज पीना बहुत ही भाग्य वाली बात थी.
सावित्री
भले ही काली थी लेकिन बुर काफ़ी मांसल और फूली हुई थी और ऐसी बुर बहुत कम
मिलती है चाटने के लिए. ऐसी लड़कियो की बुर चाटने से मर्द की यौन ताक़त
काफ़ी बढ़ती है. यही सब सोच कर फिर से बुर के फूलाव और काली फांकों को देख
रहे थे. सावित्री दो बार झाड़ चुकी थी इस लिए अब कुछ ज़्यादे ही हाँफ रही
थी. लेकिन पंडित जी जानते थे की सावित्री का भरा हुआ गदराया शरीर इतना
जल्दी थकने वाला नही है और इस तरह की गदराई और तन्दरूश्त लड़कियाँ तो एक
साथ कई मर्दों को समहाल सकती हैं. फिर सावित्री के जांघों के बीचोबीच आ गये
और अपने खड़े और तननाए लंड को बुर की मुँह पर रख दिए. लंड के सुपादे की
गर्मी पाते ही सावित्री की आँखे खूल गयी और कुछ घबरा सी गयी और पंडित जी की
ओर देखने लगी. दो बार झड़ने के बाद ही तुरंत लंड को बुर के मुँह पर
भिड़ाकर पंडित जी ने सावित्री के मन को टटोलते हुए पूछा "मज़ा लेने का मन
है ..या रहने दें...बोलो.." सावित्री जो की काफ़ी हाँफ सी रही थी और दो बार
झाड़ जाने के वजह से बहुत संतुष्ट से हो गयी थी फिर भी बुर के मुँह पर
दाहकता हुआ लंड का सुपाड़ा पा कर बहुत ही धर्म संकट मे पड़ गयी. इस खेल मे
उसे इतना मज़ा आ रहा था की उसे नही करने की हिम्मत नही हो रही थी. लेकिन
कुछ पल पहले ही झाड़ जाने की वजह से उसे लंड की ज़रूरत तुरंत तो नही थी
लेकिन चुदाई का मज़ा इतना ज़्यादे होने के वजह से उसने पंडित जी को मना
करना यानी लंड का स्वाद ना मिलने के बराबर ही था. इस कारण वह ना करने के
बजाय हा कहना चाहती थी यानी चूड़ना चाहती थी. लेकिन कुच्छ पल पहले ही झड़ने
की वजह से शरीर की गर्मी निकल गयी थी और उसे हाँ कहने मे लाज़ लग रही थी.
और वह चुदना भी चाहती थी. और देखी की पंडित जी उसी की ओर देख रहे थे शायद
जबाव के इंतजार मे. सावित्री के आँखें ज्योन्हि पंडित जी एक आँखों से टकराई
की वह लज़ा गयी और अपने दोनो हाथों से अपनी आँखें मूंद ली और सिर को एक
तरफ करके हल्का सा कुछ रज़ामंदी मे मुस्कुरई ही थी की पंडित जी ने अपने लंड
को अपने पूरे शरीर के वजन के साथ उसकी काली और कुच्छ गीली बुर मे चंपा ही
था की सावित्री का मुँह खुला "आरे बाअप रे माईए...." और अपने एक हाथ से
पंडित जी का लंड और दूसरी हाथ से उनका कमर पकड़ने के लिए झपटी लेकिन पंडित
जी के भारी शरीर का वजन जो की अपने गोरे मोटे लंड पर रख कर काली रंग की
फूली हुई पवरोती की तरह बुर मे चॅंप चुके थे और नतीज़ा की भारी वजन के वजह
से आधा लंड सावित्री की काली बुर मे घूस चुका था, अब सावित्री के बस की बात
नही थी की घूसे हुए लंड को निकाले या आगे घूसने से रोक सके. लेकिन
सावित्री का जो हाथ पंडित जी के लंड को पकड़ने की कोशिस की वह उनका आधा ही
लंड पकड़ सकी और सावित्री को लगा मानो लंड नही बल्कि कोई गरम लोहे की छड़
हो. अगले पल पंडित जी अपने शरीर के वजन जो की अपने लंड के उपर ही रख सा
दिया था , कुछ कम करते हुए लंड को थोड़ा सा बाहर खींचा तो बुर से जितना
हिस्सा बाहर आया उसपर बुर का लिसलिसा पानी लगा था. अगले पल अपने शरीर का
वजन फिर से लंड पर डालते हुए हुमच दिए और इसबार लंड और गहराई तक घूस तो गया
लेकिन सावित्री चटाई मे दर्द के मारे ऐंठने लगी.
पंडित
जी ने देखा की अब उनका गोरा और मोटा लंड झांतों से भरी काली बुर मे काफ़ी
अंदर तक घूस कर फँस गया है तब अपने दोनो हाथों को चटाई मे दर्द से ऐंठ रही
सावित्री की दोनो गोल गोल साँवले रंग की चुचिओ पर रख कर कस के पकड़ लिया और
मीज़ना शुरू कर दिया. सावित्री अपनी चुचिओ पर पंडित जी के हाथ का मीसाव पा
कर मस्त होने लगी और उसकी काली बुर मे का दर्द कम होने लेगा. सावित्री को
बहुत ही मज़ा मिलने लगा. वैसे उसकी मांसल और बड़ी बड़ी गोल गोल चुचियाँ
किसी बड़े अमरूद से भी बड़ी थी और किसी तरह पंडित जी के पूरे हाथ मे समा
नही पा रही थी. पंडित जीने चुचिओ को ऐसे मीज़ना शुरू कर दिया जैसे आटा गूथ
रहे हों. चटाई मे लेटी सावित्री ऐसी चुचि मिसाई से बहुत ही मस्त हो गयी और
उसे बहुत अच्छा लगने लगा था. उसका मन अब बुर मे धन्से हुए मोटे लंड को और
अंदर लेने का करने लगा. लेकिन चटाई मे लेटी हुई आँख बंद करके मज़ा ले रही
थी. कुछ देर तक ऐसे ही चुचिओ के मीसावट से मस्त हुई सावित्री का मन अब लंड
और अंदर लेने का करने लगा लेकिन पंडित जी केवल लंड को फँसाए हुए बस चुचिओ
को ही मीज़ रहे थे. चुचिओ की काली घुंडिया एक दम खड़ी और चुचियाँ लाल हो
गयी थी. सावित्री की साँसे अब तेज चल रही थी. सावित्री को अब बर्दाश्त नही
हो पा रहा था और उसे लंड को और अंदर लेने की इच्छा काफ़ी तेज हो गयी. और
धीरज टूटते ही पंडित जी के नीचे दबी हुई सावित्री ने नीचे से ही अपने चूतड़
को उचकाया और पंडित जी इस हरकत को समझ गये और अगले पल सावित्री के इस
बेशर्मी का जबाव देने के लिए अपने शरीर की पूरी ताक़त इकठ्ठा करके अपने
पूरे शरीर को थोड़ा सा उपर की ओर उठाया तो लंड आधा से अधिक बाहर आ गया. और
चुचिओ को वैसे ही पकड़े हुए एक हुंकार मारते हुए अपने लंड को बुर मे काफ़ी
ताक़त से चाँप दिए और नतीज़ा हुआ कि बुर जो चुचिओ की मीसावट से काफ़ी गीली
हो गयी थी, लंड के इस जबर्दाश्त दबाव को रोक नही पाई और पंडित जी के कसरती
बदन की ताक़त से चांपा गया लंड बुर मे जड़ तक धँस कर काली बुर मे गोरा लंड
एकदम से कस गया. बुर मे लंड की इस जबर्दाश्त घूसाव से सावित्री मस्ती मे
उछल पड़ी और चीख सी पड़ी "सी रे ....माई ... बहुत मज़ाअ एयेए राहाआ हाइईइ
आअहह..." फिर पंडित जी ने अपने लंड की ओर देखा तो पाया कि लंड का कोई आता
पता नही था और पूरा का पूरा सावित्री की काली और झांतों से भरी हुई बुर जो
अब बहुत गीली हो चुकी थी, उसमे समा गया था.
पंडित
जी यह देख कर हंस पड़े और एक लंबी साँस छोड़ते हुए बोले "तू बड़ी ही गदराई
है रे....तेरी बुर बड़ी ही रसीली और गरम है..तुझे चोद्कर तो मेरा मन यही
सोच रहा कि तेरी मा का भी स्वाद किसी दिन पेल कर ले लू.....क्यों ....कुच्छ
बोल ..." सावित्री जो चटाई मे लेटी थी और पूरे लंड के घूस जाने से बहुत ही
मस्ती मे थी कुच्छ नही बोली क्योंकि पंडित जी का मोटा लंड उसकी बुर के
दीवारों के रेशे रेशे को खींच कर चौड़ा कर चुका था. और उसे दर्द के बजाय
बहुत मज़ा मिल रहा था. पंडित जी के मुँह से अपने मा सीता के बारे मे ऐसी
बात सुनकर उसे अच्च्छा नही लगा लेकिन मस्ती मे वह कुछ भी बोलना नही पसंद कर
रही थी. बस उसका यही मन कर रहा था की पंडित जी उस घूसे हुए मोटे लंड को
आगे पीछे करें. जब पंडित जी ने देखा की सावित्री ने कोई जबाव नही दिया तब
फिर बोले "खूद तो दोपहर मे मोटा बाँस लील कर मस्त हो गयी है, और तेरी मा के
बारे मे कुछ बोला तो तेरे को बुरा लग रहा है...साली हराम्जादि...कहीं
की.., .वो बेचारी विधवा का भी तो मन करता होगा कि किसी मर्द के साथ अपना मन
शांत कर ले ..लेकिन लोक लाज़ से और शरीफ है इसलिए बेचारी सफेद सारी मे
लिपटी हुई अपना जीवन घूट घूट कर जी रही है...ग़रीबी का कहर उपर से....क्यों
...बोलो सही कहा की नहीं....." इतना कहते ही अगले पल पंडित जी सावित्री की
दोनो चोचिओ को दोनो हाथों से थाम कर ताच.. ताच्छ... पेलना शुरू कर दिए.
पंडित जी का गोरा और मोटा लंड जो बुर के लिसलिस्से पानी से अब पूरी तरीके
से भीग चुका था, सावित्री के झांतों से भरी काली बुर के मुँह मे किसी मोटे
पिस्टन की तरह आगे पीच्चे होने लगा. बुर का कसाव लंड पर इतना ज़्यादे था कि
जब भी लंड को बाहर की ओर खींचते तब लंड की उपरी हिस्से के साथ साथ बुर की
मांसपेशियाँ भी बाहर की ओर खींच कर आ जाती थी. और जब वापस लंड को बुर मे
चाम्पते तब बुर के मुँह का बाहरी हिस्सा भी लंड के साथ साथ कुच्छ अंदर की
ओर चला जाता था. लंड मोटा होने की वजह से बुर के मुँह को एकदम से चौड़ा कर
के मानो लंड अपने पूरे मोटाई के आकार का बना लिया था. सावित्री ने पंडित जी
के दूसरी बात को भी सुनी लेकिन कुछ भी नही बोली. वह अब केवल चुदना चाह रही
थी. लेकिन पंडित जी कुच्छ धक्के मारते हुए फिर बोल पड़े "मेरी बात तुम्हे
ज़रूर खराब लगी होगी .....क्योंकि मैने गंदे काम के लिए बोला ....लेकिन
तेरी दोनो जांघों को चौड़ा करके आज तेरी बुर चोद रहा हूँ ...ये तुम्हें
खराब नही लग रहा है....तुम्हे मज़ा मिल रहा है......शायद ये मज़ा तेरी मा
को मिले यह तुम्हे पसंद नही पड़ेगा.....दुनिया बहुत मतलबी है रे ...और तू
भी तो इसी दुनिया की है...." और इतना बोलते ही पंडितजी हुमच हुमच कह चोदने
लगे और सावित्री उनकी ये बात सुनी लेकिन उसे अपने बुर को चुदवाना बहुत
ज़रूरी था इस लिए मा के बारे मे पंडित जी के कहे बात पर ध्यान नही देना ही
सही समझी. और अगले पल बुर मे लगी आग को बुझाने के लिए हर धक्के पर अपने
चौड़े और काले रंग के दोनो चूतदों को चटाई से उपर उठा देती थी क्योंकि
पंडित जी के मोटे लंड को पूरी गहराई मे घूस्वा कर चुदवाना चाह रही थी.
पंडित
जी के हर धक्के के साथ सावित्री की बुर पूरी गहराई तक चुद रही थी. पंडित
जी का सुपाड़ा सावित्री के बुर की दीवार को रगड़ रगड़ कर चोद रहा था.
सावित्री जैसे सातवें आसमान पर उड़ रही हो. पंडित जी हर धाक्के को अब तेज
करते जा रहे थे. लंड जब बुर मे पूरी तरह से अंदर धँस जाता तब पंडित जी के
दोनो अन्दुए सावित्री के गंद पर टकरा जाते थे. कुछ देर तक पंडित जी
सावित्री को चटाई मे कस कस कर चोद्ते रहे. उनका लंड सावित्री की कसी बुर मे
काफ़ी रगड़ के साथ घूस्ता और निकलता था. पंडित जी को भी कसी हुई बुर का
पूरा मज़ा मिल रहा था तो वहीं सावित्री को भी पंडित जी के कसरती शरीर और
मोटे लूंबे और तगड़े लंड का मज़ा खूब मिल रहा था. कमरे मे फाकच्छ फ़ाच्छ के
आवाज़ भरने लगी. सावित्री का चूतड़ अब उपर की ओर उठने लगा और हर धक्के के
साथ चटाई मे दब जाता था. बुर से पानी भी निकलना काफ़ी तेज हो गया था इस वजह
से बुर का निकला हुआ पानी सावित्री के गंद की दरार से होता हुआ चटाई पर एक
एक बूँद चुहुना शुरू हो गया. सावित्री अब सिसकरने तेज कर दी थी. अचानक
सावित्री के शरीर मे एक ऐंठन शुरू होने लगी ही थी की पंडित जी सावित्री को
कस कर जाकड़ लिए और उसकी गीली और चू रही काली बुर को काफ़ी तेज़ी से चोदने
लगे. चुदाइ इतनी तेज होने लगी कि बुर से निकलने वाला पानी अब बुर के मुँह
और लंड पर साबुन के फेन की तरह फैलने लगा. जब लंड बाहर आता तब उसपर सफेद
रंग के लिसलीषसा पानी अब साबुन की फेन की तरह फैल जाता था. पंडित जी
सावित्री को काफ़ी तेज़ी से चोद रहे थे लेकिन फिर भी सावित्री पीछले दीं की
तरह गिड़गिडाना शुरू कर दी "...सीई....और....तेज...जी पंडित जी ....जल्दी
...जल्दी........" पंडित जी के कान मे ये शब्द पड़ते ही उनके शरीर मे झटके
दार ऐतन उठने लगी उनका कमर का हिस्सा अब झटका लेना शुरू कर दिया क्योंकि
पंडित जी के दोनो अनदुओं से वीर्य की एक तेज धारा चल पड़ी और पंडित जी अपने
पूरे शरीर की ताक़त लगाकर धक्के मारना शुरू कर दिया. अगले पल पंडित जी
सावित्री के कमर को कस लिए और अपने लंड को बुर के एकदम गहराई मे चाँप कर
लंड का अगला हिस्सा बुर की तलहटी मे पहुँचा दिया और लंड के छेद से एक गर्म
वीर्य के धार तेज़ी से निकल कर ज्योन्हि बुर के गहराई मे गिरा कि सावित्री
वीर्य की गर्मी पाते ही चीख सी पड़ी " एयेए ही रे माइ रे बाप
...रे...बाप...आरी पंडित जी बहुत मज़ा ....आ रा..हा ही रे मैया..." और
सावित्री की बुर से रज निकल कर लंड पर पड़ने लगा. पंडित जी का लंड काफ़ी
देर तक झटके ले ले कर वीर्य को बुर मे उडेल रहा था. लगभग पूरी तरीके से
झाड़ जाने के बाद पंडित जी लंड को थोड़ा सा बाहर खींचे और अगले पल वापस बुर
मे चॅंप कर वीर्य की आख़िरी बूँद भी उडेल दिए.
अब
दोनो हाँफ रहे थे और पंडित जी सावित्री के उपर से हट कर लंड को बुर से
बाहर खींचा और चुदाइ के रस से भींग कर सना हुआ लंड के बाहर आते ही बुर की
दोनो काली फाँकें फिर से सटने की कोशिस करने लगी लेकिन अब बुर का मुँह पहले
से कहीं और खूल कर फैल सा गया था. बुर की सूरत पूरी बदल चुकी थी. पंडित जी
बुर पर एक नज़र डाले और अगले पल सावित्री की दोनो जांघों के बीच से हट कर
खड़े हो गये. सावित्री अपनी दोनो जांघों को आपस मे सताते हुए अपनी नज़र
पंडित जी के अभी भी कुछ खड़े लंड पर डाली जो की चुदाई रस से पूरी तरह से
सना था. पंडित जी अगले पल सावित्री की पुरानी चड्डी को उठाया और अपने लंड
के उपर लगे चुदाई रस को पोच्छने लगे. सावित्री ऐसा देख कर एक दम से घबरा सी
गयी. लंड पर काफ़ी ज़्यादे मात्रा मे चुदाई रस लगे होने से चड्डी लगभग भीग
सी गयी. पंडित जी लंड पोच्छने के बाद सावित्री की ओर चड्डी फेंकते हुए
बोला "ले अपनी बुर पोंच्छ कर इसे पहन लेना और कल सुबह नहाते समय ही इसे
धोना...समझी.." चड्डी पर सावित्री की हाथ पड़ते ही उसकी उंगलियाँ गीले
चड्डी से भीग सा गये. लेकिन पंडित जी अब चौकी पर बैठ कर सावित्री की ओर देख
रहे थे और सावित्री कई बार झाड़ जाने के वजह से इतनी थक गयी थी चटाई पर से
उठने की हिम्मत नही हो रही थी. पंडित जी के कहने के अनुसार सावित्री के
चड्डी को हाथ मे लेकर चटाई मे उठ कर बैठ गयी और अपनी बुर और झांतों मे लगे
चुदाई रस को पोछने लगी. लेकिन चड्डी मे पंडित जी के लंड पर का लगा चुदाई रस
सावित्री के पोंछने के जगह पर लगने लगा. फिर सावित्री उठी और बुर को धोने
और मूतने के नियत से ज्योन्ी स्ननगर के तरफ बढ़ी की पंडित जी ने चौकी पर
लेटते हुए कहा "बुर को आज मत धोना....और इस चड्डी को पहन ले ऐसे ही और कल
ही इसे भी धोना...इसकी गंध का भी तो मज़ा लेलो..." सावित्री के कान मे ऐसी
अजीब सी बात पड़ते ही सन्न रह गयी लेकिन उसे पेशाब तो करना ही था इस वजह से
वह सौचालय के तरफ एकदम नंगी ही बढ़ी तो पंडित जी की नज़र उसके काले काले
दोनो चूतदों पर पड़ी और वे भी एकदम से नंगे चौकी पर लेटे हुए अपनी आँख से
मज़ा लूट रहे थे. सावित्री जब एक एक कदम बढ़ाते हुए शौचालय के ओर जा रही थी
तब उसे महसूस हुआ की उसकी बुर मे हल्की मीठी मीठी दर्द हो रहा था. शौचालय
के अंदर जा कर सिटकिनी चढ़ा कर ज्योन्हि पेशाब करने बैठी तभी उसकी दोनो
जांघों और घुटनों मे भी दर्द महसूस हुआ. उसने सोचा कि शायद काफ़ी देर तब
पंडित जी ने चटाई मे चुदाई किया है इसी वजह से दर्द हो रहा है. लेकिन अगले
पल ज्योन्हि वीर्य की बात मन मे आई वह फिर घबरा गयी और पेशाब करने के लिए
ज़ोर लगाई. सावित्री ने देखा की वीर्य की हल्की सी लार बुर के च्छेद से चू
कर रह गयी और अगले पल पेशाब की धार निकलने लगी. पेशाब करने के बाद सावित्री
पिछले दिन की तरह ज़ोर लगाना बेकार समझी क्योंकि बुर से वीर्य बाहर नही आ
पा रहा था. उसके मन मे पंडित जी के वीर्य से गर्भ ठहरने की बात उठते ही फिर
से डर गयी और पेशाब कर के उठी और ज्योन्हि सिटकिनी खोलकर बाहर आई तो उसकी
नज़र पंडित जी पर पड़ी जो की चौकी के बगल मे नंगे खड़े थे और सावित्री के
बाहर आते ही वो भी शौचालय मे घूस गये और हल्की पेशाब करने के बाद अपने लंड
को धो कर बाहर आए. तबतक सावित्री अपनी गीली चड्डी को पहन ली जो की उसे ठंढी
और पंडित जी के वीर्य और बुर के रस की गंध से भरी हुई थी.
पंडित
जी अपने नीगोटा और धोती पहने के बाद अपने कुर्ते मे से एक दवा के पत्ते को
निकाला और अपनी सलवार को पहन रही सावित्री से बोला "कपड़े पहन कर इस दवा
के बारे मे जान लो" सावित्री की नज़र उस दवा के पत्ते पर पड़ते ही उसकी
सारी चिंता ख़त्म हो गयी थी. उसने अपने ब्रा और समीज़ जो जल्दी से पहन कर
दुपट्टे से अपनी दोनो हल्की हल्की दुख रही चुचिओ को ढक कर पंडित जी के पास आ
कर खड़ी हो गयी. पंडित जी ने दवा को अपने हाथ मे लेकर सावित्री को बताया
"तुम्हारी उम्र अब मर्द से मज़ा लेने की हो गयी है इस लिए इन दवा और कुछ
बातों को भी जानना ज़रूरी है....यदि इन बातों पर ध्यान नही दोगि तो लेने के
देने पड़ जाएँगे. सबसे बहले इन गर्भ निरोधक गोलिओं के बारे मे जान
लो....इसे क्यूँ खाना है और कैसें खाना है.." आगे बोले "वैसे तुम्हारी जैसी
ग़रीब लड़कियाँ बहुत दीनो तक मर्दों से बच नही पाती हैं और शादी से पहले
ही कोई ना कोई पटक कर चोद ही देता है...मुझे तो बहुत अचरज हुआ कि तुम अब तक
कैसे बच गयी अपने गाओं के मर्दों से, और आख़िर तुमको मैने तो चोद ही
दिया." फिर पंडित जी दवा के पत्ते की ओर इशारा करते हुए सावित्री को दावा
कैसे कैसे खाना है बताने लगे और सावित्री पंडित जी की हर बात को ध्यान से
सुन कर समझने लगी. आगे पंडित जी बोले " जैसे जैसे बताया है वैसे ही दवा
खाना लेकिन इस दवा के पत्ते पर तुम्हारी मा की नज़र ना पड़े नही तो तेरे
साथ साथ मैं भी पकड़ जाउन्गा, तुम लड़कियो के साथ मज़ा लूटने मे यही डर
ज़्यादे होता है क्योंकि तुम्हारी उम्र की लड़कियाँ चुदाति तो हैं बहुत शौक
से लेकिन पकड़ भी जाती हैं बहुत जल्दी और बदनामी होते देर नही लगती. इस
लिए तुम काफ़ी समझदारी से रहना. इस दवा को घर मे कहीं ऐसे जगह रखना जहाँ
किसी की नज़र ना पड़े" पंडित जी ने दवा के पत्ते को सावित्री के तरफ बढ़ाया
और सावित्री उसे अपने हाथ मे लेकर ध्यान से देखने लगी. फिर पंडित जी बोले
"इस दावा को हमेशा जैसे बताया है वैसे ही खाना. कभी दवा खाने मे लापरवाही
मत करना नही तो लक्ष्मी की तरह तुम्हे भी बच्चा पैदा हो जाएगे...ठीक" इतना
कहते हुए पंडित जी ने चौकी के बगल मे खड़ी सावित्री के चूतड़ पर एक चटा
मारा और एक चूतड़ को हाथ मे लेकर कस के मसल दिया. सावित्री पूरी तरीके से
झनझणा और लज़ा सी गयी. फिर सावित्री दवा को समीज़ के छोटे जेब मे रख ली
दुकान के हिस्से मे आ गयी. सवीरी के उपर से बहुत बड़ी परेशानी हट गयी थी.
अंधेरा
होने से पहले सावित्री घर आ गयी. कई बार झाड़ जाने के वजह से बहुत थक चुकी
थी. घर आते ही घर के पिच्छवाड़े जा कर पेशाब करने के लिए जब चड्डी नीचे की
ओर खिसकाने के लिए ज्योन्हि झाड्दी पर हाथ लगाई तो देखा की चड्डी मे जगह
जगह कडपान हो गया था जो की चुदाई रस के पोछने के वजह से गीली हो गयी थी और
अब सुख कर ऐसा हो गयी थी. सावित्री को महसूस हुआ की अब पेशाब की धार काफ़ी
मोटी और तेज़ी से निकल कर ज़मीन पर टकरा रही थी. सावित्री का मन मस्त हो
गया. मूतने के बाद वापस चड्डी जब पहनने लगी तब चड्डी के सूखे हिस्से को
काफ़ी ध्यान से देखने लगी. उसपर सूखा हुआ चुदाई रस एकदम से कड़ा हो गया था.
जब सावित्री चड्डी को पहन कर उसके उपर के चुदाई रस को देख रही थी तभी
कुच्छ ही दूरी पर धन्नो चाची अपने घर के पिछे मूतने के लिए आई तो देखी कि
सावित्री चड्डी मे अपने घर के पिछे खड़ी हो कर मूतने के बाद चड्डी के उपर
कुच्छ ध्यान से देख रही थी और सलवार अभी पैरों मे ही थी. फिर धन्नो ने भी
कुच्छ ही दूरी पर अपने घर के पीछे मूतने के लिए बैठ गयी और सावित्री की
चड्डी पर नज़रें गाड़ा कर देखने लगी और धन्नो को ऐसा लगा कि चड्डी पर कुछ
भूरे रंग के दाग जगह जगह लगे हों. धन्नो के मन मे यह सवाल आते ही कि आख़िर
किस चीज़ की दाग और कैसे सावित्री के चड्डी मे लग गयी है. यही सोच कर धन्नो
अपना मूत की अंतिम धार को बुर से निकाल ही रही थी कि सावित्री की नज़र
चड्डी से हट कर कुछ ही दूरी पर बैठ कर मूत रही धन्नो चाची के उपर पड़ी तो
सकपका गयी और जल्दी से अपने सलवार को पैरों से उठा कर पहनने की कोशिस करने
लगी. धन्नो चाची का मुँह सावित्री के ओर ही था और जिस तरह से बैठ कर मूत
रही थे की धन्नो की झांतों से भरी बुर पर भी सावित्री की नज़र पड़ी. वैसे
धन्नो चाची अकसर अपने घर के पीचवाड़े मूतने के लिए आती और सारी और पेटिकोट
को कमर तक उठाकर मूतने लगती और धन्नो के बड़े बड़े चूतड़ और कभी काले रंग
की बुर सॉफ सॉफ दीख जाती थी. लेकिन सावित्री के लिए यदि कोई नयी बात थी तो
यह की धन्नो की नज़र उसके दाग लगी हुई चड्डी पर पड़ गयी थी. इसी वजह से
सावित्री एकदम से घबरा गयी और हड़बड़ाहट मे जब सलवार को पहनने लगी तभी
समीज़ के जेब मे रखी हुई दवा का पत्ता जेब से निकल कर ज़मीन पर गिर पड़ा और
उस दवा के पत्ते पर भी धन्नो चाची की नज़र पड़ ही गयी. आगे सलवार का नाडा
एक हाथ से पकड़े हुई सावित्री दूसरे हाथ से ज़मीन पर गिरे हुए दवा के पत्ते
को उठाई और वापस समीज़ के जेब मे रख ली और फिर सलवार के नाडे को जल्दी
जल्दी बाँधते हुए अपने घर के पिछवाड़े से आगे की ओर भाग आई. धन्नो अपने घर
के पीछे ही मूतने के बाद यह सब नज़ारा देख रही थी और सावित्री जब तेज़ी से
भाग गयी तब धन्नो के दिमाग़ मे शंका के शावाल उठने लगे. धन्नो यही सोचते
हुए अपने घर के पीचवाड़े से आगे की ओर आ गयी और घर अगाल बगल होने के नाते
जब सावित्री के घर की ओर देखी तो सावित्री अपने घर के अंदर चली गयी थी. फिर
भी धन्नो मूतने के बाद वापस आ कर अपने पैरों को पानी से धोते हुए यही सोच
रही थी की सावित्री जैसी शरीफ लड़की के चड्डी पर अजीब से दाग लगे थे जिसे
वह ऐसे देख रही थी मानो उसे पहले देखने का मौका ही ना मिला हो और अभी तो
बाज़ार के ओर से आई है तो दाग किसने और कहाँ लगा दिया. दूसरी बात की जो दवा
का पत्ता धन्नो ने देखा वह कोई और दवा का पत्ता की तरह नही बल्कि एक गर्भ
निरोधक पत्ते की तरह थी. यानी वह गर्भ रोकने की दवा ही थी. धन्नो यही सोचते
हुए फिर सावित्री के घर के ओर देखी तो सावित्री अंदर ही थी. धन्नो के मन
मे उठे सवाल बस एक ही तरफ इशारा कर रहे थे की सावित्री को गाओं का हवा लग
चुका है और अब सयानी होने का स्वाद ले रही है. आख़िर जितनी तेज़ी से
सावित्री उसकी नज़रों के सामने से भागी उससे पता चल जा रहा था की सावित्री
के मन मे चोर था. आख़िर धन्नो को अब विश्वास होने लगा की सावित्री अब चुद
चुकी है.
लेकिन अगला सवाल जो धन्नो के मन मे उभरा
की आख़िर कौन उसे चोद रहा है और कहाँ. गर्भ निरोधक दवा उसके पास होने का
मतलब सॉफ था कि चोदने वाला काफ़ी चालाक और समझदार है. क्योंकि सावित्री
इतनी शीधी और शर्मीले स्वभाव की थी कि खुद ऐसी दवा को कहीं से खरीद नही
सकती थी. लेकिन तभी जब धन्नो के मन मे यह बात आई की दवा का पत्ता क्यों
अपने पास रखी थी जब मूतने आई, और फिर जबाव ढूँढा तो पाया कि सावित्री तुरंत
ही बगल के कस्बे से आई थी और किसी ने कुच्छ दिन पहले बताया था कि सावित्री
आज कल बगल के कस्बे मे भोला पंडित के सौंदर्या के दुकान पर काम पकड़ ली
है. यानी कहीं भोला पंडित तो सावित्री की भरी जवानी का मज़ा तो नही लूट
रहें हैं? यही सोचते हुए धन्नो अपने घर के काम मे लग गई !
इधेर
सावित्री अपने घर के अंदर आने के बाद एक दम से घबरा चुकी थी. वैसे घर के
अंदर कोई नही था. मा सीता कहीं काम से गयी थी और छोटा भाई कहीं अगल बगल गया
था. सावित्री के मन मे यही डर समा गया था कि धन्नो चाची को कहीं शक ना हो
जाय नही तो गाँव मे ये बात फैल जाएगी. वैसे धन्नो चाची का घर सावित्री के
बगल मे ही था लेकिन उसकी मा सीता का धन्नो चाची के चालचलन के वजह से आपस मे
बात चीत नही होती थी. कुच्छ दिन पहले कुच्छ ऐसी ही बात को लेकर झगड़ा भी
हुआ था. वैसे धन्नो चाची अधेड़ उम्र की हो चुकी थी और गाओं के चुदैल औरतों
मे उसका नाम आता था. धन्नो का पति कहीं बाहर जा कर कमाता ख़ाता था. कुच्छ
शराबी किस्म का भी था. और जो कुछ पैसा बचाता धन्नो को भेज देता था. धन्नो
भी गाओं मे कई मर्दों से फँस चुकी थी और लगभग हर उम्र के लोग चोद्ते थे.
धन्नो की एक लड़की थी जिसकी उम्र 22 साल के करीब थी. जिसका नाम मुसम्मि था.
मुसम्मि की शादी करीब चार साल पहले हुआ था लेकिन शादी के पहले ही कई साल
तक चुदैल धन्नो की बेटी मुसम्मि को गाओं के आवारों और धन्नो के कुच्छ चोदु
यारों ने इतनी जोरदार चुदाइ कर दी की मुसम्मि भी एक अच्छी ख़ासी चुदैल निकल
गयी और शादी के कुच्छ महीनो के बाद ही ससुराल से भाग आई और फिर से गाओं के
कई लुंडों के बीच मज़ा लेने लगी. इसी कारण से सावित्री की मा सीता धन्नो
और उसके परिवार से काफ़ी दूरी बनाकर रहती थी. वैसे सावित्री कभी कभार अपनी
मा के गैरमौज़ूदगी मे मुसम्मि से कुच्छ इधेर उधेर की बाते कर लेती थी.
लेकिन
आम तौर पर दोनो परिवार आपस मे कोई बात चीत नही करते थे. इस तरह के दो
परिवार के झगड़े और तनाव भरे माहौल मे सावित्री का डर और ज़्यादा हो गया की
कहीं धन्नो चाची पूरे गाओं मे शोर ना मचा दे नही तो वह बर्बाद हो जाएगी.
सावित्री को ऐसा लगने लगा कि उसकी पूरी इज़्ज़त अब धन्नो चाची के हाथ मे ही
है. उसे यह भी डर था कि यह बात यदि उसकी मा सीता तक पहुँचेगी तब क्या
होगा. घबराई हालत मे सावित्री अपने घर के अंदर इधेर उधेर टहल रही थी और
साँसे तेज चल रही थी. अब अंधेरा शुरू होने लगा थे की उसकी मा और भाई दोनो
आते हुए नज़र आए. तभी सावित्री तेज़ी से दवा के पत्ते को घर के कोने मे कुछ
रखे सामानो के बीच च्छूपा दी. लेकिन उसके दिमाग़ मे धन्नो चाची का ही
चेहरा घूम रहा था. उसके मन मे यह भी था की यदि धन्नो चाची मिले तो वह उसका
पैर पकड़ कर रो लेगी की उसकी इज़्ज़त उसके हाथ मे है और अपनी बेटी समझ कर
जो भी देखी या समझी है उसे राज ही रहने दे. लेकिन दोनो परिवारों के बीच
किसी तरह की बात चीत ना होने के वजह से ऐसे भी कोशिस मुश्किल लग रही थी.
ओर
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